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Oct 18, 2022

भारत एवं अफगानिस्तान संबंध

 

भारत एवं अफगानिस्तान संबंध 

ऐतिहासिक और सांस्कृतिक आधार पर भारत और अफगानिस्तान के संबंध अत्यधिक मजबूत रहे हैं। प्राचीन काल से ही अफगानिस्तान और भारत के लोगों ने सांस्कृतिक मूल्यों और समानता पर आधारित शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की नीति और व्यापार एवं वाणिज्य के माध्यम से एक-दूसरे के साथ संपर्क स्थापित किया है।

भारत सदा से ही स्वतंत्रता, समानता, न्याय, शिक्षा, स्वास्थ्य ,मानव अधिकार जैसे तत्वों को प्राथमिकता देता रहा है। वर्तमान अफगानिस्तान संकट में भारत रूस तथा अन्य क्षेत्रीय शक्तियों के साथ मिलकर अफगानिस्तान संकट का स्थाई समाधान निकालना चाहता है जिससे अफगानिस्तान के लोगों का विकास हो सके।

भारत एवं अफगानिस्तान के मध्य सहयोग

  1. भारत ने अफगनिस्तान के विकास में भागीदारी देते हुए पिछले 2 दशकों में लगभग 3 बिलियन डॉलर से ज्यादा की विकास  राशि का निवेश किया। भारत की विकास सहायता से अफगनिस्तान में 400 छोटे बड़े विकास कार्यक्रम लागू किए गए है।
  2. बड़ी अवसंरचनात्मक परियोजनाओं के तहत अफगान भारत मैत्री बांध यानी सलमा डैम, शहतूत डैम, संसद भवन आदि का निर्माण किया गया है। लघु विकास परियोजनाओं के तहत जरांज से डेलाराम तक सड़क, स्कूल, अस्पताल, खुमरी से काबुल तक ट्रांसमिशन लाइन का निर्माण किया गया।
  3. 2011 में हस्ताक्षरित रणनीतिक साझेदारी के तहत भारत द्वारा अफगान सुरक्षा बलों को प्रशिक्षण एवं क्षमता निर्माण में सहायता दी गयी।
  4. भारत की ऊर्जा सुरक्षा हेतु महत्वपूर्ण तापी गैस पाइप परियोजना में भी अफगानिस्तान एक महत्वपूर्ण सहयोगी देश है।
  5. शिक्षा एवं कृषि से संबंधित विभिन्न विकास परियोजनाओं हेतु भारत द्वारा अफगानिस्तान को विभिन्न प्रकार से ऋण एवं तकनीकी सहायता दिया गया। इसके अलावा भारत अफगानिस्तान में दूरसंचार, स्वास्थ्य, फार्मास्यूटिकल्स, और सूचना प्रौद्योगिकी, शिक्षा, मानव पूंजी निर्माण और खनन क्षेत्रों में भी सहयोग करता है।
  6. भारत अफगानिस्तान के सबसे बड़े व्यापारिक भागीदारों में से एक है। वित्तीय वर्ष 2019-2020 के अनुसार दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 1.5 बिलियन डॉलर से ज्यादा रहा।
  7. हाल में मानवीय सद्भावना के अंतर्गत तालिबान शासित अफगानिस्तान में  भारत द्वारा स्वास्थ्य सहयोग भेजा गया।

 

अफगानिस्तान का महत्व

  1. उर्जा समृद्ध देश अफगानिस्तान एशिया के चौराहे पर स्थित है। इसे मध्य एशिया का एक प्रवेश द्वार भी कहा जाता है।  है। यह दक्षिण एशिया को मध्य एशिया और मध्य एशिया को पश्चिम एशिया से जोड़ता है।
  2. अफगानिस्तान की महत्वपूर्ण भौगौलिक स्थिति के कारण यह भारत के साथ ईरान, अज़रबैजान, तुर्कमेनिस्तान तथा उज़्बेकिस्तान का संपर्क कराने में महत्वपूर्ण माध्यम है।
  3. अफगानिस्तान में निवेश एवं पुनर्निर्माण परियोजनाएं भारतीय कंपनियों के लिए अनेक अवसर देती है।
  4. अफगानिस्तान में तेल एवं गैस भंडार के समृद्ध स्रोत विद्यमान हैं जो भारत की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूर्ति में मदद कर सकता है।
  5. भारतीय ऊर्जा आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु बिछायी जानेवाली पाइपलाइन मार्गों हेतु अफगानिस्तान की भूमिका महत्त्वपूर्ण है।
  6. ऊर्जा के अलावा अफगानिस्तान कीमती धातुओं और खनिजों संसाधनों से समृद्ध क्षेत्र है।
  7. अफगानिस्तान में स्थिर तथा लोकतांत्रिक सरकार भारत में आतंकवादी गतिविधियों को कम करने तथा पाकिस्तान की भारत विरोधी गतिविधियों को रोकने में सहायक है।

अफगानिस्तान में शांति स्थापना में भारत की भूमिका

भारत चाहता है कि अफगानिस्तान में शांति, स्थिरता एवं विकास के साथ ऐसी सरकार का गठन हो जो मानवाधिकारों और लोकतंत्र को बढ़ावा देने वाली हो। अमेरिका द्वारा भी माना गया कि अफगानिस्तान में निर्मित अस्थायित्व का एक बड़ा कारण पाकिस्तान है और शांति स्थापित करने की प्रक्रिया में भारत की महत्वपूर्ण और सकारात्मक भूमिका का समर्थन किया गया है।

  1. अफगानिस्तान में शांति स्थापित करने के क्रम में भारत द्वारा दोहा में आयोजित अंतर-अफगान वार्ता में भाग लिया गया।
  2. भारत द्वारा अफगानिस्तान के विकास के  लिए बुनियादी अवसंरचना के साथ अन्य क्षेत्रों में बड़ी धनराशि निवेश की गई है।
  3. हार्ट ऑफ एशिया मंच जो अफगानिस्तान और उसके पड़ोसी देशों के मध्य राजनीतिक सहयोग, सुरक्षा और आर्थिक सहयोग को प्रोत्साहित करने के लिए आरंभ किया गया है, भारत इसमें सक्रिय भूमिका निभाता है।
  4. भारत अफगानिस्तान में आतंकवाद, हिंसा, महिला अधिकारों और लोकतांत्रिक मूल्यों से संबंधित मानकों को स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है जो शांति एवं विकास प्रक्रिया को बढ़ावा देगा।
  5. अगस्त 2021 में ही भारत ने अपनी अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति पर एक प्रस्ताव पारित करवाने में सफलता प्राप्त की जिसमें भारत द्वारा अफगानिस्तान में शांति व स्थिरता का समर्थन किया है।  

उल्लेखनीय है कि भारत ने सदा ही अफगानिस्तान में लोकतांत्रिक सरकारों का समर्थन किया है। भारत तलिबान को एक उग्रवादी संगठन मानता है। भारत ने अभी तक तालिबान को कोई राजनयिक  मान्यता प्रदान नहीं की है । पूर्व में तालिबान ने 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान पर शासन किया था जब तक कि अमेरिकी नेतृत्व वाली सेना द्वारा उन्हें सत्ता से हटा नहीं दिया गया।

अगस्त 2021 में भारत ने अपनी अध्यक्षता में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अफगानिस्तान की वर्तमान स्थिति पर एक प्रस्ताव पारित करवाने में सफलता प्राप्त की जिसमें भारत की वर्तमान अफगान नीति की एक झलक दिखायी देती है। इस प्रस्ताव के माध्यम से भारत ने अपने हितों की रक्षा एवं अफगानिस्तान में शांति व स्थिरता का समर्थन किया है।  

भारत की अफगान नीति

भारत पिछले दो दशकों से अपनी अफगान नीति के तहत अफगान के लोकतांत्रिक सरकार का समर्थन करता रहा है। यद्यपि पिछले दो दशकों की अफगान नीति में अफगान की शांति प्रक्रिया में भारत की कोई राजनीतिक व सैनिक भूमिका नहीं रही फिर भी भारत ने अफगानिस्तान के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और 3 बिलियन डॉलर से अधिक की विकास राशि का निवेश किया जिससे अफगान सरकार तथा जनता के बीच भारत की लोकप्रियता मजबूत हुई।

  1. भारत ने अफगनिस्तान के साथ अपने रिश्ते को मजबूत करते हुए अफगान सरकार के साथ वर्ष 2011 से ही सामरिक साझेदारी का विकास किया।
  2. भारत ने सदैव ही अफगान नियंत्रित एवं अफगान सरकार द्वारा संचालित शांति प्रक्रिया का समर्थन किया तथा आज भी भारत अफगानिस्तान समस्या के राजनीतिक समाधान की नीति पर चल रहा है।
  3. भारत चाहता है कि अफगानिस्तान में दो दशकों से संचालित लोकतांत्रिक व्यवस्था को कायम किया जाए तथा अल्पसंख्यक और महिलाओं के अधिकारों को सुरक्षित किया जाए। हांलाकि तालिबान अफगानिस्तान में सत्ता प्राप्त करने के बाद एक इस्लामिक कट्टरवाद शासन की स्थापना करना चाहता है।  

तलिबान सत्ता की वापसी एवं भारत की अफगान नीति

अगस्त 2021 में तालिबान द्वारा अफगानिस्तान में सत्ता हासिल करने के बाद वहां भारत के लिए विपरीत परिस्थितियां बन गई है। वर्तमान सरकार पाकिस्तान के प्रभाव में है तथा पाकिस्तान नहीं चाहता कि वहां भारत का प्रभाव बने। इसके अलावा चीन व पाकिस्तान की नीति का समर्थन कर रहा है।   ऐसी स्थिति में भारत अपनी अफगान नीति में के माध्‍यम से निम्नलिखित बातों को करना चाहता है-

  1. अफगानिस्तान में एक समेकित सरकार की स्थापना जिसमें अफगानिस्तान के सभी वर्गों विशेषकर महिलाओं तथा अल्पसंख्यकों को प्रतिनिधित्व प्राप्त हो
  2. अफगानिस्तान में यह सुनिश्चित किया जाए कि वहां फिर से आतंकवादियों को पनाह ना मिल पाए तथा अफगानिस्तान की भूमिका प्रयोग आतंकवाद फैलाने के लिए नहीं किया जाए
  3. अफगानिस्तान में मानवीय सहायता प्रदान करने हेतु विश्व समुदाय से आह्वान किया गया
  4. भारत अपनी इस नीति को क्षेत्रीय सहयोग के माध्यम से भी लागू करना चाहता है और नवम्बर 2021 में दिल्ली में आयोजित तीसरा क्षेत्रीय सुरक्षा सम्मेलन इसी दिशा में एक प्रयास है।


दिल्ली घोषणा पत्र एवं भारत का दृष्टिकोण

दिल्ली घोषणा पत्र अफगानिस्तान को उस आतंकवादी केंद्र में पुनः परिवर्तित नहीं होने देने में सहभागियों के साझा हित को परिलक्षित करती है जो 1996 से 2001 तक तालिबान के शासन के समय बन गया था।

दिल्ली घोषणा पत्र में अफगानिस्तान पर भारत का दृष्टिकोण स्पष्ट रूप से परिलक्षित होता है तथा इस घोषणा पत्र के माध्यम से भारत ने अनेक महत्वपूर्ण संदेश दिए है जिसे निम्न प्रकार समझा जा सकता है।

  1. भारत की नीति अफगानिस्तान को क्षेत्र का महत्वपूर्ण सहयोगी बनाने की है ।
  2. अफगान मानवीय संकट का समाधान इस क्षेत्र की तत्काल प्राथमिकता होनी चाहिए।
  3. भारत अफगानिस्तान में एक समावेशी सरकार का समर्थन करता है जो अंतरिम तालिबान शासन को प्रतिस्थापित कर बनायी जाए।
  4. भारत अफगानिस्तान के अल्पसंख्यकों, महिलाओं और बच्चों के अधिकारों के लिए सहयोग तथा समर्थन करेगा।
  5. भारत का मानना है कि अफगानिस्तान शांति प्रक्रिया का नेतृत्व, स्वामित्व और नियंत्रण अफगान लोगों के हाथ में होना चाहिए।
  6. अफगानिस्तान को अपनी धरती को आतंकी समूहों के लिए सुरक्षित पनाहगाह के रूप में इस्तेमाल नहीं करने देना चाहिए।

अफगानिस्तान में शांति स्थापना में  चुनौतियां

तालिबान अफगानिस्तान में सख्त इस्लामी व्यवस्था को कमज़ोर नहीं होने देना चाहता है। इस कारण मानवाधिकार संबंधी चिंताएं भी है। उल्लेखनीय है कि तलिबान शासन में महिलाओं तथा शियाओं, हजारा समुदाय के विरुद्ध व्यापक रूप से हिंसा की घटनाएं घटित हुई।

तालिबान आंतरिक रूप से काफी विभाजित है तथा विभिन्न क्षेत्रीय और आदिवासी समूहों से मिलकर बना है जो अर्द्ध-स्वायत्तता के साथ काम करता है। अतः संभव है कि कुछ समूह अपनी हिंसक गतिविधियों को जारी रखें  जिससे शांति और संवाद प्रक्रिया बाधित होगी।

तालिबान ने कभी भी शांतिपूर्ण समझौतों में कोई रुचि नहीं दिखाई है जिससे यह संदेहास्पद है कि वह अफगानिस्तान में शांति प्रयासों को बढ़ावा देगा। इसके अलावा अफगानिस्‍तान में होनेवाली हिंसा चिंता का कारण है

भारत के लिए चुनौतियां

भारत एवं अफगानिस्तान के बीच पर्याप्त भौगौलिक दूरी है तथा भारत के पास सीमित विकल्प हैं जिनमें भारत को सर्वश्रेष्ठ प्रयास करना है। हालांकि दूरसंचार और तकनीकी युग में भौतिक दूरी मायने नहीं रखती फिर अफगानिस्तान जैसे क्षेत्र में भौगौलिक दूरी एक चुनौती पेश करती है।

तालिबान और भारत में आतंक फैलाने वाले समूहों में एक प्रकार का संबंध है। उल्लेखनीय है कि 1999 में भारतीय विमान का अपहरण करने वाले आतंकियों की तालिबान से सांठगांठ थी। अमेरिका के हटने के बाद अफगानिस्तान एक बार फिर से आतंकियों की शरणस्थली बनने का खतरा है।

तालिबान की विचारधारा में कोई बदलाव नहीं आया है और महिलाओं, अल्‍पसंख्‍यकों पर प्रतिबंध बढ़ गए है । यह भारत की दिल्‍ली घोषणा पत्र के विपरित है । इस प्रकार की घटनाएं अफगान जनता के संदर्भ में भारतीय छवि को प्रभावित कर सकती है । 

 

भारत की तालिबान नीति

भारत द्वारा तालिबान शासन का विरोध करते हुए यह दृष्टिकोण प्रस्तुत किया गया कि वह तालिबान से संबंधित किसी प्रत्यक्ष वार्ता में संलग्न नहीं होगा लेकिन 2018 के बाद से मास्को हुई वार्ता के बाद  भारत की तालिबान नीति में बदलाव स्‍पष्‍ट दिख रहा है ।

भारत की तालिबान नीति में बदलाव के संकेत

  1. मार्च 2020 में हुए अमेरिकी-तालिबान समझौते को भारत ने अपना समर्थन दिया और इस समझौते में भारत के प्रतिनिधि भी उपस्थित रहे।
  2. जून 2022 में अफगानिस्‍तान में आए विनाशकारी भूकंप के बाद मानवीय सहायता एवं विकास कामों में सहयोग हेतु प्रतिनिधि मंडल भेजा गया।
  3. अगस्‍त 2022 की खबर के अनुसार अफगानिस्‍तान में तालिबान के नियंत्रण के लगभग 10 महीने बाद भारत द्वारा काबुल में दूतावास खोला गया।
  4. भारत जहां अफगानिस्‍तान में तालिबान प्रशासन को मान्‍यता देने से इंकार करता रहा है वहीं अब अंतर्राष्‍ट्रीय समुदाय से तालिबान को मान्‍यता देने पर विचार करने का आग्रह किया।

 


तालिबान के प्रति नीति में बदलाव से भारत को लाभ

भावी हितों की रक्षा

वर्तमान परिदृश्य में तालिबान अफगानिस्तान की राजनीतिक प्रक्रिया का एक अंग बन गया है। अतः राजनीतिक रूप से मजबूत होते तलिबान के साथ संपर्क भारत के वर्तमान और भावी हितों की रक्षा में सहायक होगा। 

अंतर्राष्‍ट्रीय सहभागिता

अन्‍य देश जहां धीरे-धीरे तालिबान के साथ संबंधों की शुरुआत कर रहे हैं तथा पिछले कुछ महीनों में 14 देशों ने काबुल में अपने मिशन को आरंभ किया वही भारत का भी इस दिशा में बढ़ने से अंतर्राष्‍ट्रीय सहभागिता में वृदिध होगी।

अमेरिकी सेना की वापसी के बाद उत्‍पन्‍न शुन्‍य को भरने हेतु

अफगानिस्तान से अमेरिकी सुरक्षा बलों की वापसी के बाद उत्पन्न हुए शून्य को भरने के लिये भारत को तालिबान की आवश्यकता पड़ेगी । अतः तालिबान से संबंध सुधार में भारत को लाभ होगा।

पाकिस्‍तान के प्रभाव को कम करने हेतु

इस क्षेत्र में पाकिस्‍तान एक महत्‍वपूर्ण पक्ष है । अत: कई मोर्चे पर पाकिस्‍तान को जवाब देने तथा उसके तालिबान का भारत के विरुद्ध प्रयोग की नीति में भारत मजबूत स्थिति में रहेगा ।

भारत की राष्‍ट्रीय सुरक्षा में सहायक  

भारत तालिबान से प्रत्यक्ष रूप से वार्ता कर आतंकवाद जैसे विषयों को उठाकर उसका समाधान कर सकता है। उल्‍लेखनीय है कि अतीत में अफगानिस्‍तान ने अलकायदा और ISIS जैसे आतंकी समूहों को संरक्षण दिया गया था । तालिबान के साथ संबंध से भारत अपनी चिंताओं को प्रत्‍यक्ष रूप से वार्ता के माध्‍यम से हल कर सकेगा।

अफगानिस्‍तान के साथ पुन: संपर्क स्‍थापित करने हेतु

तालिबान की सत्‍ता के बाद भारत-अफगान के लोगों के संबंधों में दूरी आ गयी है और तालिबान नीति में बदलाव से फिर से संबंध बढ़ने की संभावना बन रही है ।

क्षेत्रीय गठजोड़ को रोकने हेतु 

तलिबान की बढ़ती अंतर्राष्ट्रीय वैद्यता में तलिबान के प्रति उदासीनता भारतीय हित हेतु खतरा है तथा इस नीति से तालिबान, पकिस्तान एवं चीन के साथ मिलकर भारत के लिए मुसीबत उत्पन्न कर सकता है। अत: भारत की वर्तमान नीति समय के अनुसार प्रासंगिक एवं तार्किक है ।

भारत के लिए आगे की राह

तालिबान की सत्ता की स्थापना के बाद से अफगानिस्तान में शांति एवं स्थयित्व सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती है। अफगानिस्तान में पश्तून, हजारा, ताजी, उजबेक कबीलाई समूह है जिनके साथ मधुर संबंध बनाने हेतु प्रयास किया जाना चाहिए। भारत को तालिबान के साथ साथ अपने हितैषी स्थानीय समूह के साथ भी कुछ न कुछ संपर्क बनाए रखना चाहिए।

अफगानिस्तान और और उसके आसपास हो रहे 'ग्रेट गेम' में भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने हेतु अपनी अफगानिस्तान नीति को मौलिक रूप से पुनर्परिभाषित करना होगा। इसके लिए भारत को तालिबान के साथ खुली बातचीत शुरू करनी चाहिये और उन सभी संभावनाओं को तलाश करनी चाहिए जो बदलती राजनीतिक सुरक्षा स्थिति हेतु आवश्यक है।


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