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Nov 13, 2022

समान नागरिक संहिता (Common Civil Code)

 

समान नागरिक संहिता (Common Civil Code)

संविधान में नीति निदेशक तत्वों में समान नागरिक संहिता को लागू करने का प्रयास करने का उल्लेख किया गया है और भारत के सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालों द्वारा भी समय-समय पर इस विषय पर जोर दिया है। कर्नाटक में हाल में हुए हिजाब विवाद के संदर्भ में देश में समान नागरिक संहिता की मांग फिर से जोर पकड़ने लगी है।

उल्लेखनीय है कि समान नागरिक संहिता भारत के लिए एक कानून बनाने की मांग करता है, जो विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने जैसे मामलों में सभी धार्मिक समुदायों पर लागू होगा।

समान नागरिक संहिता 

  • हाल ही में उत्तराखंड के मुख्यमंत्री द्वारा यह वादा किया कि यदि वे फिर से सरकार के लिए चुने जाते हैं, तो राज्य के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करेंगे।
  • जूलाई 2021 में एक मामले की सुनवाई में दिल्ली हाईकोर्ट ने भी देश में समान नागरिक संहिता की वकालत करते हुए केंद्र को इसे लागू करने के लिए समुचित कदम उठाने के लिए कहा है।
  • दिल्ली हाई कोर्ट की टिप्पणी के बाद जम्मू एवं कश्मीर में भी इसे लागू करने को लेकर आवाज उठने लगी। इस संबंध में अधिकांश बुद्धिजीवियों का यह मानना है कि समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत सही मायनों में धर्मनिरपेक्ष बनेगा और सभी को एक जैसे अधिकार हासिल होंगे।
  • कई लोगों का मानना है कि अगर देश में भारतीय दंड संहिता एक है तो समान नागरिक संहिता क्यों नहीं हो सकती। सभी धर्मों के लोगों के लिए एक जैसा कानून होना चाहिए।
  • सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार सभी नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता के अधिकार को सुनिश्चित कराना राज्य की ज़िम्मेदारी है तथा कई अवसरों पर न्यायालय ने इसे जल्द से जल्द लागू करने को कहा है।
  • संविधान निर्माता डॉ बीआर अम्बेडकर ने कहा था कि समान नागरिक संहिता वांछनीय होने के बावजूद इसके कानूनी निर्माण को अधिक उपयुक्त समय तक टाल दिया जाना चाहिए।

समान नागरिक संहिता की आवश्यकता

  • अलग-अलग धर्मों के अलग कानून से कानूनी एवं प्रशासनिक जटिलताएं एवं न्यायपालिका कार्य बोझ में वृद्धि।
  • समान नागरिक संहिता लागू होने मामलों में कमी आएगी और वर्षों से लंबित पड़े मामलों के फैसले जल्द हो सकेंगे ।
  • शादी, तलाक, गोद लेना और जायदाद के बंटवारे में सबके लिए एक जैसा कानून होगा फिर चाहे वो किसी भी धर्म का क्यों न हो। वर्तमान में हर धर्म के लोग इन मामलों का निपटारा अपने पर्सनल लॉ यानी निजी कानूनों के तहत करते हैं।
  • संवैधनिक प्रावधानों तथा समय-समय पर न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों में इसकी आवश्यकता पर बल देना।
  • भारत में कानूनी, सामाजिक एवं लैंगिक समानता को सुनिश्चित करने हेतु ।
  • विविधताओं वाले देश भारत में राष्ट्रीय एकता तथा अखंडता की मजबूती हेतु।
  • समान नागरिक संहिता की अवधारणा के अनुसार कानून में समानता आने से मजबूत होगी।
  • भारत में हर भारतीय पर एक समान कानून लागू होने से भारत की राजनीति में भी सुधार की उम्मीद है।

समान नागरिक संहिता से लाभ

कानूनों का सरलीकरण

  • समान संहिता विवाह, विरासत और उत्तराधिकार समेत विभिन्न मुद्दों से संबंधित जटिल कानूनों को सरल बनाएगी। परिणामस्वरूप समान नागरिक कानून सभी नागरिकों पर लागू होंगे, चाहे वे किसी भी धर्म में विश्वास रखते हों।

लैंगिक न्याय

  • यदि समान नागरिक संहिता को लागू किया जाता है, तो वर्तमान में मौजूद सभी व्यक्तिगत कानून समाप्त हो जाएंगे, जिससे उन कानूनों में मौजूद लैंगिक पक्षपात की समस्या से भी निपटा जा सकेगा।
  • लगभग सभी धर्मों के व्यक्तिगत कानून महिलाओं के प्रति भेदभावपूर्ण है। पुरुषों को उत्तराधिकार और विरासत के मामले में प्राथमिकता दी जाती है। ऐसे में यह पुरुषों और महिलाओं दोनों को समानता के स्तर पर लाने में सहायक होगा।

महिला सशक्तीकरण

  • परंपरागत प्रथाओं के अंतर्गत पुरुषों को ज्यादा महत्त्व एवं लाभ प्राप्त होता है जबकि महिलाओं को दोयम दर्जा प्रदान किया गया है। अतः इससे महिलाओं की स्थिति में बदलाव आएगा।
  • महिलाओं को विवाह, तलाक एवं गुजारा भत्ता के संबंध में प्रगतिशील आधुनिक कानूनों के अंतर्गत लाभ प्राप्त हो सकेगा।
  • मुस्लिम समुदाय सहित कई समुदायों में महिलाओं को आसानी से तलाक दे दिया जाता है तथा गुजारा भत्ता भी नहीं दिया जाता। साथ ही एक पुरुष को कई शादियाँ करने का अधिकार मिला हुआ है यह महिलाओं के लिये खराब स्थिति है। समान नागरिक संहिता से यह समस्या दूर हो जाएगी।

समाज के संवेदनशील वर्ग को संरक्षण

  • समान नागरिक संहिता का उद्देश्य महिलाओं और धार्मिक अल्पसंख्यकों सहित संवेदनशील वर्गों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना है, जबकि एकरूपता से देश में राष्ट्रवादी भावना को भी बल मिलेगा।
  • देश का आदिवासी समुदाय जो एकाकी जीवन जीता है तथा पिछड़ेपन का शिकार है उसे शेष समाज के साथ जोड़ा जा सकेगा तथा उनके विकास का रास्ता प्रशस्त किया जा सकेगा।

धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांत को बल

  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में धर्मनिरपेक्षशब्द सन्निहित है और एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य को धार्मिक प्रथाओं के आधार पर विभेदित नियमों के बजाय सभी नागरिकों के लिये एक समान कानून बनाना चाहिए।
  • चूँकि अभी तक सभी नागरिकों के लिये समान कानून नहीं है। अतः शासन विरोधी तत्त्वों को यह दुष्प्रचार करने का अवसर मिलता है कि सरकार किसी विशेष सम्प्रदाय की पक्षधर है। समान नागरिक संहिता लागू होने पर सरकार के ऊपर ऐसे आक्षेप नहीं लगाए जा सकेंगे।

राष्ट्रीय एकता को मज़बूत बनाने में समान नागरिक संहिता की भूमिका

  1. सुप्रीम कोर्ट ने शाहबानो मामले में कहा था कि परस्पर विरोधी विचारधारा वाले क़ानूनों के लिए अलग-अलग लोगों का जो झुकाव है, समान नागरिक संहिता उसे ख़त्म कर राष्ट्रीय एकता की स्थापना में मदद करेगी।
  2. प्रत्येक नागरिक के लिये समान कानून होंगे जिससे उनमें एक राष्ट्र के नागरिक के रूप में विकसित होने की प्रवृत्ति बढ़ेगी।
  3. बहुधर्मी, बहुभाषायी एवं विभिन्न तबकों को एक समान उद्देश्य के प्रति आपस में जोड़ा जा सकेगा।
  4. इससे देश में बढ़ रही साम्प्रदायिकता को नियंत्रित किया जा सकेगा।
  5. किसी विशेष समुदाय को रियायतें या अन्य विशेषाधिकारों के मुद्दों पर राजनीति की कोई संभावना नहीं होगी, जिससे देश की एकता और अखंडता अक्षुण्ण रहेगी।

समान नागरिक संहिता की राह में बाधाएं

सांस्कृतिक विविधता

  • भारत के सभी धर्मों, संप्रदायों, जातियों, राज्यों आदि में व्यापक सांस्कृतिक विविधता है । अतः विवाह, उत्तराधिकार जैसे मुद्दों पर आम राय बनाना व्यावहारिक रूप से कठिन है। जहां हिन्दू धर्म विवाह को संस्कार के रूप में देखता है वहीं मुस्लिम धर्म इसे 'संविदा' मानता है।

देश का बहुधर्मी चरित्र

  • भारत में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक लोग है जिनका मानना है कि समान नागरिक संहिता से उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। इस मुद्दे के राजनीतिकरण के कारण यह मामला और उलझ गया है। 
  • दक्षिणपंथी विचारधारा के समर्थकों मानते हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय की समस्याओं की जड़ उनके पर्सनल कानून ही हैं जबकि उन्हें वोट बैंक मानने वाली पार्टियाँ इस संबंध में तुष्टीकरण की नीतियों का पालन करती रहीं हैं।

आम सहमति बनाना मुश्किल कार्य

  • समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का कहना है कि ये सभी धर्मों पर हिन्दू कानून को लागू करने जैसा है।
  • समान नागरिक संहिता को भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में लागू करने हेतु व्यक्तिगत मामलों से संबंधित विवाह, तलाक, पुनर्विवाह आदि जैसे सभी पहलुओं पर विचार करना होगा ताकि किसी धर्म विशेष की भावनाओं को ठेस पहुँचाए बिना कानून बनाना जाए।

विधि आयोग रिपोर्ट 2018

  • रिपोर्ट में कहा गया कि भारत के लिए एक समान नागरिक संहिता "इस स्तर पर न तो आवश्यक है और न ही वांछनीय है"
  • रिपोर्ट में कहा गया कि भारत जैसे विविध देश को अपने सभी लोगों की जरूरतों का सम्मान करने के लिए अलग अलग कानून बनाने होंगे और एकरूपता लाने का प्रयास वास्तव में मामलों को सरल बनाने से अधिक जटिल बनाने का काम करेगा।
  • रिपोर्ट में कहा गया है कि "संविधान ने स्वयं आदिवासियों आदि जैसे कई लोगों को इतनी सारी छूट दी है। सिविल प्रक्रिया संहिता और दंड प्रक्रिया संहिता में भी छूट है। समान नागरिक संहिता एक समाधान नहीं है और एक समग्र अधिनियम नहीं हो सकता है।

विश्व के अनेक देशों जैसे अमेरिका, आयरलैंड, पाकिस्तान, बांग्लादेश, मलेशिया, तुर्की, इंडोनेशिया आदि में समान नागरिक संहिता लागू किया है तथा भारत को भी सभी पक्षों के हितों को ध्यान में रखते हुए इस दिशा में प्रयास किया जाना चहिए।


 

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