भारत तथा मालदीव संबंध एवं चीन का प्रभाव
प्रश्न –हिन्द महासागर
स्थित देश मालदीव में चीन का बढ़ता प्रभाव भारत के साथ साथ मालदीव की सुरक्षा
संबंधी चिंताओं को बढ़ा सकता है । अत: यह आवश्यक है कि भारत तथा मालदीव विभिन्न
क्षेत्रों में आपसी सहयोग एवं समन्वय को बढ़ाने पर ध्यान दें।
मालदीव हिंद महासागर में स्थित छोटा
सा द्वीपीय देश है जो पश्चिमी हिंद महासागर तथा मलक्का जलडमरूमध्य के
पूर्वी हिन्द महासागर के बीच एक टोल पोस्ट की तरह स्थित है। यह भारत के संदर्भ में सामरिक दृष्टि से
महत्वपूर्ण देश है जिसकी महत्ता को निम्न प्रकार समझा जा
सकता है
- भारत की पड़ोस प्रथम नीति तथा हिन्द महासागर में चीनी प्रभाव को संतुलित करने में महत्वपूर्ण ।
- हिन्द महासागर की गतिविधियों पर नजर रखने में महत्वपूर्ण ।
- भारत तथा अंडमान निकोबार द्वीपसमूह, लक्षद्वीप जैसे द्वीपों की सुरक्षा हेतु महत्वपूर्ण
।
- भारत के लिए ब्लू इकोनॉमी या सागरीय अर्थव्यवस्था के विकास के लिए महत्वपूर्ण है
- मालदीव सार्क, इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन, हिन्द महासागर नौसेना संगोष्ठी, ‘दक्षिण एशिया उप-क्षेत्रीय आर्थिक सहयोग’ का सदस्य है। अतः इस
क्षेत्र में सहयोग एवं समन्वय हेतु मालदीव के साथ अच्छे संबंध आवश्यक है।
भारत, मालदीव एवं चीन
पिछले कुछ
वर्ष की घटनाओं को देख तो भारत के साथ संबंधों में गिरावट आती है तथा मालदीव में इंडिया आउट अभियान के तहत विरोध
बढ़ा है वहीं दूसरी ओर मालदीव के संबंध चीन के साथ बढ़ने लगते हैं । मालदीव जहां चीन के
महत्वकांक्षी परियोजना OBOR
का भागीदार बनता है वहीं चीन तथा
मालदीव के बीच फ्री ट्रेड एग्रीमेंट भी होता है।
मालदीव हिंद महासागर में स्थित लगभग 1200 द्वीपों का समूह है जिनमें 7 महत्वपूर्ण दीपों
पर चीन प्रभुत्व जमा चुका है। मालदीव चीन की मोतियों की माला (स्ट्रिंग्स ऑफ पर्ल्स) की महतवपूर्ण कड़ी है तथा हाल
ही में चीन द्वारा माकुनूडू द्वीप में निगरानी केन्द्र की स्थापना की गयी जो भारत
के लिए चिंता का विषय है। मालदीव पर चीन की उपस्थिति से युद्ध, विशेष परिस्थतियों में वह भारत के प्रमुख नगरों, प्रतिष्ठानों,
समुद्री मार्गों को निशाना बनाकर व्यापक क्षति पहुंचा सकता है।
उल्लेखनीय है कि चीनी प्रतिस्पर्द्धा भारत मालदीव
संबंधों में एक चुनौती है क्योंकि चीन जहां परियोजनाओं को समय पर पूर्ण करता है
वहीं भारत की परियोजनाएं समय पर पूर्ण नहीं होती तथा अनावश्यक विलंब होने से भारत
विरोधी भ्रामक प्रचार तथा भारत विरोधी गतिविधियों को बढ़ावा मिलता है ।
उल्लेखनीय है कि मालदीव चीन से अपने कुल ऋण का 60% से अधिक ऋण लेता है जिसके कारण मालदीव को अपने बजट का लगभग 10 प्रतिशत के बराबर की धनराशि प्रति वर्ष चीन को भुगतान करना होता है। यह स्थिति
मालदीव की संप्रभुता के लिए एक बड़ी चुनौती तथा भारत की सुरक्षा हेतु एक समस्या है।
भारतीय समुदाय मालदीव में निवास करने वाला दूसरा सबसे
बड़ा समुदाय है तथा रक्षा,
अवसंरचना, सांस्कृतिक सहयोग भी दोनों देशों
के मध्य है । हाल ही में मालदीव ने भारत को एक प्रमुख सुरक्षा प्रदाता मानते हुए
चीन द्वारा महासागर में वेधशाला स्थापित करने के प्रस्ताव को खारिज कर दिया। हाँलाकि, मालदीव सरकार ने कुछ
विशिष्ट परियोजनों आदि के लिये चीन के साथ जुड़ाव जारी रखा है ।
निष्कर्ष
उपरोक्त
से स्पष्ट है कि भारत मालदीव के हालिया संबंधों में मालदीव में चीन का
बढ़ता प्रभुत्व, स्ट्रिंग्स ऑफ पल्स नीति, चीन के साथ मालदीव का
मुक्त व्यापार समझौता जैसी अनेक चुनौतियां है । मालदीव में चीन का बढ़ता प्रभाव न
केवल मालदीव बल्कि भारत के लिए भी सुरक्ष चिंताओं को बढ़ाने वाला है ।
मालदीव रणनीतिक रूप से
हिन्द महासागर में स्थित देश है और हिन्द महासागर क्षेत्र में प्रमुख शक्ति होने
के कारण मालदीव में शांति एवं स्थिरता में भारत के हित हैं। अत: यह आवश्यक है कि
भारत तथा मालदीव विभिन्न
क्षेत्रों में आपसी सहयोग एवं समन्वय को बढ़ाए ताकि चीन के बढ़ते प्रभाव को
संतुलित किया जा सके ।
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