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Oct 15, 2022

भारतीय संघवाद एवं बदलता स्‍वरूप

 

भारतीय संघवाद एवं बदलता स्‍वरूप 

भारत राज्यों का संघ है तथा संघीय व्यवस्था का विकास संघ एवं राज्यों के बीच सहयोगात्मक सहअस्तित्व से विकसित होता है। स्वतंत्रता के बाद भारत में संघीय व्यवस्था अपनाई गई लेकिन सांप्रदायिक आधार पर विभाजन तथा इससे उत्पन्न परिस्थितियों ने भारत में शक्तिशाली केंद्र तथा उस पर निर्भर राज्य वाली नई केंद्रीकृत संघीय व्यवस्था को जन्म दिया।

संघीय सरकार वह व्यवस्था होती है जिसमें शक्तियां संविधान द्वारा केंद्र एवं राज्य के बीच विभाजित किया जाता है तथा दोनों अपने-अपने अधिकारों का स्वतंत्रतापूर्वक प्रयोग करते हैं। भारतीय संविधान में भारत को राज्यों का संघ कहा गया है जिसका तात्पर्य है कि

  1. भारतीय संघ राज्यों के बीच सहमति का प्रतिफल नहीं है।
  2. राज्यों को यह अधिकार नहीं है कि वह संघ से पृथक हो सके।

भारत में संघीय व्यवस्था को दो कारणों से अपनाया गया देश का वृहद आकार तथा दूसरा सामाजिक सांस्कृतिक विविधता।

  

भारतीय संविधान की संघात्मक विशेषताएं

द्वैध शासन व्यवस्था 

संविधान द्वारा केंद्र एवं राज्य स्तर पर द्वैध शासन की व्यवस्था की गई है तथा इन्हें संविधान द्वारा अपने-अपने क्षेत्र में संप्रभु शक्तियां दी गई हैं। सामान्य रूप में राष्ट्रीय महत्व के विषय केंद्र को तथा स्थानीय एवं क्षेत्रीय महत्व के विषय को राज्य सरकार को सौंपा गया है

लिखित संविधान

भारत का संविधान लिखित संविधान है जिसमें केंद्र एवं राज्य सरकार के कर्तव्य एवं अधिकारों का वर्णन किया गया है जिससे दोनों के बीच मतभेद की संभावना ना हो।

शक्तियों का विभाजन

सातवीं अनुसूची द्वारा केंद्र एवं राज्य दोनों के मध्य शक्तियों का विभाजन किया गया है। समवर्ती सूची पर दोनों कानून बना सकते हैं किंतु असहमति की स्थिति में केंद्र का कानून प्रभावी होगा।

कठोर संविधान

वैसे प्रावधान जो संघीय संरचना से संबंधित हैं उनमें किसी प्रकार के संशोधन को केंद्र के साथ-साथ राज्यों की सहमति से ही किया जा सकता है।

संविधान की सर्वोच्चता

भारतीय शासन व्यवस्था में संविधान सर्वोच्च तथा इसी के परिप्रेक्ष्य में भारत में कानून बनाए जाते हैं तथा शासन व्यवस्था संचालित की जाती है।

स्वतंत्र न्यायपालिका 

संविधान ने दो कारणों से उच्चतम न्यायालय के नेतृत्व में स्वतंत्र न्यायपालिका का गठन किया है प्रथम अपनी न्यायिक समीक्षा का प्रयोग कर संविधान की सर्वोच्चता स्थापित करना दूसरा केंद्र एवं राज्यों के बीच विवादों के निपटारे हेतु।

द्विसदनीय व्यवस्था 

उच्च सदन भारत के राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है यद्यपि राज्यसभा कम शक्तिशाली है फिर भी केंद्र के अनावश्यक हस्तक्षेप से राज्यों के हितों की रक्षा करती हुई है 

संविधान की एकात्मक विशेषताएं

सशक्त केंद्र

 

शक्तियों का विभाजन केंद्र के पक्ष में है तथा केंद्रीय सूची में राज्य के मुकाबले  महत्वपूर्ण तथा ज्यादा विषय  शामिल किए गए हैं । इसके अलावा समवर्ती सूची में केंद्र को प्राथमिकता है तथा अबशिष्ट शक्तियां केंद्र के पास है।

अनश्वर राज्य नहीं

 

संसद एकतरफा कार्रवाई करके राज्यों की सीमाक्षेत्रराज्यों के नाम में परिवर्तन कर सकता हैऔर इस हेतु साधारण बहुमत की जरूरत होती है।

एकल संविधान

भारत में एक ही संविधान की व्यवस्था है जबकि सामान्यतः संघीय व्यवस्था में राज्यों का भी अलग संविधान होता है।

एकीकृत न्यायपालिका

इस व्यवस्था में सर्वोच्च न्यायालय शीर्ष पर है तथा इसके अधीन अन्य न्यायालय है। यह एकल न्याय व्यवस्था केन्द्र एवं राज्य दोनों पर लागू होती है।

संविधान का लचीलापन

संविधान के एक बड़े हिस्से को संसद साधारण या विशेष बहुमत से संशोधित कर सकती है तथा इसमें किसी राज्य की अनुमति आवश्यक नहीं होती।

राज्य प्रतिनिधित्व में समानता का अभाव

राज्यसभा में सभी राज्यों का समान प्रतिनिधित्व नहीं है  तथा इसे सामान्यतः छोटे राज्यों को हानि होती है।

राज्यपाल की नियुक्ति

राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा तथा राज्यपाल के माध्यम से केंद्र द्वारा राज्य पर नियंत्रण रखा जाता है।

एकीकृत न्यायपालिका

 

सामान्यतः संघीय व्यवस्था में दोहरी न्याय व्यवस्था होती है। संघीय कानून हेतु संघीय न्यायपालिका तथा राज्य कानून हेतु राज्य न्यायपालिका लेकिन भारत में एकीकृत न्यायपालिका की व्यवस्था की गई है जिसमें शीर्ष पर सर्वोच्च न्यायालय है।

अखिल भारतीय सेवाएं

 

अखिल भारतीय सेवाओं में नियुक्तिचयन प्रशिक्षण आदि प्रक्रिया केंद्र द्वारा नियंत्रित होती हैं तथा इन सेवाओं द्वारा केंद्र राज्यों पर अपना नियंत्रण रखती है।

वित्तीय निर्भरता

 

वित्तीय मामलों में राज्य केंद्र पर निर्भर है राज्य अपने जरूरत के वित्तीय संसाधन का प्रयोग नहीं कर सकता इसके अलावा वित्तीय संकटअन्य अवसरों पर राज्य केंद्र पर निर्भर होता है।

राज्य सूची पर संसद का प्राधिकार

जब राज्यसभा राज्य सूची के विषय पर कानून बनाने का प्रस्ताव पारित कर देता है तो संसद उस विषय पर कानून बनाने का अधिकारी हो जाता है।

आपातकालीन उपबंध

संविधान में तीन प्रकार के आपातकाल की व्यवस्था की गई है जिसके लागू होने पर राज्य केंद्र के पूर्ण नियंत्रण में आ जाता है।

संविधान संशोधन की पहल

संविधान में किसी प्रकार के संशोधन की पहल संसद ही कर सकती है और राज्य सरकार द्वारा इस प्रकार संशोधन का प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता है।

राज्य के विधेयकों पर वीटो

राज्यपाल राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति की संस्तुति हेतु सुरक्षित रखने का अधिकार है तथा राष्ट्रपति को राज्य विधेयकों पर वीटा का अधिकार है।


उपरोक्त से स्पष्ट है कि भारतीय संघ व्यवस्था परंपरागत संघीय व्यवस्था से भिन्न है और शक्ति संतुलन केंद्र के पक्ष में होना वित्तीय मामलों में केंद्रीय निर्भरता इसके एक एकात्मकता का प्रमुख कारण है। जेनिंग्स महोदय इसे मजबूत केंद्र वाला संघ कहते हैं जबकि ऑस्टिन सहकारी संघीय व्यवस्था मानते हैं। डॉ.बी.आर. अंबेडकर के अनुसार भारतीय संविधान समय और परिस्थितियों के अनुसार एकात्मक और संघीय हो सकता है।

यह सत्य है की  भारतीय संघ व्यवस्था में संघ ज्यादा शक्तिशाली है तथा केंद्रीकरण की प्रवृत्ति पाई जाती है किंतु इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि संघ एवं राज्यों के बीच सहयोग के महत्वपूर्ण बिंदु भी हैं इसलिए भारतीय संघ को सहकारी संघीय व्यवस्था भी कहा जाता है। उल्लेखनीय है कि संघ एवं राज्य दोनों को संविधान द्वारा बनाया गया है तथा राज्यों का अपना संवैधानिक अस्तित्व है यह केंद्र के एजेंट नहीं बल्कि अपने क्षेत्र में राज्य सर्वोच्च है। 

भारतीय राज्य व्यवस्था में संघीय व्यवस्था के द्योतक कार्य

  1. राज्य के बीच क्षेत्रीय विवाद।
  2. नदी जल बंटवारे को लेकर राज्यों के बीच होने वाली विवाद।
  3. क्षेत्रीय दलों का उद्भव तथा  राज्यों की सत्ता में आना 
  4. क्षेत्रीय अपेक्षाओं को पूरा करने हेतु नए राज्यों का गठन जैसे झारखंडतेलंगाना।
  5. अपने विकास हेतु राज्य द्वारा केंद्र से अधिक अनुदान की मांगविशेष राज्य का दर्जा।
  6. राज्य द्वारा अपनी स्वायत्तता को बरकरार रखते हुए केंद्र के हस्तक्षेप पर प्रतिक्रिया।
  7. ¶  कुछ व्यवस्थाओं  जैसे राष्ट्रपति शासन के प्रयोग इत्यादि में सर्वोच्च न्यायालय का हस्तक्षेप।

भारतीय संघवाद का बदलता स्वरूप

प्रथम चरण

केंद्रीकृत संघवाद का  काल  1950-1967

1950 से 1967 तक केंद्र एवं राज्य में कांग्रेस का एकछत्र शासन होने से बेहतर तालमेल हुआ और केन्द्र एवं राज्य के बीच ज्यादा टकराव देखने में नहीं आया। छोटे मोटे मतभेदों को संगठन के स्तर पर ही हल कर लिया गया। इस प्रकार इस समय केन्द्रीकृत संघवाद था जिसमें राज्य शक्ति विभाजन से असंतुष्ट थे लेकिन केंद्र राज्य विवाद सामने नहीं आए।


द्वितीय चरण

तनावपूर्ण एवं सौदेबाजी संघवाद का काल 1967- 1990

1967 के चुनाव के बाद 8 राज्यों में गैर कांग्रेसी सरकार बनी और इसके बाद से संघ राज्य के संबंधों में विरोध एवं असहमति का दौर आरंभ हुआ और राज्यों ने अपने राज्य क्षेत्र में केंद्रीय हस्तक्षेप का विरोध करना आरंभ कर दिया।

इसी दौर में अनुच्छेद 356 के दुरुपयोग के समाधान हेतु राजमन्नार समिति व सरकारिया आयोग का गठन किया गया।

इस काल में केंद्रीय नेतृत्व को राज्यों की मांग के आगे झुकना पड़ा जिससे केंद्र एवं राज्य की आपसी निर्भरता में वृद्धि हुई। उल्लेखनीय है कि 1967 के बाद केंद्र और राज्य के बीच विवादों के उपरांत भी सहयोग बना रहा और सहयोगी संघवाद का युग आरंभ हुआ।

1977 के चुनाव में जनता दल की गठबंधन सरकार बनने के बाद दो महत्वपूर्ण परिणाम हुए। पहला गठबंधन की सरकार बनने से शक्तिशाली केंद्र की अवधारणा का ह्रास हुआ तथा दूसरा केंद्र को दिए गए समर्थन के बदले क्षेत्रीय दल लाभ की इच्छा रखने लगे। यह केंद्रीय संघवाद के सौदेबाजी संघवाद में बदलाव का संकेत था इसी क्रम में भारतीय मतदाता भी कांग्रेस के बजाए क्षेत्रीय दलों को महत्व देने लगे।

तृतीय चरण

सहकारी संघवाद का  युग 1990 

1991 में अन्य दलों के सहयोग से कांग्रेस की पुनः सत्ता में वापसी होती है और गठबंधन सरकार का दौर प्रारंभ होता है जिसमें क्षेत्रीय दल सरकार बनाने और गिराने की भूमिका में आ जाते हैं। राज्यों के राजनीतिक कद में वृद्धि होती है और उनके क्षेत्रीय आकांक्षाओं को बेहतर प्रतिनिधित्व मिलता है। इस प्रकार सशक्त केंद्रित संघवाद की अवधारणा को आघात लगा और राज्यों को लाभ मिला यद्यपि संवैधानिक दृष्टि से केंद्र अभी भी सशक्त है।

राजनीतिक एवं आर्थिक परिदृश्य में आने वाले बदलाव तथा योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग के आने से से सहकारी संघवाद की अवधारणा को बढ़ावा मिलता है।

इस दौर में आयी प्रवृत्ति से राजनीति में क्षेत्रवाद, अलगाववाद की भावना भी आई जो संघवाद के केंद्रीय धारा को कमजोर करता है। इसी क्रम में अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग, राज्यपाल की स्थिति, GST एवं केंद्र पर राज्य की वित्तीय निर्भरता, राज्य द्वारा स्वायत्तता की मांग आदि जैसी समस्याएं भी उभरी।

वर्तमान में अधिक स्वायत्तता की मांग, केंद्रीय हस्तक्षेप का विरोध इत्यादि भारतीय संघवाद की विशेषता बन गई है जिसे निम्न रूपों में देखा जा सकता है।

  1. पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, पंजाब जैसे कुछ राज्यों द्वारा अधिक स्वायत्तता की मांग 
  2. कुछ राज्यों द्वारा अधिक वित्तीय सहायता, विशेष राज्य के दर्जे की मांग करना। बिहार लंबे समय से विशेष राज्य के दर्जे की मांग कर रहा है।
  3. केंद्रीय नियंत्रण में कमी तथा राज्यपाल की नियुक्ति भूमिका पर राज्य के मुख्यमंत्री की सलाह लेना।
  4. पूर्वोत्तर भारतकश्मीर में विखंडनकारी, अलगाववादी तत्व की नकारात्मक प्रवृतियों में उभार।
  5. राज्यों के स्वरूप में समानता तथा धीरे-धीरे बढ़ती एकजुटता। 

सहयोगी संघवाद के उदाहरण

  1. योजना आयोग के स्थान पर नीति आयोग लाया गया।
  2. GST पर सहमति और निर्माण केन्द्र एवं राज्यों के मध्य सहयोग का अच्छा उदाहरण है।
  3. अंतर्राज्जयीय परिषद के माध्यम से केन्द्र एवं राज्यों के बीच सहयोगात्मक कार्यों को बढ़ावा दिया जाता है।
  4. केन्द्र की सरकारी योजनाओं को राज्यों द्वारा अपने राज्यों में लागू किया जाना।

वर्तमान संदर्भ में संघवाद की चुनौतियां

हाल के वर्षो की कुछ घटनाओं को देखा जाए तो प्रतीत होता है कि सहयोगी संघवाद की भूमिका भारत में कम हो गयी है तथा राज्यों में केन्द्र का हस्तक्षेप बढ़ा है।

संसाधनों के आवंटन तथा कल्याणकारी योजनाओं में केन्द्र की भूमिका बढ़ती जा रही है। राज्यों को खर्च ज्यादा करना होता है लेकिन उनके पास स्रोत की कमी है। उल्लेखनीय है कि GST, पेट्रोलियम पदार्थ, अल्कोहल, संपत्ति कर राज्यों के राजस्व के प्रमुख स्रोत हैं लेकिन इनसे राज्यों को उतनी आय प्राप्त नहीं हो पा रही। कोविड के काल में तो राज्यों की हालत और दयनीय है।

महामारी के दौरान सभी केन्द्रीय मंत्रालयों को व्यय में कटौती करने का आदेश दिया गया है। इसका सीधा प्रभाव राज्यों  पर पड़ता है। इस कारण अनेक ग्रामीण विकास कार्यक्रम रुक गए हैं।

पिछले कुछ वर्षों में राज्य सरकारों के कराधान के अधिकार लगभग पूरी तरह से समाप्त हो गए है। वस्तु एवं सेवा कर को लागू करके केन्द्र सरकार ने राज्यों की शक्ति को अपने हाथों में केन्द्रित कर लिया है। अब उन्हें कर-दर और राजस्व के लिए जीएसटी परिषद् पर निर्भर रहना पड़ता है।

केन्द्रीय योजनाओं के माध्यम से केन्द्र का हस्तक्षेप हाल के वषों में बढ़ा है। कोरोना महामारी के दौरान स्वास्थ्य के क्षेत्र में केन्द्र का हस्तक्षेप बढ़ा है। इसके अलावा केन्द्र द्वारा कई स्वास्थ्य योजनाएं आरंभ की जाती है जिसमें राज्यों को भी योगदान देना पड़ता है। राज्यों की मांग है कि केन्द्र योजनाओं के बजाए आर्थिक मदद उपलबध कराए ताकि राज्य अपनी आवश्यकताओं के अनुसार कार्य कर सके क्योंकि स्वास्थ्य राज्य का मामला है।

कोरोना महामारी के दौरान बिना राज्यों की चर्चा के पूरे देश में लॉकडाउन लगाना इसके अलावा कोरोना टीकाकरण नीति तथा टीका मूल्यों पर भिन्नताएं भी सहयोगी संघवाद के विरुद्ध है।

केन्द्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा राज्य के शिक्षा मंत्री के बजाए शिक्षा सचिवों तथा कलेक्टरों से चर्चा करना भी हाल के दिनों में विवाद का कारण था क्योंकि इसमें आरोप लगाया गया कि केन्द्र राज्य के नेताओं, मंत्रियों के बजाए राज्य के उच्च अधिकारियों के साथ चर्चाएं कर रहा है।

राजनीतिक विरोधियों के विरुद्ध आयकर, ED, CBI जैसी संस्थाओं का प्रयोग भी हाल के दिनों में बढ़ा है जो केन्द्र एवं राज्य के विवादों को जन्म देता है। केन्द्र एवं पश्चिम बंगाल के हाल के मामले देखे जा सकते हैं। इसके अलावा राज्यों के विश्वविद्यालयों में वाइस चांसलर की नियुक्ति में राज्यों का हस्तक्षेप भी बढ़ा है।

स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार महामारी के दौर में राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद में 303 लाख करोड़ रुपये या 135% की हानि हुई है। राज्यों ने अपने नागरिकों की आजीविका और देखभाल के लिए बड़ी राशि लगाई है। इन सबमें केन्द्र का योगदान नगण्य रहा है।

सहयोगी संघवाद सुधार हेतु कुछ उपाए

  1. नीति निर्माण में राज्यों को अधिक से अधिक अधिकार दिए जाए।
  2. राष्ट्रपति शासन को अंतिम विकल्प के रूप में प्रयोग किया जाए।
  3. अंतर्राज्यीय परिषद की बैठके नियमित रूप से की जाए।
  4. राज्यों की केन्द्र पर निर्भरता कम करने हेतु राज्यों को ज्यादा वित्तीय संसाधन उपलबध कराए जाए।
  5. GST प्रावधानों की समीक्षा करते हुए उन उपायों को लाया जाए जिससे राज्यों की वित्तीय हालत में सुधार हो।


BPSC मुख्य परीक्षा संबंधी नोट्स की विशेषताएं

  1. To the Point  और Updated Notes
  2. सरलस्पष्ट  एवं बेहतर प्रस्तुतीकरण 
  3. प्रासंगिक एवं परीक्षा हेतु उपयोगी सामग्री का समावेश 
  4. सरकारी डाटासर्वेसूचकांकोंरिपोर्ट का आवश्यकतानुसार समावेश
  5. आवश्यकतानुसार टेलीग्राम चैनल के माध्यम से इस प्रकार के PDF द्वारा अपडेट एवं महत्वपूर्ण मुद्दों को आपको उपलब्ध कराया जाएगा 
  6. रेडिमेट नोट्स होने के कारण समय की बचत एवं रिवीजन हेत उपयोगी 
  7. अन्य की अपेक्षा अत्यंत कम मूल्य पर सामग्री उपलब्ध होना।
  8. मुख्‍य परीक्षा को समर्पित टेलीग्राम ग्रुप की निशुल्‍क सदस्‍यता ।

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भारतीय संविधान एवं राजव्‍यवस्‍था

 

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