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Nov 5, 2022

1991 की नई आर्थिक नीति एवं उसके प्रभाव

नई आर्थिक नीति एवं उसके प्रभाव  

प्रश्‍न- "1991 की नई आर्थिक नीति के तहत अपनाए गए नीतियों के बाद एक ओर जहां भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में सुधारों को गति मिली वहीं दूसरी ओर कई नकारात्‍मक प्रभाव भी देखने को मिले।" परीक्षण करें।

स्‍वतंत्रता के बाद मिश्रित अर्थव्‍यवस्‍था के तहत सार्वजनिक क्षेत्र को ज्‍यादा महत्‍व देते हुए केन्‍द्रीकृत एवं नियंत्रित अर्थव्‍यवस्‍था को अपनाया गया जिसके कारण 1990 आते आते भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था की स्थितियों में व्‍यापक बदलाव आया जिसके फलस्‍वरूप नई आर्थिक नीति को अनाया गया ।   

1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति

  1. विदेशी ऋण संकट की स्थिति जिसमें सरकार भुगतान की स्थिति में नहीं थी। 
  2. पेट्रोलियम आदि आयात हेतु विदेशी मुद्रा रिजर्व 15 दिनों से कम होना ।
  3. अर्थव्यवस्था के अकुशल प्रबंधन के कारण सरकार पर बैंक, अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं का कर्ज।
  4. बेरोजगारी, गरीबी जनसंख्या विस्फोट की चरम स्थिति। 
  5. सरकार के अनावश्यक खर्च तथा सरकारी योजनाओं तथा कार्यक्रम पर अधिक व्यय।
  6. अंतरराष्ट्रीय निवेश के प्रति भारत में नकारात्मक माहौल से निवेश की कमी।

इस प्रकार उपरोक्‍त स्थितियों में विश्व बैंक तथा अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष  के शर्तों के अधीन भारत में 1991 में नई आर्थिक नीति को अपनाया गया और भारत में स्‍थायित्‍वकारी उपाए एवं संरचनात्‍मक सुधारों की घोषणा की गयी ।

स्थायित्वकारी उपाय द्वारा जहां भुगतान संतुलन संबंधी त्रुटियों को दूर किया गया वहीं संरचनात्‍मक सुधार के तहत अंतर्राष्‍ट्रीय प्रतिस्‍पर्धा में वृदिृध्‍ करने हेतु सरकार ने उदारीकरण, वैश्वीकरण तथा निजीकरण द्वारा आर्थिक सुधारों को गति दी गयी ।

हांलाकि नई आर्थिक नीति के तहत भारत सरकार द्वारा अपनाए नीतियों एवं प्रयासों से जहां भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में सुधारों को व्‍यापक गति मिली वहीं दूसरी ओर कई नकारात्‍मक प्रभाव भी देखने को आए ।

नई आर्थिक नीति के बाद के सुधार

सकल घरेलू उत्‍पाद पर प्रभाव

  • सकारात्‍मक सुधारों में देखा जाए तो नई आर्थिक नीति के बाद GDP की वृद्धि 1980-91 के 5.6 से बढ़कर 2007-12 में 8.2 हो गयी। हांलाकि कृषि संवृद्धि में गिरावट आई, औद्योगिक क्षेत्र उतार चढ़ाव वाला रहा लेकिन सेवा क्षेत्र में वृद्धि दर्ज हुई।

विदेशी निवेश एवं विदेशी मुद्रा भंडार

  • उदारीकरण के बाद से भारत में विदेशी निवेश तथा विदेशी विनिमय रिजर्व में वृद्धि दर्ज होती गयी भारतीय रिजर्व बैंक के अनुसार, भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 21 जनवरी 2022 को  634.287 बिलियन अमेरिकी डालर था ।

विनिर्माण क्षेत्र में वृद्धि

  • अनेक भारतीय कंपनियां वैश्विक स्तर पर अपने उत्पाद बना रही है तथा विश्व की अर्थव्यवस्था में योगदान दे रही है। भारत वर्तमान में वाहनकलपुर्जों, इंजीनियरिंग उत्पादों, सूचना तकनीकी उत्पाद, वस्त्र जैसे वस्तुओं के क्षेत्र में सफल  निर्यातक है। 

विश्‍व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था

  • भारत वर्तमान में विश्‍व की पांचवी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है जनवरी 2022 में जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत 2030 तक एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा ।

 

हांलाकि कई क्षेत्रों में भारत में सकारात्‍मक परिणाम आए है लेकिन इसके साथ साथ कई नकारात्‍मक परिणाम भी सामने आए हैं जिनमें प्रमुख है

बढ़ती असमानाता

  • भारत में असमानताएं भी बढ़ी है। नई आर्थिक नीति के अपनाए जाने के बाद  प्रारंभ हुए LPG सुधारों से अमीर-गरीब, शहर-गांव, उद्योग-कृषि के बीच असमानता बढ़ी।

उदयोंगों पर बढ़ता एकाधिकार

  • MRTP कानून समाप्‍त होने के बाद बड़े औद्योगिक घरानों का धीरे धीरे हर क्षेत्र में एकाधिकार स्‍थापित होता जा रहा है । 

कृषि क्षेत्र के प्रति उदासीनता

  • नई नीति के आने के बाद जहां सेवा, उद्योग जगत में अनुकूल अवसर सृजित हुए वहीं  कृषि में उदासीनता देखी गई।

श्रमिक संबंधी समस्‍याएं

  • निजीकरण से प्रतिस्पर्धा, प्रबंधन में तो सुधार आया किंतु श्रमिक सुरक्षा, निम्न मजदूरी जैसी समस्याएं भी बढ़ी।

बेरोजगारी

  • सुधार के बाद उच्‍च वृद्धि दर दर्ज की गयी लेकिन रोजगार के क्षेत्र में ज्‍यादा प्रगति नहीं हो पायी । हायर एंड फायर, ओटोमेशन, निजीकरण के कारण बेरोजगारी बढ़ती जा रही है।

इस प्रकार स्‍पष्‍ट है नई आर्थिक नीति के कारण भारतीय अर्थव्‍यवस्‍था में मिश्रित परिणाम देखने को आए जिसमें कई सकारात्‍मक तो कई नकारात्‍मक रहे ।


 

 

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