भारतीय
संस्कृति और मानवीय दर्शन
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BPSC Mains answer writing
"संस्कृतिमते
अनया" का अर्थ है वह जीवनशैली जो मनुष्य को सुसंस्कृत बनाए, उसके
अंतःकरण को शुद्ध, गुणवान और प्रकाशमय करे। संस्कृति किसी
समाज के मूल्यों, परंपराओं, और आदर्शों
की अभिव्यक्ति है, जो समाज के सदस्यों को एकता और सौहार्द की
भावना से जोड़ती है।
संस्कृति का
उद्देश्य भौतिक समृद्धि और चेतना का विकास है। वाल्टेयर के अनुसार, "संस्कृति मानव जीवन को सुखमय बनाने की कला है।" डॉ. हजारी प्रसाद
द्विवेदी ने इसे "मनुष्य की श्रेष्ठ साधनाओं" का रूप कहा है, जिसका सार प्रेम और मानवता है। भारतीय संस्कृति इन्हीं आदर्शों पर आधारित
है।
भारतीय संस्कृति
कोई एक विशिष्ट इकाई न होकर अनेक संस्कृतियों का पुंजीभूत रूप है। जिस प्रकार केले
का तना एक नहीं होता,
उसका निर्माण अनेक पतों द्वारा होता है-पर्त पर पर्त चढ़े होते हैं,
ठीक उसी प्रकार भारतीय संस्कृति भी कई संस्कृतियों के सम्मिश्रण से
बनी है। इस संस्कृति में वैदिक आर्य संस्कृति, पौराणिक
संस्कृति, (आर्योत्तर) संस्कृति आदि अनेक का सम्मेलन है जो मानवीय दर्शन के विविध पक्षों को समाहित किए हुए हैं।
भारतीय संस्कृति
मानवता,
सहिष्णुता और नैतिकता का प्रतीक है। इसे "कीचड़ में कमल की तरह
जीने की कला" माना गया है। संसार को कीचड़ मानकर, उसमें
कीड़ा बनकर जीना दुर्भाग्यपूर्ण है, जबकि कमल बनकर जीना
सौभाग्य का प्रतीक है। भारतीय संस्कृति, अपने आदर्शों और
नैतिक मूल्यों के कारण, सदा से मानवता के कल्याण और विश्व
शांति का प्रतीक रही है।
भारतीय संस्कृति का ऐतिहासिक विकास
भारतीय संस्कृति
की जड़ें सिंधु घाटी सभ्यता में पाई जाती हैं, जो मानवता, समानता, और प्रकृति के प्रति सम्मान पर आधारित थी।
इस सभ्यता में लोग प्रकृति की पूजा करते थे और पशुओं को मूल्यवान मानते थे। वैदिक
काल ने भारतीय संस्कृति को और समृद्ध बनाया, जहाँ
"सत्यमेव जयते" और "सर्वे भवन्तु सुखिनः" जैसे आदर्शों ने
सत्य, अहिंसा, और सबके कल्याण को महत्व
दिया।
उपनिषद और वेदांत
जैसे ग्रंथों ने आत्मा,
ब्रह्म, और मानवता के गूढ़ दार्शनिक सिद्धांतों
को प्रस्तुत किया। इन ग्रंथों में वर्णित "सर्वे भद्राणि पश्यन्तु" का
संदेश समरसता और शांति का प्रतीक है। बौद्ध और जैन धर्म ने अहिंसा, सहिष्णुता, और शांति के विचारों को और आगे बढ़ाया।
महावीर स्वामी ने "जीओ और जीने दो" का सिद्धांत देकर स्त्रियों की
शिक्षा को प्रोत्साहित किया। सम्राट अशोक के शांति और दया के सिद्धांत भारतीय
संस्कृति में मानवीय दर्शन की गहराई को दर्शाते हैं।
भारतीय संस्कृति
में वेदांत और चार्वाक जैसे विपरीत विचारधाराएँ समाहित हैं। यह संस्कृति ऐसे संतों
और सुधारकों को जन्म देती रही है, जिन्होंने समाज को दिशा दी। चैतन्य
महाप्रभु ने जात-पांत के बंधन तोड़कर मानवता को एक सूत्र में पिरोया। गीता के
समानता के सिद्धांत को अपनाते हुए महाराजा अग्रसेन ने संगठित समाज की स्थापना की।
भारतीय संस्कृति और इसकी विविधता
भारतीय संस्कृति एक अद्वितीय मिश्रण है, जो विभिन्न भाषाओं, धर्मों और परंपराओं का समागम है। इसमें मानवीय दर्शन के अनेक पक्ष देखने को मिलते हैं जो भारतीय जीवनशैली के हर पहलू में प्रकट होती है, जैसे वेशभूषा, भोजन, नृत्य, संगीत और त्यौहार। भारत में हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध और जैन धर्मों का सहअस्तित्व है, और इन धर्मों ने एक-दूसरे को प्रभावित कर इस सांस्कृतिक विविधता को समृद्ध किया है।
भारतीय संस्कृति की एक
विशेषता है जो उसके मानवीय दर्शन को उत्कृष्टता प्रदान करती है। भारतीय पारिवारिक ढांचा, जिसमें संयुक्त परिवार की
परंपरा आज भी मजबूत है, जो परिवार को भावनात्मक और सामाजिक
सुरक्षा प्रदान करती है। इसके अलावा, भारतीय परंपराएँ
पर्यावरण के प्रति गहरी श्रद्धा का संदेश देती हैं, जहाँ
नदियाँ, वृक्ष और जीव-जंतु पवित्र माने जाते हैं। यह
परंपराएँ जलवायु परिवर्तन जैसी समस्याओं के समाधान में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती
हैं, और भारतीय संस्कृति में प्रकृति के साथ सामंजस्यपूर्ण
संबंध का आदर्श प्रस्तुत करती हैं।
भारतीय संस्कृति का वैश्विक प्रभाव
भारतीय संस्कृति
के सिद्धांत,
जैसे "वसुधैव कुटुंबकम" (पूरा विश्व एक परिवार है),
आज भी वैश्विक स्तर पर प्रासंगिक हैं जिसमें मानव एवं संपूर्ण जीव जगत के कल्याण को प्राथमिकता दिया जाता है। 2023 के G20 सम्मेलन में "एक पृथ्वी, एक परिवार, एक भविष्य" की अवधारणा ने इस विचार को और मजबूत किया। भारतीय योग और
आयुर्वेद विश्व भर में स्वास्थ्य और कल्याण के प्रतीक बन गए हैं। महात्मा गांधी के
सत्य और अहिंसा के सिद्धांतों ने न केवल भारत को स्वतंत्रता दिलाई, बल्कि दुनिया भर के नेताओं को प्रेरित किया।
आधुनिक युग में चुनौतियाँ
भारतीय संस्कृति, जो
सहिष्णुता और नैतिकता का प्रतीक रही है, आज कई गंभीर
चुनौतियों का सामना कर रही है। आधुनिक जीवनशैली, भौतिकवाद,
और प्रतिस्पर्धा ने भारतीय समाज के पारंपरिक मूल्यों को प्रभावित
किया है। परिवारिक विघटन एक बड़ी समस्या बन चुकी है, जहाँ
व्यक्तिवाद और आधुनिक जीवनशैली ने संयुक्त परिवारों की परंपरा को कमजोर कर दिया
है। इसके साथ ही, पर्यावरण क्षरण भी एक अहम चुनौती है,
क्योंकि औद्योगिकीकरण और शहरीकरण के चलते प्रकृति के प्रति सम्मान
की भावना में कमी आई है। इसके परिणामस्वरूप प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन हो
रहा है। इसके अतिरिक्त, मानवीय एवं नैतिक मूल्यों का ह्रास भी समाज में
गहरी चिंता का विषय है, जहाँ लालच, भ्रष्टाचार
और हिंसा जैसे तत्व समाज में असहिष्णुता को बढ़ावा दे रहे हैं। इन सभी समस्याओं के
समाधान के लिए समाज में जागरूकता और सांस्कृतिक पुनरुद्धार की आवश्यकता है जिसके लिए भारतीय संस्कृति एक बेहतर समाधान प्रस्तुत करती है।
समाधान और भविष्य
भारतीय संस्कृति
के मूल आदर्शों को पुनर्जीवित करना आज की सबसे बड़ी आवश्यकता है, क्योंकि
यह समाज में नैतिकता और सहिष्णुता को बढ़ावा देने का मार्ग प्रशस्त करेगा। इसके
लिए सबसे पहला कदम शिक्षा में नैतिक मूल्यों का समावेश है। स्कूल और कॉलेजों में
भारतीय संस्कृति और दर्शन के बारे में शिक्षण अनिवार्य किया जाना चाहिए, जिससे युवा पीढ़ी में सही आदर्शों की समझ विकसित हो और वे समाज में
सकारात्मक बदलाव लाने में सक्षम हो सकें। इसके साथ ही, पर्यावरण
संरक्षण पर भी विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए। भारतीय परंपराओं के अनुरूप वृक्षारोपण
और जल संरक्षण जैसे अभियानों को बढ़ावा देना चाहिए, ताकि
प्रकृति के प्रति सम्मान की भावना पुनः जागृत हो सके। अंततः, संस्कृति और आधुनिकता के बीच सामंजस्य बनाए रखना आवश्यक है। हमें अपनी
सांस्कृतिक धरोहर को संरक्षित करते हुए आधुनिक जीवनशैली को भी अपनाना चाहिए,
ताकि दोनों का संतुलन बना रहे और समाज का समग्र विकास संभव हो सके।
निष्कर्ष
भारतीय संस्कृति
न केवल प्राचीन,
बल्कि सार्वभौमिक और सतत भी है। इसके आदर्श और दर्शन, जैसे "वसुधैव कुटुंबकम" और "अतिथि देवो भवः", हमें मानवता और नैतिकता के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देते हैं। यह
संस्कृति सिखाती है कि सभी मनुष्य एक परिवार के सदस्य हैं, और
हमें सभी के साथ सद्भावना और सम्मान के साथ व्यवहार करना चाहिए। इन आदर्शों को
अपनाकर हम एक शांतिपूर्ण और समृद्ध विश्व की रचना कर सकते हैं, जो भारत को विश्वगुरु के रूप में स्थापित करता है।
श्रीकृष्ण के
निःस्वार्थ प्रेम के सिद्धांत में 'समभाव' निहित है, जो भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है।
भारतीय जीवन एक संयुक्त परिवार की तरह है, जहाँ प्रत्येक
सदस्य का कर्तव्य है कि वह अपनी विशिष्टता को खोए बिना समाज की सामूहिक समृद्धि
में योगदान दे। यह विचार हमें संतुलित और सशक्त जीवन जीने की प्रेरणा देता है,
जिसमें व्यक्तिगत और सामाजिक कर्तव्यों का सामंजस्य होता है।
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