भारत में चुनाव सुधार
इस पोस्ट में आप भारतीय चुनाव प्रणाली
में सुधार संबंधी महत्वपूर्ण तथ्यों के बारे में जानकारी प्राप्त कर सकते हैं जो
आनेवाले मुख्य परीक्षा के लिए उपयोगी है । इसके अलावा मुख्य परीक्षा के प्रश्नों
के अभ्यास हेतु आप नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से जा सकते हैं।
भारतीय राजव्यवस्था एवं संविधान संबंधी लेख
भारतीय राजव्यवस्था एवं संविधान संबंधीप्रश्न-उत्तर
भारत
में समय-समय पर चुनाव प्रणाली में व्याप्त कमियों को दूर करने हेतु सुधार लाए गए
फिर भी अनेक कमियां व्याप्त है।
भारत में चुनाव सुधार की आवश्यकता
- अपराधियों से दागदार राजनीतिज्ञों के चुनाव लड़ने पर रोक हेतु।
- चुनाव में धनबल का प्रयोग रोकने हेतु।
- निष्पक्ष एवं लोकतांत्रिक तरीके से चुनाव संपन्न कराने हेतु।
- राजनीतिक दलों को सूचना के अधिकार में लाने हेतु।
- संदिग्ध
एवं फर्जी राजनीतिक दलों
को चुनाव लड़ने से रोकने हेतु।
- लोकतांत्रिक
व्यवस्था के प्रति नागरिकों का विश्वास बनाए रखने हेतु।
चुनाव सुधार से संबंधित मुद्दे
कम मतदान प्रतिशत
- भारत
में मतदान का औसत प्रतिशत 55
से 65% रहता है यानी कि लगभग 45 से 35 प्रतिशत जनता की इसमें भागीदारी नहीं
है।
राजनीति का अपराधीकरण
- अनेक
अपराधी चुनाव जीतकर जनप्रतिनिधि बन जाते हैं और इस प्रकार उनके अपराधिक प्रकरण का निर्णय नहीं हो पाता है
और न्यायिक प्रक्रिया लंबी चलती है।
- एससिएशन
फोर डेमोक्रेटिक रिफार्म के अनुसार 2019
के लोकसभा के लिये चुने गए करीब आधे सांसदों पर आपराधिक आरोप हैं। 2014
के मुकाबले इसमें 26% की बढ़ोतरी हुई है।
आंकड़ो के अनुसार चुनाव जीतकर आए 539 सांसदों में करीब 233
सांसदों पर आपराधिक आरोप हैं।
- उल्लेखनीय
है कि 2009 में लगभग 30% तथा 2014 में 34% सांसदों के खिलाफ आपराधिक आरोप थे जबकि 2019 में 43% नवनिर्वाचित सांसदों का रिकॉर्ड आपराधिक पृष्ठभमि से है।
मतदाता सूची में सुधार
- चुनाव
प्रक्रिया में मतदाता सूची में गड़बड़ी
की सूचनाएं भी कई बार प्राप्त होती है
इस प्रकार की लापरवाही लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है।
राइट टू रिकॉल
- चुनाव सुधार के तहत राइट टू रिकॉल की मांग भी की जा रही है हालांकि इस मांग को अभी तक मान्यता नहीं मिली।
खर्चीली चुनावी
प्रक्रिया
- चुनाव
में करोड़ खर्च होते हैं जिसमें कई बार काला धन भी लगा होता है आम आदमी इसे वह
नहीं कर पाता। एडीआर की रिपोर्ट के अनुसार अकेले भाजपा ने 2019 लोकसभा चुनाव
में 1141.72 करोड़ रुपये खर्च किए जो सभी दलों के कुल चुनाव
खर्च का 44% है। इसी प्रकार अन्य दलों द्वारा भी चुनावों में
करोड़ों रुपए खर्च किए जाते हैं।
- जनवरी
2022 में
चुनाव आयोग द्वारा लोकसभा चुनाव में उम्मीदवारों के लिये खर्च की सीमा 70 लाख की जगह 95 लाख तक तथा विधानसभा में 28 लाख की जगह अब 40 लाख रुपए कर दी गयी।
- हालांकि
गोवा, अरुणाचल
प्रदेश, सिक्किम और केंद्रशासित प्रदेश पुडुचेरी में जहां
लोकसभा चुनावों में प्रत्याशियों के खर्च की सीमा जो 54 लाख
रुपए थी वह अब 75 लाख हो गयी।
नोटा
- सर्वोच्च न्यायालय की पहल पर चुनाव आयोग द्वारा मतदाताओं को नोटा का विकल्प दिया गया किंतु यह परिणाम को ज्यादा प्रभावित नहीं करता इस कारण मतदाताओं द्वारा वह व्यर्थ जाने के कारण इसका प्रयोग नहीं किया जाता है अतः इसमें और सुधार किए जाने की आवश्यकता है
चुनावी चंदे में
अपारदर्शिता
- एसोसिएशन
फॉर डेमोक्रेटिक रिसर्च
(ADR) के अनुसार राजनीतिक दलों के 85% उद्योगपति,
व्यवसाय से प्राप्त होता है। RTI भी राजनीतिक दलों पर लागू नहीं
होता इस कारण चुनावी चंदे में अपारदर्शिता देखी जा सकती है।
- ADR के दावे के अनुसार भारत के राष्ट्रीय राजनीतिक दलों को वित्तवर्ष 2004-05 से 2018-19 के बीच 11,234 करोड़ रुपये का चंदा अज्ञात स्रोतों से प्राप्त किया। हाल ही में लाए गए चुनावी बांड से भी इसमें कोई विशेष सुधार देखने में नहीं आया।
गैर गंभीर
जनप्रतिनिधियों की बढ़ती संख्या
- कई
जनप्रतिनिधि कानून निर्माण प्रक्रिया, आर्थिक सामाजिक नीतियों के
प्रति गंभीर नहीं होते हैं और इनकी भूमिका मतदान करने, व्हिप
का पालन करने, विरोध आदि करने तक सीमित हो गया है।
इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग
मशीन के प्रति अविश्वास
- पिछले
कुछ वर्षों में हुए चुनावों के दौरान लोगों में EVM के द्वारा मतदान के प्रति शंका
व्यक्त की गई। हालांकि अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हो पाई है फिर भी मतदाताओं में
ईवीएम के प्रति अविश्वास का माहौल देखा जा सकता है।
चुनाव आयोग की
कार्यप्रणाली
- 2021 के विधान सभा चुनाव के संदर्भ में उच्च न्यायालय द्वारा चुनाव आयोग के अधिकारियों पर कोविड प्रोटोकॉल्स के अनुपालन संबंधी लापरवाही के आरोप लगाए गए और आयोग को गैर-जिम्मेदार संगठन ठहराते हुए उसके अधिकारियों पर हत्या का मामला चलाया जाने की बात भी कही गयी।
- इसके
अलावा 2021 के विधान सभा चुनाव में चुनाव आयोग का सबसे विवादित फैसला यह रहा कि उसने
बंगाल की 294 विधानसभा सीटों पर आठ चरणों में चुनाव कराए तो 234
सदस्यीय तमिलनाडु विधानसभा के चुनाव एक ही चरण में करा दिए। केरल (140
सीट) और पुडुचेरी (30 सीट) के चुनाव भी
तमिलनाडु के साथ उसी दिन निपटा दिए गए।
- कोविड के बढ़ते मामलों के बीच आयोग द्वारा की गयी लापरवाही पर भी मद्रास हाईकोर्ट द्वारा चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली में दखल दिया गया जिसके बाद आयोग ने इस दिशा में कुछ कदम उठाए।
चुनाव सुधार का विकास क्रम
भारत में 1967 के बाद से
क्षेत्रीयता, जाति एवं वर्ग व्यवस्था का प्रभाव,
अपराधियों का प्रवेश, भ्रष्टाचार आदि का प्रभाव चुनाव प्रणाली पर पड़ा तथा लोकतांत्रिक
मूल्यों का हास हुआ फिर भी चुनाव सुधार हेतु गठित विभिन्न आयोगों के सुझाव,
न्यायालय के निर्णयों आदि द्वारा इस दिशा में प्रयास किए गए तथा समय समय पर
अनेक सुधार लागू किए गए।
चुनाव सुधार की दिशा में टी एन सेशन द्वारा किए गए
प्रयास
तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन सेशन द्वारा किए गए के सुधार के फलस्वरूप मतदाता को डराने, धमकाने पर रोक लगी तथ मतदान वाले दिन शराब बिक्री अथवा वितरण पर प्रतिबंध लगा । इसके
अलावा सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग पर रोक लगाने के साथ धर्म प्रचार हेतु पूजा
स्थल पर प्रतिबंध लगाया गया इन्हें के प्रयासों का परिणाम था कि इन सुधारों को
उत्तरोत्तर मुख्य निर्वाचन आयुक्त ने भी बनाए रखें। |
चुनाव सुधार की दिशा में उठाए गए कुछ
प्रमुख कदम
- 1971 में जारी आदर्श आचार संहिता का पालन सभी दलों हेतु अनिवार्य।
- मतदाता
आयु सीमा 21 से घटाकर 18 वर्ष की गई।
- इलेक्ट्रॉनिक
मीडिया की सभी राजनीतिक दलों तक आसान पहुंच सुनिश्चित की गई।
- लाभ के पद पर कार्य करने पर सांसद विधायक की सदस्यता रद्द करने की व्यवस्था।
- ईवीएम से चुनाव तथा वीवीपैट की व्यवस्था।
- नोटा
अथवा उच्च न्यायालय में संबंधी याचिका की 6
माह में सुनवाई पूरी करना।
- सुप्रीम
कोर्ट के निर्देश के अनुसार
उम्मीदवार को शपथ पत्र में शैक्षणिक, संपत्ति,
अपराधिक जानकारी देना अनिवार्य।
- 2 वर्ष या इससे ज्यादा सजा प्राप्त व्यक्ति के 6 वर्ष तक चुनाव लड़ने पर रोक।
- राज्यसभा एवं विधान परिषद में नोटा का प्रयोग नहीं किया जाएगा।
- यदि
किसी सांसद विधायक को 2
वर्ष से अधिक की सजा होती है तो उसकी सदस्यता रद्द हो जाएगी।
- सर्वोच्च
न्यायालय के निर्देशानुसार EVM एवं मतपत्र में नोटा विकल्प दिया गया।
आयोग/ समिति |
चुनाव
सुधार के संबंध में प्रमुख सुझाव/सिफारिश |
के संथानम समिति 1962 |
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तारकुंडे
समिति 1974 |
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दिनेश
गोस्वामी समिति 1990 |
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वोहरा
समिति 1991 |
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इन्द्रजीत
गुप्ता समिति 1998 |
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संविधान समीक्षा हेतु राष्ट्रीय आयोग 2000 |
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विधि
आयोग |
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