बाल विकास
बच्चे किसी भी राष्ट्र के बहुमूल्य
मानव संसाधन होते हैं तथा राष्ट्र की प्रगति बच्चों के कल्याण और उसके विकास पर
निर्भर करती है। वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार
बिहार में 5.18
करोड़
बच्चे हैं जो राज्य की कुल आबादी का 42% है । वहीं 2021 के
लिए अनुमान के अनुसार 0 से 18 वर्ष उम्र वाले बच्चों की
12%
आबादी
के साथ बिहार का भारत में दूसरा स्थान है।
बिहार में 2013-14 में बाल बजट निर्माण का
आरंभ हुआ और बाल बजट में बाल विकास के चार स्तंभों स्वास्थ्य, शिक्षा,
संरक्षण
और सहभागिता पर ध्यान केन्द्रित किया गया । पिछले वर्षों के दौरान बिहार के
बाल बजट के आवंटन में लगातार वृद्धि हुई है। बच्चों के लिए आवंटन मुख्यतः शिक्षा
और स्वास्थ्य योजनाओं, लड़कियों के लिए विशेष योजनाओं और बाल
सुरक्षा से संबंधित होता है।
जनसांख्यिक स्थिति
- राष्ट्रीय
बाल नीति 2013 के
अनुसार कोई भी बच्चा 0 से 18 वर्ष तक
उम्र वाला व्यक्ति होता है और यह समूह आबादी का असुरक्षित हिस्सा होता है ।
- अनुमान
के अनुसार 2021 में
भारत की कुल आबादी में लगभग 33% बच्चे रहे हैं । वहीं बिहार
में 0 से 18 वर्ष उम्र वाले इस आबादी
का हिस्सा उससे भी कहीं ज्यादा 42% है।
- देश
में कुल बच्चों का 12% हिस्सा
बिहार में है । अनुमानित आंकड़ों के अनुसार 5.18 करोड़ बच्चे
हैं जिनमें 89.9% ग्रामीण क्षेत्रों में शेष 10.1 प्रतिशत शहरी क्षेत्र में
रहते हैं ।
- बिहार
की कुल आबादी में किशोर एवं किशोरियों का 19.8% हिस्सा है दूसरे शब्दों में बिहार का हर पांचवा
व्यक्ति किशोरवय हैं
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बिहार
में बाल स्वास्थ्य सूचक
कुपोषण की स्थिति भूख और बीमारी का परिणाम है जो अनेक
स्थूल और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी से पैदा होता है । 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों
में भूख से संबंधित कुपोषण के 3 सूचक है । इसके माध्यम से बच्चों के
स्वास्थ्य एवं पोषण का मूल्यांकन किया जा सकता है।
ठिगनापन (स्टंटिंग), दुबलापन (वेस्टिंग) तथा कम वजन या हल्कापन (अंडरवेट) तीनों ही कुपोषण के सूचक है।
ठिगनापन
ठिगनापन यानी स्टंटिंग का आशय 5 वर्ष से कम उम्र के ऐसे बच्चों से है जो अपनी उम्र के लिहाज से काफी कम ऊंचाईवाले हैं । यह चिरकालिक अल्पपोषण को सूचित करता है।
दुबलापन
दुबलापन यानी यानी वेस्टिंग ऊंचाई के अनुसार वजन का सूचकांक है । इससे शरीर की ऊंचाई की तुलना में शरीर की मात्रा मापी जाती है और यह पोषण संबंधी वर्तमान स्थिति को व्यक्त करता है।
हल्कापन या कम वजन
कम वजन होना उम्र के साथ वजन की माप है । यह उम्र के अनुसार ऊंचाई और ऊंचाई के अनुसार वजन का संयुक्त सूचकांक है। इसमें तीव्र और चिरकालिक दोनों प्रकार के अल्पपोषण पर विचार किया जाता है।
कुपोषण सूचक |
राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4
(2015-16) |
राष्ट्रीय पारिवारिक स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5
(2019-20) |
वृद्धि/ कमी |
ठिगनापन यानी स्टंटिंग |
48.3% |
42.9% |
5.4% की कमी |
दुबलापन
(वेस्टिंग) |
20.8% |
22.9% |
2.1% की वृद्धि |
कम वजन (अंडरवेट) |
43.9% |
41.0% |
2.9% की कमी |
उपरोक्त
के अनुसार 2015-16 की तुलना 2019-20 से करने पर स्पष्ट होता है कि
बिहार में ठिगनापन के स्तर तथा कम वजन या हल्कापन में
सुधार दिखा है जबकि दुबलापन में स्थिति सुखद नहीं है और इसमें 2.1% की वृद्धि हुई है।
संपूर्ण
भारत के स्तर पर देखा जाए तो उपरोक्त तीनों सूचकों में सुधार हुआ है लेकिन बिहार
में स्थिति अच्छी नहीं कही जा सकती और दुबलापन की स्थिति बिहार के ग्रामीण
क्षेत्रों में ज्यादा है। हांलाकि बिहार सरकार द्वारा पोषण स्थिति में सुधार हेतु
प्रयास किए जा रहे हैं तथा आनेवाले दिनों में बिहार इस मामले में प्रगति दर्ज
करेगा।
- वर्ष 2016-17 से 2021-22 के बीच बच्चों के ऊपर समग्र खर्च 19.5 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ाई गयी ।
- वर्ष 2017-18 में पोषण पर 1352.33 करोड़ रुपये खर्च किए गए थे जबकि 2022-23 में यह बढ़कर 1768.38 करोड़ रुपये हो गया।
- बिहार में बच्चों व महिलाओं के पोषण पर बजट में समेकित बाल विकास परियोजना के तहत 5.9 प्रतिशत की दर से वृद्वि हुई है।
इस प्रकार पोषण पर खर्च बढ़ने
से बच्चों के स्वास्थ्य में दिखा सुधार दिखायी दिया जिसे निम्न प्रकार देख सकते
हैं
- बिहार में बच्चों में ठिगनापन NFHS-4 में 48.3 प्रतिशत था जो NFHS-5 (2019-20) में 42.9 प्रतिशत रह गया।
- बिहार में 5 वर्ष से कम उम्र के हल्के बच्चों का आंकड़ा NFHS-4 के 43.9 प्रतिशत से घटकर NFHS-5 में 41 प्रतिशत रह गया। इसमें 2.9 प्रतिशत की कमी दर्ज की गयी।
यद्यपि यह बाल स्वास्थ्य
की दिशा में अच्छी प्रगति है फिर भी बच्चों के स्वास्थ्य मानकों में शामिल
दुबलापन एवं एनीमिया की स्थिति चिंताजनक है जिस पर विशेष प्रयास की आवश्यकता है।
बच्चों में उचित पोषण की कमी या कुपोषण नुकसानदेह है क्योंक एक स्वस्थ बच्चा निम्न स्तर के पोषण वाले बच्चे की तुलना में बेहतर ढंग से सीख सकता है। इसी को ध्यान में रखते हुए बिहार सरकार द्वारा पोषण में सुधार हेतु पिछले कुछ वर्षों में अनेक प्रयास किए गए हैं।
बाल स्वास्थ्य एवं पोषण
हेतु प्रमुख कार्यक्रम
बच्चों
के स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर निवेश किसी भी राष्ट्र के बेहतर भविष्य निर्माण का
सबसे सुरक्षित तरीका है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39(F) राज्यों को निर्देश देता है
कि बच्चों को स्वस्थ ढंग से मुक्त और सम्मानपूर्ण तरीके से विकसित होने के लिए
अवसर और सुविधाएं उपलबध करायी जाए। इसी के परिप्रेक्ष्य में केंद्र और राज्य सरकार
द्वारा बच्चों के कल्याण विकास और संरक्षण के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही है।
बाल विकास कार्यक्रम
बच्चे
किसी भी राष्ट्र के बहुमूल्य
मानव संसाधन होते हैं किसी राष्ट्र की प्रगति बच्चों के कल्याण और उसके विकास पर
निर्भर करती है इसलिए केंद्र और राज्य सरकार द्वारा बच्चों के कल्याण विकास और
संरक्षण के लिए अनेक योजनाएं चलाई जा रही है । 2011 की
जनगणना के अनुसार बिहार में कुल आबादी का
18.3% आबादी 0-6 आयु के बच्चों का
है ।
समेकित बाल विकास सेवा
यह योजना 0-6 वर्ष के बच्चों के साथ साथ गर्भवती महिलाओं की देखरेख, स्वास्थ्य एवं पोषण में सुधार की दिशा में कार्य करता है।
इसके तहत
आंगनबाड़ी के माध्यम से पूरक पोषक आहार, विद्यालय पूर्व
अनौपचारिक शिक्षा, प्रतिरक्षण, स्वास्थ्य
जांच रेफरल सेवाएं, माताओं के लिए पोषण एवं स्वास्थ्य शिक्षा जैसी सेवाओं को उपलब्ध कराया जाता है। इस योजना द्वारा 11 से 14 वर्ष तक उम्र वाली किशोरियों भी लाभान्वित
होती है ।
बिहार
के 38 जिलों
में 544 परियोजना कार्यालयों के जरिए समेकित बाल विकास सेवा संचालित की जा रही है।समेकित बाल विकास सेवा के लिए बजट का प्रावधान
क्रमशः बढ़ता जा रहा है। वर्ष 2015-16 की अपेक्षा 2020-21
में इस योजना के लिए किए गए आवंटन में 22%
की वृद्धि की हुई।
पोषण माह
राष्ट्रीय
पोषण मिशन के तहत पोषण संबंधी संदेश के साथ हर परिवार तक पहुंचने हेतु 2018 में
सितंबर माह को पोषण माह के रूप में मनाया गया जिसके बाद यह प्रति वर्ष जारी रखा
गया। पोषण माह कार्यक्रम का लक्ष्य निम्न है-
- बच्चों और महिलाओं में कुपोषण और रक्ताल्पता में कमी लाना।
- अधिकाधिक स्तनपान और पूरक आहार को बढ़ाना।
- साफ सफाई एवं स्वच्छता की आदतों को बढ़ावा देना।
- भोजन संबंधी आदतों में सुधार लाना तथा सेहतमंद भोजन का बढ़ावा देना।
- 6 माह से 6 वर्ष के बच्चों के विकास और बालिका शिक्षा को नियमित करना।
पूरक पोषाहार कार्यक्रम
महिलाओं
और बच्चों के पोषण स्थिति में सुधार हेतु बिहार के समेकित बाल विकास सेवा ने
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 के अनुरूप आगनबाड़ी केंद्रों के तहत पूरक पोषाहार कार्यक्रम का क्रियान्वयन
किया है।
इसके
तहत गर्भवती तथा शिशुवती महिलाओं को सूखा राशन तथा आंगनबाड़ी केंद्र में विद्यालय पूर्व शिक्षा
हेतु आने वाले बच्चों को गर्म पका खाना तथा दूध और उबला अंडा भी दिया जाता है ।
राष्ट्रीय पोषण मिशन
महिलाओं
और बच्चों में कुपोषण का स्तर घटाने के लिए केंद्र सरकार ने 2017 से राष्ट्रीय पोषण मिशन की
शुरुआत की है। इस मिशन के तहत प्रत्येक बच्चों में आयु
के अनुसार वजन में कमी, ठिगनापन, छोटे
बच्चे महिलाओं और किशोरियों की अल्पपोषण, रक्ताल्पता
जैसी समस्याओं में कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है ।
प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना
कम
आयु में विवाह,बच्चे का
भार, बार-बार प्रसव से माताओं की पोषण संबंधी स्थिति पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। बिहार में
इसके कारण माताओं का अल्पपोषण एक प्रमुख चुनौती रही
है।
इस
समस्या से निजात पाने हेतु प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना (पूर्व में इंदिरा गांधी मातृत्व
सहयोग योजना) संचालित की जा रही है जिसके तहत निबंधित
गर्भवती महिलाओं को तीन किस्तों में ₹5000 का मातृत्व लाभ
दिया जाता है।
किशोरी योजना
किशोरावस्था
में लड़कियों के शारीरिक, मनोवैज्ञानिक
और स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से निपटने तथा स्वास्थ्य
एवं पोषण सुविधाओं को उपलब्ध कराने हेतु इस योजना को वर्ष 2018 से बिहार के सभी जिलों में लागू कर दिया
गया।
इसके
तहत 11-18 वर्ष उम्र समूह के किशोरियों के उचित पोषण हेतु
आगनबाड़ी केंद्रों के माध्यम से सूक्ष्म पोषक तत्व तथा प्रोटीनयुक्त सूखा राशन और
600 किलो कैलोरी ऊर्जा देने वाला पूरक पोषाहार महीने में एक बार 25 दिन के लिए उपलब्ध कराया जाता
है।
राष्ट्रीय शिशुशाला योजना
यह
केंद्र प्रायोजित योजना है
जो बिहार में 2018-19 से क्रियान्वित
है। इसके तहत कामकाजी महिलाओं के 6 महीने से 6 वर्ष उम्र वाले बच्चे की देखभाल हेतु महीने में कम से कम 15 दिन के लिए साल में 6 महीने तक दिन में देखरेख
की सुविधा उपलब्ध कराई जाती है।
पेयजल एवं स्वच्छता
शिक्षा
अधिकार अधिनियम 2009 के
मानकों के अनुसार की विद्यालयों में पेयजल एवं शौचालय जैसी अधिसंरचनाओं के साथ स्वच्छ वातावरण उपलब्ध
कराया जा रहा है।
बिहार
सरकार के प्रयासों के
फलस्वरुप राज्य के सभी प्रकार के विद्यालयों में कारगर
पेयजल सुविधा और शौचालयों का आच्छादन 90% से ज्यादा हो गया
है।
बाल सहायता योजना
बच्चों
को सामजिक सुरक्षा देने हेतु बाल सहायता योजना की शुरुआत 2020 में की गयी जिसका मकसद कोविड 19
महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों की बेहतर परवरिश, रिहाइश और शिक्षा को बढ़ावा देना है ।
इस
योजना के तहत 0 से 18
वर्ष उम्र समूह के अनाथ और विपदाग्रस्त ऐसे बच्चे लाभ के पात्र है
जिनके माता पिता में से किसी एक या दोनों की कोविड के कारण मृत्यु हो जाती है। इस योजना के तहत
अभी तक 55 लाभार्थी को लाभ दिया गया है।
बाल
गृह
विपदाग्रस्त, परित्यक्त और अनाथ बच्चों के
सहयोग और पुनर्वास हेतु राज्य में 23 बाल गृह चल रहे हैं
जिनमें कुल 6540 बच्चों को आवासीय सुविधा उपलब्ध करायी गयी
है।
बाल
संसद
शिक्षा में बच्चों की भागीदारी सुनिश्चित करने हेतु बिहार सरकार ने सभी प्राथमिक विद्यालयों में बाल संसद की स्थापना की है । इसके माध्यम से विद्यालय की गतिविधियों जैसे स्वास्थ्य, सफाई,शिक्षा संबंधी मुद्दों पर चर्चा की जाती है और निर्णयों को लागू करवाने की कार्यवाही की जाती है।
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कोविड महामारी संबंधी
प्रतिक्रिया
कोविड-19 के दौरान आंगनबाड़ी केंद्र चलाना
समेकित
बाल विकास सेवा निदेशालय ने कोविड-19 से सुरक्षा मानकों के प्रचार-प्रसार और क्रियान्वयन हेतु लगातार निर्देश जारी किए और उनका सख्ती से
पालन किया गया ।
मध्यान्ह भोजन संबंधी पहल
कोविड-19 महामारी के दौरान स्कूल बंद
रहने के कारण राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सरकारी और सरकारी सहायता
प्राप्त विद्यार्थियों के लाभार्थी विद्यार्थियों के अभिभावकों के बीच खाद्यान्न
का वितरण किया गया । राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के जरिए लाभार्थी
विद्यार्थियों/अभिभावकों के खाते में स्वीकार्य परिवर्तन
व्यय अंतरित किया गया।
प्रवासियों को अतिरिक्त लाभ
लॉकडाउन
के बाद प्रवासी परिवारों को आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिए जरूरी सहायता उपलब्ध कराने
हेतु राज्य सरकारों को जून 2020
में निर्देश जारी किए ।
बिहार
में समेकित बाल विकास सेवा निदेशालय ने सभी क्षेत्र के अधिकारियों को निर्देश जारी
किए कि सभी प्रवासी परिवारों को आंगनबाड़ी केंद्रों में शामिल किया जाए और उनके
बच्चों को तत्काल राहत के बतौर दूध पाउडर उपलब्ध कराया जाए ।
पाठ्यक्रम पूरा करने हेतु पहल
कोविड-19 के दौरान विद्यालयों के बंद
होने के कारण पढ़ाई में हुए नुकसान की भरपाई हेतु राज्य सरकार ने कक्षा 2 से 10 तक के विद्यार्थियों के लिए अनुसरण पाठ्यक्रम
तैयार किया, पाठ सामग्रियों को वितरित करा कर सभी
विद्यार्थियों के बीच बांटा गया ।
ई लॉट्स (शिक्षकों और विद्यार्थियों का ई पुस्तकालय)
महामारी
के दौरान राज्य सरकार ई लॉट्स का विकास किया गया । इस पोर्टल पर सभी पाठ्य
पुस्तकें, संबंधित
शैक्षणिक वीडियो और शिक्षकों की अन्य संदर्भ सामग्रियां उपलब्ध कराई गई । इस
पोर्टल पर कक्षा 1 से 12 तक के
विद्यार्थियों की ऑनलाइन पढ़ाई को बढ़ावा देने की आशा की गई ।
मेरा दूरदर्शन मेरा विद्यालय
कक्षा
1 से 12
तक के विद्यार्थियों के लिए दूरदर्शन बिहार पर कक्षाएं उसी तरह से
चलायी गयी जैसी स्कूलों में चलाई जाती है । दूरदर्शन द्वारा बिहार शिक्षा परियोजना
परिषद को 5 घंटे का स्लॉट आवंटित किया गया है ।
नए सत्र में नामांकन
बिहार
शिक्षा परियोजना परिषद ने 8 मार्च से
25 मार्च 2021 तक प्रवेशोत्सव विशेष
नामांकन अभियान का आयोजन किया । इसके द्वारा यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया
कि सभी बच्चों का नामांकन हो जाए और कोई भी बच्चा विद्यालय से बाहर नहीं रहे । इस
अभियान के माध्यम से विद्यालयों में लगभग 36.77 लाख बच्चों
का नामांकन हुआ ।
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