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Apr 3, 2025

Essay for BPSC Bihar civil service exam आधी छोड़ सारी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै

 

आधी छोड़ सारी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै


71th BPSC Pre and Mains Group start from May 2025 


"आधी छोड़ सारी को धावै, आधी मिलै न पूरी पावै" यह कहावत मानव स्वभाव को दर्शाने वाली एक गूढ़ सीख है। इसका तात्पर्य यह है कि जो व्यक्ति अपनी वर्तमान उपलब्धियों और संतोषजनक स्थिति को छोड़कर अधिक की चाह में भागता है, वह न केवल अपने हाथ में आई उपलब्धियों को खो देता है, बल्कि अपनी इच्छाओं की पूर्ति भी नहीं कर पाता। यह लोभ, असंतोष और अदूरदर्शिता के दुष्परिणामों को स्पष्ट करती है।

 

यह कहावत संतोष और संयम के महत्व को रेखांकित करती है। संतोष को भारतीय दर्शन में एक महत्त्वपूर्ण गुण माना गया है। महात्मा गांधी ने कहा था, "संतोष ही सच्चा धन है।" जब व्यक्ति अपनी इच्छाओं को सीमित कर देता है और अपने पास जो है, उसका आदर करता है, तब वह वास्तविक आनंद का अनुभव करता है। गीता में भी कहा गया है कि जो व्यक्ति इंद्रियों पर नियंत्रण रखता है और संतोषी रहता है, वही सच्ची शांति पाता है। अतः यह कहावत व्यक्ति को आत्म-अवलोकन और संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की प्रेरणा देती है।

 

लालच और असंतोष को जीवन की नकारात्मक प्रवृत्तियाँ माना जाता है। लालच न केवल व्यक्ति को आत्मकेंद्रित बनाता है, बल्कि उसे अनैतिक कार्यों की ओर भी प्रेरित कर सकता है। इतिहास में कई उदाहरण मिलते हैं, जहाँ लालच ने विनाश को आमंत्रित किया। महाभारत में दुर्योधन का लोभ और सत्ता की लालसा इसका एक प्रत्यक्ष उदाहरण है जो महाभारत जैसे विनाशकारी युद्ध का कारण बना।

 

जब लोग अपनी सामाजिक स्थिति को सुधारने के प्रयास में दूसरों की नकल करने लगते हैं और वास्तविक आवश्यकताओं की उपेक्षा करते हैं, तब वे असंतोष और तनाव का शिकार हो जाते हैं। जब व्यक्ति अपनी आवश्यकताओं से अधिक संसाधनों का उपभोग करने की चाह में जीता है, तो वह न केवल अपने आर्थिक संतुलन को बिगाड़ता है, बल्कि संसाधनों की बर्बादी भी करता है। विद्यार्थी जब अपनी क्षमता और रुचि को समझकर अध्ययन करते हैं, तब वे सफलता की ओर बढ़ते हैं। लेकिन जब वे अनेक विषयों में उत्कृष्टता प्राप्त करने की चाह में बिना किसी विशेष दिशा के प्रयास करते हैं, तो वे किसी भी क्षेत्र में बेहतर नहीं कर पाते।

 

जब राजनीतिक नेता और शासक अपने अधिकारों और सत्ता की भूख में संयम नहीं रखते, तब वे जनता के कल्याण को नजरअंदाज कर देते हैं। तो सत्ता की लालसा युद्ध और विनाश को जन्‍म देती है। वहीं जो नेता संतुलित दृष्टि और जनकल्याण की भावना से शासन करते हैं, वे देश को स्थिरता और विकास की ओर ले जाते हैं। सिकन्‍दर महान ऐसा ही शासक था जिसने अपने साम्राज्य के विस्तार की इच्छा में इतनी दूर तक चला गया कि अंततः उसकी सेना थक गई और उसका साम्राज्य विघटित हो गया।

 

 


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संतोष और धैर्य जीवन के वास्तविक सुख के स्रोत हैं। गौतम बुद्ध ने भी राजसी सुखों को त्यागकर सत्य की खोज की। वर्षों की कठोर साधना और धैर्य के बाद उन्हें ज्ञान प्राप्त हुआ, और उन्होंने संसार को अहिंसा और करुणा का मार्ग दिखाया। महात्मा गांधी ने अहिंसा और सत्याग्रह के मार्ग पर चलते हुए भारत को स्वतंत्रता दिलाई। उनके धैर्य और संतोष ने उन्हें अत्याचारों और कठिनाइयों के सामने भी अडिग बनाए रखा। इसी तरह नेल्सन मंडेला ने रंगभेद के खिलाफ संघर्ष करते हुए 27 वर्षों तक जेल में बिताए,  उनके धैर्य ने दक्षिण अफ्रीका में शांति और समानता की स्थापना की। इनके अलावा कल्पना चावला, भारतीय हॉकी के जादूगर ध्यानचंद, आदि के अनेक उदाहरणों से इतिहास भरा हुआ है जिससे यह स्पष्ट होता है कि संतोष और धैर्य न केवल सफलता की कुंजी हैं, बल्कि वे आंतरिक शांति और आत्मसंतोष का भी आधार हैं। जो व्यक्ति जीवन की कठिनाइयों को सहन करते हुए संतुलित और धैर्यपूर्ण दृष्टिकोण बनाए रखता है, वह वास्तविक सुख और समृद्धि को प्राप्त करता है।

 

निष्कर्षत: यह कहावत हमें संदेश देती है कि संतोष और धैर्य जीवन के वास्तविक सुख के स्रोत हैं। किसी भी क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने के लिए आवश्यक है कि हम अपने वर्तमान संसाधनों और उपलब्धियों का सम्मान करें और त्वरित लाभ की लालसा में अपने मूल उद्देश्यों को न भूलें। अतः व्यक्ति को संतुलित दृष्टिकोण अपनाना चाहिए और अपनी सीमाओं के भीतर रहकर निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर होना चाहिए। यही जीवन का वास्तविक मार्ग है।


 




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