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Oct 16, 2022

भारत की संसदीय कार्यप्रणाली

 

भारत की संसदीय कार्यप्रणाली 

संविधान निर्माताओं द्वारा भारत संसद को मुख्यतः 3 महत्वपूर्ण जिम्मेदारियाँ सौंपी गयी थी जो निम्‍नलिखित है:-

  1. कानून बनाने की
  2. सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने की 
  3. देश से संबंधित आवश्यक मुद्दों पर बहस और चर्चा करने की।

वर्तमान संदर्भ में देखा जाए तो संसद कई मामलों में अपने दायित्वों के ठीक ढंग से निर्वहन नहीं कर पा रही है। हाल ही में संसदीय कार्यवाही में बाधा डालने पर राज्यसभा के 12 सदस्यों को निलंबित किया गया है। भारतीय संसदीय व्यवस्था में ऐसी घटनाओं को देखते हुए संसदीय कार्यप्रणाली में सुधार समय की मांग है।

कानून निर्माण की गिरती गुणवत्ता के कारण

  1. कानून निर्माण पर्याप्त, वाद विवाद, चर्चा के बाजए जल्दबाजी में करने की प्रवृत्ति का बढ़ना।
  2. संसद में बैठको की संख्या लगातार कम होने, बाधित होने से विधेयक पर चर्चा नहीं हो पाना।
  3. विभिन्न मुद्दों पर मतभेद की स्थिति में सरकार द्वारा अधिकाश कानूनों का निर्माण अध्यादेश के द्वारा किया जाना।
  4. कानून निर्माण की प्रक्रिया में जाँच समितियों की भूमिका में कमी आना ।
  5. संसदीय कार्यप्रणाली की जाँच गुणवत्ता के बजाए पारित हुए कानूनों की संख्या के आधार पर तय किए जाने का प्रचलन ।


संसद सत्र की समयावधि में गिरावट

60 के दशक में  संसद के सत्र की अवधि  औसत रूप से 120 दिन को दी थी जबकि बीते दशक में लोकसभा हर साल औसतन 70 दिन ही चली। संविधान की कार्यप्रणाली की समीक्षा हेतु गठित राष्ट्रीय आयोग ने सिफारिश की थी कि लोक सभा के लिये कम से कम 120 दिन और राज्य सभा के लिये 100 दिन की बैठक अवश्य होनी चाहिये।

  1. वर्ष 2021 का बजट सत्र समय से 2 सप्ताह पहले समाप्त कर दिया ।
  2. 2021 में कई जगह पर हो रहे राज्य विधान सभा चुनावों के कारण संसदीय सत्र बाधित रहा।
  3. 2020 के मानसून सत्र को तय वक़्त से 8 दिन पहले ही समाप्त कर दिया गया और यह केवल 10 दिन चला।
  4. 2020 के मॉनसून सत्र के दौरान प्रश्न काल को स्थगित रखा गया।
  5. कोरोना वायरस के कारण 2020 में संसद के शीतकालीन सत्र का आयोजन नहीं किया गया। 

जवाबदेही में कमी

प्रश्नकाल कार्यपालिका पर संसद के नियंत्रण का साधन है जो  संसद के प्रति कार्यपालिका की जवाबदेही सिद्ध करता है। 2020 के मानसून सत्र के दौरान प्रश्नकाल को समाप्त कर दिया गया था।  प्रश्नकाल को समाप्त करके कहीं ना कहीं उत्तरदायित्व की अवधारणा को कमजोर किया गया ।

सदस्यों की उपस्थिति

संसद में सदस्यों की उपस्थिति में कमी भी एक प्रमुख समस्या है जिसके कारण संसद में बहस तथा चर्चा में कमी आ रही है। यह स्थिति लोकतंत्र की उत्पादकता को प्रभावित करता है।

संसदीय चर्चा का अभाव

वर्तमान में संसद में विधेयक पर्याप्त चर्चा के बिना बहुत ही तेजी से पारित हो जा रहे हैं। 2020 के मानसून सत्र में लोकसभा में 25 विधेयक पारित किए गए वहीं राज्यसभा में 7 बिल बिना लोकतात्रिंक बहस के विपक्ष की ग़ैर-मौजूदगी के बीच पास हो गए जिनमें आवश्यक वस्तु अधिनियम (संशोधन) 2020, लेबर कोड और फॉरेन कंट्रीब्यूशन (रेगुलेशन) अमेंडमेंट जैसे बिल शमिल थे।

खान एवं खनिज संशोधन विधेयक 2021 मात्र 1 सप्ताह की अवधि में पारित किया गया। 

संसदीय समितियों की उपेक्षा

संसद द्वारा विधेयक को अधिक युक्तिसंगत बनाने हेतु विभागीय समितियों तक विधेयक को भेजे जाने का प्रतिशत 15 वीं लोकसभा में 71% था वहीं सोलहवीं लोकसभा में मात्र 27% तथा 17वीं लोकसभा में यह मात्र 11% रह गया।

संसदीय कार्यप्रणाली में बढ़ती अनुशासनहीनता

कोविड-19 के दौर में चले वर्ष 2020 के मानसून सत्र में हंगामा, विरोध प्रदर्शन, के साथ साथ सभापति द्वारा 8 राज्यसभा सांसदों को निलंबित किया गया। विपक्ष द्वारा सदन का बायकॉट किया गया तथा पहली बार सांसदों ने रात भर संसद परिसर के अंदर धरना दिया।

निजी सदस्यों की उपेक्षा

निजी सदस्यों द्वारा प्रस्तुत विधेयक बिना किसी चर्चा के समाप्त हो जाते हैं उल्लेखनीय है कि 14वीं लोकसभा में निजी सदस्यों द्वारा प्रस्तुत 300 विधेयक में से केवल 4% विधेयक पर चर्चा हो पाई।

विशेषज्ञता का अभाव

संसद में कार्यों की सूची, बजटीय आवंटन को तार्किक तथा समावेशी बनाने की आवश्यकता है इसके अलावा नीति निर्माण तथा अन्य  संसदीय कार्यों में आवश्यक अनुसंधान की भी कमी देखी जाती है।

समावेशी प्रतिनिधित्व का अभाव

संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व उचित संख्या में नहीं है जिसके कारण संसद में समावेशी प्रतिनिधित्व का अभाव पाया जाता है।

वर्तमान संसदीय व्यवस्था में सुधार

दल बदल कानून तथा व्हिप संबंधी प्रावधानों के कारण वर्तमान संसदीय कार्यप्रणाली प्रभावित होती है। अतः इसमें सुधार लाना आवश्यक है।

 

भारतीय संसदीय प्रक्रिया का पतन के संकेत

  1. हाल के कुछ वर्षों में संसद के कार्य प्रभावित होने से समय एवं धन की बर्बादी।
  2. कानून निर्माण आम सहमति के बजाय अध्यादेश के द्वारा होना।
  3. संसद की कार्य क्षमता में गिरावट।
  4. अधीनस्थ संस्थाओं पर नियंत्रण  में कमी तथा कार्य प्रणाली में गिरावट।
  5. संवैधानिक संस्थाओं की गिरती कार्यप्रणाली तथा लोगों का विश्वास कम होना।
  6. विरोध हेतु विरोध के कारण किसी कानून का पारित होना  मुश्किल।
  7. कई महत्वपूर्ण कानून बिना बहस तथा  वाद विवाद के पारित  होना।
  8. विपक्ष की भूमिका में आए बदलाव।
  9. संसद एवं संसदीय कार्य प्रणाली की गिरती गरिमा।
  10. राज्यसभा के अधिकांश सदस्यों की अनुपस्थिति।
  11. दोनों सदनों में महत्वपूर्ण चर्चा के बजाय वित्त विधेयक का दर्जा देते हुए लोकसभा द्वारा ही पारित कराया जाना।


संसद तथा संसदीय कार्य प्रणाली में सुधार हेतु सुझाव

  1. सांसदों विधायकों हेतु सदन के बाहर एवं सदन के भीतर  के लिए आचार संहिता बनाई जाए।
  2. पार्टी बदलने से पहले विधायकों द्वारा सदन से इस्तीफा दिया जाए।
  3. दल बदल संबंधी मामलों का  प्राथमिकता के साथ शीघ्र निपटारा किया जाए।
  4. राज्य सभा एवं राज्यों के उच्च सदन की गरिमा हेतु राष्ट्रीय नीति का निर्माण किया जाए।
  5. विधायिका समेत सभी क्षेत्रों में महिला आरक्षण की व्यवस्था लागू की जाए।
  6. नेताओं के खिलाफ अपराधिक मामले चुनाव याचिका का शीघ्र निपटारा किया जाए।
  7. विधायिका के कामकाज के न्यूनतम  समयावधि निर्धारित  किया जाए।
  8. बजट की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु अमेरिका जैसी संसदीय बजट कार्यालय की स्थापना जिसमें विषय विशेषज्ञ तथा तकनीकी जानकार भी शामिल हो।
  9. महिलाओं को उचित प्रतिनिधित्व देने की दिशा में प्रयास किए जाएं।
  10. सांसदों के मतदान के रिकॉर्ड को पारदर्शी बनाने के साथ दल बदल कानून में आवश्यक संशोधन लाया जाए।
  11. संसद सत्र की बैठकों का वार्षिक कैलेंडर जारी किया जाए ताकि उसके अनुसार सभी सांसद अपना वार्षिक कार्यक्रम निर्धारित कर सकें।
  12. सांसदों की बैठक में उपस्थिति सुनिश्चित करने हेतु प्रभावी कदम उठाए जाएं।

66वीं BPSC मुख्य परीक्षा के सफल नोट्स के बाद एक बार फिर Auditor 67th BPSC CDPO मुख्य परीक्षा हेतु केन्द्रीय बजट 2022, केन्द्रीय आर्थिक समीक्षा तथा बिहार बजट 2022 एवं बिहार आर्थिक समीक्षा के साथ साथ अन्य महत्वपूर्ण रिपोर्ट इत्यादि के अद्यतन आकड़ों के साथ उपलब्ध  

BPSC मुख्य परीक्षा संबंधी नोट्स की विशेषताएं

  1. To the Point  और Updated Notes
  2. सरलस्पष्ट  एवं बेहतर प्रस्तुतीकरण 
  3. प्रासंगिक एवं परीक्षा हेतु उपयोगी सामग्री का समावेश 
  4. सरकारी डाटासर्वेसूचकांकोंरिपोर्ट का आवश्यकतानुसार समावेश
  5. आवश्यकतानुसार टेलीग्राम चैनल के माध्यम से इस प्रकार के PDF द्वारा अपडेट एवं महत्वपूर्ण मुद्दों को आपको उपलब्ध कराया जाएगा 
  6. रेडिमेट नोट्स होने के कारण समय की बचत एवं रिवीजन हेत उपयोगी 
  7. अन्य की अपेक्षा अत्यंत कम मूल्य पर सामग्री उपलब्ध होना।
  8. मुख्‍य परीक्षा को समर्पित टेलीग्राम ग्रुप की निशुल्‍क सदस्‍यता ।

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भारतीय संविधान एवं राजव्‍यवस्‍था 

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