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Dec 30, 2023

प्रश्‍न- सविनय अवज्ञा आंदोलन में दलित एवं मुस्लिम वर्ग की सीमित भागीदारी के कारणों की चर्चा करें।

प्रश्‍न- सविनय अवज्ञा आंदोलन में दलित एवं मुस्लिम वर्ग की सीमित भागीदारी के कारणों की चर्चा करें।

उत्‍तर - वर्ष 1930 में वायसराय लार्ड इरविन द्वारा गांधी जी द्वारा मांगी गयी 11सूत्री मांगों को न मानने पर 6 अप्रैल 1930 को दांडी में समुद्र के पानी द्वारा नमक बनाकर सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत की गयी।

 

इस आंदोलन द्वारा सभी भारतीयों को औपनिवेशिक क़ानूनों की अवज्ञा करने के लिए आह्वान किया गया था लेकिन तत्‍कालीन भारतीय समाज के सभी वर्ग इस आंदोलन से प्रभावित नहीं थे और दलित एवं मुस्लिम वर्ग की भूमिका इस आंदोलन में सीमित रही जिसके कारणों को निम्‍न प्रकार समझा जा सकता है।

 

दलित वर्ग

दलित तत्‍कालीन भारतीय समाज के उत्‍पीडित वर्ग थे जिनकी सामाजिक समस्‍याओं के प्रति कांग्रेस वर्षों तक उदासीन रही क्‍योंकि उसे डर था कि यदि इनके मुद्दों को उठाया गया तो रूढ़िवादी सवर्ण हिंदू के विरोध का सामना उसे करना पड़ेगा और वे कांग्रेस से दूर जा सकते हैं।

 

हांलाकि महात्मा गांधी दलितों की स्थिति को समझा और 'अछूतों' को हरिजन यानी ईश्वर की संतान बताया और दलितों के अधिकार के लिए सत्याग्रह तथा ऊँची जातियों को अस्पृश्यता के उन्‍मूलन के लिए आह्वान भी किया लेकिन इन सब के बावजूद कई दलित नेता अपने समुदाय को संगठित कर अपनी समस्याओं का अलग राजनीतिक हल ढूँढ़ना चाहते थे ।

 

हांलाकि 1932 में पूना पैक्ट द्वारा दमित वर्गों को प्रांतीय एवं केंद्रीय विधायी परिषदों में आरक्षित सीटें मिल गई फिर भी, दलित आंदोलन कांग्रेस के नेतृत्व में चल रहे राष्ट्रीय आंदोलन को शंका की दृष्टि से ही देखता रहा। महाराष्ट्र और नागपुर क्षेत्र जहां इनके संगठन काफी मजबूत थे वहां इस आंदोलन इनकी भागीदारी सीमित रही ।

 

डॉ. अंबेडकर ने 1930 में दलितों को दमित वर्ग एसोसिएशन (Depressed Classes Association) की स्‍थापना, दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों पर महात्मा गांधी के साथ उनका विवाद इसी संदर्भ में देखा जा सकता है।  इस प्रकार उपरोक्‍त कारणों से इस आंदोलन में दलितों की हिस्सेदारी काफ़ी समित थी।


मुस्लिम वर्ग

भारत के कुछ मुस्लिम राजनीतिक संगठनों ने भी सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रति कोई खास उत्साह नहीं दिखाया जिसके कारणों को निम्‍न प्रकार समझा जा सकता है।

 

  • असहयोग-ख़िलाफ़त आंदोलन के बाद मुसलमानों का एक बड़ा तबक़ा कांग्रेस से कटा हुआ था और किसी संयुक्त संघर्ष के लिए तैयार नहीं था। ।
  • कांग्रेस का हिंदू महासभा जैसे हिंदू धार्मिक राष्ट्रवादी संगठनों के करीब जाना।
  • हिंदू-मुसलमानों के उग्र धार्मिक जुलूस, सांप्रदायिक टकराव व दंगे की घटनाएं।
  • भावी विधान सभाओं में प्रतिनिधित्व के सवाल पर मतभेद।
  • मुस्लिम नेताओं द्वारा भारत में अल्पसंख्यकों के रूप में मुसलमानों की स्थिति को लेकर चिंता एवं हिंदू बहुसंख्या के वर्चस्व की स्थिति में अल्पसंख्यकों की संस्कृति और पहचान खो जाने का डर।

 

इस प्रकार जब सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू हुआ उस समय दलितों एवं मुस्लिमों के बीच कांग्रेस के प्रति संदेह और अविश्वास का माहौल बना हुआ था जिसके कारण इनका एक बड़ा तबका इस आंदोलन से दूर रहा ।


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