प्रश्न- क्या आप यह मानते हैं कि गांधीजी के असहयोग आंदोलन में स्थानीय आंदोलनों की अपेक्षाओं और दृष्टियों को परिभाषित नहीं किए जाने से विभिन्न वर्गों एवं समुदायों ने स्वराज शब्द का अपने-अपने हिसाब से अर्थ निकाला और ऐसे युग का प्रतीक समझा जब उनके सारे कष्ट और सारी मुसीबतें समाप्त हो जाएगी। चर्चा करें
उत्तर- सामान्य रूप
में स्वराज का तात्पर्य ऐसे शासन व्यवस्था को कहा जाता है जिसमें शासन की बागडोर
स्वयं के हाथ में होती है। गांधी जी का मानना था कि भारतीयों के सहयोग से स्थापित
एवं संचालित ब्रिटिश शासन में यदि भारत के लोग अपना सहयोग वापस ले लें तो ब्रिटिश
शासन की समाप्ति और स्वराज की स्थापना हो जाएगी। इसी को ध्यान में रखते हुए गांधी
जी ने सत्ता से असहयोग करते हुए बहिष्कार को केन्द्र में रखते हुए असहयोग आंदोलन
का विचार रखा।
फलत: व्यापक मतभेदों
के बावजूद असहयोग आंदोलन कांग्रेस द्वारा असहयोग आंदोलन चलाने पर सहमति बनी लेकिन इसकी
भूमिका को तैयार करते समय तत्कालीन भारत में चल रहे स्थानीय आंदोलनों की अपेक्षाओं
एवं दृष्टियों को परिभाषित नहीं किया गया जबकि औपनिवेशिक
सत्ता तथा उसकी नीतियों से भारतीय जनता वर्षो से त्रस्त थी तथा स्थानीय स्तर पर
कई आंदोलन इस शासन से मुक्ति के लिए चल रहे थे। इसी क्रम में रॉलेट एक्ट
तथा जलियावाला बाग की घटना से जनता और आक्रोशित
हो गई।
गांधी जी द्वारा चंपारण की सफलता के बाद लोगों को इनके
प्रति अथाह विश्वास एवं अंग्रेजी सत्ता से लड़ने के लिए प्रेरणा मिली फलत: उनको यह
लगा कि इन सभी समस्याओं से मुक्ति तथा अपेक्षाओं को प्राप्त करने में गांधी जी का
असहयोग आंदोलन एवं स्वराज्य एक बेहतर मार्ग है। अत: जनवरी 1921 में आरंभ असहयोग आंदोलन
में सभी समुदायों एवं वर्गों ने हिस्सा लिया
लेकिन सभी की अपनी-अपनी आकांक्षाएँ थीं जिसे निम्न प्रकार समझा जा सकता है।
- अवध किसानों के आंदोलन में लगान, बेगारी, दमनकारी जमींदारों का बहिष्कार था लेकिन आंदोलन आरंभ होने पर गांधी जी का नाम लेकर तालुकदारों, व्यापारियों पर हमले, लूटपाट जैसी कार्रवाइयों को सही ठहराया जाने लगा जो आंदोलन में शामिल नहीं था।
- वन कानूनों एवं नीतियों के खिलाफ आंध्र प्रदेश की गूडेम पहाड़ियों में आदिवासियों द्वारा आंदोलन असहयोग आंदोलन से प्रेरित हुआ लेकिन हिंसात्मक कार्यों और गुरिल्ला युद्ध के कारण यह असहयोग कार्यक्रम के अनुसार नहीं था। इसी क्रम में इसके लिए स्वराज का अर्थ अपनी जीविका एवं परंपरागत अधिकार प्राप्त करना था ।
- आसाम के बागान मजदूर
के लिए स्वराज का मतलब जहां 1859
के इनलैंड इमिग्रेशन एक्ट से आजादी थी जिसके द्वारा वे बागान से बाहर जब चाहे अपने
गांव या कहीं भी आ-जा सकते हैं
उपरोक्त से स्पष्ट होता है कि स्थानीय आंदोलन में शामिल लोगों
ने कांग्रेस द्वारा चलाएं असहयोग आंदोलन को अपना समर्थन दिया और भावनात्मक स्तर पर
जुड़ कर स्थानीय उपायों एवं लक्ष्यों के साथ आंदोलन में भागीदार
बने ताकि एक
ऐसे युग का आंरभ हो जहां उनके लिए सारे कष्ट और सारी मुसीबतें खत्म हो जाएँगी।
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