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Feb 13, 2023

कृषि कानून एवं संबंधित विवाद

 

कृषि कानून एवं संबंधित विवाद 

केन्द्र सरकार द्वारा नवंबर 2021 में अंततः तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का एलान किया गया । उल्लेखनीय है कि इन तीनों कानूनों के विरोध में कई राज्यों के किसान पिछले एक साल से दिल्ली की सीमाओं पर डटे हुए थे तथा विरोध प्रदर्शन हो रहा था ।

  1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) अधिनियम 2020
  2. कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत अश्वासन और कृषि सेवा करार अधिनियम, 2020
  3. आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020

कृषि कानून के पक्ष में केंद्र सरकार का तर्क

  • खाद्य पदार्थों में व्यापार और वाणिज्य समवर्ती सूची का हिस्सा है अतः केंद्र सरकार संसोधन कर सकती है ।
  • अनुबंध कृषि से कृषको की कृषि हेतु पूँजी की समस्या कम होगी तथा उन्हें पूंजी उपलब्ध होगी।
  • यह किसानों के हित में है तथा उनको मिलने वाली न्यूनतम समर्थन मूल्य की सुविधा समाप्त नहीं की जाएगी।
  • अनुबंध कृषि से किसान भावी परेशानियों बच सकेंगे तथा एग्रीकल्चर से एग्रिपरेनयोरशिप की तरफ कदम बढ़ेगा।
  • स्टॉक होल्डिंग तथा APMC की सीमाओं के समाप्त होने से खाद्य उपलब्धता समभाव होगी, तथा इससे कृषको की अपने उत्पादों के संबंध में मोल-जोल की क्षमता शक्ति बढ़ेगी।

 

कृषि कानून के विरोध का कारण

सहकारी संघवाद के विरुद्ध

संविधान के अनुसार कृषि और बाजार राज्य सूची के विषय हैं और इस प्रकार यह कानून राज्यों के अधिकारों का अतिक्रमण माना जा रहा है जो संविधान की सहकारी संघवाद की भावना के विरुद्ध हैं।


2 बाजारों की परिकल्पना

इस कानून से 2 बाजारों की परिकल्पना आएगी। एक APMC बाजार और दूसरा खुला बाजार। दोनों बाजार के अपने नियम होंगे तथा खुला बाजार टैक्स के दायरे से बाहर होगा।

 

मूल्य निर्धारण हेतु तंत्र नहीं

यह कानून किसानों को मूल्य शोषण के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करते हुए, मूल्य निर्धारण हेतु किसी तंत्र की व्यवस्था नहीं करता है।

 

MSP के अंत की संभावना

इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है तथा इसके बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है जो बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं । खुली छूट होने से भविष्य में APMC मंडियां समाप्त हो सकती है जिससे MSP व्यवस्था धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।

 

शिकायत निवारण तंत्र का अभाव

अनुबंध में विवाद की स्थिति में किसान किस प्रकार कारपोरेट कंपनियों का सामना कर पाएंगे, इस संबंध में व्यापक व्यवस्था नहीं की गयी है।

 

कानूनी जटिलता

किसान और ठेकेदार के बीच में विवाद निस्तारण समिति के संदर्भ में कृषक इस हालत में नहीं होगा कि पूंजीपति ठेकेदार के बराबर अपनी दलील हेतु अच्छा वकील कर सके। संभावना तो यह भी है कि कृषक कानूनी बातों को समझ न पाए कई किसान इतने शिक्षित नहीं कि कॉन्ट्रैक्ट पढ़कर समझ पाएं।

 

खाद्य सुरक्षा प्रभावित

खाद्य पदार्थो के निर्यात प्रोत्साहन , स्टॉक होल्डिंग इत्यादि से खाद्य सुरक्षा प्रभावित होगी । कालाबाजारी बढ़ेगी और मूल्यों में अस्थिरता आएगी। इसके अलावा राज्यों को राज्य के भीतर स्टॉक की उपलब्धता के बारे में कोई जानकारी नहीं होने से खाद्य सुरक्षा कमजोर हो सकती है ।

 

जमाखोरी एवं कालाबाजारी

इसके अनुसार कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी तथा उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी। इसी क्रम में सरकार युद्ध, भुखमरी या किसी बहुत विषम परिस्थिति में ही विनियमित कर सकेगी। इस प्रकार इससे सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना और कहां स्टॉक है और यह खुली छूट जमाखोरी और कालाबाजारी बढ़ावा देगा। 

 

कानून के विरोध में तर्क

  • विकसित देशों की तरह भारत में कृषि व्यापार नहीं बल्कि करोड़ों लोगों की आजीविका का आधार है तथा यह देश के 14 करोड़ कृषि परिवारों का सवाल है ।
  • भारत के किसान या किसान संगठन ने कभी ऐसे कानूनों की मांग नहीं की।
  • अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा कृषि में आय असमानता अधिक है। अतः किसानों को MSP दिए जाने की आवश्यकता है।
  • किसानों हेतु बनाए कानून में किसान हित एवं पक्ष की अनदेखी न्यायसंगत नहीं है। 
  • भारत जैसे कृषि प्रधान देश में अन्नदाता किसान अपनी उपज का सही दाम भी हासिल नहीं कर पाता यह दुर्भाग्यपूर्ण है।
  • 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने लक्ष्य है लेकिन यह कानून कृषकों की आय बढ़ाने में सहायक नहीं है।
  • यह कानून मुख्यतः बाजार आधारित कृषि व्यवस्था के पक्ष में लाया गया है न कि भारत के किसान की।

 

कृषि एक दीर्घकालीन प्रक्रिया है तथा उसके सुधारो के प्रभाव दीर्घकाल में दृष्टिगोचर होते हैं। बिहार में APMC कानून 2006 में ही समाप्त कर दिया तथा लगभग 14 वर्ष बीतने के बाद भी कृषकों के पक्ष में इसके सकारात्मक परिणाम नहीं आए हैं। इसी क्रम में विकसित देशों की तरह भारत में कृषि व्यापार नहीं बल्कि करोड़ों लोगों की आजीविका का आधार है। अतः सर्वसम्मति से सभी पक्षों को साथ लेकर उचित संसदीय प्रक्रिया का पालन करते कानून बनाने की दिशा में प्रयास करना चाहिए।

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