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Oct 14, 2023

कोविड 19 एवं भारतीय अर्थव्यवस्था

 कोविड 19  एवं भारतीय अर्थव्यवस्था


कोविड-19 के पूर्व भारतीय अर्थव्यवस्था

  • भारतीय अर्थव्यवस्था में औद्योगिक उत्पादन में गिरावट।
  • कर्मचारियों की बड़े पैमाने पर छंटनी।
  • अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों में ऋणात्मक वृद्धि।
  • बेरोजगारी दर में वृद्धि। महामारी के कुछ माह पूर्व भारत में बेरोजगारी दर 45 साल के उच्चतम स्तर पर दर्ज।
  • आरबीआई का NPA 10 लाख करोड़ के पास तथा बीते वर्ष में 2 लाख करोड़ से अधिक की वित्तीय धोखाधड़ी।
  • उपभोक्ताओं के आत्मविश्वास में कमी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में मांग पिछले 40 साल के सबसे न्यूनतम स्तर पर रही।
  • कृषि वृद्धि दर अपने एक दशक के न्यूनतम पर और कृषि आय के संदर्भ में कोई सकारात्मक खबर नहीं।
  • सरकार आर्थिक पैकेज और उदार घोषणाओं के जरिये बाजार को दोबारा चालू करने का प्रयास।

 


कोविड 19 के बाद भारतीय अर्थव्यवस्था

  • कोरोना वायरस महामारी की शुरुआत और इस महामारी की रोकथाम के लिये सरकार द्वारा किये गए उपायों के चलते मांग व आपूर्ति दोनों पर गंभीर प्रभाव पड़ा।
  • कोविड-19 की वजह से उत्पन्न हुई स्थितियों में भारतीय बाजार में मांग बढ़ नहीं पा रही है। भारतीय अर्थव्यवस्था  हेतु महत्त्वपूर्ण निजी उपभोग में जहां 27% की कमी आयी। वहीं दूसरी ओर निजी व्यवसाइयों द्वारा किये गए निवेश में 47% की कमी देखने को मिली।
  • देशव्यापी लॉकडाउन के कारण देश में आर्थिक गतिविधियाँ आंशिक अथवा पूर्ण रूप से रुक गईं और उत्पादन बंद हो गया।
  • महामारी के दौरान  भारत की GDP में संकुचन दर्ज किया गया जो बीते एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था का सबसे खराब प्रदर्शन है।
  • आर्थिक गतिविधियों के कम होने के साथ साथ सरकार के राजस्व में कमी आई है । वित्तीय अनुपलब्धता के कारण सरकार ने अपने खर्चे में लगभग 22% की कटौती की है।
  • महामारी से निपटने हेतु स्वास्थ्य क्षेत्र पर अधिक-से-अधिक खर्च करने की जिम्मेवारी सरकार पर है जबकि संसाधन एवं वित्तीय स्रोत सीमित है।
  • लॉकडाउन के कारण निजी कंपनियां भी दबाव रही अतः अर्थव्यवस्था में नई ऊर्जा लाने का पूरा दायित्व सरकार पर पड़ा । 

 

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कोराना काल में भारत के समक्ष अवसर

  • तकनीकी गतिविधियों जैसे ऑनलाइन शिक्षा, वित्तीय लेनदने, खरीददारी, टेलीमेडिसिन, आदि ने न केवल लॉकडाउन में आर्थिक गतिविधियों को गति दी बल्कि डिजिटल इंडिया की संकल्पना को भी बल दिया है।
  • चीन द्वारा वायरस के प्रसार के चर्चा के कारण कई कंपनियों का चीन से भारत की तरफ पलायन हो रहा है।
  • अर्थव्यवस्था में कृषि तथा फार्मासूटिकल उद्योग वृद्धि दर्ज कर रही हैं। कई वर्षो के बाद ऐसा हुआ है कि देश की GDP में गिरावट आ रही है जबकि कृषि क्षेत्र एवं संबंधी गतिविधियों में वृद्धि देखी जा रही है।

 

कोविड-19 एवं भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव

कोविड-19 ने संपूर्ण मानव जाति को सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक हर रूप में प्रभावित किया है। यह जितनी बड़ी स्वास्थ्य तबाही रही उससे कहीं ज्यादा बड़ी आर्थिक तबाही के रूप में सामने आ रही है। कोविड-19 महामारी को नियंत्रित करने हेतु लगाए गए लॉकडाउन के बाद श्रमिकों के पलायन, औद्यगिक उत्पादन में तीव्र गिरावट, कर्मचारियों की छंटनी, नए रोजगार के अवसरों में कमी आयी और आपूर्ति श्रृंखला में बाधा के कारण मांग में तीव्र गिरावट आई 

 

कोविड 19 के शुरुआती दौर में लगाए गए लॉकडाउन से कोरोना का प्रसार धीरे धीरे हुआ लेकिन इसके कारण अर्थव्यवस्था में आए ठहराव और उससे उत्पन्न संकट ने पूरी अर्थव्यवस्था को अस्त व्यस्त करने के साथ साथ असंगठित श्रमिकों, गरीबों, महिलाओं, वंचितों की आजीविका के लिए कठिनाई पैदा कर दी। 


ऑक्सफोर्ड इकोनॉमिक्स  की ग्लोबल रिपोर्ट  के आकलन के अनुसार  कोविड-19 महामारी के प्रकोप से 2025  तक भारत की जीडीपी को महामारी से पहले की तुलना में  12% तक  नीचे रहेगी 

 

असंगठित क्षेत्र 

कोविड-19 के दौरान लगाए गए लॉकडाउन का सबसे अधिक नकारात्मक प्रभाव देश के असंगठित क्षेत्र पर हुआ है। असंगठित क्षेत्र में सबसे अधिक व्यवसाय बंद हुए तथा सबसे ज्यादा नौकरियां गई। भारतीय अर्थव्यवस्था में यह वर्ष असंगठित क्षेत्र में सबसे भयावह दौर रहा है।


अंतर्राजीय रिवर्स माइग्रेशन के कारण कृषि पर दबाव बढ़ गया । ऐसे में ग्रामीण अर्थव्यवस्था प्रभावित हुई तथा प्रवासी श्रमिकों के बेरोजगार हो जाने के फलस्वरूप ग्रामीण क्षेत्र मे मांग भी कम हुई है।

 

मांग एवं आपूर्ति

भारतीय अर्थव्यवस्था कोविड-19 के पहले ही एक मांग आधारित मंदी की तरफ जा चुकी थी। हर सेक्टर से उत्पादन में कटौती और रोजगार में कटौती हो रही थी। कोविड-19 ने इस पूरी मंदी को 'मांग और आपूर्ति आधारित मंदी' के रूप में बदल दिया।


लॉकडाउन की वजह से लोगों का रोजगार गया और व्यापार बंद हुए तो बाजार में मांग और घट गई। इसी क्रम में जरूरी सेवाओं के अलावा सभी सेवाओं की आपूर्ति भी लंबे समय तक स्थिर रही।


भारतीय अर्थव्यवस्था में अंतराज्यीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर रिवर्स माइग्रेशन से उद्योगों में उत्पादन में कमी के साथ रेमिटैन्सेस कमी हुई ।

 

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग

सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग भी महामारी से प्रभावित रहा। भारत के कुल निर्यात में सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योग क्षेत्र की 48% हिस्सेदारी है और 11 करोड़ रोजगार सृजित इसके द्वारा किया जाता है। क्रिसिल रिसर्च के अनुसार इस संकट से उद्योग जगत के रेवेन्यू में 15% तक की गिरावट आ सकती है 

 

ओटोमोबाइल

कोविड 19 महामारी के शुरुआती दौर में लॉकडाउन अवधि में नए वाहनों की बिक्री में 78%  की गिरावट आई । इस प्रकार वाहन बिक्री में कमी से बड़ी संख्या में लोगों के रोजगार चले गए 

 

बैंकिंग

वैश्विक कंसल्टेंसी फर्म मैकिंजी के अनुसार कोविड-19 महामारी की वजह से भारतीय बैंक को कॉरपोरेट्स, सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग, उपभोक्ता उधारी पर बढ़ती जोखिम लागत, उपभोक्ता और उधारी की मांग में कमी के कारण से उत्पाद बिक्री पर दबाव तथा मार्जिन पर दबाव की वजह से 2024 तक 12 लाख करोड़ के नुकसान का सामना करना पड़ सकता है। इसी क्रम में भारतीय बैंकों को कोविड-19 से पहले जैसी स्थिति में लौटने के लिए उत्पादकता में 25 से 30% की वृद्धि करने की आवश्यकता होगी।

 

बेरोजगारी

बाजार में मांग की कमी ने बेरोजगारी की समस्या को और बढ़ाया। 'सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकनॉमी के अनुसार लॉकडाउन के कारण 12 करोड़ नौकरियां चली गई। कोरोना संकट से पहले भारत में कुल रोजगार आबादी की संख्या 40.4 करोड़ थी जो कोरोना संकट के बाद घटकर 28.5 करोड़ हो चुकी है।

 

स्पष्ट है कि भारतीय अर्थव्यवस्था बेरोजगारी, गरीबी, महंगाई और असमानता के एक बुरे दौर से गुजर रही है। आने वाले वक्त में अगर रोजगार के नए अवसर नहीं उपलब्ध कराए गए तो भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार केवल ऊपर के 1% लोगों तक ही सिमट कर रह जाएगा। 

अतः आवश्यकता है कि छोटे स्तर पर नए रोजगार के अवसरों को उत्पन्न कर आय सृजन हेतु सरकार द्वारा प्रयास किया जाए। रोजगार सृजन से मांग लौटेगी और बढ़ती मांग के बीच निवेश और दोबारा रोजगार सृजन का पहिया घूमने लगेगा।

 


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बिहार सरकार द्वारा कोविड का प्रबंधन

हाल के वर्षों में कोविड-19 महामारी का प्रबंधन संभवतः बिहार सरकार के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण कार्य था फिर भी सरकार द्वारा चतुर्दिक क्रियाकलापों को अपनाया गया और प्रभावी ढंग से महामारी की चुनौतीयों  का सामना किया गया ।

 

स्वास्थ्य प्रबंधन

  • नियमित निगरानी एवं नियमित जांच ।
  • संपर्क का पता लगाना  और रोक रखना ।
  • कोविड-19 केंद्रों का सुचारू रूप से संचालन
  • अधिसूचित कोविड 19 अस्पतालों में रोगियों का इलाज
  • कोविड-19 के लिए अतिरिक्त चिकित्साकर्मियों की बहाली
  • टीकाकरण के माध्यम से बचाव एवं बीमारी के प्रतिरोध का विकास ।
  • कॉल सेंटर के जरिए हेल्पलाइन सेवाएं 
  • बिहार में प्रति 10 लाख जनसंख्या पर 1.72 लाख लोगों की जांच की गई
  • कोविड-19  के टीके लगाने का चरणबद्ध कार्यक्रम  ।

 

बिहार सरकार द्वारा प्रवासी एवं राज्य के नागरिकों हेतु व्यवस्थाएं

  • 27 मार्च 2020 से 2 जून 2020 तक बिहार के सभी जिलों के शहरी क्षेत्र में आपदा राहत केंद्र का संचालन किया गया और इन केंद्रों के माध्यम से 30 लाख से अधिक व्यक्तियों को निशुल्क भोजन कराया गया।
  • कोरोना लॉकडाउन की अवधि में गरीब लोगों को डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर के माध्यम से 1.64  करोड़ राशनकार्डधारी के खाते में  ₹1000 अंतरित किया गया ।
  • राज्य के वृद्धजनों को कोरोना  अवधि में महीने का  वृद्धापेंशन अग्रिम रूप में भुगतान किया गया 
  • राज्य सरकार के अनुरोध पर भारत सरकार द्वारा कई विशेष रेलगाड़ियां बिहार भेजी गई
  • लॉकडाउन के कारण राज्य के बाहर फंसे 20.95 लाख प्रवासियों के खाते में मुख्यमंत्री राहत कोष से प्रति व्यक्ति 1000 का भुगतान
  • बाहर से आने वाले लोगों के ठहरने हेतु प्रखंड एवं पंचायत स्तर पर क्वारंटाइन केंद्र स्थापित किए गए जहां खाने पीने की व्यवस्था के साथ 14 दिन तक रहने की व्यवस्था की गयी ।


बिहार में कोविड-19 महामारी की दूसरी लहर का प्रबंधन

  • राज्य सरकार द्वारा दुकानों, प्रतिष्ठानों तथा सरकारी और प्राइवेट कार्यालयों के खुलने और वाहनों के चलने पर, पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया ।
  • इस अवधि में गरीबगृहविहीन, विपन्न और अन्य जरुरतमंद लोगों को आपदा प्रबंधन विभाग द्वारा लोगों को मुफ्त भोजन देने के लिए 5 मई 2021 से सामुदायिक रसोईघर चलाना आरंभ किया गया जो 14 जून 2021 तक चालू रहे।
  • इस अवधि के दौरान राज्य में 739 रसोईघर चालू थे जिनसे कुल 57.36 लाख लोगों को भोजन उपलबध कराया गया।
  • सामाजिक दूरी संबंधी मानकों और कोविड-19 संबंधी अन्य प्रोटोकॉल को सामुदायिक रसोईघर में पालन किया गया ।
  • प्रवासी मजदूर विशेष रेलगाड़ियों, बसों और अन्य साधनों से बिहार आए जिनको राज्य सरकार द्वारा 1000 रु. की सहायता दी गयी ।
  • कोविड महामारी के दौरान कोविड महामारी से मृत व्यक्ति के परिवार को 4 लाख रूपए की अनुकंपा राशि भुगतान की गयी और मृत व्यक्ति के परिजन को राज्य आपदा कोष से 50 हजार रुपए का भुगतान करने का भी निर्णय लिया गया।

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कोविड एवं बिहार की अर्थव्यवस्था

कोविड-19 की दूसरी  लहर तथा लॉकडाउन के दौरान काफी अधिक आर्थिक प्रभाव पड़ा  केंद्रीय सांख्यिकी संगठन द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार भारत में  2020-21 में जीडीपी के रूप में मापे जानेवाले राष्ट्रीय आर्थिक उत्पाद में 7.25% की कमी आयी जबकि बिहार के सकल राज्य घरेलू उत्पाद में वद्धि दर 2.50% रही

 

कोविड 19 एवं कृषि

भारत की बहुसंख्यक आबादी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कृषि और इससे सम्बद्ध क्षेत्रों पर निर्भर है। इस कारण कोविड-19 महामारी ने कृषि क्षेत्र पर व्यापक प्रभाव पड़ा है।

  • शहरों से ग्रामीण क्षेत्र में पलायन (रिवर्स माइग्रेशन) के कारण आजीविका हेतु कृषि क्षेत्र पर अतिरिक्त दबाव रहा।
  • महामारी, लॉकडाउन से कृषि आधारित उद्योगों, होटल, रेस्टोरेंट, पर्यटन आदि बंद रहने से कच्चें माल के रूप में कृषि उत्पाद की आपूर्ति नहीं होने से कृषि उत्पाद बेकार हो रहे हैं तथा कृषि क्षेत्र मांग-आपूर्ति संकट का सामना कर रहा है।
  • इसके अलावा पशु उत्पाद, बागवानी, पोल्ट्री, मत्स्यन भी प्रभावित हुए।
  • महामारी से कृषि आगतों जैसे वित्त, उर्वरक, कीटनाशक, कृषि मशीनरी जुड़ें गतिविधियों में आपूर्ति संबंधी समस्या देखी गयी।

 

कोविड 19  महामारी में सरकार द्वारा कृषि क्षेत्र के लिए की गयी मुख्य पहल

  • कृषि गतिविधियों को सरकार द्वारा प्रदान की गयी छूट से कृषि सेवा और विनिर्माण के तुलना में अच्छी स्थिति रही।
  • किसान और खेति‍हर मजदूरों द्वारा लॉकडाउन के दौरान भी खेती के कार्यों का संचालन जारी रखने की छूट।
  • फार्म मशीनरी से संबंधित कस्टम हायरिंग सेंटर के संचालनों में भी ढील।
  • कृषि मशीनरी और इनके स्पेयर पार्ट्स और मरम्मत की दुकानें खुली रहेंगी।
  • कटाई बुवाई संबंधी मशीनों और अन्य कृषि उपकरणों की आवाजाही को सुनिश्चित किया गया।
  • किसानों को भौतिक रूप से बजाए उपज बेचने में मदद हेतु e NAM पर नई सुविधा ।

 

 

कोविड महामारी में ग्रामीण क्षेत्र को संबंल देने हेतु सरकार के प्रयास

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना इसके तहत 1.70 लाख करोड़ के पैकेज की घोषणा सरकार द्वारा की गयी और गरीब वरिष्ठ नागरिकों, कृषकों, महिलाओं को निःशुल्क अनाज और नकद भुगतान की व्यवस्था की गयी। इस योजना के तहत 42 करोड़ से ज्यादा गरीबों को वित्तीय सहायता दी गयी।

आत्मनिर्भर भारत के तहत प्रवासी श्रमिकों को 2 माह के लिए मुफ्त अनाज और चने की आपूर्ति की गयी।

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण अन्न योजना का नवम्बर 2020 तक के लिए विस्तार किया गया। इसके तहत देश के 80 करोड़ लोगों को प्रति व्यक्ति प्रतिमाह 5 किलो गेहॅू/चावल तथा 1 किलो चना सरकार की ओर से मुफ्त दिया गया।

मनरेगा के तहत दैनिक मजदूरी को रु.182 से बढ़ाकर रु.202 कर दिया गया तथा 2020-21 के लिए आवंटन को 40,000 करोड़ से बढ़ाकर 1,01,500 करोड़ कर दिया गया। इसके अलावा राज्यों को मजदूरी और सामग्री के लंबित बकाए का भुगतान हेतु भी राशि जारी की गयी।

गरीब कल्याण रोजगार योजना- कोविड19 के कारण लौट रहे प्रवासियों को अपने क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराने हेतु इस योजना को लाया गया जिसके तहत सार्वजनिक आधारभूत ढांचे का विस्तार, अवास, पंचायत भवन, सामुदायिक भवन आदि आजीविका अवसर तैयार करना था।


कोविड महामारी एवं बिहार का प्राथमिक क्षेत्र

कोविड 19 की महामारी की स्थिति में मजबूत कृषि एवं सहवर्ती क्षेत्र से बिहार की अर्थव्यवस्था को मदद मिला है । कोविड-19 महामारी और लॉकडाउन के बावजूद बिहार में कृषि क्षेत्र में जबरदस्त प्रदर्शन किया है ।अतः कृषि और  सहवर्ती क्षेत्र का विकास बिहार के विकास के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है जो अर्थव्यवस्था में वृद्धि दर बनाने, रोजगार पैदा करने और गरीबी घटाने में योगदान करती है।  

 

  • वर्ष 2016-17 से वर्ष 2020-21 के 5 वर्षों में बिहार में प्राथमिक क्षेत्र  2.1% की वार्षिक दर से बढ़ा है ।
  • प्राथमिक क्षेत्र के अंतर्गत फसल, पशुधन, वाणिकीकाष्ठ उत्पादन, मत्स्याखेट एवं जल कृषि शामिल होते हैं ।
  • प्राथमिक क्षेत्र में पशुधन और मत्स्य पालन बिहार की कृषि की वृद्धि दर को तेज करने वाले दो सबसे महत्वपूर्ण क्षेत्र है और गत 5 वर्षों में दोनों क्षेत्रों में क्रमशः 10% और 7% की दर से वृद्धि हुई है ।
  • वर्ष 2020-21 में बिहार के कृषि संबंधी सकल राज्य घरेलू उत्पाद में फसल क्षेत्र के 48.7% के बाद सबसे ज्यादा हिस्सा पशुधन का 34.7% रहा जो बिहार में पशुधन के महत्व को इंगित करता है।


कोविड 19 महामारी एवं पर्यटन

COVID-19 महामारी के प्रभाव से अर्थव्यवस्था के सभी क्षेत्रों में ठहराव की स्थिति उत्पन्न हो गई तथा इसका सबसे नकारात्मक प्रभाव पर्यटन एवं आतिथ्य उद्द्योग पर पड़ा। मिला। संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (UNWTO) के अनुसार 1950 के बाद अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन उद्योग के समक्ष यह सबसे बड़ा संकट है तथा कोरोना आपदा से पहले के दौर में पहुंचने के लिए पर्यटन उद्योग को 3 से 4 वर्ष का समय लगेगा।

 

विश्व यात्रा एवं पर्यटन परिषद की आर्थिक प्रभाव रिपोर्ट 2020 के अनुसार भारत के सकल घरेलू उत्पाद में यात्रा एवं पर्यटन का संयुक्त रूप से 6.8% योगदान है । फलतः देश के सकल घरेलू उत्पाद में यात्रा और पर्यटन के लिहाज से भारत का 185 देशों के बीच 10वां स्थान है तथा यात्रा और पर्यटन से भारत में 3.98 करोड़ लोगों को रोजगार मिला है।

 

  • पर्यटन उद्योग के बाधित होने से न केवल रोजगार में कमी आयी बल्कि GDP पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ा।
  • पर्यटन उद्योग महिलाओं, ग्रामीण समुदायों और अन्य वंचित समूहों के लिये आय का एक प्रमुख स्रोत रहा है। पर्यटन के बाधित होने से इन लोगों के समक्ष आजीविका का संकट उत्पन्न हो गया है। 
  • महामारी के प्रभाव के कारण पर्यटन में महत्वपूर्ण परस्पर संवाद तथा सांस्कृतिक आदान प्रदान में स्थिरता आयी।
  • पर्यटन क्रियाकलापों में कमी से विरासत संरक्षण एवं देखरेख के कार्यों में कमी आयी।
  • सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थानीय हस्तशिल्प और कढ़ाई बुनाई संबंधी उत्पादों के बाजार बंद होने से ग्रामीणों, महिलाओं के आय पर व्यापक प्रभाव पड़ा।

संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन (UN-WTO) "विश्व पर्यटन बैरोमीटर" के अनुसार, वर्ष 2020 "वर्स्ट इयर ऑन रिकॉर्ड" रहा क्योंकि COVID-19 के कारण लगे अंतर्राष्ट्रीय पर्यटन प्रतिबंधों के कारण वैश्विक पर्यटन पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा। अंतर्राष्ट्रीय आवक में 74% की कमी आई और दुनिया भर के गंतव्यों ने 2019 की तुलना में 1 बिलियन कम अंतर्राष्ट्रीय आगमन का स्वागत किया।

 


 

भारत में पर्यटन का महत्व

  • भारत का पर्यटन उद्योग भारत में कुल रोज़गार के अवसरों का लगभग 8.1 प्रतिशत योगदान देता है।
  • 2019 में भारतीय पर्यटन उद्योग ने देश के GDP  में लगभग 9.3% का योगदान दिया था और कुल निवेश में लगभग 6% हिस्सा था।
  • पर्यटन उद्योग वैश्विक स्तर पर भारत के सांस्कृतिक प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है।
  • भारत में 38 यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल मौजूद हैं, जो भारत को पर्यटन की दृष्टि से काफी महत्त्वपूर्ण बनाते हैं। 
  • भारत के विभिन्न पर्यटन उत्पाद जैसे- भौगौलिक विविधता, परिभ्रमण, एडवेंचर, चिकित्सा, खेल, पर्यावरण, फिल्म, ग्रामीण, धार्मिक पर्यटन के कारण वैश्विक स्तर पर भारत को बढ़त प्राप्त है जो भारत को विश्व में एक प्रमुख पर्यटन केंद्र बनने में सहायता कर सकती है।
  • पर्यटन उद्योग महिलाओं, ग्रामीण समुदायों और अन्य वंचित समूहों के लिये आय का एक प्रमुख स्रोत रहा है।


पर्यटन उद्योग को बढ़ावा देने हेतु उपाए

  • पर्यटन स्थलों, विरासत स्थलों की स्वच्छता के विषय पर विशेष ध्यान देना होगा ।
  • घरेलू पर्यटन उद्योग को प्रोत्साहित किए जाने हेतु प्रयास करने होंगे ।
  • पर्यटन स्थल पर सुगमतापूर्वक पहुंच हेतु अवसंरचना विकास और परिवहन पर ध्यान दिया जाना होगा ।
  • भारत के प्रमुख पर्यटन स्थलों को आपस में जोड़ने हेतु व्यवस्थित अवसंरचनाओं के विकास पर ध्यान देना चाहिए।
  • पर्यटन क्षेत्र में विश्व स्तरीय सुविधाएँ देने हेतु भाषा, व्यवहार, खान-पान आदि में कौशल विकास हेतु प्रशिक्षण दिया जाए।
  • पर्यटक सूचना केंद्रों के आधुनिकीकरण एवं प्रबंधन में सुधार ताकि घरेलू और विदेशी पर्यटकों हेतु जानकारी प्राप्त करना आसान हो।  
  • पर्यटन स्थलों पर स्वच्छता सुनिश्चित करने स्वास्थ्य चुनौतियों से निपटने हेतु बेहतर स्वास्थ्य अवसंरचना का विकास।

 

कोविड 19 एवं बिहार का पर्यटन क्षेत्र

बिहार घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय दोनों पर्यटकों लिए पसंदीदी पर्यटन गंतव्यों में से एक है। भारतीय पर्यटन सांखयिकी 2019 के अनुसार 2018 में घरेलू पर्यटकों को आकर्षित करने के मामले में बिहार का देश में 14वां और विदेशी पर्यटकों के लिहाज से 9वां स्थान था। स्पष्ट है बिहार में पर्यटन की काफी संभावनाएं हैं। राज्य के आर्थिक विकास में वृद्धि तथा रोजगार के अवसर पैदा करने के उद्देश्य से बिहार में पर्यटन का विशेष महत्व है।

 

कोविड 19 एवं पर्यटन पर प्रभाव

कोविड-19 महामारी ने वर्ष 2020 और 2021 में वैश्विक संकट पैदा किया जिसने यात्रा एवं पर्यटन पर गंभीर असर डाला है। हालांकि आने वाले वर्षों में पर्यटन  क्षेत्र के तेजी से  उभरने की आशा है । बिहार सरकार द्वारा मुख्य फोकस पर्यटन के क्षेत्र में बिहार को ब्रांड बनाने पर है। वर्ष 2019 तक बिहार आने वाले  देशी एवं विदेशी पर्यटकों की संख्या 350.8 लाख रही लेकिन 2020 में कोविड-19 महामारी के फैलाव और आवागमन पर रोक लगने के कारण पर्यटकों की संख्या 59.5 लाख रहे ।


 

 

हाल के वर्षों में पर्यटन क्षेत्र के कुछ मुख्य विकास

  • बिहार में बौद्ध परिपथ,जैन परिपथ, रामायण परिपथ, कांवरिया  परिपथ, सूफी परिपथ, सिक्ख परिपथ,गांधी परिपथ, पारिस्थितिक (इको) परिपथ । 
  • पर्यटन से संबंधित बैठक, सम्मेलन और अन्य आयोजनों को बढ़ावा देने हेतु बोधगया में सांस्कृतिक केंद्र का विकास ।
  • वर्ष 2021-22 में बोधगया में पर्यटक सूचना केंद्र का आधुनिकीकरण एवं उन्नयन  के साथ-साथ राजकीय अतिथि गृह का निर्माण ।
  • 786 लाख रुपए के व्यय  से गया में कोटेश्वर धाम मंदिर का उन्नयन ।
  • रज्जूमार्ग और राजगीर के आसपास के क्षेत्रों  का  पर्यटन के दृष्टिकोण से सौंदर्यीकरण और उन्नयन ।
  • पूर्णिया जिले में  7 प्रमुख स्थानों पर पर्यटन सुख सुविधाओं एवं दृश्यावली का विकास 
  • वैशाली जिले में विश्व शांति स्तूप के निकट अवस्थित अभिषेक पुष्करणी झील के कायाकल्प ।
  • दुनिया के अन्य भागों से पर्यटकों को आकर्षित करने हेतु प्राकृतिक एवं साहसिक पर्यटन के विकास को प्रोत्साहन ।
  • पर्यटन के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण स्थानों को प्रतिष्ठित गंतव्य के बतौर विकसित करने एवं पर्यटन अधिसंरचना मजबूत करने का निर्णय ।
  • रोपवे जैसी पूंजी प्रधान अधिसंरचनात्मक परियोजनाओं से राज्य के पहाड़ी क्षेत्र पर्यटकों की पहुंच में लाना  ।
  • तीर्थस्थल कायाकल्प एवं आध्यात्मिक संवर्धन अभियान (प्रसाद) धरोहर शहर विकास एवं संवर्धन योजना (हृदय),  स्वदेश दर्शन के थीम आधारित परिपथों के लिए अधिसंरचना विकसित होगी और प्रमुख पर्यटक गंतव्य के बीच संपर्क में सुधार होगा।




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कोविड 19 एवं महिला संबंधी मुद्दे

लैंगिक असमानता 

वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की हाल में जारी जेंडर गैप रिपोर्ट के मुताबिक इस महामारी ने लैंगिक असमानता को और बढ़ा दिया है। बीते वर्ष की  तुलना  में लैंगिक असमानता को मिटाने में लगने वाला वक्त भी बढ़ गया है।


रिपोर्ट के मुताबिक अब महिला-पुरुषों के बीच समानता आने में करीब 136 साल लग जाएंगे, जो पिछले साल तक 100 साल थे।  आर्थिक असमानता खत्म होने में 250 साल से भी अधिक लगेंगे। शिक्षा जैसी बुनियादी जरूरत में असमानता 14 साल में खत्म हो पाएगी।


लिंक्डइन अपॉच्यूनिटी इंडेक्स, 2021 की रिपोर्ट के अनुसार काम और वेतन में भी असमानताएं बढ़ी है तथा ज्यादातर घरेलू जिम्मेदारियों का बोझ उन पर ही बढ़ा है।  



लिंग आधारित हिंसा

महामारी के दौरान ज्यादा समय घर में व्यतीत होने के कारण घरेलू कलह, लड़ाई, हिंसा के मामलों में वृद्धि देखी गई है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने संकट काल में घरेलू हिंसा में वृद्धि दर्ज की है।



महिला एवं प्रजनन स्वास्थ्य सेवाएं

कोविड महामारी एवं देशव्यापी लॉकडाउन के कारण गर्भ निरोधक, गर्भावस्था देखभाल के साथ बच्चों के जन्म, टीकाकरण, स्वास्थ्य देखभाल जैसी सेवाएं प्रभवित हुई।


यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार महामारी काल में (मार्च 2020 से दिसंबर 2020 तक) भारत में 2 करोड़ से ज्यादा बच्चों के जन्म होने की संभावना है तथा इस दौरान गर्भवती महिलाएं और पैदा हुए बच्चे प्रभावित स्वास्थ्य सेवाओं के संकटों का सामना कर रहे हैं। यह स्थिति महिलाओं के प्रजनन अधिकार तथा जनसंख्या नियंत्रण के प्रयासों के विरुद्ध है। 


इसके अलावा कोविड 19 के कारण महिलाएं घरेलू कार्यों, बच्चों की देखभाल एवं पढ़ाई, परिवार के सदस्यों की स्वास्थ्य एवं अन्य देखभाल में इतनी व्यस्त हो गईं हैं कि उन्हें अपने स्वास्थ्य संबंधी समस्याएँ भी नजर नहीं आ पातीं।


बढ़ता कार्यबोझ

कोरोना के कारण महिलाओं की दिनचर्या बेहद कठिन बन गयी है। ऑनलाइन शिक्षा के कारण बच्चों के ऑनलाइन कक्षाओं, क्लासवर्क करने, असाइनमेंट, आकलन आदि में मदद करने के लिए लंबे समय तक उनके साथ निर्बाध रूप से उपलब्ध रहना पड़ता है।



इसके अलावा, बच्चों और बुजुर्गों और घर के अन्य सदस्यों की देखभाल के साथ यदि घर के पुरुष सदस्यों Work to Home कर रहे हैं तो उनकी देखभाल एवं कार्य में सहयोग के कारण कार्य की तीव्रता काफी बढ़ जाती है। इसी क्रम में महिला यदि स्वयं work to Home कर रही है तो उसे घर पर ऑफिस और घर के कार्यों के बीच संतुलन बनाना मुश्किल हो जाता है।



घटते आय अवसर

कोविड महामारी के कारण आर्थिक गतिविधियों के संकुचन से लोगों के रोजगार सीमित हुये हैं। शिक्षा, वस्त्र, पर्यटन, सेवा एवं आतिथ्य, खुदरा व्यापार जैसे कुछ क्षेत्र बड़ी संख्या में महिलाओं को रोजगार देते हैं तथा निकट भविष्य में पूर्ण पैमाने पर अपने परिचालन शुरू नहीं कर पाएंगे इससे इससे महिलाओं के आय अवसरों में कमी आयी है।

 

लॉकडाउन समाप्त होने के बाद महामारी के असर कम होने पर कंपनियों, कारखानों में कार्य आरंभ हुआ लेकिन परिवहन सुविधाओं में कमी से कई महिलाएं पुनः रोजगार न कर पायी। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुमान के अनुसार कोरोना के कारण काम करने वाली कुल महिलाओं में से 5% को अपनी नौकरी गंवानी पड़ी जबकि पुरुषों में रोजगार गंवाने वाले 3.9% था।



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कोविड 19 महामारी एवं बाल एवं किशोर

यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार कोरोना वायरस के कारण खाद्य असुरक्षा, पोषण, टीकाकरण और अन्य आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं में व्यवधान आने से अगले 6 महीनों के अंदर 4.5 लाख से ज़्यादा बच्चों के जीवन के लिए संकट उत्पन्न होने की आशंका है। इसके साथ ही कोविड-19 के कारण दक्षिण एशिया के 2.2 करोड़ बच्चे शिक्षा के वंचित हो रहे हैं। भारत में भी कोरोना महामारी एवं लॉकडाउन के कारण बच्चों पर व्यापक प्रभाव पड़ेगा।



लंबे समय से शिक्षण संस्थाओं के बंद होने और घरेलू स्तर पर आर्थिक तनाव से कई लड़कियों को शिक्षा में बाधा, घरेलू हिंसा, बाल विवाह जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ेगा ।



बीमारी से बचाव हेतु सामाजिक दूरी तनाव और मानसिक स्वास्थ्य के जोखिम को बढ़ा सकता है।

सहकर्मी से मेलजोल में कमी, टीम वर्क, आपसी सहयोग, सीखने-सीखाने का व्यवहार जैसे समाजीकरण और जीवन कौशल सीखने की क्षमताओं तथा बौद्धिक विकास में बाधाक बन सकते हैं।


 

बच्चों पर कोविड का प्रभाव-यूनीसेफ रिपोर्ट नवंबर, 2020

  • रिपोर्ट के अनुसार 87 देशों में आए 25.7 मिलियन संक्रमण के मामलों में 11% मामले बच्चों और किशोरों से संबंधित हैं।
  • कोरोना वायरस संक्रमण के कारण विश्व के लगभग एक-तिहाई देशों में नियमित टीकाकरण जैसी स्वास्थ्य सेवाओं के कवरेज़ में कम से कम 10% की गिरावट आयी है। 
  • विश्व के 135 देशों की महिलाओं और बच्चों के पोषण सेवा में 40% की गिरावट देखी गयी जिसका प्रभाव भविष्य में खतरनाक हो सकता है।
  • स्कूल बंद होने के कारण स्कूल जाने वाले 33% बच्चे प्रभावित हुए हैं। इस संकट के कारण बच्चों के शिक्षा, स्वास्थ्य, पोषण, कल्याण पर नकारात्मक प्रभाव होगा।
  • महामारी के कारण विश्व के लगभग 90% छात्रों की शिक्षा प्रभावित हुई है जिसका सबसे ज्यादा प्रभाव गरीब छात्रों पर हुआ है जो ऑनलाइन शिक्षा माध्यमों का उपयोग नहीं कर सकते।
  • लॉकडाउन और स्कूल बंद होने के कारण जहां कई देशों में घरेलू हिंसा और लैंगिक हिंसा के मामलों में वृद्धि हुई वहीं दूसरी ओर कई देशों में बच्चों एवं महिलाओं के विरुद्ध होने वाली हिंसा की रोकथाम संबंधी सेवाएँ भी बाधित हुई।


 

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बिहार सरकार की कोविड संबंधी प्रतिक्रिया

बच्चों के स्वास्थ्य एवं शिक्षा पर निवेश किसी भी राष्ट्र के बेहतर भविष्य निर्माण का सबसे सुरक्षित तरीका है। भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39(F) राज्यों को निर्देश देता है कि बच्चों को स्वस्थ ढंग से मुक्त और सम्मानपूर्ण तरीके से विकसित होने के लिए अवसर और सुविधाएं उपलबध करायी जाए। 

 

देश में कुल बच्चों का 12% हिस्सा बिहार में है । अनुमानित आंकड़ों के अनुसार 5.18 करोड़ बच्चे हैं जिनमें 89.9% ग्रामीण क्षेत्रों में  शेष 10.1  प्रतिशत शहरी क्षेत्र में  रहते हैं ।


बिहार की कुल आबादी में किशोर एवं किशोरियों का 19.8% हिस्सा है यानी बिहार का हर पांचवा व्यक्ति किशोरवय हैं।

 

महामारी के दौर में बिहार सरकार द्वारा बच्चों के कल्याण विकास और संरक्षण हेतु प्रयास

 

कोविड-19 के दौरान आंगनबाड़ी केंद्र चलाना

समेकित बाल विकास सेवा निदेशालय ने कोविड-19 से सुरक्षा मानकों के प्रचार-प्रसार और क्रियान्वयन हेतु लगातार निर्देश जारी किए और उनका सख्ती से पालन किया गया ।

 

मध्यान्ह भोजन संबंधी पहल

कोविड-19 महामारी के दौरान स्कूल बंद रहने के कारण राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत सरकारी और सरकारी सहायता प्राप्त विद्यार्थियों के लाभार्थी विद्यार्थियों के अभिभावकों के बीच खाद्यान्न का वितरण किया गया । राष्ट्रीय सूचना विज्ञान केंद्र के जरिए लाभार्थी विद्यार्थियों/अभिभावकों के खाते में स्वीकार्य परिवर्तन व्यय अंतरित किया गया।

 

प्रवासियों को अतिरिक्त लाभ

लॉकडाउन के बाद प्रवासी परिवारों को आंगनबाड़ी केंद्रों के जरिए जरूरी सहायता उपलब्ध कराने हेतु राज्य सरकारों को जून 2020 में निर्देश जारी किए ।


बिहार में समेकित बाल विकास सेवा निदेशालय ने सभी क्षेत्र के अधिकारियों को निर्देश जारी किए कि सभी प्रवासी परिवारों को आंगनबाड़ी केंद्रों में शामिल किया जाए और उनके बच्चों को तत्काल राहत के बतौर दूध पाउडर उपलब्ध कराया जाए ।

 

बाल सहायता योजना

बच्चों को सामजिक सुरक्षा देने हेतु बाल सहायता योजना की शुरुआत 2020 में की गयी जिसका मकसद कोविड 19 महामारी के दौरान अनाथ हुए बच्चों की बेहतर परवरिश, रिहाइश और शिक्षा को बढ़ावा देना है ।

 

इस योजना के तहत 0 से 18 वर्ष उम्र समूह के अनाथ और विपदाग्रस्त ऐसे बच्चे लाभ के पात्र है जिनके माता पिता में से किसी एक या दोनों की कोविड  के कारण मृत्यु हो जाती है। इस योजना के तहत अभी तक 55 लाभार्थी को लाभ दिया गया है।

 

 

कोविड 19 एवं बुजुर्ग

कोविड19 महामारी के कारण बुजुर्ग समूह पर प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से व्यापक प्रभाव पड़ा है।


बुजुर्गों के सामान्य स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं में व्यवधान, कमजोर प्रतिरक्षा तंत्र तथा बढ़ते उम्र से संबंधित बीमारियों के कारण कोविड 19 महामारी इस समूह के लिए की प्राणधातक साबित हो रही है। 


बुजुर्गों में सामाजिक अलगाव, बुनियादी जरूरतों के लिए परिवार और सामुदायिक समर्थन की कमी उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर करती है।


उल्लेखनीय है कि बिहार में वर्ष 2020-21 में वृद्ध, विधवा और निशक्त लोगों के लिए संचालित योजनाओं का कुल व्यय 2019-20 की तुलना में 23.3% बढ़ गया ।

 

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार बिहार में 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के 77.07  लाख वृद्ध हैं जो कुल आबादी के 7.4% है । इनकी सामाजिक सुरक्षा हेतु बिहार सरकार तथा केंद्र सरकार द्वारा अनेक योजनाओं का संचालन किया जा रहा है।

  • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय वृद्धावस्था पेंशन योजना
  • इंदिरा गांधी राष्ट्रीय विधवा पेंशन योजना
  • राष्ट्रीय पारिवारिक लाभ योजना
  • लक्ष्मीबाई सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना
  • मुख्यमंत्री वृद्धजन पेंशन योजना
  • मुख्यमंत्री परिवार लाभ योजना
  • बिहार समेकित सामाजिक सुरक्षा सुदृढ़ीकरण परियोजना



 


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कोविड 19 एवं शिक्षा

कोविड19 महामारी के कारण भौतिक रूप से शैक्षणिक संस्थान बंद हो चुके हैं तो इस स्थिति में ऑनलाइन शिक्षा विकल्प बन कर सामने आए हैं जिसने पारम्परिक शिक्षा व्यवस्था पर व्यापक प्रभाव डाला है।

 

कोविड 19 महामारी एवं शिक्षा 

डिजीटल डिवाइड

भारत के 42% शहरी क्षेत्रों की तुलना में केवल 15% ग्रामीण परिवारों तक इंटरनेट की सुविधा है। इसी क्रम में नेटवर्क गुणवत्ता, मोबाइल, लैपटॉप, कम्प्यूटर का अभाव समस्या को और बढ़ा देता है।

 

शिक्षक एवं छात्रों की समस्याएं

ऑनलाइन शिक्षा के पर्याप्त प्रशिक्षण के अभाव में छात्र एवं शिक्षक दोनों समस्याओं का सामना कर रहे हैं और ऑनलाइन कक्षा में सहज नहीं हो पा रहे। इसके अलावा छात्र एवं शिक्षक के मध्य स्कूली मौहौल जैसी धनिष्ठता तथा संबंध विकासित नहीं हो पा रहे हैं।

 

कोविड काल में शिक्षा के क्षेत्र में बिहार सरकार के प्रयास

पाठ्यक्रम पूरा करने हेतु पहल

कोविड-19 के दौरान विद्यालयों के बंद होने के कारण पढ़ाई में हुए नुकसान की भरपाई हेतु राज्य सरकार ने कक्षा 2 से 10 तक के विद्यार्थियों के लिए अनुसरण पाठ्यक्रम तैयार किया, पाठ सामग्रियों को वितरित करा कर सभी विद्यार्थियों के बीच बांटा गया ।

 

ई लॉट्स (शिक्षकों और विद्यार्थियों का ई पुस्तकालय)

महामारी के दौरान राज्य सरकार ई लॉट्स का विकास किया गया । इस पोर्टल पर सभी पाठ्य पुस्तकें, संबंधित शैक्षणिक वीडियो और शिक्षकों की अन्य संदर्भ सामग्रियां उपलब्ध कराई गई । इस पोर्टल पर कक्षा 1 से 12 तक के विद्यार्थियों की ऑनलाइन पढ़ाई को बढ़ावा देने की आशा की गई ।

 

मेरा दूरदर्शन मेरा विद्यालय

कक्षा 1 से 12 तक के विद्यार्थियों के लिए दूरदर्शन बिहार पर कक्षाएं उसी तरह से चलायी गयी जैसी स्कूलों में चलाई जाती है । दूरदर्शन द्वारा बिहार शिक्षा परियोजना परिषद को 5 घंटे का स्लॉट आवंटित किया गया है ।

 

नए सत्र में नामांकन

बिहार शिक्षा परियोजना परिषद ने 8 मार्च से 25 मार्च 2021 तक प्रवेशोत्सव विशेष नामांकन अभियान का आयोजन किया । इसके द्वारा यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया कि सभी बच्चों का नामांकन हो जाए और कोई भी बच्चा विद्यालय से बाहर नहीं रहे । इस अभियान के माध्यम से विद्यालयों में लगभग 36.77 लाख बच्चों का नामांकन हुआ ।

 

 

विद्युत उपलब्धता

ग्रामीण विकास मंत्रालय की रिपोर्ट के अनुसार केवल 47% लोगों को ही एक दिन में 12 घंटे से अधिक की विद्युत आपूर्ति मिल पाती है। इस प्रकार विद्युत आपूर्ति में बाधा ऑनलाइन कक्षाओं हेतु एक समस्या है।

 

इंटरनेट पहुंच

भारत में कई ऐसे परिवार है जिनके आमदनी के स्रोत सीमित है। ऐसे में इंटरनेट, कम्प्यूटर जैसे साधनों का बोझ उठाने में सक्षम नहीं है। संसाधनों की कमी से छात्र मानसिक रूप से  तनावग्रस्त हो सकते हैं।

 

स्वस्थ अध्ययन माहौल का अभाव

स्कूल के माहौल में खुलापन तथा खेलकूद, मेलजोल से बच्चों में शारीरिक एवं बौद्धिक विकास होता है शिक्षा कक्षाओं के संचालन के साथ बातचीत, विचारों के आदान-प्रदान, मुक्त विचार-विमर्श आदि का माध्यम है। स्कूल में छात्र सामूहिक कार्यों और प्रयासों से एक- दूसरे से अधिक सीखते हैं जबकि ऑनलाइन शिक्षा के दौरान सीखने योग्य बहुत सी महत्त्वपूर्ण चीजें छूट जाती हैं।

 

स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे

लंबी अवधि तक कंप्यूटर या मोबाइल स्क्रीन देखने से आँखों की समस्याओं तथा लगातार बैठने  तथा शारीरिक गतिविधियों की कमी के कारण गर्दन और पीठ में दर्द के साथ कई अन्य स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं बढ़ सकती है।

 

अनुकूल वातावरण का अभाव

स्कूली कक्षाओं में प्रत्यक्ष शिक्षक की उपस्थिति से बच्चों में एकाग्रता तथा अनुशासन का आचरण विकसित होता है तथा शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार होता है। वहीं कई ऐसे गरीब छात्र है जिनके घर में कमरों की कमी या अन्य कारणों से शिक्षा हेतु माहौल उपयुक्त नहीं होता जिससे उनकी पढ़ाई में बाधा आती है।

 

शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन

ऑनलाइन शिक्षा उन बच्चों के शिक्षा के अधिकार को छीनने जैसा है जिनके पास उपयुक्त तकनीकी साधन या इसके लागत को वहन करने में सक्षम नहीं है। अतः यह शिक्षा के अधिकार का उल्लंघन जैसा है।

 

बच्चों के बौद्धिक विकास में बाधा

मोबाइल या लैपटॉप की स्क्रीन को ज्यादा समय तक देखते रहने वे अपने मस्तिष्क का उपयोग अधिक स्वतंत्रतापूर्वक नहीं कर पाते हैं और न ही पढ़ाई में अपनी सटीक प्रतिक्रिया दे पाते हैं। इस प्रकार ऑनलाइन कक्षाएं अपेक्षाकृत अरूचिकर हो जाती है और बौद्धिक  विकास बाधित होता है।

 

कोविड 19 एवं जीवनशैली में बदलाव

हाल में हुए एक सर्वेक्षण में हर 5 में से 4 भारतीय ने माना कि कोरोना महामारी से उनकी जीवनशैली में कुछ बदलाव आए हैं। सर्वेक्षण में दुनियाभर में ऐसा मानने वाले 59.4 % लोग थे।

  • दुनिया में 59% लोगोँ ने खरीदारी तरीका  बदला और ऑनलाइन खरीदारी का प्रचलन बढ़ा।
  • स्वच्छता, योग, स्वास्थ्य संबंधी क्रियाओं तथा खानपान पर ज्यादा ध्यान देने लगे हैं।
  • 70% लोगों ने घर में साफ सफाई उत्पादों की खरीददारी बढ़ा दी है और अल्कोहल, सेनिटाईजर की खपत बढ़ गयी है। एक रिपोर्ट के अनुसार भारत सफाई उत्पादों की खरीदारी के लिए दुनिया के सबसे बड़े बाजारों में से है।
  • महामारी के दौरान 53% शहरी भारतीयों ने डेयरी उत्पादों की खपत बढ़ाई  वहीं  66% ने फल सब्जी की खरीददारी पर जोर दिया।
  • सार्वजनिक समारोहों, सामूहिक धर्मिक - सांस्कृतिक कार्यों में लोगों की भागीदारी कम हुई।


 

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कोविड-19 एवं महानगर

कोविड-19 महामारी के दौरान भारत के महानगरों में कोरोना संक्रमण की संख्या में असामान्य वृद्धि देखने को मिल रही है। दिल्ली, चेन्नई, बेंगलुरु, मुंबई, हैदराबाद और कोलकाता जैसे महानगरों में कोरोना से संक्रमित लोगों की संख्या पूरे भारत का लगभग 50% समेटे हुए है। अनियोजित शहरीकरण कोरोना की प्रभावशीलता को और बढ़ा रहा है।

 

भारत में जनस्वास्थ्य की स्थिति

वर्ष 2018 में भारत का जनस्वास्थ्य खर्च GDP का 1.28% था।

विश्व बैंक के अनुसार, 2017 में भारत की 62.4% जनसंख्या ऐसी थी जिसके पास कोई स्वास्थ्य बीमा कवर नहीं था। इसका तात्पर्य यह हुआ कि इनमें से कोई व्यक्ति बीमारी से ग्रसित होता है तो उसे इसका खर्च स्वयं वहन करना पड़ेगा। वैश्विक स्तर पर 2017 में आउट ऑफ पॉकेट स्वास्थ्य खर्च का प्रतिशत 18.2% था

भारत में डॉक्टर और जनसंख्या का अनुपात 1:1457 है जबकि WHO के अनुसार 1:1000 होना चाहिए।

 

महानगरों में संक्रमितों की संख्या में वृद्धि के कारण

  • भारतीय महानगरों में आपदा से निपटने हेतु किसी व्यवस्थित ढांचे का अभाव ।
  • राज्य की सरकारों द्वारा नगरपालिका के कार्यक्षेत्रें में व्यापक स्तर पर हस्तक्षेप।
  • महानगरों में स्वास्थ्य, शिक्षा आदि मुद्दों पर केन्द्र, राज्य एवं स्थानीय संस्थाओं में सामंजस्य स्थापित करने हेतुमहानगरीय योजना समितिका गठन न होना। कुछ महानगरों में गठन होने के बाद भी बेहतर कार्य नहीं कर पाना।
  • नगरपालिकाओं के अधिकारों, वित्तीय आवंटन एवं राजस्व संग्रहण की शक्तियाँ क्षीण होना।
  • नगरपालिका के मेयर का अल्प कार्यकाल तथा अपेक्षाकृत कम अधिकार तथा कर्मचारियों की कमी।
  • नगरीय व्यवस्थाओं हेतु जिम्मेवार विभिन्न स्थानीय एजेंसियों के मध्य सामंजस्य का अभाव, पारदर्शिता, जवाबदेही, नागरिकों की सहभागिता का सुनिश्चित न होना।
  • मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों की मलिन बस्तियां तथा उनमें व्याप्त अव्यवस्थाएं।

नगरों का अनियंत्रित विस्तार, संसाधनों पर बढ़ते दबाव, स्वास्थ्य एवं प्रदूषण समस्याएं। विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट के अनुसार सबसे खराब वायु प्रदूषण वाले दुनिया के 30 शहरों में से 21 शहर भारत में हैं। उल्लेखनीय है कि कोरोना श्वसन तंत्र संबंधी बीमारी होने के कारण वायु प्रदूषण के दुष्प्रभावों के कारण और ज्यादा घातक हो जाता है।

 

महामारी के दूसरी लहर के  ज्यादा प्रभावी होने के कारण

  • नए कोरोना वायरस के प्रति लोगों में प्रतिरोधक क्षमता का अभाव।
  • महामारी के दौरान मौसम में में आनेवाले बदलाव।
  • टीकाकरण की धीमी गति तथा स्वास्थ्य सुविधाओं में व्याप्त दोष ।
  • कोविड-19 महामारी के प्रति जागरूकता की कमी तथा लापरवाही।
  • सामाजिक दूरी, स्वचछता जैसे नियमों के पालन में लापरवाही।
  • महामारी के दौरान चुनाव प्रचार, रैली व अन्य सामजिक सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन।
  • केन्द्र, राज्य एवं स्थानीय स्तर पर महामारी से निपटने हेतु एकल तथा ठोस नीति का अभाव।


सार्वजानिक स्वास्थ्य में गिरावट के प्रभाव

  • जनसांख्यिकीय लाभ को वास्तविक रूप में प्राप्त करने हेतु स्वास्थय कार्यबल की भूमिका महत्वपूर्ण है।
  • बेहतर स्वास्थ्य कार्यक्षमता में वृद्धि लाती है जिससे उत्पादन की मात्रा और गुणवत्ता बढ़ती है।
  • श्रमिक वर्ग, किसान के स्वास्थ्य में गिरावट से अर्थव्यवस्था का स्वास्थ्य भी प्रभावित होगा।
  • भारत में सेवा क्षेत्र को मजबूती देने हेतु बेहतर स्वस्थ कार्यबल की आवश्यकता  है।
  • बीमारी परिवारों के खर्च में वृद्धि करती है जिससे अन्य  मदों में कटौती होने से आर्थिक वृद्धि दर में कमी आती है।
  • आय का बड़ा हिस्सा स्वास्थ्य में खर्च होने से शिक्षा खर्च कमी आती है जो मानव संसाधन विकास हेतु अच्छा नहीं।
  • बीमारी की हालत में स्वास्थ्य में अधिक खर्च गरीबी, आर्थिक असमानता लाती है।

 

COVID-19 काल में तकनीक का उपयोग

स्वास्थ्य

स्वास्थ्य सेवा में टेलीमेडिसिन द्वारा स्मार्टफ़ोन और वीडियो कॉल पर दूरस्थ स्थानों में रोगियों का उपचार एवं आवश्यक सलाह दिए गए। टेलीमेडिसिन की अपरिहार्यता को देखते हुए भारत के स्वास्थ्य मंत्रालय ने लॉकडाउन अवधि में टेलीमेडिसिन के लिए नए दिशानिर्देशों से संबंधित एक दस्तावेज़ जारी किया।

 

गृह पृथक्करण निगरानी

बिहार सरकार के गृह पृथक्करण निगरानी कोविड एप से स्वास्थ्यकर्मियों को कोविड-19 महामारी के दौरान गृह पृथक्करण (होम आइसोलेशन) वाले रोगियों का नियमित अनुश्रवण, निगरानी तथा रोगियों तक पहुंचने और उनका जीवन बचाने में मदद मिली।

 

डिजिटल कृषि

बिहार सरकार के कृषि विभाग के प्रत्यक्ष लाभ अंतरण पोर्टल पर 1.80  करोड़ से अधिक किसान निबंधित हुए जिनको सब्सिडी, प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि जैसे कार्यक्रमों और योजनाओं का लाभ दिया गया।

 

ऑनलाइन शिक्षा

मार्च में भारत के स्कूल और शैक्षणिक संस्थान बंद हो गए तब संचार प्रौद्योगिकी की मदद से ऑनलाईन कक्षा, पाठयक्रम उपलबधता जैसे कार्य हुए।

 

निगरानी

कोविड के मरीजों की निगरानी में सेलफोन जैसे व्यक्तिगत उपकरणों का प्रयोग किया गया। भारत सरकार द्वारा संपर्क अनुरेखण हेतु आरोग्य सेतु ऐप लॉन्च किया गया। अधिकारियों द्वारा कोरोनो वायरस रोगियों के प्राथमिक और द्वितीयक संपर्कों को ट्रैक करने के लिए कॉल रिकॉर्ड, GPS का उपयोग किया गया।

 

ड्रोन का प्रयोग

ड्रोन तकनीक द्वारा हवाई निगरानी, सार्वजनिक स्थानों और आवासीय कॉलोनियों में कीटाणुनाशक स्प्रे, भीड प्रबंधन आदि का कार्य।

 

कार्यालयीन कार्य एवं जन उपयोगी सेवाएं

संचार प्रौद्योगिकी द्वारा विभिन्न प्रकार के एप, पोर्टल, वीडियो कॉल, डिजीटल कान्फ्रेस के माध्यम से बैठकें सम्पन्न हुई। आवश्यक सूचनाओं, सेवाओं, जन जागरूकता हेतु विभिन्न प्रकार के एप, पोर्टल का प्रयोग किया गया। 


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कोरोना एवं प्रवासी श्रमिक

कोरोना वायरस के प्रभाव ने समाज के हर वर्ग को प्रभावित किया प्रवासी श्रमिक वर्ग भी उनमें से एक है। हांलाकि कोरोना से पूर्व भी प्रवासी श्रमिकों की भारत में अनेक समस्याएं थी जैसे- केन्द्रीय एवं राज्य सरकारों के कानूनों की बहुलता, मजदूरी के निर्धारण तथा भुगतान का मुद्दा, भारत के विभिन्न राज्यों के बीच मजदूरी तथा कार्य में क्षेत्रीय अंतर, कार्य तथा भुगतान में लैंगिक भेदभाव, दुर्घटना तथा आपतकाल में सामाजिक सुरक्षा का अभाव इत्यादि।


कोरोना काल में लॉकडाउन के बाद कई श्रमिकों द्वारा नौकरियां को छोड़कर गृहराज्य के लिए पलायन किया गया। इस पलायन के दौरान प्रवासी श्रमिकों को अनेक प्रकार के कष्ट उठाने पड़े। इसी क्रम में कई राज्यों द्वारा आंशिक तथा पूर्ण लॉकडाउन के कारण पुनः उनके रोजगार तथा जीविका पर संकट मंडरा रहा है।


प्रवासी श्रमिक का तात्पर्य वह व्यक्ति जो काम करने के लिए अपने देश के भीतर या देश के बाहर पलायन करता है तथा सामान्यतः उस देश या क्षेत्र में स्थायी रूप से रहने का इरादा नहीं रखता जहां वे काम करते हैं।  प्रवासी श्रमिकों के हालातों को देखते हुए उनकी समस्या के निदान तथा भविष्य के संकट से रक्षा हेतु नीति आयोग द्वारा एक राष्ट्रीय नीति का मसौदा प्रस्तुत किया गया ।

 

प्रवास नीति की आवश्यकता

  • भारत में प्रवास से संबंधित किसी स्पष्ट नीति का अभाव।
  • अंतरराष्ट्रीय श्रम बाजार में अपने अपने कामगारों, नागरिकों की क्षमताओं का उपयोग नहीं कर पाना।
  • 2017 में जारी श्रम संबंधी रिपोर्ट द्वारा प्रवासी श्रमिकों के लिए सुरक्षा कानून के दायरे को बढ़ाने की सिफारिश।
  • प्रवासी श्रमिकों के साथ भेदभावपूर्ण कार्यदशाएं, व्यवहार एवं भुगतान जैसी शोषणकारी व्यवस्थाओं से बचाना।
  • भविष्य में कोरोना संकट जैसी महामारी या समस्याओं से निपटने में प्रवासी श्रमिकों को विशेष सुरक्षा उपलबध कराना।

 

कोरोना की प्रथम लहर

कोविड के प्रथम लहर के दौरान इसके प्रसार को रोकने के लिए अचानक लॉकडाउन के कारण प्रवासी मज़दूर उन शहरों में अटक गए जहां ये काम पर लगे हुए थे। अंततः कोविड-19 के डर के बीच परिवहन सुविधाओं के अभाव, भुखमरी और तंगी की आशंकाओं, सामाजिक भेदभावों, प्रशासन के प्रतिकूल बर्तावों जैसी चुनौतियों के बीच हताश प्रवासी पैदल ही सैकड़ों मील दूर अपने गांव की ओर निकल पड़े।


बहुत देर से ही सही इस समस्या से निपटने हेतु सरकारों की ओर से इनके लिए कई राहत उपायों के तहत मुफ़्त अनाजअस्थायी निवास स्थान और परिवहन सुविधाओं के इंतज़ाम की घोषणा हुई लेकिन अनेक कमियों के कारण ज़रूरतमंद प्रवासियों का एक बड़ा तबका इन राहत सुविधाओं से वंचित रह गया।

 

कोरोना की दूसरी लहर 

दूसरी लहर में कई राज्यों ने एक बार फिर लॉकडाउन का सहारा लिया जिससे आर्थिक गतिविधियां डांवाडोल हो गईं और 2020  से ही तंगहाली झेल  रहे आर्थिक प्रवासियों के सामने दोबारा आजीविका और स्वास्थ्य का संकट उत्पन्न हो गया।


पहली लहर के कारण रोज़गार छिन जानेवापस घर लौटने और परिवार का पालन-पोषण करने, महामारी का सामना करने में उनकी सारी जमापूंजी ख़त्म हो चुकी थी । ऐसे प्रतिकूल हालात में कोरोना की दूसरी लहर ने उनकी कमर तोड़ डाली।

 

कोरोना की तीसरी लहर

तीसरी लहर में तथा ओमिक्रोन के कारण आशिक लॉकडाउन कई राज्यों में लगाया गया। हाल ही में इसके अलावा पूर्व के दोनों लहरों के कारण रोजगार, जमापूंजी समाप्त हो चुकी है। वर्तमान में सरकार के तात्कालिक राहत से जुड़े अनेक उपायों के बावजूद इनकी दुर्दशा जस की तस बनी हुई है तथा इनके समक्ष अनेक समस्याएं उपस्थित है।

 

कोरोना के दौरान प्रवासी श्रमिकों की समस्याएं

  • कार्य बंद होने की स्थिति में कार्यस्थल वाले राज्य संबंधित राज्य सरकार द्वारा आवश्यक मौलिक सुविधाओं की उपलब्धता सुनिशचित नहीं की गयी। 
  • भारत के सभी राज्यों द्वारा प्रवासी श्रमिकों को अपने राज्य जाने हेतु कोई विशेष सुविधाएं नहीं दी गयी।
  • कार्यस्थल से अपने निवासस्थल तक आने में प्रवासी श्रमिकों के सम्मुख  भोजन, जल, विश्राम के अलावा कई विकट परिस्थितियां आयी।
  • कई श्रमिक द्वारा अपने काम छोड़कर प्रवास करने पर पुनः अनलॉकडाउन होने पर उनपर आजीविका संकट उत्पन्न हो गया।
  • विदेश में कार्यरत भारतीय श्रमिकों की स्थिति और अधिक सुभेद्य हो गई।

 

प्रवासी श्रमिकों की सुरक्षा हेतु उपाए

  • कोरोना महामारी जैसी विशेष परिस्थितियों नकद हस्तांतरण, कार्य में छूट जैसी व्यवस्था की जाए।
  • शहरों में प्रवासियों के लिए विभिन्न स्थानों पर मूलभूत सुविधाओं के साथ रैन बसेरों, मौसमी आवासों को बनाया जाए।
  • उच्च प्रवास क्षेत्रों में प्रवास संसाधन केंद्र बनाया जाए जहां उनके वेतन भुगतान, कानूनी समस्याओं का निराकरण हो सके। 
  • उच्च  प्रवास वाले वाले शहरों में इनके लिए कौशल निर्माण केन्द्र, प्रशिक्षण केन्द्र बनाया जाए।
  • प्रवासी बच्चों, महिलाओं को सरकार की सभी योजनाओं का लाभ दिए जाने हेतु व्यवस्था की जाए।
  • प्रवासी श्रमिकों की समस्याओं जैसे न्यूनतम मजदूरी उल्लंघन, कार्यस्थल पर दुर्व्यवहार के लिए शिकायत निवारण कक्ष ।
  • दुर्घटना तथा आपातकाल में बीमा, सामाजिक सुरक्षा की व्यवस्था की जाए। 

कोविड 19 एवं कमजोर वर्गों को सहारा देने के लिए सुरक्षा जाल

कोविड महामारी में भारत सरकार की चुनौती

  • महामारी के स्वास्थ्य परिणामों पर एक सुसंगत प्रतिक्रिया।
  • पूर्व की दो लहरों से सबक लेते हुए तीसरी लहर में आमीक्रोन वेरियंट से निपटना।
  • समाज के वृद्ध, कमजोर वर्गों को सुरक्षा प्रदान करना।
  • शिक्षा, रोजगार एवं आजीविका के साधनों को बनाए रखना।
  • विश्व की दूसरी सबसे बड़ी जनसंख्या हेतु मूलभूत सुविधाएं उपलबध कराना।
 

बारबेल रणनीति, सुरक्षा जाल और चुस्त-दुरुस्त प्रतिक्रिया

परिवर्तनशील वायरस की नई लहरोंयात्रा प्रतिबंध, आपूर्ति श्रृंखला व्यवधान और हाल के वैश्विक मुद्रास्फीति के कारण पिछले वर्ष दुनिया भर में नीति निर्माण के लिए विशेष रूप से चुनौतीपूर्ण रहे हैं।

 

भारत सरकार ने सभी अनिश्चित अदाओं का सामना करते हुए बारबेल स्ट्रेटजी का विकल्प चुना जिसमें समाज व्यवसाय के कमजोर वर्गों पर प्रभाव को कम करने के लिए सुरक्षा जाल का गठन किया गया जिसमें सूचना के बेजियन अपडेट के आधार पर एक लचीली नीतिगत प्रतिक्रिया थी । यह वित्तीय बाजारों में इस्तेमाल की जाने वाली एक सामान्य रणनीति है जिसका उपयोग दो अलग-अलग प्रतिक्रियाओं को मिलाकर अत्यधिक अनिश्चितता से निपटने के लिए किया जाता है।

 

 

कमजोर वर्गों को सहारा देने के लिए सुरक्षा जाल का उपयोग

2020 की शुरुआत में जब विश्व में महामारी के प्रथम लहर चल रही थी तो सरकार ने आपातकालीन नीतिगत कार्रवाई के माध्यम से लोगों की जान बचाने पर ध्यान केंद्रित किया और पहली कार्रवाई के तहत मार्च 2020 में लॉकडाउन को लागू किया। इस लॉकडाउन ने बुनियादी ढांचे को बढ़ानेक्वारंटाइन सुविधा आदि के लिए आवश्यक समय प्रदान किया इसके अलावा इसने कोविड-19 वायरस इसके लक्षण और इसके फैलने की विधि को समझने  हेतु आवश्यक समय दिया।

 

लॉकडाउन और क्वारंटाइन आर्थिक गतिविधियों को बाधित करते हैं इसी को समझते हुए सरकार ने मुफ्त भोजन कार्यक्रमप्रत्यक्ष नकद हस्तांतरण और छोटे व्यवसाय के लिए राहत उपायों सहित आर्थिक सुरक्षा तंत्र को स्थापित किया । महामारी के दौरान आपदा को रोकने हेतु गठित सुरक्षा जाल के प्रमुख उपाय के तहत अनेक कदमों को उठाया गया।

 

नकद हस्तांतरण

नगद हस्तांतरण के तहत महिला जनधन खाताधारकों को  ₹500,  कमजोर वर्ग को ₹1000 और प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत किसानों को ₹6000  सहायता राशि उपलब्ध कराए गए।

 

खाद्य सुरक्षा

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण योजना  के तहत 80 करोड़  लाभार्थियों को राष्ट्रीय  खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 5 किलोग्राम प्रति व्यक्ति प्रति माह खाद्यान्न उपलब्ध कराया गया।

वन नेशन वन राशन कार्ड द्वारा विशेष रूप से प्रवासी श्रमिकों  के  जन वितरण प्रणाली लाभ को सुनिश्चित किया गया।


उज्जवला के तहत रसोई गैस सिलेंडर प्रदान किया गया ।

 

रोजगार

प्रधानमंत्री गरीब कल्याण रोजगार योजना के तहत  प्रवासी श्रमिकों को तत्काल रोजगार और आजीविका के अवसर उपलब्ध कराए गए तथा महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना की मजदूरी में वृद्धि की गई।


आत्मनिर्भर भारत  रोजगार योजना के माध्यम से  नियोक्ताओं के वित्तीय बोझ को कम करने हेतु सहायता दी गयी और श्रमिकों को काम पर रखने के लिए प्रोत्साहित किया गया।


महामारी के दौरान ग्रामीण क्षेत्रों में असंगठित श्रमिकों हेतु आवश्यक रोजगार प्रदान करने के लिए मनरेगा के लिए आवंटन को बढ़ाया गया।

आवास

प्रधानमंत्री आवास योजना ग्रामीण तथा प्रधानमंत्री आवास योजना शहरी के माध्यम से लक्षित परिवारों हेतु आवास निर्माण कार्य किया गया 

 

कौशल विकास

दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल्या योजना और ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्थान के माध्यम से युवाओं के लिए कौशल विकास कार्यक्रम चलाया गया।  प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के तहत प्रवासी कामगारों का नवीन और उच्च कौशल प्रदान किया गया।

 

सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योग

सूक्ष्म लघु और मध्यम उद्योग हेतु क्रेडिट गारंटी योजना लायी गयी और वित्त पोषण की व्यवस्था की गई।

आत्मनिर्भर भारत पैकेज तथा अन्य विशिष्ट पहलों के माध्यम से महामारी के प्रभाव को कम करने हेतु सहायता उपलब्ध करायी गयी।

 


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कोविड-19 के संबंध में बिहार सरकार की प्रतिक्रिया

कोविड-19 ने देश में अप्रत्याशित चुनौती खड़ी कर दी थी। दिसंबर 2021 तक राज्य में 7.27 लाख सक्रिय मामले थे तथा बिहार में कोविड-19 में ठीक होने की दर 98.3% थी जो राष्ट्रीय औसत 98.0% के लगभग बराबर थी। बिहार सरकार ने महामारी पर नियंत्रण हेतु राज्य सरकार द्वारा लॉकडाउन शुरू करके तत्काल कार्रवाई करते हुए अनेक कदमों को उठाया गया।

 

कोविड-19 जांच

राज्य सरकार द्वारा कोविड-19 की जांच क्षमता मजबूत करते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन के मानदंड के अनुसार रोज किए जानेवाले जांचों की संख्या 5600 से ज्यादा जांच किए गए। दिसंबर 2021 तक कम से कम 609.21 लाख जांच की गई।

 

टीके की चरणबद्ध खुराक

पटना के नालंदा मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल में टीको के भंडारण के अलावा 10 क्षेत्रीय और 38 जिला स्तरीय  टीका भंडार स्थापित किया गया ताकि चरणबद्ध तरीके से टीकाकरण कार्यक्रम चलाया जा सके।

दिसंबर 2020 में पूरे राज्य में कोविड-19 का टीका मुफ्त में लगाने का निर्णय लिया गया और विभिन्न चरणों में बिहार में टीकाकरण पूरा किया गया। दिसंबर 2021 तक राज्य में कुल 10 करोड लोगों को टीका लगाया गया

 

टीकाकरण अभियान गीत

टीकाकरण अभियान गीत कर दिखाएगा बिहार,कोरोना  टीका लगाएगा बिहारद्वारा  टीकाकरण अभियान  को प्रोत्साहन दिया गया 

 

टीका एक्सप्रेस

बिहार सरकार ने 45 वर्ष से  ज्यादा उम्र के सभी लोगों को उनके घर जाकर टीके लगाने का निर्णय लेते हुए 121 टीका एक्सप्रेस को विभिन्न जिलों में रवाना किया और प्रत्येक वाहन द्वारा प्रतिदिन 200 व्यक्तियों को टीका लगाने का लक्ष्य निर्धारित किया  गया ।

 

चौबीसों घंटे टीकाकरण केंद्र

राज्य सरकार ने चौबीसों घंटे टीका लगाने की व्यवस्था करते हुए पटना में तीन और रोहतास में एक टीकारण केन्द्र बनाया गया साथ ही सभी 38 जिलों में 9 घंटे खुले रहने वाले टीका केंद्र चलाए  गए ।

 

पृथक्करण केंद्र

कोविड-19 की दूसरी लहर के दौरान कुछ सरकारी एवं निजी अस्पतालों में 537 पृथक्करण केंद्र स्थापित किए गए । इसके अलावा  12 समर्पित कोविड  अस्पताल, 116 समर्पित कोविड  स्वास्थ्य केंद्र,  166  कोविड देखरेख केंद्र और 243 प्राइवेट अस्पताल भी चल रहे थे 

 

आइसोलेशन ट्रैकिंग एप

होम आइसोलेशन ट्रैकिंग ऐप द्वारा अधिकारियों को अपने घर में स्वास्थ्य लाभ ले रहे कोविड मरीजों की स्थिति पर रखने में मदद मिली।

 

मेडिकल ऑक्सीजन का प्रावधान

कोविड  का मुकाबला करने हेतु बिहार के कोविड अस्पतालों, कोविड  स्वास्थ्य केंद्रों, निजी अस्पतालों इत्यादि में कुल मिलाकर कुल 16,986 ऑक्सीजन युक्त  शैय्याओं की व्यवस्था उपलब्ध थी 

 

मेडिकल ऑक्सीजन का प्रावधान

बिहार में इलाज के लिए  मेडिकल ऑक्सीजन संबंधी आवश्यकता पूरी करने हेतु बिहार सरकार द्वारा ऑक्सीजन उत्पादन प्रोत्साहन नीति 2021 को लागू किया गया

 

स्वास्थ्य कर्मियों की नियुक्ति

कोविड-19 की अवधि में दूसरे चरण में MBBS डॉक्टरएएनएमलैब टेक्नीशियन इत्यादि  स्वास्थ्यकर्मियों के कुल 1179 अस्थाई पद सृजित किए गए।

 

दीदी की रसोई

जीविका दीदियों की सहायता से अस्पताल में भर्ती रोगियों हेतु गुणवत्ता एवं पोषणयुक्त भोजन उपलब्ध कराने के लिए दीदी की रसोई नामक कैंटीन का संचालन किया गया । अभी बिहार के विभिन्न जिलों के 47 अस्पतालों में जीविका की दीदियों द्वारा सेवा दी जा रही है।

 


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कोविड-19 महामारी एवं सतत विकास लक्ष्य

वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों ने सतत विकास के 17 लक्ष्यों को अपनाया था ताकि दुनिया से गरीबी मिटायी जा सके और पर्यावरण की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। उल्लेखनीय है कि कोराना संकट से पहले ही कई देश लक्ष्यों को हासिल करने में पिछड़ रहे थे लेकिन अब कोरोना के बाद स्थिति और बुरी होने वाली है। संयुक्त राष्ट्र के महानिदेशक ने एक हालिया रिपोर्ट में महामारी के मद्देनजर कहा है कि यह हमारे जीवन का सबसे बुरा मानवीय और आर्थिक संकट है।प्रोग्रेस टुवार्ड्स द सस्टेनेबल डेवलपमेंट गोल 2020” रिपोर्ट के अनुसार

  • दुनिया में भूखे लोगों की संख्या लगातार बढ़ रही है।
  • जलवायु परिवर्तन अनुमान से कही ज्यादा तेज हो रहा है
  • लोगों के बीच आर्थिक असमानता भी बढ़ रही है।
  • कोरोना महामारी ने दुनियाभर के देशों पर स्वास्थ्य तंत्र पर बोझ बढ़ा दिया है।

 

UNDP के अनुसार कोविड-19 महामारी के कारण वैश्विक मानव विकास (शिक्षा, स्वास्थ्य और जीवन स्तर) का वर्तमान स्तर गिरकर 1990 के स्तर पर चले जाने की संभावना है।  इस प्रकार इस महामारी ने सतत विकास के लक्ष्यों की प्रगति को और धीमा कर दिया है। SDG लक्ष्यों के प्रति भारत की प्रगति काफी धीमी रही है। कोरोना महामारी और लॉकडाउन के कारण पलायन और बढ़ती बेरोजगारी से SDG लक्ष्य और दूर हो गए हैं। 


प्रमुख सतत विकास लक्ष्य एवं कोरोना का प्रभाव

निर्धनता

SDG 1 गरीबी दूर करने के लिए समर्पित है लेकिन वर्तमान संकट ने इस लक्ष्य को और अधिक चुनौतीपूर्ण बना दिया है। भारत और चीन जैसे देशों मेंपिछले कुछ वर्षों में तीव्रता से आर्थिक विकास करते हुए लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकाला है। लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण पुनः करोड़ों लोग गरीबी की दलदल में फंस सकते हैं।

 

भूखमरी

खाद्य और कृषि संगठन तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से जारी खाद्य सुरक्षा और पोषण अवस्था संबंधी रिपोर्ट के अनुसार भारत सबसे बड़ी खाद्य असुरक्षित आबादी वाला देश है वैश्विक प्रयासों से पिछले दो दशकों में कुपोषित लोगों की संख्या लगभग आधी हो गई है लेकिन वैश्विक महामारी COVID-19 के कारण वर्ष 2030 तक शून्य भुखमरी के लक्ष्य को प्राप्त करना कठिन प्रतीत हो रहा है।

 

स्वास्थ्य

महामारी के कारण हाल के वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धि को आघात लग सकता है और स्वास्थ्य सेवाओं  तथा टीकाकरण अभियानों में बाधा के कारण शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर में में वृद्धि होने के साथ एड्स और मलेरिया नियंत्रण अभियानों की गति धीमी होने से इन बीमारियों की बढ़ने की संभावना है।

 

गुणवत्तापरक शिक्षा

कोविड-19 महामारी के दौरान यूनेस्को के अनुसार करीब 1.25 बिलियन छात्र प्रभावित हुए हैं। वर्तमान महामारी के दौर में शिक्षा डिजीटल माध्यम से दी जा रही है लेकिन इस महामारी ने डिजिटल डिवाइड को पुनः उजागर किया है जिसके कारण सभी तक शिक्षा नहीं पहुंच रही है।  

 

गुणवत्तापरक रोजगार

अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक कार्यबल का आधा भाग (लगभग 1.6 बिलियन) अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करते हैं जिनकी आजीविका पर खतरा मंडरा रहा है। रिपोर्ट के अनुसार, महामारी शुरू होने के बाद से छह में से एक से अधिक युवा अपनी नौकरी गंवा चुके हैं। 




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