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Oct 20, 2022

न्‍यायपालिका की न्‍यायिक सक्रियता

 न्‍यायपालिका की न्‍यायिक सक्रियता

प्रश्‍न- संविधान की व्‍याख्‍या के अधिकार ने एक ओर जहां न्‍यायपालिका के न्‍यायिक सक्रियता को शक्ति दी वही दूसरी ओर न्‍यायालय को प्रशासन, सुधारक, नीति निर्धारक की भूमिका निभाने का अवसर भी प्राप्‍त हुआ । चर्चा करें ।

न्यायपालिका द्वारा कार्यपालिका के कार्यों को ग्रहण करना न्यायिक सक्रियता कहलाता है। उल्लेखनीय है कि संविधान की व्याख्या का अधिकार न्यायालय के पास है और आरंभ में न्‍यायालय ने विधि की स्थापित प्रक्रिया के आधार पर संविधान की व्‍याख्‍या की लेकिन मेनका गांधी बनाम भारत संघ 1978 मामले में न्यायालय ने विधि की सम्यक प्रक्रिया को अपनाया जिससे न्‍यायिक सक्रियता की अवधारणा को मजबूती मिली ।

उल्‍लेखनीय है कि संविधान में न्‍यायिक सक्रियता के संबंध में कोई स्‍पष्‍ट प्रावधान नहीं है फिर भी ऐसे अनेक अनुच्‍छेद है जिसके माध्‍यम से अप्रत्‍यक्ष रूप से न्‍यायालय ने अपनी व्‍याख्‍या के अधिकार को विस्‍तार दिया।  

 

अनुच्‍छेद 13

राज्‍य कोई ऐसा विधि नहीं बनाएगा जिससे मूल अधिकारों का उल्‍लंघन होता है ।

अनुच्‍छेद 32

न्‍यायपालिका नागरिकों के मूल अधिकारों का संरक्षक।

अनुच्‍छेद 131 एवं समवर्ती सूची

केन्‍द्र एवं राज्‍य विवाद में विधि के प्रश्‍न पर हस्‍तक्षेप का अधिकार

अनुच्‍छेद 368

संविधान संशोधन संबंधी प्रावधान


उपरोक्‍त संवैधानिक प्रावधानों तथा व्‍याख्‍या के अधिकार से परिपूर्ण न्‍यायपालिका ने सरकार की गैर संवैधानिक राजनीतिक, आर्थिक और पर्यावरण अवनयन संबंधी नीतियों के परिप्रेक्ष्‍य में अपनी सक्रियता में वृद्धि की जिसके फलस्‍वरूप वह एक प्रशासक, सुधारक, नीति निर्धारक की भूमिका में सामने आया जिसे निम्‍न प्रकार से समझा जा सकता है।

एक प्रशासक के रूप में न्‍यायपालिका

  • राजमार्गो के आस-पास शराबबंदी के आदेश ।
  • एनजीटी का गठन संबंधी आदेश ।
  • दिल्‍ली में बढ़ते प्रदूषण पर दिल्‍ली सरकार को निर्देश ।
  • कोविड महामारी के दौरान ऑक्‍सीजन संकट पर जारी निर्देश ।
  • नदी जल बंटवारा, राज्‍यपाल की नियुक्ति इत्‍यादि मामलों में निर्णय।

सुधारक के रूप में

  • गोलकनाथ, केशवानंद भारती, मेनका गांधी वाद जैसे दूरगामी निर्णय।
  • नागरिकों के मौलिक अधिकार जैसे निजता, स्‍वतंत्रता पर दिए गए निर्णय ।
  • जनहित याचिका द्वारा विभिन्‍न अवसरों पर दिए गए निर्णय ।

नीति निर्धारक के रूप में

  • चुनाव सुधार हेतु समय-समय पर महत्‍वपूर्ण दिशा निर्देश जारी किया जाना ।
  • अनुच्‍छेद 368 के तहत किया गया कोई भी संविधान संशोधन यदि वह संविधान की मूल संरचना के विरुद्ध है
  • गोलकनाथ, केशवानंद भारती, मेनका गांधी वाद, विशाखा दिशा निर्देश, जैसे दूरगामी निर्णय।

उपरोक्‍त से स्‍पष्‍ट है कि न्‍यायपालिका संविधान के संरक्षण के अपने कर्तव्‍यों के निर्वहन के क्रम में अप्रत्‍यक्ष रूप से न्‍यायिक सक्रियता की शक्ति भी प्राप्‍त की जिसके माध्‍यम से वह न केवल न्‍याय जैसे पुनीत कार्यों  को संपादित कर रहा है बल्कि एक प्रशासक, सुधारक, नीति निर्धारक की भूमिका भी निभा रहा है ।

उल्‍लेखनीय है कि भारतीय शासन व्‍यवस्‍था में कार्यपालिका, विधायिका तथा न्‍यायपालिका के अधिकार क्षेत्र एवं कार्य संविधान द्वारा निर्धारित किए गए हैं जिसमें पर्याप्‍त संतुलन एवं समन्‍वय स्‍थापित किया गया है अत: न्‍यायपालिका को न्‍यायिक संयम के साथ नियंत्रण एवं संतुलन की सीमा तक हस्‍तक्षेप करना उचित होगा।

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