भारतीय संविधान-संघ एवं इसका क्षेत्र
यहां पर विषयवार प्रश्न तथा उसका संभावित मॉडल उत्तर दिया जा रहा है जिसमें आप आवश्यकतानुसार सुधार कर मौलिकता के साथ एक बेहतर उत्तर लिख सकते है।
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BPSC Mains answer writing
प्रश्न- संसद
को भारत के राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन करने और क्षेत्रीय विवाद सुलझाने के
लिए संविधान में कौन-कौन सी शक्तियाँ प्राप्त हैं? स्पष्ट
कीजिए।
उत्तर: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 3 संसद
को राज्यों की सीमाओं, नामों और क्षेत्रों में परिवर्तन करने की
शक्ति प्रदान करता है। संसद किसी राज्य का क्षेत्र बढ़ा या घटा सकती है, उसकी
सीमाओं और नामों में बदलाव कर सकती है तथा नए राज्य बना सकती है।
इस प्रक्रिया के लिए राष्ट्रपति की पूर्व
मंजूरी आवश्यक है। राज्यों की विधानमंडल से इस संदर्भ में सुझाव मांगा जाता है, परंतु इसे
मानना अनिवार्य नहीं है।
क्षेत्रीय विवाद के संबंध में अनुच्छेद 368 के अनुसार, भारतीय क्षेत्र का अन्य देशों को हस्तांतरण केवल संविधान संशोधन के माध्यम से संभव है, जैसा कि 1960 में 9वें संशोधन द्वारा पश्चिम बंगाल के बेरूबाड़ी क्षेत्र को पाकिस्तान को हस्तांतरित किया गया।
प्रश्न : भारतीय संविधान के भाग 1 में
भारत को 'राज्यों
का संघ' क्यों कहा गया है? भारतीय क्षेत्र के वर्गीकरण
और अनुच्छेद 2 एवं 3 के अंतर्गत राज्यों के गठन व पुनर्सीमन की प्रक्रिया का वर्णन
करें।
उत्तर:भारतीय संविधान के
भाग 1 में अनुच्छेद 1 से 4 तक भारत को 'राज्यों का संघ' कहा गया
है। यह अवधारणा भारत को संघीय ढांचे के तहत एक अविभाज्य इकाई के रूप में परिभाषित
करती है। भारत को 'राज्यों का संघ' कहने के
पीछे डॉ. बी.आर. अंबेडकर ने दो प्रमुख कारण दिए:
- भारतीय संघ राज्यों के आपसी समझौते का परिणाम नहीं है, जैसे अमेरिकी संघ।
- राज्यों को संघ से अलग होने का कोई अधिकार नहीं है।
भारत का क्षेत्र और वर्गीकरण:
अनुच्छेद 1 के अनुसार, भारतीय
क्षेत्र को तीन भागों में वर्गीकृत किया गया है जो निम्नलिखित है
- राज्यों के क्षेत्र: भारतीय संविधान के तहत राज्यों को प्रशासनिक सुविधा के लिए विभाजित किया गया है।
- संघ शासित क्षेत्र: ये क्षेत्र सीधे केंद्र सरकार के प्रशासन के अधीन आते हैं।
- अधिग्रहीत क्षेत्र: वे क्षेत्र जिन्हें केंद्र सरकार भविष्य में अधिग्रहित कर सकती है।
संविधान की पहली अनुसूची में राज्यों और संघ
शासित क्षेत्रों के नाम और विस्तार का विवरण दिया गया है। इसके अतिरिक्त, भाग XXI और
पाँचवीं-छठी अनुसूचियों में कुछ राज्यों और जनजातीय क्षेत्रों के लिए विशेष उपबंध
किए गए हैं।
अनुच्छेद 2: संघ में नए राज्यों का प्रवेश और गठन
अनुच्छेद 2 संसद को अधिकार देता है कि वह
विधि द्वारा ऐसे निबंधनों और शर्तों के तहत संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी
स्थापना कर सके। यह दो प्रकार की शक्तियां प्रदान करता है:
- प्रवेश: पहले से अस्तित्व में मौजूद राज्यों को संघ में शामिल करना।
- गठन: नए राज्यों का गठन करना, जो पहले अस्तित्व में नहीं थे।
अनुच्छेद 3: राज्यों के पुनर्सीमन का प्रावधान
अनुच्छेद 3 भारतीय संघ के भीतर राज्यों की
सीमाओं में परिवर्तन, विभाजन, विलय, या नामकरण
से संबंधित है। यह संसद को अधिकार देता है कि वह राज्यों के क्षेत्र, सीमाओं और
नामों में बदलाव कर सके। इसके लिए संबंधित राज्य की विधान सभा से राय लेना आवश्यक
है,
लेकिन
अंतिम निर्णय संसद का होता है।
निष्कर्षत: संविधान के भाग 1 के प्रावधान
भारत को 'राज्यों का
संघ'
बनाते
हैं,
जो
अविभाज्य है। अनुच्छेद 2 और 3 संघीय ढांचे के भीतर नए राज्यों के निर्माण और
पुनर्सीमन की प्रक्रिया को सरल बनाते हैं, जिससे देश
की अखंडता और प्रशासनिक दक्षता सुनिश्चित होती है।
प्रश्न: स्वतंत्रता के बाद
के वर्षों में भारत को भाषायी, सांस्कृतिक
और प्रशासनिक रूप से संगठित और एकीकृत बनाने के क्रम में भारतीय राज्यों और
केंद्रशासित प्रदेशों का पुनर्गठन किन प्रमुख चरणों में हुआ? चर्चा करें
उत्तर: आजादी के समय भारत
में राजनीतिक इकाईयों की दो श्रेणियां थीं-ब्रिटिश प्रांत (ब्रिटिश सरकार के शासन
के अधीन) और देशी रियासतें (राजा के शासन के अधीन लेकिन ब्रिटिश राजशाही से
संबद्ध)। इन इकाईयों के द्वारा भारतीय राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों का
पुनर्गठन विभिन्न चरणों में हुआ जिसे निम्न प्रकार समझा जा सकता है ।
देशी रियासतों का एकीकरण
(1947)
स्वतंत्रता के बाद 552 देशी रियासतों में से
549 भारत में शामिल हो गईं। हैदराबाद (पुलिस कार्रवाई), जूनागढ़
(जनमत) और कश्मीर (विलय पत्र) के माध्यम से भारत में शामिल किए गए।
संविधान के तहत वर्गीकरण
(1950)
भारतीय संविधान ने राज्यों को चार भागों में
वर्गीकृत किया—भाग क (ब्रिटिश गवर्नर के अधीन), भाग ख
(शाही शासन),
भाग
ग (मुख्य आयुक्त का प्रशासन), और भाग घ (अंडमान-निकोबार)।
धर आयोग और जेवीपी समिति
(1948-1949)
धर आयोग ने प्रशासनिक सुविधा के आधार पर
पुनर्गठन का सुझाव दिया, जबकि जेवीपी समिति ने भाषायी आधार को
अस्वीकार कर दिया।
पहला भाषायी राज्य (1953)
मद्रास से तेलुगू भाषी क्षेत्रों को अलग कर
आंध्र प्रदेश का गठन हुआ। पोट्टी श्रीरामुलु के आंदोलन ने इसे संभव बनाया।
फजल अली आयोग (1953-1956)
आयोग ने भाषा को प्रमुख आधार मानते हुए
पुनर्गठन की सिफारिश की। उसने 'एक राज्य, एक भाषा' को
अस्वीकार किया और देश की एकता और सुरक्षा को प्राथमिकता दी।
राज्य पुनर्गठन अधिनियम
(1956)
1 नवंबर, 1956 को 14
राज्यों और 6 केंद्रशासित प्रदेशों का गठन हुआ। भाग क, ख, और ग को
समाप्त कर दिया गया और कुछ क्षेत्रों को केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया।
इस प्रकार विभिन्न चरणों में यह प्रक्रिया
भारत को भाषायी,
सांस्कृतिक
और प्रशासनिक रूप से संगठित और एकीकृत बनाने में सहायक सिद्ध हुई।
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