श्रीलंका संकट एवं भारत
श्रीलंका पिछले कुछ वर्षों की परिस्थितिजन्य कारणों तथा
श्रीलंका सरकार द्वारा अपनायी गयी नीतियों के कारण वर्तमान में गंभीर आर्थिक संकट
का सामना कर रहा है ।
श्रीलंका का आर्थिक संकट के कारण
विदेशी मुद्रा भंडार में कमी
- पिछले कुछ वर्षों के दौरान श्रीलंका सरकार द्वारा विदेशों से लिए भारी मात्रा में कर्ज लेना तथा चुका नहीं पाना ।
- आर्थिक
कुप्रबंधन के कारण श्रीलंका के विदेशी भंडार में कमी आयी तथा 51
बिलियन अमेरीकी डॉलर का ऋण चुकाने में विफल रहना ।
कर में कटौती
- 2018 के संवैधानिक संकट तथा 2019 में श्रीलंका में बनी नई सरकार द्वारा चुनावी वादे के तहत कर में कटौती की गयी तथा किसानों को राहत दी गयी जिससे सरकार के राजस्व में आयी कमी।
श्रीलंका की मुद्रा में आयी गिरावट
- श्रीलंका सरकार की नीतियों के कारण अमेरिकी डॉलर के मुक़ाबले श्रीलकाई
रुपये की गिरावट आयी जिससे श्रीलंका का भुगतान संतुलन बिगड़
गया।
- 2022 में अमेरिकी डॉलर की अपेक्षा श्रीलंका की मुद्रा में 50% से ज्यादा की गिरावट हुई ।
- श्रीलंका में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में भारी गिरावट से उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव ।
आवश्यक वस्तुओं के आयात में कमी
- पर्यटन,
चाय, रबड़ और कपड़ों जैसे उत्पादों का निर्यात कर विदेशी
मुद्रा अर्जित करनेवाले श्रीलंका खाद्य पदार्थ एवं आवश्यक चीजों हेतु आयात पर निर्भर
है लेकिन विदेशी मुद्रा में कमी से वस्तुओं के आयात में आयी कमी से मंहगाई बढ़ी एवं
आवश्यक चीजों की कमी आयी ।
पर्यटन पर प्रभाव
- 2019 के ईस्टर धमाकों तथा 2020 के कोविड19 महामारी ने श्रीलंका के पर्यटन उद्योग पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। उल्लेखनीय है कि श्रीलंका का पर्यटन उद्योग देश के GDP के 10% से अधिक का प्रतिनिधित्व करता है।
कृषि रसायनों के आयात पर रोक
- आर्थिक संकट से निपटने और विदेशी मुद्रा को बचाने हेतु अप्रैल 2021
में कृषि रसायनों के आयात पर रोक से श्रीलंका के कृषि उत्पादन पर
गंभीर असर पड़ा।
- श्रीलंका में रासायनिक उर्वरकों पर प्रतिबंध और अचानक से
जैविक कृषि पर जोर देने से चावल, चीनी
के उत्पादन में गिरावट आयी ।
अन्य कारण
- श्रीलंका द्वारा अपने साधन सीमित होने के बावजूद भारी ब्याज तथा कठोर शर्तों वाले चीनी कर्ज़ के आधार पर हम्बनटोटा पोर्ट प्रोजेक्ट परियोजना पर सहमति।
- अवसंरचना विकास परियोजनाओं हेतु चीन द्वारा दिया गया ऋण जिसके भुगतान में श्रीलंका असफल रहा।
- किसानों हेतु निम्नतम कर दर और व्यापक सब्सिडी की सरकार की नीति से राजस्व में कमी ।
- रूस एवं यूक्रेन के बीच चल रहे युद्ध के कारण गेहूं, कच्चे तेल में भारी मुद्रास्फीति ।
स्पष्ट
है श्रीलंका का यह संकट कई सालों से पनप रहा था, जिसकी
वजह कई अन्य कारणों के साथ साथ श्रीलंका सरकार का ग़लत वित्तीय प्रबंधन माना जा सकता
है।
उल्लेखनीय
है कि श्रीलंका संकट के लिए कोरोना महमारी को उतना ज्यादा जिम्मेवार नहीं ठहराया
जा सकता जितनी श्रीलंका सरकार की कमजोर वित्तीय प्रबंधन एवं नीतियां है क्योंकि
कोरोना का असर हर देश पर पडा है तथा मालदीव जैसे पर्यटन आधारित देश भी हैं जिनके सामने
ऐसा संकट नहीं आया।
श्रीलंका का आर्थिक संकट का भारत पर
प्रभाव
- श्रीलंका के इस संकट की घड़ी में चीन आपातकालीन सहायता कर अपने प्रभाव को बढ़ा सकता है जो भारतीय हित में उचित नहीं है।
- कोलंबो एक महत्वपूर्ण बंदरगाह है तथा इसके संचालन में व्यवधान से भारत की व्यापार में लागत में वृद्धि हो सकती है।
- तमिल विद्रोही और सिंहली समुदाय के लोग इस संकट के समय गृहयुद्ध के हालात उत्पन्न कर सकते हैं जो भारत के लिए चिंता बढ़ा सकता है।
- भारत में शरणार्थी नीति की कमी के कारण भारत शरणार्थी समस्या का सामना कर सकता है जिससे भारत की सामाजिक, आर्थिक समस्याएं बढ़ सकती है।
भारत
द्वारा श्रीलंका को उपलबध करायी गयी मदद
- इस संकट के फलस्वरूप आर्थिक और ऊर्जा संकट से निपटने हेतु भारत द्वारा वित्तीय सहायता उपलब्ध करायी गयी ।
- भारत ने द्वारा मार्च 2022
में $1 बिलियन की क्रेडिट लाइन जारी की गयी।
- श्रीलंका को पेट्रोलियम उत्पाद की खरीद हेतु जनवरी 2022 में 90 करोड डॉलर
और उसके बाद 50 करोड़ डॉलर की सहायता दी गयी।
- भारत और श्रीलंका ने आर्थिक संकट को कम करने में मदद हेतु चार सूत्री रणनीति की घोषणा की जिसके तहत लाइन ऑफ क्रेडिट करेंसी स्वैप भारतीय निवेश तथा आधुनिकीकरण परियोजना पर सहमति बनी।
भारत
द्वारा दी गयी मदद भारत के साफ्ट पावर को बढ़ायेगा क्योंकि जहां भारत ने मदद दी
वहीं चीन से श्रीलंका को मदद के नाम पर कुछ नहीं मिला फिर भी लेकिन चीन द्वारा श्रीलंका
में भारी मात्रा में अवसंरचना परियोजनाओं में
निवेश,
भारी मात्रा में दिए गए ऋण, हंबनटोटा बंदरगाह
को 99 वर्ष की लीज़ पर दिए जाने तथा श्रीलंका एवं चीन के मध्य सिविल
परमाणु सहयोग समझौते पर हस्ताक्षर के कारण
श्रीलंका में चीन की उपस्थिति बनी रहेगी ।
भारत
के अनेक पड़ोसी देश जैसे मालदीव, नेपाल और बांग्लादेश
में भी आनेवाले दिनों में चीन की जाल में फंसते नजर आ रहे हैं। अतः इस स्थिति में
इन देशों का भी चीन से मोहभंग होगा और भारत की ओर झुकाव बढ़ सकता है। फिर भी चीन की
विस्तारवादी नीति को रोकने हेतु भारत
को वर्तमान संकट से उबरने में मदद के साथ साथ अन्य कई
मोर्चों पर कार्य करने की आवश्यकता के साथ साथ अन्य उपायों को भी अपना होगा।
श्रीलंका संकट में भारत की सहयोगात्मक
भूमिका
- श्रीलंका के अवसंरचना परियोजनाओं के निर्माण में सहयोग कर में विकास कार्यों में मदद ।
- श्रीलंका
की उद्योग क्षमताओं का निर्माण कर आवश्यक वस्तुओं, दवाओं
के उत्पादन में सहयोग ।
- भारत
एवं श्रीलंका की अर्थवस्था को जोड़ने, पर्यटन,
सूचना प्रौद्योगिकी, आवश्यक वस्तुओं एवं
सेवाओं की आपूर्ति शृखंला निर्माण में मदद ।
- क्रेडिट
लाईन्स,
मुद्रा विनिमय जैसी सुविधाओं द्वारा श्रीलंका की आवश्यकताओं की पूर्ति
।
भारत
के हालिया सहयोग तथा भावी सहयोग के बिन्दुओं के बावजूद श्रीलंका और भारत के बीच श्रीलंका
के संविधान में 13वें संशोधन का मुद्दा,
तमिल समस्या, मछुआरों का मुद्दा, कच्चातिवु द्वीप विवाद, श्रीलंका में चीन के बढ़ते
प्रभाव जैसे अन्य मुद्दे है जिनको आपसी संबंध सुधारने और भारत की छवि को बदलने
हेतु आवश्यक माना गया है।
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