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Nov 20, 2022

कार्बन कृषि- आडिटर मुख्‍य परीक्षा मॉडल उत्‍तर

कार्बन कृषि-आडिटर मुख्‍य परीक्षा मॉडल उत्‍तर 

आडिटर मुख्‍य परीक्षा 2022 में पूछे गए प्रश्‍न का मॉडल उत्‍तर हमारी टीम द्वारा उपलबध कराया जा रहा है आप चाहे तो इसी प्रकार का मॉडल उत्‍तर आवश्‍यक सुधार करके लिख सकते हैं  

प्रश्‍न - कार्बन कृषि से आपका क्‍या अभिप्राय है ? यह प्रक्रिया किस प्रकार से कृषि प्रणाली बनाम जलवायु परिवर्तन को बदल सकती है 

वह कृषि प्रणाली जिसके द्वारा वायुमंडल में उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को कम करने में मदद मिलती है तथा उत्‍सर्जित कार्बन को भूमि में जमा करने पर जोर दिया जाता है  कार्बन फार्मिंग कहलाता है दूसरे शब्‍दों में  कार्बन फार्मिंग एक ऐसा कृषि मॉडल है जो जलवायु परिवर्तन को बहुत हद तक परिवर्तित करने की क्षमता रखने के साथ साथ सतत एवं टिकाऊ कृषि अभ्‍यास को प्रोत्‍साहन देती है ।

उल्‍लेखनीय है कि कृषि एक महत्‍वपूर्ण क्रिया है तथा वर्तमान में प्रचलित औद्योगिक कृषि व्‍यापक स्‍तर पर पर्यावरणीय विनाश का कारण बन रहे हैं और कार्बन उत्‍सर्जन में अपनी भागीदारी के द्वारा जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया को तेज कर रहे हैं । कृषि कार्य में कार्बन उत्‍सर्जन को निम्‍न प्रकार से समझा जा सकता है।

कार्बन कृषि के लाभ  

  • कार्बन कृषि के तहत अपनायी गयी  प्रक्रिया कार्बन कैप्चर को इष्टतम करती है जो वातावरण से CO2 को हटाने में मदद करने के साथ साथ कार्बन को वैसे कार्बनिक पदार्थ में परिवर्तित करने की दर में सुधार लाते हैं जो पौधों एवं मृदा के लिए उपयोगी होते हैं।
  • कार्बन फार्मिंग में किसानों को वैसे कृषि प्रक्रियाओं हेतु भी प्रोत्‍साहित किया जा सकता है जिसके माध्‍यम से न केवल वे अपनी पैदावार में सुधार ला सकते हैं बल्कि कार्बन की कार्बन की जब्ती कर उन्‍हें कार्बन बाज़ारों में बेच कर आय भी अर्जित कर सकते हैं।
  • कार्बन कृषि के माध्‍यम से मृदा स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार से पैदावार में सुधार, कार्बन क्रेडिट से प्राप्त आय, गुणवत्तायुक्त और रसायन-मुक्त खाद्य प्राप्‍त करने का लक्ष्‍य प्राप्‍त किया जा सकता है।  

इस प्रकार कार्बन कृषि मॉडल जहां कार्बन उत्‍सर्जन में कमी करते हुए जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला करने में मदद करती है वहीं वृहत आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा जाल सुनिश्चित करते हुए उनकी आय को बढ़ाने में भी मददगार है।

कृषि एवं कार्बन उत्‍सर्जन  

कृषि वैश्विक ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में लगभग एक तिहाई का योगदान देती है तथा हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में इन गैसों के उतसर्जन में कृषि की हिस्‍सेदारी लगभग 14% है जिसमें मुख्‍य रूप से पशुधन क्षेत्र, नाइट्रोजन उर्वरकों का प्रयोग और चावल की खेती, कृषि अवशिष्‍टों का निपटना, पराली जलाने जैसे मुख्‍य कारक शामिल है ।

इस दिशा में पर्यावरण अनुकूल कषि को प्रोत्साहन देने तथा जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति लचीला बनाने हेतु राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन, परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति कार्यक्रम को प्रोत्साहन दिया जा रहा है जिसके तहत रासायनिक या जैविक खाद का उपयोग नहीं होता तथा मिट्टी की सतह पर रोगाणुओं, केंचुओं द्वारा कार्बनिक पदार्थों के अपघटन को प्रोत्साहित कर धीरे धीरे मिट्टी में पोषक तत्त्वों की वृद्धि की जाती है । 

इस दिशा में बिहार में जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु सरकार ने जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम आरंभ किया है जिसके दो घटक है

  1. जलवायु संबंधी वर्तमान और भावी जोखिमों से निपटने के लिए चलाने लायक योजना ।
  2. राज्य के सभी जिलों में जलवायु अनुकूल प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन ।

बिहार के सभी 38 जिलों में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम की स्वीकृति दी गई, प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं-

  • जल, खरपतवारपोषण आदि  के प्रबंधन संबंधी सर्वोत्तम  व्यवहार ।
  • मिट्टी और जलवायु की उपलब्धि स्थितियों के अनुसार व्यवहारिक फसल विविधीकरण ।
  • कम और मध्यम अवधि के जलवायु अनुकूल फसल प्रभेद
  • हैप्पी सीडर, सुपर सीडर  और स्ट्रॉ  बेलर के जरिए फसल के अपशिष्ट का प्रबंधन 
  • जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत फसलों की ठूंठ प्रबंधन हेतु उपयुक्त मशीन के माध्यम से पुआल के प्रबंधन ।
  • बिहार के 11 कृषि विकास  केंद्रों में  जैव कोयला उत्पादन की नई पहल आरंभ की गई है । इन केंद्रों में फसलों की  ठूंठ को कार्बन बहुल  जैव उर्वरक पदार्थ में बदल दिया जाता है जिसके कारण वातावरण में हरित गैसों के उत्सर्जन से बचाव होता है।

स्‍पष्‍ट है आनेवाले वर्षों में जनसंख्या बढ़ने के साथ साथ कृषि उत्पादों की मांग भी बढ़ेगी ऐसे में में कृषि पारिस्थितिकी को संरक्षित रखते हुए जलवायु अनुकूल एवं स्मार्ट कृषि अभ्‍यासों को प्रोत्‍साहन देने की आवश्‍यकता है ।

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