मध्य एशिया एवं भारत की ऊर्जा सुरक्षा
प्रश्न – "मध्य एशिया भारत की ऊर्जा सुरक्षा तथा विविधिकरण में विशेष महत्व रखता
है जिसको ध्यान में रखते हुए भारत को अपनी विस्तारित पड़ोस नीति की बाधाएं को
दूर करना होगा।"
जनवरी 2022 में भारतीय प्रधानमंत्री
द्वारा आभासी प्रारूप में पहले भारत-मध्य एशिया शिखर सम्मेलन
की मेजबानी की गयी जिसमें भारत
तथा मध्य एशिया संबंधों को नई ऊँचाइयों पर ले जाने के संबंध में अनेक मुद्दों पर
सहमति बनी। उल्लेखनीय
है कि कज़ाखस्तान,
किर्गिज़स्तान, ताजिकिस्तान, तुर्कमेनिस्तान एवं उज़्बेकिस्तान मध्य
एशिया को बनाते हैं जो वर्ष 1991 में सोवियत संघ के पतन के
बाद स्वतंत्र हुए।
मध्य एशिया का भारत के लिए महत्व
यद्यपि
भारत ने हमेशा से मध्य एशियाई देशों के साथ राजनयिक संबंध बनाए रखा है जो भारत के लिए मध्य एशिया के महत्व को
प्रदर्शित करता हैं। उल्लेखनीय है कि भारत के
लिए मध्य एशिया सुरक्षा,
भूसामरिक एवं बहुपक्षीय सहयोग के अलावा भारत की ऊर्जा सुरक्षा तथा
विविधिकरण में विशेष महत्व रखता है जिसे
निम्न प्रकार समझा जा सकता है।
.
- मध्य एशिया क्षेत्र कच्चे तेल, प्राकृतिक गैस, यूरेनियम, सोना, लोहा, जैसे प्राकृतिक संसाधनों से प्रचुर क्षेत्र है। यह क्षेत्र अपने हाइड्रोकार्बन तथा पेट्रोरसायन उद्योगों के विस्तार हेतु निवेश तलाश कर सकता है जिसमें भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
- मध्य एशिया में स्थित देश कजाकिस्तान जहां यूरेनियम, प्राकृतिक गैस तथा कच्चे तेल का एक बड़ा उत्पादक देश है वहीं तुर्कमेनिस्तान के पास प्राकृतिक गैस का वृहद भंडार है।
- मध्य एशिया क्षेत्र कनेक्ट सेन्ट्रल एशिया नीति हेतु महत्वपूर्ण है। भारत के लिए तेल और प्राकृतिक गैस लाइन पाइप निर्माण के लिए भविष्य के अवसर प्रदान कर सकता है इस कारण यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा एवं आर्थिक दृष्टि से संभावनाओं से युक्त क्षेत्र है।
उल्लेखनीय है कि भारत
तेजी से बढ़ती विश्व की पांचवी अर्थव्यवस्था है और इसे गतिमान रखने हेतु ऊर्जा
सुरक्षा अत्यंत आवश्यक है जिसके संदर्भ में यह आवश्यक है कि भारत अपनी विस्तारित
पड़ोस नीति को गति दे जिसके लिए भारत सतत रूप से प्रयासरत है हाल के
कुछ वर्षों में देखा जाए तो भारत तथा मध्य एशिया के देशों के संबंध तेजी से बढ़
रहे हैं जो भारत की विस्तारित पड़ोस नीति को प्रदर्शित करते हैं।
- 2021 में नई दिल्ली में तीसरा भारत-मध्य एशिया संवाद सम्पन्न ।
- 2020 में भारत मध्य एशिया व्यापार परिषद की स्थापना ।
- 2020 से 2024 तक कजाकिस्तान के साथ यूरेनियम आपूर्ति समझौते का विस्तार करने की योजना ।
- ऊर्जा
सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु 2019 में भारत और उज्बेकिस्तान ने यूरेनियम आयात संबंधी
एक समझौता किया।
- मध्य
एशिया से संपर्क की बाधाओं को दूर करने हेतु भारत 2018 में अश्गाबात समझौते का
हिस्सा बना।
- वर्ष
2015
में भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा मध्य एशियाई देशों का दौरा
- तथा
तथा 2017
में शंघाई सहयोग संगठन में भारत की स्थाई सदस्यता ।
उपरोक्त से स्पष्ट है
कि भारत ने पिछले कुछ समय में मध्य एशिया के साथ संबंधों को नई दिशा प्रदान की है।
उल्लेखनीय है कि आर्थिक
सुधारों के आरंभिक वर्षों में भारत का मुख्य ध्यान आर्थिक रूप से शक्तिशाली देशों
के साथ संबंध सुधारने पर रहा जिसके कारण मध्य एशियाई क्षेत्र की अवहेलना हुई अत: भारत
को मध्य एशिया के साथ संबंधों को और बेहतर बनाने हेतु विस्तारित पड़ोस नीति की
बाधाओं को दूर किए जाने की आवश्यकता है ।
भारत तथा मध्य एशिया के
बीच सीधे सीधे भौगोलिक संपर्क ना होना एक बड़ी बाधा है हांलाकि मध्य एशिया के साथ
भौगौलिक संपर्क में पाकिस्तान की भूमिका महत्वपूर्ण है लेकिन भारत-पकिस्तान संबंध
बेहतर नहीं है। इसी क्रम में मध्य एशिया
में उपलब्ध तेल एवं गैस संसाधनों के बढ़ते महत्व से रूस, चीन,
अमेरिका आदि में मध्य एशिया में
प्रतिद्वद्विता है तथा तुर्की, ईरान, यूरोपीयन संघ, पकिस्तान आदि देशों के अपने हित हैं
जिसके संदर्भ में भारत का इस क्षेत्र में
अपना पहुंच एवं प्रभाव बढ़ाना एक चुनौती है।
भारत के लिए आगे की राह
भारतीय की ऊर्जा सुरक्षा तथा आपूर्ति
स्रोत के विस्तार और विविधीकरण के संदर्भ में कनेक्ट सेंट्रल एशिया नीति
महत्वपूर्ण है। अत: यह आवश्यक
होगा कि भौगौलिक
तथा राजनीतिक बाधाओं को दूर करने के प्रयासों में तेजी लाते हुए दोनों देश आपसी संबंध
बढ़ाने पर ध्यान दें ताकि भारत
और मध्य एशिया गठजोड़ आनेवाले समय में यूरेशियन क्षेत्र में विकास और स्थिरता के साथ
विश्व में शांति और सुरक्षा सुनिश्चित करने में अपनी उपयोगी भूमिका निभा सके ।
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