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Nov 16, 2022

भारतीय लोकतंत्र में लैंगिक समानता

भारतीय लोकतंत्र में लैंगिक समानता

प्रश्‍न- वैश्विक लैंगिक अंतराल (Global Gender Gap Index) सूचकांक 2022 के संदर्भ में भारतीय राजनीति में लैंगिक समानता ज्‍यादा बेहतर स्थिति में नहीं है। हांलाकि इस दिशा में कुछ चुनौतिया अभी भी विद्यमान है जिनको दूर करने और सतत विकास लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने हेतु और प्रयास किए जाने की आवश्‍यकता है । चर्चा करे

विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी वैश्विक लैंगिक अंतराल (Global Gender Gap Index) सूचकांक 2022 में भारत को चार प्रमुख मानकों के आधार पर 146 देशों में से 135वें स्थान पर रखा है।

इस सूचकांक के एक मुख्‍य आयाम राजनीतिक अधिकारिता (संसद में और मंत्री पदों पर महिलाओं का प्रतिशत) में भारत 146 देशों में 48वें स्थान पर है जो एक संतोषजनक स्थिति कही जा सकती है लेकिन इस दिशा में और प्रयास किए जाने की आवश्‍यकता है । उल्‍लेखनीय है कि इस सूचकांक के अनुसार पड़ोसी देश बांग्लादेश 0.546 के स्कोर के साथ 9वें स्थान पर है।

भारतीय संविधान में पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान राजनीतिक और नागरिक अधिकार प्रदान किए हैं ताकि भारत में राजनीतिक क्षेत्र में लैंगिक समानता सुनिश्चित किया जा सके ।    

भारतीय संविधान में लैंगिक समानता संबंधी प्रावधान

मौलिक अधिकार

पुरुषों और महिलाओं को समान मौलिक अधिकारों की गारंटी

नीति निदेशक तत्वों

पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान काम के लिए समान वेतन

काम की मानवीय स्थितियों और मातृत्व राहत के प्रावधान द्वारा महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण ।

अनुच्छेद 325 और 326

निर्धारित मतदान और चुनाव लड़ने के राजनीतिक अधिकार

73वें एवं 74वें संशोधन अधिनियम

स्‍थानीय निकायों में महिलाओं के लिए सीटों की कुल संख्या का एक तिहाई आरक्षण

 

उल्‍लेखनीय है कि भारतीय राजनीति में लैंगिक समानता यानी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी समावेशी एवं विकासशील शासन व्‍यवस्‍था हेतु अत्‍यंत है जिसकी आवश्यकता को निम्‍न प्रकार से समझा जा सकता है-

  • अनुच्छेद 14 एवं 15 में दिए गए संवैधानिक प्रावधानों को सुनिश्चित करने हेतु।
  • बिना किसी भेदभाव के कानून का राज, समावेशी समाज की स्थापना हेतु।
  • मूल अधिकार, मौलिक कर्तव्य तथा नीति निर्देशक सिद्धांतों में दिए गए प्रावधानों को अमल में लाने हेतु।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दिए गए उद्देश्यों सामाजिक न्याय एवं समानता सुनिश्चित करने हेतु।
  • महिलाओं की प्राकृतिक, सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति पुरुषों से अलग होने के कारण उनके अधिकारों के संरक्षण हेतु।
  • जनरल आफ इकानॉमिक्‍स एंड ऑर्गनाइजेशन में प्रकाशित एक शोध में यह सामने आया है कि सरकार में महिलाओं की ज्‍यादा भागीदारी  होने से भ्रष्‍टाचार कम होता है। 125 देशों में हुये इस शोध से पता चलता है कि जिन देशों की संसद में महिलायें ज्‍यादा हैं, वहाँ भ्रष्‍टाचार काफी कम हो गया है।
  • रिपोर्ट के अनुसार राजनीति में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भारत 51वें स्थान पर है। भारत में महिला मंत्रियों की संख्या वर्ष 2019 में 23.1% थी जो वर्ष 2021 में घटकर 9.1% रह गई है।

भारतीय संविधान एवं अन्‍य प्रावधानों के बावजूद भारतीय राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है हांलाकि स्‍थानीय शासन में सरकार के प्रयासों के कारण महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है फिर भी अनेक ऐसे कारण है जिनके कारण इस दिशा में पर्याप्‍त सफलता नहीं मिल पायी है।

लिंग आधारित रूढ़ियां

  • भारतीय समाज में घरेलू कार्यों के प्रबंधन की पारंपरिक भूमिका के कारण कई महिलाएं घर से बाहर निकल नहीं पाती और समाज द्वारा भी इस प्रकार का प्रोत्‍साहन नहीं दिया जाता।

राजनीतिक शिक्षा एवं ज्ञान की कमी

  • राजनीति शिक्षा एवं समझ की कमी तथा राजनीतिक एवं मौलिक अधिकारों से अनभिज्ञता महिलाओं की सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करती है और वह स्‍थानीय स्‍तर पर भी राजनीति में सक्रिय नहीं हो पाती ।
  • महिलाओं की राजनीति के क्षेत्र में कम रुचि एवं ज्ञान की कमी के कारण राजनीतिक बहस और चर्चा में भाग नहीं लेती और इस क्षेत्र में आने के प्रति निष्‍क्रिय रहती है ।

निरक्षरता

  • पुरुषों की साक्षरता दर 82.14% से की तुलना में महिलाओं की साक्षरता दर 65.46% है । इस प्रकार अशिक्षा महिलाओं की राजनीतिक व्यवस्था और मुद्दों को समझने की क्षमता को सीमित करती है ।

आत्मविश्वास की कमी

  • औपचारिक राजनीतिक संस्थानों में कम प्रतिनिधित्व का एक मुख्य कारण आत्मविश्वास की कमी है ।

आर्थिक स्थितियां

  • वर्तमान भारतीय समाज में कई महिलाएं अपने घरों तक ही सीमित रहती हैं और उनके जीवन के बड़े फैसले उनके परिवार के पुरुष सदस्‍य जैसे पिता, भाई या पति द्वारा लिए जाते हैं।
  • विभिन्‍न राजनीतिक दलों की आंतरिक संरचना में भी महिलाओं की संख्‍या कम होने से उनके संसाधन भी सीमित होते हैं और इस कारण विभिन्‍न अवसरों पर उनको पर्याप्‍त वित्‍तीय सहायता नहीं मिल पाती ।

लैंगिक समानता की दिशा में सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में भारत के प्रदर्शन को देखा जाए तो किए जानेवाले प्रयास 2030 के तय सीमा से दूर है अत: इस दिशा में राजनीति में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने हेतु निम्‍न सुझाव को अपनाया जा सकता है-

  • महिला उम्मीदवारों में राजनीति कौशल विकास हेतु परामर्श और प्रशिक्षण कार्यक्रम की व्‍यवस्‍था ताकि स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति हेतु उनमें आवश्यक कौशल का विकास हो ।
  • महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रमों, वित्‍त पोषण कार्यक्रमों को सरकारी द्वारा समर्थन ।
  • महिलाओं के अनूकुल राजनीतिक समारोहों, बैठकों का आयोजन ताकि ऐसे समारोहों में महिलाओं की भागीदारी बढ़े ।
  • विभिन्‍न राजनीतिक दलों के भीतर महिला विंग की स्‍थापना ताकि महिला संबंधी समस्‍याओं एवं उनके प्रोत्‍साहन देने वाले कार्यो को किया जा सके।
  • महिला प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने में आनेवाली बाधाओं तथा चुनौतियों पर नजर रखना तथा उसे दूर करने हेतु आवश्‍यक नीति निर्माण करना
  • महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव लाने हेतु प्रयासों को बढ़ावा देना ।

बिहार सरकार महिलाओं को सशक्‍त करने के क्रम में पंचायती राज संस्थानों और नगरपालिका निकाय में  महिलाओं को 50%  आरक्षण के अलावा सभी सरकारी सेवाओं में नियुक्ति में महिलाओं को 35% आरक्षण, बिहार आरक्षी सेवाओं में 35% आरक्षण जैसी व्‍यवस्‍था की गयी है ।

अत: इस प्रकार की व्‍यवस्‍था राज्‍य विधानमंडल एवं केन्‍द्र सरकार के स्‍तर पर भी किए जाने की आवश्‍यकता है। ताकि भारतीय शासन व्‍यवस्‍था को लैंगिक रूप से समावेशी बनाया जा सके और  नीति-निर्माण और शासन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ायी जा सके।   


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