केन्द्र राज्य संबंध-सहयोग एवं शक्ति संतुलन
प्रश्न- भारतीय संविधान द्वारा एक ओर जहां केंद्र राज्य संबंधों में संतुलन बनाते हुए सहयोग एवं समन्वय स्थापित करने की व्यवस्था की गई है, वहीं दूसरी ओर विशेषकर विधायी एवं प्रशासनिक संबंधों में शक्ति संतुलन केंद्र की ओर ज्यादा झुका हुआ है, चर्चा करें ?
संघीय स्वरूप वाले भारतीय संविधान में
केन्द्र एवं राज्य के बीच सहयोग और समन्वय हेतु समस्त विधायिका, कार्यपालिका एवं
वित्तीय शक्तियों को स्पष्ट रूप से विभाजित किया गया है जिसे निम्न प्रकार समझा
जा सकता है:-
विधायी संबंध में सहयोग
एवं संतुलन
केन्द्र एवं राज्य के बीच विधायी
क्षेत्र में सहयोग एवं संतुलन संबंधी संवैधानिक प्रावधान को निम्न प्रकार समझा जा
सकता है-
केन्द्र एवं राज्य के सीमांत क्षेत्र का विभाजन
अनुच्छेद
245
- इस अनुच्छेद के अनुसार केन्द्र एवं राज्यों के विधान के सीमांत क्षेत्र को स्पष्ट कर सहयोग एवं संतुलन बनाने का प्रयास किया गया है। इसके अनुसार संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए संसद भारत के संपूर्ण राज्य क्षेत्र अथवा उसके किसी भाग के लिये विधि बना सकेगी जबकि किसी राज्य का विधानमंडल उस संपूर्ण राज्य अथवा किसी भाग के लिये विधि बना सकेगा।
केन्द्र एवं राज्य के विधायी विषयों का विभाजन
- संविधान द्वारा सातवीं अनुसूची दी गयी तीन प्रकार की सूचियाँ के माध्यम से केंद्र व राज्यों के बीच विधायी शक्तियों का बंटवारा कर संतुलन बनाया गया है जो निम्न प्रकार है:-
सूची |
क्षेत्र |
अधिकार
क्षेत्र |
संघ सूची |
रक्षा, संचार, विदेश नीति आदि |
केंद्र
के कानून प्रभावी । |
राज्य
सूची |
स्थानीय
शासन, मत्स्य पालन,
सार्वजनिक व्यवस्था |
राज्य
सरकार के पास कानून बनाने की शक्ति केन्द्र
एवं राज्य के मध्य मतभेद की स्थिति में राज्य कानून के ऊपर केंद्रीय कानून को
वरीयता। |
समवर्ती
सूची |
सिविल
प्रक्रिया, विवाह एवं तलाक, श्रम कल्याण, बिजली |
केंद्र व
राज्य दोनों को कानून बनाने की शक्ति । कानून
निर्माण में विरोध होने पर केंद्र के कानून प्रभावी । |
प्रशासनिक संबंध में
सहयोग एवं संतुलन
केन्द्र एवं राज्य के बीच प्रशासनिक
क्षेत्र में सहयोग एवं संतुलन संबंधी संवैधानिक प्रावधान को निम्न प्रकार समझा जा
सकता है
- संविधान के भाग 11 में अनुच्छेद 256
से 263 तक केन्द्र-राज्य
प्रशासनिक संबंधों की चर्चा की गई है। इसके तहत केन्द्र की कार्यपालिका शक्ति का
विस्तार पूरे देश में जबकि राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार संबंधित राज्य
में है।
- अनुच्छेद 262 के अंतरराज्यीय
नदी विवाद पर ।
- लोक अधिनियम, रिकार्ड एवं न्यायिक
प्रक्रिया।
- अनुच्छेद 263 द्वारा राष्ट्रपति को
अंतरराज्यीय परिषद का गठन करने की शक्ति ।
- व्यापार प्राधिकरण के संबंध में सहयोग
इस प्रकार संविधान के उपरोक्त
प्रावधानों के द्वारा केन्द्र एवं राज्य के बीच सीमांत क्षेत्र एवं विषयों का विभाजन
कर सहयोग एवं संतुलन स्थापित करने का प्रयास किया गया है। फिर भी अनेक ऐसे संवैधानिक प्रावधान है जिसके
माध्यम से केन्द्र किसी राज्य क्षेत्र में न केवल अपने कानून लागू कर सकता है
बल्कि राज्य के विधान पर अपना नियंत्रण भी स्थापित कर सकता है जिसके कारण शक्ति
संतुलन केन्द्र की ओर ज्यादा झुका हुआ है ।
विधायी संबंधों में शक्ति
संतुलन केन्द्र की ओर
राज्य क्षेत्र में संसदीय कानून
संविधान द्वारा कुछ विशेष
परिस्थितियों का उल्लेख किया गया है जहां पर किसी राज्य क्षेत्र में संसदीय कानून
लागू किए जा सकते हैं जैसे
- संविधान के अनुच्छेद 249 के अनुसार राज्यसभा
के प्रस्ताव द्वारा
- अनुच्छेद 250 के तहत राष्ट्रीय
आपातकाल के दौरान।
- अनुच्छेद 252 के अनुसार किसी
राज्य के अनुरोध या उनकी सहमति पर।
- अनुच्छेद 253 के तहत
अंतर्राष्ट्रीय संधि, करार, अभिसमय को
लागू करवाने हेतु।
राज्य के विधान पर केन्द्र का नियंत्रण
- राज्यपाल द्वारा विधेयक आरक्षित रखना।
- राज्य सूची से संबंधित कुछ विषय पर।
- वित्तीय आपातकाल के समय।
अवशिष्ट शक्तियाँ
संविधान की सातवी अनुसूची के अनुसार उन
सभी विषयों पर संसद को कानून बनाने का अनन्य अधिकार है जिनका उल्लेख राज्य व
समवर्ती सूची में नहीं है। दूसरे शब्दों में केंद्र सरकार के पास अवशिष्ट शक्तियाँ
हैं जिससे विषय विभाजन में शक्ति संतुलन केन्द्र की ओर ज्यादा झुका हुआ है ।
प्रशासकीय संबंधों संबंधों
में शक्ति संतुलन केन्द्र की ओर
केन्द्र एवं राज्य के प्रशासकीय
संबंधों के परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो केन्द्र द्वारा राज्य को निम्न विषयों
पर निर्देश दिया जा सकता है।
- राष्ट्रीय महत्व के संचार साधनों के निर्माण एवं संरक्षण सुनिशचित करने हेतु।
- प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा सुविधाएं उपलब्ध कराने हेतु ।
- यह सुनिश्चित करने हेतु कि प्रत्येक राज्य सरकारें संविधान के उपबंधों के अनुसार संचालित हो।
- अनुसुचित जातियों के कल्याण स्कीम बनाने और उसके निष्पादन के संबंध में।
- रेलों का संरक्षण एवं रखरखाव हेतु।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि केन्द्र एवं
राज्य के प्रशासकीय संबंधों के कुछ प्रावधानों का उद्देश्य केन्द्र द्वारा राज्यों
को नियंत्रित करना है। अतः यह स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक संबंध की दृष्टि से भी
शक्ति संतुलन केन्द्र की ओर ज्यादा है।
निष्कर्ष
उपरोक्त केन्द्र एवं राज्य के विधायी एवं
प्रशासकीय संबंधों से स्पष्ट है कि जहां कुछ प्रावधानों के माध्यम से केन्द्र
एवं राज्यों की सीमाओं को निर्धारित किया गया है वहीं समवर्ती सूची और अवशिष्ट
शक्तियां द्वारा शक्ति संतुलन केन्द्र के पक्ष में है ।
इसके अलावा अनेक विशेष परिस्थितियों
में राज्यों में संघीय कानून लागू होते हैं तथा अनेक विषयों पर केन्द्र राज्यों
को निर्देश भी दे सकता है । इस प्रकार शक्ति संतुलन राज्यों की अपेक्षा केन्द्र
की ओर झुका हुआ है।
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