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Mar 28, 2025

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फेक न्यूज़: लोकतंत्र और समाज के लिए एक गंभीर चुनौती

 



सूचना और संचार क्रांति के युग में इंटरनेट और सोशल मीडिया ने सूचनाओं के आदान-प्रदान को सरल और सुलभ बना दिया है। हालांकि, इस तकनीकी प्रगति के साथ ही फेक न्यूज़ यानी झूठी या भ्रामक खबरों की समस्या भी विकराल रूप ले रही है। फेक न्यूज़ केवल गलत जानकारी का प्रसार नहीं है, बल्कि यह सुनियोजित रूप से समाज में भ्रम और अविश्वास फैलाने का एक साधन बन चुकी है। लोकतंत्र, सामाजिक सद्भाव और व्यक्तिगत निर्णय लेने की प्रक्रिया पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में, जहाँ सामाजिक, धार्मिक और राजनीतिक मतभेद पहले से मौजूद हैं, फेक न्यूज़ का प्रभाव और भी गंभीर हो जाता है।

 

फेक न्यूज की कोई सर्वमान्य परिभाषा नहीं है। यह पूरी तरह से फर्जी नहीं होतीं, बल्कि कई बार आंशिक सत्य, चुनिंदा तथ्य और गलत व्याख्याओं को मिलाकर भी प्रस्तुत की जाती हैं। अत: फेक न्यूज़ से तात्पर्य ऐसी जानकारी से है, जो झूठी, भ्रामक या अधूरी हो और जिसे जानबूझकर या अनजाने में प्रसारित किया जाता है। इसके विभिन्न स्वरूप होते हैं, जिनमें पूरी तरह से झूठी खबरें, आंशिक रूप से सत्य तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत करना, व्यंग्यात्मक खबरों को सच मानकर साझा करना, और फोटोशॉप या एडिटिंग के माध्यम से गलत सूचनाएँ प्रसारित करना शामिल है।


फेक न्यूज़ का उद्देश्य लोगों की राय को प्रभावित करना, किसी विशेष एजेंडा को बढ़ावा देना, आर्थिक लाभ कमाना या राजनीतिक लाभ हासिल करना हो सकता है। फेक न्यूज़ के प्रसार में सोशल मीडिया और मैसेजिंग प्लेटफ़ॉर्म जैसे फेसबुक, व्हाट्सएप, ट्विटर और यूट्यूब जैसे प्लेटफ़ॉर्म्स की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। यहां खबरें तेजी से वायरल होती हैं और लोग बिना उनकी सत्यता की जाँच किए उन्हें आगे बढ़ा देते हैं। इसके अतिरिक्त, डिजिटल मीडिया की बढ़ती प्रतिस्पर्धा में अधिक क्लिक और व्यूज प्राप्त करने के लालच में कई पोर्टल्स सनसनीखेज और भ्रामक खबरें प्रकाशित करते हैं। राजनीतिक दल भी अपने विरोधियों को बदनाम करने या अपनी छवि सुधारने के लिए फेक न्यूज़ का सहारा लेते हैं।

 

फेक न्यूज़ का एक अन्य प्रमुख कारण समाज में आलोचनात्मक सोच और डिजिटल साक्षरता की कमी है। लोग अक्सर उन खबरों पर विश्वास कर लेते हैं, जो उनकी पूर्वधारणाओं या मान्यताओं की पुष्टि करती हैं। इसके अलावा, लोग किसी भी जानकारी को सत्यापित करने की आवश्यकता नहीं समझते, जिससे अफवाहें तेजी से फैलती हैं।

 

फेक न्यूज़ समाज में अविश्वास, घृणा और हिंसा को जन्म दे सकती है। सांप्रदायिक या जातिगत भ्रामक खबरें समाज में वैमनस्यता फैलाने का कार्य करती हैं। भारत में मॉब लिंचिंग जैसी घटनाएँ इसका प्रत्यक्ष उदाहरण हैं, जहाँ अफवाहों के आधार पर निर्दोष लोगों की जान ले ली गई। इसके अतिरिक्त, फेक न्यूज़ चुनावी प्रक्रिया को भी प्रभावित करती है। मतदाताओं को गुमराह करने और राजनीतिक दलों की छवि को खराब करने के लिए दुष्प्रचार किया जाता है, जिससे लोकतांत्रिक व्यवस्था की नींव कमजोर होती है।

 

 


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अर्थव्यवस्था पर भी फेक न्यूज़ का प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। हिंडनबर्ग की रिपोर्ट संबंधी आधी अधूरी जानकारी से भारतीय व्‍यवसायी का आर्थिक नुकसान सूचनाएं शेयर बाजार में झूठी खबरें फैलाकर मूल्य वृद्धि या गिरावट उत्पन्न की जा सकती है, जिससे निवेशकों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। स्वास्थ्य के क्षेत्र में भी इसका दुष्प्रभाव देखा गया है, जैसे कि कोविड-19 महामारी के दौरान वैक्सीन और इलाज से जुड़ी झूठी खबरों ने लोगों में भय और भ्रम फैलाया।

 

फेक न्यूज़ पर नियंत्रण पाने के लिए बहुस्तरीय प्रयासों की आवश्यकता है। सबसे पहले, डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना आवश्यक है, ताकि लोग ऑनलाइन उपलब्ध सूचनाओं की सत्यता को परखने में सक्षम हो सकें। स्कूलों और कॉलेजों में मीडिया साक्षरता पाठ्यक्रम शामिल किए जाने चाहिए, ताकि युवाओं में आलोचनात्मक सोच विकसित हो सके।

 

तकनीकी स्तर पर, सोशल मीडिया कंपनियों को अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए और फेक न्यूज़ की पहचान करने और उसे हटाने के लिए उन्नत एल्गोरिदम और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का उपयोग करना चाहिए। व्हाट्सएप जैसे प्लेटफ़ॉर्म ने मैसेज फॉरवर्डिंग की सीमा तय करके इस दिशा में सकारात्मक कदम उठाए हैं। इसके अलावा, फैक्ट-चेकिंग प्लेटफ़ॉर्म जैसे Alt News और Boom Live झूठी खबरों की पहचान करने में सहायक हैं।

 

कानूनी स्तर पर भी सख्त प्रावधानों की आवश्यकता है। भारत में आईटी अधिनियम, 2000 और भारतीय दंड संहिता के तहत फेक न्यूज़ फैलाने वालों पर कानूनी कार्रवाई की जा सकती है। सरकार को फेक न्यूज़ की रोकथाम के लिए विशेष कानूनों पर भी विचार करना चाहिए।

 

मीडिया को समाज का चौथा स्तंभ माना जाता है, इसलिए उसकी जिम्मेदारी है कि वह सत्य और तथ्यात्मक खबरें प्रस्तुत करे। मीडिया संस्थानों को अपनी विश्वसनीयता बनाए रखने के लिए पत्रकारिता के नैतिक मानकों का पालन करना चाहिए। "ब्रेकिंग न्यूज" की होड़ में बिना तथ्यों की पुष्टि किए खबरें प्रकाशित करना मीडिया की साख को कमजोर करता है।

 

स्वतंत्र और निष्पक्ष पत्रकारिता को प्रोत्साहित करने के लिए पत्रकारों को सतर्क रहना चाहिए और किसी भी खबर की सत्यता को प्रमाणित करने के बाद ही उसे प्रसारित करना चाहिए। मीडिया संगठनों को अपने पाठकों को भी जागरूक करना चाहिए और उन्हें फेक न्यूज़ की पहचान करने के तरीकों के बारे में शिक्षित करना चाहिए।

 

फेक न्यूज़ के प्रसार को रोकने में नागरिकों की भूमिका भी अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। प्रत्येक व्यक्ति को किसी भी खबर को साझा करने से पहले उसकी सत्यता की जाँच करनी चाहिए। खबरों के स्रोत को परखना, क्रॉस-चेक करना और प्रतिष्ठित मीडिया संस्थानों से पुष्टि करना आवश्यक है।

 

इसके अलावा, लोगों को फैक्ट-चेकिंग वेबसाइट्स का उपयोग करना चाहिए और भ्रामक खबरों की रिपोर्टिंग में सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए। सोशल मीडिया पर आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपनाना और किसी भी जानकारी को आँख मूंदकर स्वीकार न करना एक जागरूक नागरिक की पहचान है।

 

फेक न्यूज़ आज के समय में एक गंभीर चुनौती है, जो समाज में अविश्वास, भ्रम और अस्थिरता को जन्म देती है। यह लोकतंत्र की नींव को कमजोर कर सकती है और सामाजिक सौहार्द्र को प्रभावित कर सकती है। इसके प्रभावी समाधान के लिए सरकार, मीडिया संस्थान, सोशल मीडिया कंपनियाँ और नागरिकों को मिलकर कार्य करना होगा।

 

डिजिटल साक्षरता को बढ़ावा देना, कठोर कानूनी प्रावधान लागू करना, तकनीकी नवाचारों का उपयोग करना और मीडिया की जवाबदेही सुनिश्चित करना आवश्यक है। एक जागरूक और सतर्क समाज ही फेक न्यूज़ की समस्या का समाधान कर सकता है और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा कर सकता है।




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