भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था- नागरिकता संबंधी प्रश्न-उत्तर
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BPSC Mains answer writing
प्रश्न : नागरिकता अधिनियम, 1955 में नागरिकता प्राप्ति की शर्तों को बताएं तथा यह स्पष्ट करें कि इसमें समय समय पर हुए संशोधनों ने इन प्रावधानों को कैसे प्रभावित किया है।
उत्तर: नागरिकता अधिनियम, 1955, भारतीय संविधान लागू होने के बाद
नागरिकता अर्जन और समाप्ति की प्रक्रियाओं को विनियमित करता है। नागरिकता अर्जन के
प्रमुख आधार निम्नलिखित हैं:
1. जन्म से
2. वंशानुगत
3. पंजीकरण द्वारा
4. प्राकृतिक रूप से
5. क्षेत्र समाविष्टि द्वारा
नागरिकता अधिनियम, 1955 में सरकार द्वारा समय समय पर संशोधन किए गए जिसके
संशोधन प्रभाव निम्नलिखित हुआ
2) 1992 के संशोधन ने वंश के आधार पर नागरिकता में माता को भी समाविष्ट किया।
3) 2003 के संशोधन ने नागरिकता के लिए अवैध प्रवासियों को अपात्र करार दिया और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) की अवधारणा प्रस्तुत की।
4) 2005 के संशोधन ने प्रवासियों के लिए पंजीकरण प्रक्रियाओं को कठोर बनाया।
5) 2015 के संशोधन ने मूल अधिनियम में प्रवासी भारतीय नागरिक (OCI) से संबंधित प्रावधानों को संशोधित किया।
6) 2019 का संशोधन: पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान के छह समुदायों को नागरिकता देने का प्रावधान किया गया। इस प्रकार भारतीय नागरिकता पाने की शर्तों का विस्तार हुआ ।
प्रश्न: भारतीय संविधान में नागरिकता के प्रावधानों और
नागरिकता अधिनियम, 1955 में किए गए संशोधनों का भारतीय
राज्य और समाज पर क्या प्रभाव पड़ा है? विस्तृत विश्लेषण
करें।
उत्तर: भारतीय संविधान के भाग-II में नागरिकता से संबंधित अनुच्छेद 5 से 11 तक नागरिकता के मूलभूत प्रावधान तय करते हैं।
ये प्रावधान संविधान लागू होने के समय भारत के नागरिकों की पहचान, उनकी नागरिकता के अधिकार, और संसद के अधिकार क्षेत्र
को स्पष्ट करते हैं।
1. अनुच्छेद 5 से 8 उन नागरिकों की पहचान, जो भारत में जन्मे, पाकिस्तान से आए, या विदेशों में भारतीय मूल के हैं।
2. अनुच्छेद 9- अन्य देशों की
नागरिकता ग्रहण करने पर भारतीय नागरिकता समाप्त।
3. अनुच्छेद 10 नागरिकता के
संरक्षण
4. अनुच्छेद 11 संसद को
नागरिकता पर कानून बनाने का अधिकार ।
नागरिकता
अधिनियम, 1955
संविधान में स्थायी
नागरिकता के लिए संसद ने नागरिकता अधिनियम, 1955 बनाया। इसमें समय-समय पर संशोधन किए गए। इन संशोधनों
ने नागरिकता अर्जन, प्राकृतिककरण, और
पंजीकरण की प्रक्रियाओं को परिभाषित किया।
²
1986 का संशोधन: नागरिकता
अर्जन में जन्मस्थान के आधार पर शर्तें जोड़ी गईं।
²
2003 का संशोधन: नागरिकों
का राष्ट्रीय रजिस्टर (NRC) लागू किया गया।
²
2005 का संशोधन: ओवरसीज
सिटीजनशिप ऑफ इंडिया (OCI) की व्यवस्था हुई।
²
2019 का संशोधन:
पाकिस्तान, बांग्लादेश और
अफगानिस्तान के छह समुदायों के लिए भारतीय
नागरिकता पाने की शर्तों का विस्तार हुआ ।
समाज और राज्य पर प्रभाव:
1. राष्ट्रीय एकता: संशोधनों के माध्यम से नागरिकता का प्रावधान और स्पष्ट
किया गया जिससे भारत की एकता और अखंडता और मजबूत हुई।
2. प्रवासियों का समावेश: पाकिस्तान से आए
प्रवासियों और विदेशों में भारतीय मूल के लोगों को नागरिकता देकर भारतीय समाज और समृद्ध
एवं समावेशी बनी।
3. सुरक्षा: संशोधनों से नागरिकता प्रावधान कठोर और राष्ट्रीय हित के अनुरूप बने
जिससे विदेशी हस्तक्षेप पर नियंत्रण और राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित हुई।
4. सामाजिक विवाद: नागरिकता कानून में संशोधन जैसे CAA ने पड़ोसी
देशों के अल्पसंख्कों को भारत में सुरक्षा एवं मान्यता दी गयी हांलाकि इससे सामाजिक
और राजनीतिक विवाद भी उत्पन्न किए, जिससे सामाजिक विभाजन का
खतरा बढ़ा है।
भारतीय नागरिकता प्रावधान और नागरिकता अधिनियम, 1955 ने भारतीय राज्य और समाज को मजबूत बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। हालांकि, इन प्रावधानों के प्रभावी क्रियान्वयन और नागरिकों के अधिकारों और कर्तव्यों में संतुलन बनाए रखना आवश्यक है।
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प्रश्न:
"भारतीय संविधान की
एकल नागरिकता नीति राष्ट्रीय एकता को मजबूत करती है, लेकिन
इससे जुड़े अपवाद और चुनौतियां इसकी प्रभावशीलता को कैसे प्रभावित करती हैं?"
उत्तर: भारतीय संविधान संघीय होते हुए भी एकल नागरिकता का
प्रावधान करता है, जिसका
मुख्य उद्देश्य नागरिकों के बीच समानता, एकता, और भाईचारे को प्रोत्साहित करना है। यह नीति सभी नागरिकों को समान अधिकार
देती है और उन्हें केवल "भारतीय नागरिक" के रूप में पहचानती है।
राष्ट्रीय
एकता में योगदान:
एकल नागरिकता से भारत के सभी नागरिक, चाहे उनका जन्म और
निवास किसी भी राज्य में हो, समान अधिकार रखते हैं। यह
व्यवस्था मताधिकार, रोजगार, और अन्य
नागरिक अधिकारों में भेदभाव को समाप्त करती है। अमेरिका और स्विट्जरलैंड जैसे
देशों में दोहरी नागरिकता से उत्पन्न क्षेत्रीय भेदभाव की संभावना को भारत में इस
नीति ने समाप्त किया और राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा दिया ।
अपवाद
: हालांकि, एकल नागरिकता नीति
में कुछ अपवाद शामिल हैं जो विशिष्ट परिस्थितियों में लागू किए गए हैं
1.
सार्वजनिक
रोजगार में निवास की प्राथमिकता (अनुच्छेद 16): आंध्र प्रदेश और अन्य राज्यों में सार्वजनिक रोजगार में
निवासियों को प्राथमिकता देने की अनुमति थी, लेकिन यह प्रावधान 1974 के बाद समाप्त हो गया।
2.
जनजातीय
क्षेत्रों का संरक्षण (अनुच्छेद 19): अनुसूचित जनजातियों की संस्कृति, परंपरा, और संपत्ति रक्षा के लिए इन क्षेत्रों में बाहरी लोगों का निवास
प्रतिबंधित है।
3.
शैक्षणिक
छूट: राज्य अपने निवासियों के लिए शैक्षणिक शुल्क में छूट
जैसे विशेष प्रावधान कर सकते हैं।
4.
जम्मू
और कश्मीर का विशेष दर्जा (पूर्व अनुच्छेद 370): जम्मू-कश्मीर में स्थायी निवासियों के लिए संपत्ति, रोजगार, और शिक्षा में विशेष अधिकार प्रदान किए गए थे, जो 2019
में अनुच्छेद 370 के हटने के बाद समाप्त हो
गए।
चुनौतियां: इन अपवादों के बावजूद, सांप्रदायिक दंगे,
जातीय संघर्ष, और भाषायी विवाद जैसे मुद्दे
राष्ट्रीय एकता की चुनौतियां हैं। संविधान निर्माताओं ने एकीकृत राष्ट्र की
परिकल्पना की थी, लेकिन सामाजिक और राजनीतिक बाधाओं ने इसे
पूरी तरह सफल नहीं होने दिया।
एकल नागरिकता नीति राष्ट्रीय एकता
को सुदृढ़ करती है। हालांकि, इसके अपवाद और सामाजिक चुनौतियां इसकी प्रभावशीलता को
सीमित करती हैं। नीति का उद्देश्य सभी नागरिकों को समान अधिकार देना है, लेकिन सामाजिक और सांस्कृतिक विविधताओं के कारण इसे पूर्ण रूप से लागू
करना एक जटिल कार्य है।
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