भारत की सामरिक स्वायत्ता एवं अमेरिका की राजकीय यात्रा
प्रश्न- "भारतीय प्रधानमंत्री की हालिया अमेरिका की राजकीय यात्रा भारत की सामरिक स्वायत्ता की नीति को प्रभावित कर सकती है।"चर्चा करें ।
अमेरिकी राष्ट्रपति
के निमंत्रण पर जून 2023 में भारतीय प्रधानमंत्री अमेरिका की राजकीय यात्रा पर गए जो
रक्षा, अंतरिक्ष और व्यापार जैसे प्रमुख क्षेत्रों में
सहयोग को बढ़ावा देने संबंधी करार के साथ साथ कई मामलों में ऐतिहासिक है लेकिन यह भी माना जा रहा है कि
यह भारत की की सामरिक स्वायत्ता को भी प्रभावित कर सकता है जिसे निम्न प्रकार
समझा जा सकता है।
- यह यात्रा ऐसे समय पर हुई जब वैश्विक स्तर पर यूक्रेन एवं रूस युद्ध तथा हिन्द प्रशांत में चीन की बढ़ रही हरकतों से उत्पन्न अस्थिरता का माहौल प्रमुखता में है। ऐसे में यह यात्रा वैश्विक जगत में यह संदेश दे सकता है कि भारत अमेरिका के पक्ष में है।
- उल्लेखनीय है कि यूक्रेन एवं रूस युद्ध के मामले में भारत अमेरिका और सहयोगी यूरोपीय देशों के दबाव के बावजूद रूस से भारी मात्रा में कच्चा तेल खरीदा। इसी क्रम में आज भी रूस भारत का सबसे बड़ा रक्षा साझेदार है।
- अमेरिका का विश्वास है कि यदि रक्षा एवं ऊर्जा के मामले में भारत की रूस पर निर्भरता कम हो जाए तो भारत का झुकाव अमेरिका की ओर होगा और इसी को देखते हुए इस यात्रा के दौरान हुए समझौते को देखा जा सकता है। इस यात्रा के दौरान हुए प्रमुख समझौते का एक निहितार्थ यह भी निकलता है।
- इस यात्रा के दौरान भारतीय प्रधानमंत्री को अमेरिकी कांग्रेस में भाषण देने के लिए आमंत्रित किया गया। उल्लेखनीय है कि ऐसा अवसर अमेरिका के सामरिक साझेदारों में शामिल फ्रांस एवं दक्षिण कोरिया को मिल चुका है। अत: यह माना जा सकता है कि अमेरिका भारत के साथ अमेरिका सामरिक संबंधों को बढ़ाना चाहता है।
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उपरोक्त तथ्यों को
देखते हुए कई लोगों द्वारा यहा माना गया कि एशिया प्रशांत में बदलते राजनीतिक
परिदृश्य तथा रूस एवं चीन की चिंता को ध्यान में रखते हुए अमेरिका भारत को अपने
पक्ष में करना चाहता है जिससे भारत की सामरिक स्वायत्ता की नीति प्रभावित हो
सकती है। कुछ हद तक यह सत्य प्रतीत होता है ।
अंतर्राष्ट्रीय
राजनीति में कोई स्थायी मित्र और शत्रु नहीं होता है और एक स्वतंत्र विदेश नीति
में शक्ति संतुलन अनिवार्य होता है । 2008 का सिविल परमाणु समझौता, नियमित सैन्य अभ्यास, क्वाड में भागीदारी तथा रक्षा क्षेत्र में अमेरिका के साथ भारत के चार
महत्वपूर्ण समझौते सामरिक सहयोग का पहला चरण माना जा सकता है।
वर्तमान में चीन की
साम्राज्यवादी नीति और भारतीय सीमा पर चीन द्वारा जारी तनाव, पाकिस्तान के साथ संबंध तथा रूस के साथ
चीन के बढ़ते रिश्ते के बीच भारत के लिए यह आवश्यक है कि विभिन्न देशों के साथ
संतुलन बनाने हुए अपनी विदेश नीति का संचालन करें और इस राजकीय यात्रा को इसी
परिप्रेक्ष्य में देखा जाए तो यह उचित है और यह भारत की सामरिक स्वायत्ता को
प्रभावित करने के बजाए उन स्थितियों में रक्षा, ऊर्जा एवं
तकनीकी सहयोग का विकल्प उपलब्ध कराएगा जब रूस किसी विशेष परिस्थिति या चीन के
दबाव में भारत के सहयोग करने की स्थिति में नहीं होगा।
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