केन्द्र राज्य संबंध
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भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था संबंधी अन्य महत्वपूर्ण लेख
भारतीय संविधान संघीय स्वरूप का है तथा समस्त विधायिका, कार्यपालिका एवं वित्तीय शक्तियां केन्द्र एवं राज्यों के मध्य विभाजित किया गया है ताकि केन्द्र एवं राज्य के बीच सहयोग और समन्वय स्थापित हो सके। संविधान के भाग 11 में केन्द्र-राज्य संबंधों की चर्चा की गई है। इसके अलावा संविधान की 7वीं अनुसूची में भी केन्द्र राज्य संबंधों का उल्लेख किया गया है।
केन्द्र एवं राज्य के विधायी संबंध
केन्द्र
एवं राज्य के विधान के सीमांत क्षेत्र
- संविधान
के अनुच्छेद 245 में केन्द्र एवं राज्यों के विधान के सीमांत क्षेत्र को स्पष्ट किया गया
है।
- इसके अनुसार संविधान के उपबंधों के अधीन रहते हुए संसद भारत के संपूर्ण राज्य क्षेत्र अथवा उसके किसी भाग के लिये विधि बना सकेगी
- किसी राज्य का विधानमंडल उस संपूर्ण राज्य अथवा किसी भाग के लिये विधि बना सकेगा।
विधायी विषयों का बंटवारा
संविधान में केंद्र व राज्यों के बीच
विधायी शक्तियों के बंटवारे के रूप में सातवीं अनुसूची में तीन प्रकार की सूचियाँ
दी गयी है
- संघ
सूची- इस
सूची में रक्षा, संचार, विदेश नीति आदि
शामिल हैं जिसमें केवल केंद्र के कानून प्रभावी होते हैं।
- राज्य
सूची- इस
सूची में स्थानीय शासन, मत्स्य पालन, सार्वजनिक
व्यवस्था आदि जैसे 61 विषय शामिल है जिसमें राज्य सरकार के
पास कानून बनाने की शक्ति है। हांलाकि केन्द्र एवं राज्य के मध्य मतभेद की स्थिति
में राज्य कानून के ऊपर केंद्रीय कानून को वरीयता मिलेगी।
- समवर्ती
सूची- इस
सूची में सिविल प्रक्रिया, विवाह एवं तलाक, श्रम कल्याण, बिजली जैसे 52 विषय
शामिल है जिस पर केंद्र व राज्य दोनों कानूनों बना सकते हैं लेकिन कानून निर्माण
में विरोध होने पर केंद्र के कानून प्रभावी होते हैं।
अवशिष्ट शक्तियाँ- उपरोक्त के अलावा वे
सभी उन सभी विषयों पर संसद को कानून बनाने का अनन्य अधिकार है जिनका उल्लेख राज्य
व समवर्ती सूची में नहीं है। दूसरे शब्दों में केंद्र सरकार के पास अवशिष्ट
शक्तियाँ हैं।
राज्य क्षेत्र में संसदीय कानून
निम्न विशेष स्थितियों में किसी राज्य
क्षेत्र में संसदीय कानून लागू किए जा सकते हैं
- संविधान
के अनुच्छेद 249 के अनुसार राज्यसभा के प्रस्ताव द्वारा
- अनुच्छेद
250 के
तहत राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान।
- अनुच्छेद
252 के
अनुसार किसी राज्य के अनुरोध या उनकी सहमति पर।
- अनुच्छेद
253 के
तहत अंतर्राष्ट्रीय संधि, करार, अभिसमय
को लागू करवाने हेतु।
राज्य के विधान पर
केन्द्र का नियंत्रण
- राज्यपाल द्वारा विधेयक आरक्षित रखना।
- राज्य सूची से संबंधित कुछ विषय पर।
- वित्तीय आपातकाल के समय।
उपरोक्त केन्द्र एवं राज्य के विधायी
संबंधों से स्पष्ट है कि केन्द्र की अपेक्षा राज्यों के विधायी शक्तियां काफी कम
है। समवर्ती सूची और अवशिष्ट शक्तियां जहां विधायी मामलों में शक्ति संतुलन को
केन्द्र के पक्ष में करती है वही अनेक विशेष परिस्थितियों में राज्यों में संघीय
कानून लागू होते हैं। इस प्रकार विधायी संबंधों में राज्यों की अपेक्षा संघीय
सरकार ज्यादा शक्तिशाली होता है।
केन्द्र
राज्य के विधायी संबंधों में सुधार हेतु सुझाव
|
केन्द्र एवं राज्य के प्रशासनिक संबंध
संविधान के भाग 11 में अनुच्छेद 256
से 263 तक केन्द्र-राज्य
प्रशासनिक संबंधों की चर्चा की गई है। इसके तहत केन्द्र की कार्यपालिका शक्ति का
विस्तार पूरे देश में जबकि राज्य की कार्यपालिका शक्ति का विस्तार संबंधित राज्य
में है।
केन्द्र एवं राज्य के
बीच सहयोग एवं समन्वय
- अनुच्छेद 262 के अंतरराज्यीय
नदी विवाद पर ।
- लोक
अधिनियम, रिकार्ड एवं न्यायिक प्रक्रिया।
- अनुच्छेद
263 राष्ट्रपति
को अंतरराज्यीय परिषद का गठन करने की शक्ति ।
- व्यापार प्राधिकरण के संबंध में सहयोग
केन्द्र द्वारा राज्य
को निम्न विषयों पर निर्देश दिया जा सकता है।
- राष्ट्रीय महत्व के संचार साधनों के निर्माण एवं संरक्षण सुनिशचित करने हेतु।
- प्राथमिक स्तर पर मातृभाषा में शिक्षा सुविधाएं उपलब्ध कराने हेतु ।
- यह सुनिश्चित करने हेतु कि प्रत्येक राज्य सरकारें संविधान के उपबंधों के अनुसार संचालित हो।
- अनुसुचित जातियों के कल्याण स्कीम बनाने और उसके निष्पादन के संबंध में।
- रेलों का संरक्षण एवं रखरखाव हेतु।
उपरोक्त से स्पष्ट है कि केन्द्र एवं
राज्य के प्रशासकीय संबंधों के कुछ प्रावधानों का उद्देश्य केन्द्र द्वारा राज्यों
को नियंत्रित करना है। अतः यह स्पष्ट होता है कि प्रशासनिक संबंध की दृष्टि से भी
शक्ति संतुलन केन्द्र की ओर ज्यादा है।
केन्द्र
राज्य प्रशासनिक संबंधों में विवाद के आयाम
|
राज्यपाल के संबंध में न्यायालय के महत्वपूर्ण
निर्णय
- 2010 में वीपी सिंगल केस में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरकार बदलने पर राज्यपाल को नहीं हटाया जाना चाहिए।
- एस. आर. बोम्मई केस चुनाव के बाद सबसे बड़ी पार्टी, गठबंधन
को सरकार बनाने हेतु आमंत्रित किया जाए यदि ऐसा नहीं होता तो न्यायालय को पुनरीक्षण का अधिकार है।
- 2016 में सर्वोच्च न्यायालय ने अरुणाचल प्रदेश तथा उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करने के फ़ैसले को पलट दिया।
- विभिन्न राज्यों की आंतरिक तथा बाह्य सुरक्षा की जिम्मेवारी केंद्र पर है अतः राज्यपाल की सलाह पर राष्ट्रपति शासन लागू हो सकता है।
केन्द्र एवं राज्य के वित्तीय संबंध
संविधान के अनुच्छेद 264 से 293 के
मध्य केन्द्र-राज्य के वित्तीय संबंधों की चर्चा की गई है। इसके तहत दिए गए प्रावधानों
में भी संबंधों का संतुलन केन्द्र/संघ की ओर झुका हुआ है। संविधान में केंद्र और
राज्यों के मध्य वित्तीय संसाधनों के वितरण में कार्य
क्षमता, पर्याप्तता और उपयुक्तता को मुख्य सिद्धांत माना गया
है। उल्लेखनीय है कि जहां अधिकांश वित्तीय संसाधनों पर
केन्द्र का नियंत्रण है वहीं दूसरी ओर नीतियों का क्रियान्वयन तथा जिम्मेवारी
राज्यों पर सौंपी गयी है।
वित्तीय संसाधनों के आवंटन में इस असंतुलन के कारण केन्द्र पर राज्यों की निर्भरता बढ़ी है। अगस्त 2022 में केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय करों में हिस्सेदारी के तहत विभिन्न राज्यों को कुल 1.16 लाख करोड़ रुपये की दो किस्तें जारी की गयी जिसमें बिहार को 11,734.22 करोड़ रु की किश्त प्राप्त हुए। उल्लेखनीय है कि वित्त आयोग की सिफारिश के आधार पर केंद्रीय करों में हिस्सेदारी राज्यों को दी जाती है। तथा वित्त मंत्रालय के अनुसार यह राज्यों के पास पूंजी बढ़ाकर और विकास संबंधी खर्च में तेजी लाकर उनके हाथ मजबूत करने में मदद करेगा।
केंद्र राज्य वित्तीय संबंधों से संबंधित संवैधानिक प्रावधान |
|
अनुच्छेद
265 |
विधि के
प्राधिकार के बिना कोई कर शपथ या संग्रहीत नहीं किया जा सकता। |
अनुच्छेद
286, 287,
288 तथा 289 |
केंद्र
तथा राज्य सरकारों को एक-दूसरे द्वारा कुछ वस्तुओं पर कर
लगाने से मना किया गया है और कुछ करों से भी मुक्ति प्रदान की गई है। |
GST से प्रभावित संवैधानिक अनुच्छेद |
|
अनुच्छेद
246A
|
केंद्र सरकार को अधिकार है कि वह GST के संबंध में कानून बना सकती
है। इसमें CGSTI तथा GST के संबंध में
केंद्र को एवं SGST के संबंध में राज्यों को शक्ति दी गई है। |
अनुच्छेद
269A
|
इसके तहत IGSTI की
व्यवस्था के बारे में उल्लेख किया गया है जिसके तहत अंतरराज्यीय व्यापार के
मामले में कर की वसूली केन्द्र सरकार द्वारा की जाएगी जिसे बाद में राज्यों के
मध्य वितरित किया जाएगा। |
अनुच्छेद
279A
|
इस
अनुच्छेद के तहत GST परिषद की संरचना
एवं गठन के बारे में प्रावधान किया गया है। केन्द्र
एवं राज्य के संबंधों को प्रभावित करने में विभिन्न संस्थाएं भी महत्वपूर्ण
भूमिका निभाती है जिनमें वित्त आयोग तथा अंतर्राज्यीय परिषद जैसी संस्थाएं शामिल
हैं। |
केंद्र
से राज्यों को सहायता अनुदान |
|
अनुच्छेद 275 |
ये अनुच्छेद
सांविधिक अनुदान से संबंधित है जो संसद द्वारा जरुरतमंद राज्यों को उपलबध कराया
जाता है। |
अनुच्छेद 282 |
विवेकाधीन
अनुदान से संबंधित यह अनुच्छेद संघ को यह अधिकार देता है कि वह किसी भी सार्वजनिक
उद्देश्य हेतु राज्यों को उनकी संबंधित विधायी दक्षताओं से परे अनुदान दे सके। |
अन्य
करों से प्राप्त आय का वितरण |
|
अनुच्छेद 280 |
वित्त
आयोग संबंधी यह अनुच्छेद केंद्र और राज्य के बीच धन के वितरण के संबंध में सिफारिशें
देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। |
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केन्द्र राज्य संबंध एवं संवैधानिक संस्थाएं
केन्द्र राज्य संबंधों को प्रभावित
करने में अनेक संवैधानिक संस्थाएं भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जिनमें वित्त
आयोग तथा अंतर्राज्यीय परिषद महत्वपूर्ण हैं।
वित्त आयोग
- वित्त
आयोग एक संवैधानिक संस्था है जिसका गठन अनुच्छेद 280 के तहत हर पांचवें वर्ष की समाप्ति
पर राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है।
- आयोग राष्ट्रपति को इस बारे में सिफारिश करेगा कि संघ तथा राज्यों के बीच आगमों का वितरण किस प्रकार किया जाए।
- 2020 से 2025 तक की 5 वर्षीय अवधि हेतु सुझाव देने के लिए 15वें वित्त आयोग का गठन 2017 में किया गया था।
15वें वित्त आयोग की अंतरिम रिपोर्ट की गयी
कुछ महत्वपूर्ण सिफारिश
|
अंतर्राज्यीय परिषद
यह एक संवैधानिक संस्था है जिसकी
स्थापना अनुच्छेद 263
के तहत 1990 में किया गया। यह एक सलाहकारी
संस्था है जिसमें आम सहमति से निर्णय लिया जाता है।
प्रधानमंत्री अंतर्राज्यीय परिषद के
अध्यक्ष होते हैं। इसके अलावा गृहमंत्री समेत प्रधानमंत्री द्वारा नामित केन्द्रीय
मंत्रिमंडल के 6 सदस्य तथा सभी राज्यों के मुख्यमंत्री और केन्द्रशासित प्रदेशों के
प्रशासक इसके सदस्य होते हैं।
अंतर्राज्यीय परिषद के कार्य
- राज्यों के मध्य होने वाले विवादों की जाँच करना और इस संबंध में सलाह देना।
- विभिन्न
राज्यों और केंद्र तथा राज्यों के समान हित वाले विषयों पर अन्वेषण तथा विचार-विमर्श करना।
- विभिन्न विषयों तथा नीतियों के क्रियान्वयन में बेहतर समन्वय के लिये सिफारिश करना।
- यह केन्द्र एवं राज्य के मध्य सामंजस्य एवं सहयोग बढ़ाने का कार्य करता है।
यह
केन्द्र राज्य संबंधों के संवैधानिक पहलुओं पर विचार करने के साथ दलगत भावना से
ऊपर उठकर राष्ट्रीय हितों तथा प्राथमिकताओं के संदर्भ में आम सहमति बनाने में
महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
संघ एवं राज्य के मध्य वित्तीय बंटवारे
के साधन |
|
वित्तीय हस्तांतरण यानी करों में राज्यों की हिस्सेदारी
|
15वें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार, विभाज्य पूल
का 41% राज्यों को (ऊर्ध्वाधर हस्तांतरण)
हस्तांतरित किया जाना। |
वित्त आयोग संबंधी अनुदान |
वित्त आयोग की सिफारिशों के आधार पर संघ द्वारा
राज्यों को राजस्व घाटा अनुदान,क्षेत्रीय अनुदान, प्रदर्शन आधारित प्रोत्साहन
द्वारा सहायता दी जाती है। |
योजना संबंधी स्थानांतरण |
केंद्रीय बजट के भाग के रूप में केंद्र सरकार की ओर
से राज्यों को एक बड़ा हस्तांतरण केंद्र प्रायोजित योजनाओं के माध्यम से होता है । |
केंद्रीय बजट में वर्णित अन्य वितरण |
विभिन्न राज्यों की वित्त क्षमता को बढ़ावा देने हेतु
केंद्र सरकार द्वारा बजट में घोषणा की जाती है। |
राज्यों के लिए ब्याज मुक्त पूंजीगत व्यय ऋण योजना |
केंद्र द्वारा
बड़े पैमाने पर राज्यों को ब्याज मुक्त ऋण दिया जाता है । कोविड19 महामारी से राज्यों
की नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई आर्थिक गतिविधियों का समर्थन करने हेतु केन्द्र
द्वारा वर्ष 2020 में राज्यों को पूंजी निवेश हेतु विशेष सहायता योजना आरंभ की
गयी। |
केंद्र
राज्य संबंध में तनाव के क्षेत्र
राज्यपाल की भूमिका
- 1967 के बाद भारतीय राजनीति में कांग्रेस का एकाधिकार समाप्त होने पर बहुदलीय व्यवस्था, दलबदल, सरकार में अस्थिरता जैसी स्थिति आयी और राज्यपाल की भूमिका बढ़ने लगी।
- 1970-80 के दशक में राज्यपाल का प्रयोग राज्य सरकार को बर्खास्त करने, राष्ट्रपति शासन लगाने में प्रमुखता से होने लगा।
- राज्यपाल अब अपनी विवेकाधिकार शक्तियों के द्वारा राज्य सरकार के कार्यों में हस्तक्षेप करने लगे जिससे राज्यों में असुरक्षा की भावना बढ़ी और केन्द्र एवं राज्य के संबंधों में तनाव उत्पन्न होने लगा।
अनुच्छेद 356 का दुरुपयोग
अनेक अवसरों पर दलगत राजनीति के
प्रभाव से केंद्र द्वारा राज्यों में सरकार बदलने में अनुच्छेद 356 का निम्न प्रकार से
दुरुपयोग किया गया।
- बहुमत वाले सरकार को बर्खास्त करने में।
- दलगत आधार पर सदन को भंग अथवा निलंबित करने में।
- चुनाव परिणाम निर्णायक ना होने पर विपक्षी दल को सरकार बनाने हेतु अवसर न देना।
- मंत्रिपरिषद के त्याग के बाद विपक्ष को सरकार बनाने का अवसर देना ना देना।
- सत्तारूढ़ दल द्वारा विश्वास मत हासिल ना होने पर विपक्ष को सरकार बनाने हेतु ना बुलाना।
उल्लेखनीय है कि उत्तर प्रदेश तथा
केरल में 9-9 बार, पंजाब में 8 बार और बिहार
में 8 बार इसका प्रयोग किया जा चुका है। राज्यों की माँग है
कि इस अनुच्छेद को संविधान से हटाया जाए या इसमें संशोधन किये जाएँ।
अनुच्छेद 200 एवं 201
राज्यपाल
द्वारा राज्य विधेयक को राष्ट्रपति के विचार हेतु आरक्षित रखने की शक्ति
इस
प्रावधान का उद्देश्य है कि राज्य कोई ऐसी विधि ना बनाएं जो केंद्रीय विधि के
प्रतिकूल हो लेकिन इसका प्रयोग कई बार दलीय हित केंद्रीय हित हेतु किया गया है अतः
राज्यों ने इसे समाप्त कर करने या सुधार की मांग की है
वित्तीय निर्भरता
संबंधों
में तनाव का एक बड़ा कारण राज्यों की केन्द्र पर वित्तीय निर्भरता है। केन्द्र एवं
राज्यों में विरोधी दलों की सरकारें होने पर वित्तीय आवंटन में भी भेदभाव का आरोप
केन्द्र सरकार पर लगे हैं।
GST
के बाद तथा वर्ममान महामारी के दौर में कई राज्यों के राजस्व में कमी
आयी है। इसके अलावा पूर्व में भी कई अवसरों पर राज्यों द्वारा वित्तीय स्वायत्तता
की मांग की गई है। आर्थिक नियोजन, करारोपण की शक्ति, विवेकाधीन अनुदान इत्यादि केंद्र राज्य के बीच तनाव के कारण है।
बढ़ते दायित्व और सीमित श्रेय
केन्द्र-राज्य
के संबंधों में तनाव का एक कारण राज्यों के बढ़ते दायित्व और सीमित श्रेय भी रहा
है। केन्द्र की कई योजनाओं के संचालन से राज्यों पर वित्तीय बोझ बढ़ता है लेकिन
योजना का श्रेय केन्द्र सरकार को चला जाता है।
उल्लेखनीय
है कि कि राज्यों के पास वित्तीय संसाधनों की कमी रहती है जबकि उनके दायित्व
लगातार बढ़ रहे हैं। बिहार सरकार द्वारा में कुछ समय पहले इस प्रकार से केन्द्र की
योजनाओं का विरोध भी किया गया था।
स्वायत्तता की मांग
वित्तीय, प्रशासनिक तथा
विधायी स्वायत्तता की मांग भी राज्य द्वारा की जाती रही है केंद्रीकृत नियोजन ने
राज्य के कार्यक्रमों के क्रियान्वयन में हस्तक्षेप किया है अतः राज्य द्वारा इस
संबंध में सुधार की मांग की जाती हैं।
अखिल भारतीय सेवा
भारतीय
सेवाएँ राज्यों की स्वायत्तता को कम करती हैं। उल्लेखनीय है कि इन अधिकारियों की
नियुक्ति, पदोन्नति और बर्खास्तगी का अधिकार केन्द्र का होता है इस कारण कई बार ये
अधिकारी केन्द्र के एजेन्ट की भाँति कार्य करने लगते हैं।
राज्यों में केंद्रीय अर्धसैनिक बलों की तैनाती
केन्द्र
सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा,
सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा आदि के संदर्भ में राज्य में अर्द्ध
सैनिक बलों की नियुक्ति कर सकता है। यह स्थिति और अधिक विवादास्पद तब हो जाती है
जब केन्द्र और राज्य में अलग-अलग सरकारें काम करती हैं और राज्य सरकार की नीतियाँ
केन्द्र से मेल नहीं खाती हैं।
राज्य सूची के विषय पर केंद्र द्वारा कानून
बनाया जाना
कई
अवसरों पर राज्य सूची के विषय पर केन्द्र द्वारा कानून बनाए जाते हैं जिसके कारण
केन्द्र एवं राज्यों के बीच तनाव बढ़ता है। इसके अलावा समवर्ती सूची में भी राज्य
के बजाए केन्द्रीय कानून को वरीयता मिलती है।
केन्द्र एवं राज्य संबंधों में
हलिया विवाद
|
केंद्र राज्य संबंध में सुधार हेतु
कुछ उपाए
विधायी संबंधों में
सुधार हेतु सुझाव
- नीति निर्माण में राज्यों को अधिक से अधिक अधिकार दिए जाए।
- जब तक आवश्यक न हो केन्द्र को समवर्ती सूची पर कानून बनाने से परहेज करना चाहिए।
- अनुच्छेद 200 के तहत राज्यपाल
द्वारा राज्य विधानमंडल के किसी विधेयक को राष्ट्रपति हेतु आरक्षित किया जाता है
तो उस पर शीघ्रातीशीघ्र निर्णय लिया जाना चाहिए।
- अवशिष्ट शक्तियों को भी समवर्ती सूची में शामिल करते हुए राज्यों को अधिकार दिया जाए।
- समवर्ती सूची के कानूनों को बनाते समय राज्यों से परामर्श लिया जाए।
- राज्य सूची के संदर्भ में केन्द्र के हस्तक्षेप को न्यूनतम रखा जाए।
- अनुच्छेद 248 को संशोधन कर
अवशिष्ट शक्तियों को केन्द्र एवं राज्य दोनों के अधिकार क्षेत्र में किया जाए।
- अनुच्छेद 249 में बदलाव किया
जाए क्योंकि यह संसद को राज्य सूची पर कानून बनाने का अधिकार देता है।
प्रशासनिक संबंधों में
सुधार हेतु सुझाव
- राज्यों की आंतरिक सुरक्षा चुनौतियों से निपटने हेतु अर्द्धसैनिक बलों की नियुक्ति में संबंधित राज्य से परामर्श।
- राष्ट्रपति शासन पूरे राज्य के बजाए प्रभावित क्षेत्र में तथा यथासंभव कम समय के लिए लगाया जाए।
- राष्ट्रपति शासन को अंतिम विकल्प के रूप में प्रयोग किया जाए।
- अंतर्राज्यीय परिषद की बैठके नियमित रूप से की जाए।
- राज्यपाल के रूप में गैर राजनीतिक व्यक्ति की नियुक्ति की जाए जिन्हें प्रशासन का लंबा अनुभव हो।
- राज्यपाल की विवेकाधिकार
शक्तियां, नियुक्ति एवं बर्खास्तगी प्रक्रिया में सुधार।
- अंतर्राज्यीय परिषद की बैठक नियमित रूप से की जाए।
वित्तीय संबंधों में
सुधार हेतु सुझाव
- राज्यों की केन्द्र पर निर्भरता कम करने हेतु राज्यों को ज्यादा वित्तीय संसाधन उपलबध कराए जाए।
- GST प्रावधानों की समीक्षा करते हुए उन उपायों को लाया जाए जिससे राज्यों की वित्तीय हालत में सुधार हो।
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