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Oct 12, 2022

राज्‍य के नीति निदेशक तत्‍व एवं मौलिक अधिकार

 राज्‍य के नीति निदेशक तत्‍व 

प्रश्‍न- संविधान में उल्‍लेखित नीति निदेशक तत्‍वों को स्‍पष्‍ट करें तथा बताए कि वह मौलिक अधिकारों से किस प्रकार अलग है?

संविधान के भाग-4 में अनुच्छेद 36 से 51 तक राज्य के नीति निर्देशक तत्व शामिल है जिसका उद्देश्य राज्य के नीति निर्माताओं के समक्ष कुछ सामाजिक एवं आर्थिक लक्ष्यों को प्रस्तुत करना है ताकि सामाजिक व आर्थिक समानता की दिशा में देश में आवश्यक बदलाव लाया जा सके।

संविधान के अनुच्छेद 37 में कहा गया है कि विधि बनाने में इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्त्तव्य होगा तथा संविधान के अनुच्छेद 355 और 365 का प्रयोग इन नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने के लिए किया जा सकता है। संविधान में वर्णित नीति निदेशक निम्‍नलिखित  है 

राज्य के नीति निदेशक तत्व

अनुच्छेद 36

राज्य की परिभाषा

अनुच्छेद 37

इनके उल्लंघन की दशा में न्यायालय की शरण नहीं ली जा सकती

अनुच्छेद 38

राज्य लोक कल्याण की अभिवृद्धि के लिए सामाजिक व्यवस्था बनाएगा।

अनुच्छेद 39

राज्य सभी नागरिकों को समान रूप से जीविका के साधन उपलब्ध कराने का प्रयास करेगा

सार्वजनिक हित को ध्यान में रखकर राज्य भौतिक संसाधनों का स्वामित्व तथा नियंत्रण करेगा।

न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता, समान कार्य हेतु समान वेतन इत्यादि।

अनुच्छेद 40

ग्राम पंचायतों का संगठन

अनुच्छेद 41

कुछ दशाओं में काम, शिक्षा और लोक सहायता पाने का अधिकार

अनुच्छेद 42

काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं का तथा प्रसूति सहायता का उपबन्ध

अनुच्छेद 43

कर्मकारों के लिए निर्वाह मजदूरी, कुटीर उद्योग को बढ़ावा आदि

अनुच्छेद 43

उद्योगों के प्रबन्ध में श्रमिकों की सहभागिता

अनुच्छेद 44

नागरिकों के लिए एक समान सिविल संहिता

अनुच्छेद 45

बालकों के लिए निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा का उपबन्ध

अनुच्छेद 46 

अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य दुर्बल वर्गों के शिक्षा और अर्थ सम्बन्धी हितों की अभिवृद्धि

अनुच्छेद 47 

पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊंचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने का राज्य का कर्तव्य

अनुच्छेद 48  

कृषि और पशुपालन का संगठन

अनुच्छेद 48  

पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन एवं वन्य जीवों की रक्षा

अनुच्छेद 49 

राष्ट्रीय महत्व के स्मारकों, स्थानों और वस्तुओं का संरक्षण

अनुच्छेद 50 

कार्यपालिका से न्यायपालिका का पृथक्करण

अनुच्छेद 51 

अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सुरक्षा की अभिवृद्धि

संविधान में नीति निदेशक तत्‍व तथा मौलिक अधिकार ऐसे प्रावधान है जो राज्‍य एवं नागरिक के बीच संबंधों को स्‍थापित करने में महत्‍वपूर्ण भूमिका निभाता है । दोनों प्रावधान में जहां कई मामलों में पूरकता है वहीं इनमें पर्याप्‍त अंतर भी है जिसे निम्‍न प्रकार समझा जा सकता है । 

मौलिक अधिकार एवं नीति निदेशक तत्व में अंतर

मौलिक अधिकार

नीति निदेशक तत्‍व

नकारात्मक अधिकार

सकारात्मक

न्यायोचित

गैर न्यायोचित

नागरिकों को स्वतः प्राप्त होता है

सरकार के द्वारा लागू किए जाने के पश्चात प्राप्त

नागरिकों के कल्याण हेतु

समाज के कल्याण हेतु

सरकार के महत्व में कमी लाता है

सरकार के महत्व को बढ़ाता है

राजनीतिक लोकतंत्र की स्थापना

सामाजिक एवं आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना

आपातकाल में निलंबित

सामान्य एवं आपातकाल दोनों में लागू

नागरिकों एवं राज्य के बीच संबंध की विवेचना

राज्य और उनकी अंतर्राष्ट्रीय नीति की विवेचना।

अधिकारों के कार्यान्वयन हेतु कानून की आवश्यकता नहीं

अधिकारों के कार्यान्वयन हेतु कानून की आवश्यकता ।

न्यायालय द्वारा असंवैधानिक या अवैध घोषित कर प्रतिबंधित किया जा सकता है।

न्यायालय द्वारा असंवैधानिक या अवैध घोषित कर प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता।

व्यक्तित्व विकास हेतु संसाधन उपलब्ध कराता है।

राज्य के संसाधनों पर निर्भर करता है ।

राजनीतिक स्वतंत्रता और समानता को बढ़ावा देता है।

समाजवाद, उदारवाद, गांधीवाद जैसे तत्वों का समायोजन है।

आदर्श नागरिक का निर्माण करता है ।

आदर्श राज्य की स्थापना करता है ।

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निष्‍कर्ष

उपरोक्‍त से स्पष्ट है कि मौलिक अधिकार तथा नीति निदेशक तत्त्व दोनों ही अपने अपने स्थान पर महत्वपूर्ण है तथा कुछ मामलों में दोनों एक दूसरे से बेहतर स्थिति में प्रतीत होते हैं फिर भी न्यायालय द्वारा विभिन्न अवसरों पर दिए गए निर्णयों से स्पष्ट है कि मौलिक अधिकार एवं निदेशक तत्त्व एक-दूसरे के पूरक हैं और इन्हें अलग-अलग करके नहीं देखना चाहिये।

नीति निर्देश तत्‍व संबंधी अन्‍य महत्‍वपूर्ण जानकारी जो परीक्षा में प्रत्‍यक्ष एवं अप्रत्‍यक्ष रूप से उत्‍तर लेखन में उपयोगी हो सकता है।

मूल अधिकार और नीति निदेशक तत्त्व दोनों ही संवैधानिक ढाँचे के अभिन्न अंग हैं और समान रूप से महत्वपूर्ण हैं। इस संदर्भ में न्यायालय ने भी अनेक अवसरों पर अपने निर्णयों के माध्यम से बताया है कि इन दोनों को एक-दूसरे के संदर्भ में देखा जाना चाहिये। मौलिक अधिकार जहां व्यक्तिगत कल्याण को प्रोत्साहन देते हैं वहीं नीति निदेशक तत्त्व समुदाय के कल्याण को प्रोत्साहित करते हैं। 

मौलिक अधिकार व नीति निदेशक तत्त्व में पूरकता

  1. मौलिक अधिकार राजनीतिक न्याय की स्थापना करता हैजबकि नीति निदेशक तत्त्व सामाजिक तथा आर्थिक न्याय को बढ़ावा देते हैं। दोनों के पूरक होने से समग्र लोकतांत्रिक व्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है।
  2. मौलिक अधिकार व्यक्तिगत हितों पर बल देते हैं जो नीति निदेशक तत्वों के साथ पूरक होकर व्यक्ति और समाज में संतुलन स्थापित कर सकते हैं।
  3. नीति निदेशक तत्त्व द्वारा मौलिक अधिकार को मार्गदर्शन मिलता है क्योंकि मौलिक अधिकार बताता है कि नागरिकों को क्या दिया जा चुका है जबकि नीति निदेशक तत्त्व बताते हैं कि और क्या दिया जाना बाकी है। 
  4. न्यायालय ने अपने निर्णयों के माध्यम से समय समय पर स्पष्ट किया है कि भाग और भाग को एक दूसरे के पूरक तथा सहायक हैं।

नीति निर्देशक तत्वों से सम्बंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय

चम्पाकम दोराइराजन बनाम मद्रास राज्य1951

 

इस वाद में सर्वप्रथम यह विवाद सामने आया कि मौलिक अधिकार तथा नीति निदेशक तत्त्व में किसे सर्वोच्चता दी जाए। न्यायालय ने निर्णय दिया कि मौलिक अधिकार प्राथमिक हैं और नीति निदेशक तत्त्व सहायक रूप में है। अतः मौलिक अधिकार सर्वोच्च है।

केशवानंद भारती बनाम भारत संघ

 

नीति निर्देशक तत्व और मूल अधिकार एक दूसरे के पूरक हैं। दूसरे शब्दों में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में उन लक्ष्यों का वर्णन है जिनको प्राप्त किया जाना है और मूल अधिकार वे साधन है जिनके माध्यम से उन लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता  है।    

मिनर्वा मिल्स बनाम भारत संघ

न्यायालय ने निर्णय दिया कि भाग 3 और भाग 4 के मध्य संतुलन पर ही संविधान की नींव आधारित है। अतः एक पर दूसरे को स्पष्ट महत्व प्रदान करना संविधान की मूल संरचना के विरुद्ध है।

केरल शिक्षा विधेयक

 

न्यायालय ने कहा कि राज्य के नीति निर्देशक तत्व मूल अधिकारों पर प्रभावी नहीं हो सकते हैं फिर भी अधिकारों की संभावनाओं और दायरे का निर्धारण करते समय न्यायालयों को राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को पूरी तरह उपेक्षित नहीं किया जाना चाहिए बल्कि जहाँ तक संभव हो सके दोनों को लागू करने का प्रयास किया जाये।

अबूकावूर बाई बनाम तमिलनाडु राज्य

राज्य के नीति निर्देशक तत्व बाध्यकारी नहीं हैं फिर भी न्यायालयों को नीति निदेशक तत्वों और मूल अधिकारों के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास करते हुए दोनों  के मध्य किसी भी प्रकार के संघर्ष से बचा जाये।

उन्नाकृष्णन बनाम आंध्र प्रदेश राज्य

मूल अधिकार और नीति निर्देशक तत्व एक दूसरे के पूरक हैं और भाग 3 में दिए गए प्रावधानों की व्याख्या प्रस्तावना और नीति निर्देशक तत्वों के सन्दर्भ में की जानी चाहिए।

उपरोक्त से स्पष्ट है न्यायालय द्वारा मूल अधिकार एवं नीति निदेशक तत्वों में किसी को भी एक दूसरे के ऊपर वरीयता नहीं दी गयी है बल्कि दोनों के मध्य संतुलन की बात की गयी है।

 

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