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Feb 16, 2023

राज्यों की वित्तीय क्षमता में सुधार हेतु सुझाव


 राज्यों की वित्तीय क्षमता में सुधार 

दिसम्बर 2021 में बजट पर आयोजित राज्यों के वित्तमंत्रियों की बैठक में कई राज्यों ने मांग की थी कि जीएसटी क्षतिपूर्ति उपकर व्यवस्था को और पाँच वर्ष के लिये बढ़ाए जाने के साथ केंद्र प्रायोजित योजनाओं में केंद्र सरकार की हिस्सेदारी बढ़ाई जाए । उल्लेखनीय है कि राज्यों द्वारा यह मांगें इसलिये रखी गयी है क्योंकि कोविड-19 महामारी ने उनके राजस्व को प्रभावित किया है तथा जीएसटी क्षतिपूर्ति का प्रावधान जून 2022 में खत्म होने जा रहा है।

केन्द्रीय बजट 2022-23 में वस्तु एवं सेवाकर की क्षतिपूर्ति का उल्लेख न होने से आर्थिक संसाधनों की तंगी झेल रहे कई राज्यों की बेचैनी बढ़ गई । कोरोना काल में अपेक्षित कर वसूली न हो पाने के कारण पहले ही केन्द्र द्वारा राज्यों को दी जाने वाली क्षतिपूर्ति की किश्तें समय से नहीं दे पा रही है। इसलिए केन्द्र सरकार ने समय से किश्त न देने की स्थिति में राज्यों के समक्ष दो विकल्प रखे हुए हैंजिनमें एक विकल्प काम चलाने के लिए फिलहाल कर्ज लेने का भी है जिसे बाद में केन्द्र सरकार को वहन करना है।

उल्लेखनीय है कि राज्य सरकारों द्वारा राज्य के विकास एवं नागरिकों के कल्याण हेतु कई प्रकार के विकासात्मक एवं सामुदायिक कार्यक्रम चलाये जाते हैं तथा एक बड़ी आबादी इन योजनाओं तथा कार्यक्रमों से आजीविका, स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, कल्याण, सामाजिक सुरक्षा जैसे लाभ प्राप्त करते हैं। इस प्रकार राज्यों की आर्थिक क्षमता में गिरावट जनकल्याण के कई आयामों को प्रभावित करती है।

केन्द्र पर निर्भरता- राज्य के राजस्व मुख्य रूप से दो स्रोतों हैं- अपने राजस्व पर और केंद्रीय हस्तांतरणों पर। केंद्रीय हस्तांतरण राज्यों के क्षेत्राधिकार से बाहर का विषय हैं, इसलिए राज्यों पास अपने राजस्व के एक बड़े हिस्से के संबंध में फैसले लेने का अधिकार नहीं है और इस हेतु केन्द्र पर निर्भर रहते हैं।

आर्थिक मंदी जैसे हालात तथा महामारी- हाल के वर्षों में हुए आर्थिक सुधार जैसे- विमुद्रीकरण, GST  सुधारो से प्रारंभिक रूप से अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर में गिरावट दर्ज हुई तथा सुधारो से राष्ट्र की स्थिति में कुछ सुधार दिखने ही आरम्भ हुए थे कि कोरोना वायरस के प्रभाव ने अर्थव्यवस्था को गंभीर रूप से प्रभावित किया और अर्थव्यवस्था नकारात्मक (वर्ष 2020 में -23.9 %) तक पहुंच गयी।

GST कर व्यवस्था एवं क्षतिपूर्ति राज्यों के अनेक अप्रत्यक्ष करों का स्थान वस्तु एवं सेवा कर/GST ने ले लिया है। पहले जहां ये सभी टैक्स राज्यों के नियंत्रण में थे, वहीं अब GST दरों को अब GST परिषद द्वारा तय किया जाता है। इस प्रकार GST टैक्स की दरों के संबंध में फैसले लेने के लिए राज्यों के पास सीमित अधिकार है।

कोरोना वायरस तथा लॉकडाउन के बाद GST राजस्व में भी कमी आई तथा केंद्र ने राज्यों को क्षतिपूर्ति करने में अपनी असमर्थता व्यक्त की जिससे केंद्र तथा राज्यों के मध्य विवाद की स्थिति भी उत्पन्न हो गई थी।

कृषि संकट- पिछले कुछ वर्षों में आए कृषि संकट के बाद विभिन्न राज्यों ने कर्ज माफी की घोषणा की जिसके कारण इन राज्यों की उधारियों बढ़ सकती हैं। 

7वें वित्त आयोग का असर- 7वें वेतन आयोग द्वारा केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन और भत्तों में बढ़ोतरी के बाद कुछ राज्यों ने भी अपने कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि की। इससे राज्यों के राजस्व व्यय में वृद्धि हुई।  

डिविजिबल पूल में कमी -डिविजिबल पूल की राशि जो केंद्र तथा राज्यों के मध्य विभाजित किया जाता है उसका आधार भी पिछले कुछ समय से सिकुड़ रहा है। वर्ष 2014 से 2020 के मध्य उपकर तथा अधिभार का अनुपात 9.3% से बढ़कर 15% हो गया है जिससे केंद्र सरकार के पास अधिक राजस्व बच रहा है तथा राज्यों को राजस्व की कमी दिख रही है।

वित्त आयोग की अनुशंसा से कम रशि का आवंटनकेंद्र तथा राज्यों के मध्य राशि के बंटवारे की वित्त आयोग की अनंशंसा के आधार पर होता है लेकिन राज्यों को वित्त आयोग की अनुशंसा से लगभग 14 % कम राशि का बंटवारा किया गया था।

केंद्र सरकार द्वारा सहयोग में कमी -पिछले कुछ समय से केंद्र सरकार द्वारा राज्य को दिए जाने वाले अनुदानों में भी कमी आयी है। जैसे- कर्नाटक राज्य के 32000 करोड़ के वार्षिक वित्तीय अनुदान को घटाकर 17372 करोड़ कर दिया गया। इसी क्रम में केंद्र तथा राज्य में विपरीत दलों की सरकार होने से भी राजस्व वितरण संबंधी विवाद होते हैं।

इस प्रकार उपरोक्त कारणों के सम्मिलित प्रभाव तथा केंद्र की उदासीनता से राज्यों की कुल वित्तीय क्षमता में लगभग 20% से 25% की कमी दर्ज की गई जो राज्यों के विकासात्मक तथा कल्याणकारी परियोजनाओं को प्रभावित करेगा।


देश की आर्थिक स्थिति जब सामान्य रहती है तब राज्यों को ज्यादा वित्तीय संकट का सामना नहीं करना होता है क्योंकि विभिन्न मदों द्वारा राज्यों को केन्द् से आर्थिक सहायता मिलती रहती है तथा राज्य के राज्यों के विकासात्मक तथा कल्याणकारी सामान्य रूप से संचालित होते रहते हैं लेकिन हाल के वर्षों में विमुद्रीकरण, GST जैसे विभिन्न आर्थिक सुधारों तथा कोविड 19 महामारी के कारण अर्थव्यवस्था में हुई घटी हुई वृद्धि दर ने राज्यों की आर्थिक स्थिति को नकारात्मक रूप से प्रभावित किया है।

 

राज्यों की वित्तीय क्षमता में सुधार हेतु सुझाव

भारतीय संघवाद व्यवस्था में राज्य अनेक मामलों में केन्द्र पर निर्भर होते हैं। राज्य की कई कल्याण योजनाओं, विकासात्मक परियोजनाओं केन्द्र के वित्तीय आवंटन एवं सहयोग के आधार पर संचलित होते हैं। अतः आवश्यक है कि राज्यों की वित्तीय व्यवस्था में आवश्यक सुधार किए जाए। राज्यों की वित्तीय व्यवस्था में सुधार की दिशा में निम्न प्रयास किए जाने चाहिए।

  • वित्त आयोग की अनुशंसा के अनुसार राज्यों को सहायता दी जाए क्योंकि यह यह राज्यों की आय का महत्वपूर्ण स्रोत है।
  • GST के लिए राज्यों ने अपने अधिकतम अप्रत्यक्ष करों को समाप्त किया है। अतः GST की क्षतिपूर्ति केंद्र सरकार का दायित्व बन जाता है।
  • राज्य अनेक प्रकार के वित्तीय सहायता हेतु केंद्र सरकार पर निर्भर है अतः केंद्र को राज्यों की आवश्यकता पूरी करनी चाहिए। 
  • राज्य में कल्याणकारी योजनाओ के लिए केंद्र द्वारा दिए गए अनुदान राज्यों की आवश्यकता के अनुरूप दिया जाए ।
  • डिविजिबल पूल के आधार को बढ़ाने हेतु कराधार को बढ़ाने के साथ-साथ कर की चोरी को रोका जाना चाहिए।
  • उपकर तथा अधिभार के उपयोग लिए GST परिषद की तरह एक संघवादी परिषद की आवश्यकता।



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