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Mar 28, 2025

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मन के हारे हार है, मन के जीते जीत



"मन के हारे हार है, मन के जीते जीत" यह कहावत मानव जीवन की मानसिक अवस्था और उसके परिणामों को दर्शाती है। यह विचार हमें यह सिखाता है कि व्यक्ति की आंतरिक सोच और विश्वास उसकी सफलता या असफलता का निर्धारण करते हैं। मनुष्य के विचार और मानसिकता ही उसके जीवन की दिशा को निर्धारित करते हैं। जब व्यक्ति का मन आत्मविश्वास से भरा होता है, तब वह हर कठिनाई का सामना कर सकता है, जबकि निराशा और नकारात्मक सोच उसे असफलता की ओर धकेल सकती है।

 

दार्शनिक दृष्टि से यह आत्म-नियंत्रण और आत्म-प्रेरणा की महत्ता को रेखांकित करता है। सुकरात और प्लेटो जैसे महान विचारकों ने भी आत्म-ज्ञान को जीवन की सर्वोच्च उपलब्धि माना है। गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन को उपदेश देते हैं कि आत्मसंयम और सकारात्मक दृष्टिकोण जीवन की हर चुनौती को पराजित करने का माध्यम है। श्रीकृष्ण के अनुसार, "मनुष्य अपने मन को नियंत्रित करके ही सच्ची विजय प्राप्त कर सकता है।" यही कारण है कि आत्म-संयम और आत्मविश्वास को जीवन की सफलता का आधार माना गया है।

 

मनुष्य की मानसिक स्थिति ही उसकी वास्तविक शक्ति है। यदि मनुष्य नकारात्मक सोच रखता है, तो उसकी पराजय निश्चित हो जाती है। इसके विपरीत, यदि वह आत्मविश्वास और आशावाद के साथ प्रयास करता है, तो वह असंभव को भी संभव बना सकता है। स्वामी विवेकानंद ने भी कहा था, "उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाए।" यह कथन मन की दृढ़ता और संकल्प की शक्ति को दर्शाता है। आत्म-विश्वास और सकारात्मक सोच के बिना कोई भी लक्ष्य प्राप्त करना कठिन हो जाता है।

 

 



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रामायण और महाभारत जैसे भारतीय ग्रंथों में भी इस कथन की पुष्टि होती है। भगवान श्रीराम ने वनवास और रावण के साथ संघर्ष के दौरान कभी हार नहीं मानी, क्योंकि उनके मन में धर्म और कर्तव्य के प्रति अटूट विश्वास था। महाभारत में अर्जुन ने युद्ध में निराशा का अनुभव किया, लेकिन श्रीकृष्ण के मार्गदर्शन में उन्होंने अपने मन को स्थिर किया और विजय प्राप्त की। इन पौराणिक कहानियों से यह सिद्ध होता है कि मनुष्य की आंतरिक शक्ति और दृढ़ संकल्प ही उसकी जीत का मार्ग प्रशस्त करते हैं।

 

मनोविज्ञान के अनुसार, मनुष्य की सोच उसकी भावनाओं और क्रियाओं को प्रभावित करती है। सकारात्मक सोच से डोपामाइन और सेरोटोनिन जैसे हार्मोन स्रावित होते हैं, जिससे व्यक्ति उत्साहित और ऊर्जावान महसूस करता है। इसके विपरीत, नकारात्मक सोच से तनाव और अवसाद उत्पन्न हो सकता है। मनोवैज्ञानिक अल्बर्ट बंदुरा ने अपनी 'सेल्फ-इफिकेसी थ्योरी' में कहा है कि आत्म-विश्वास से भरा व्यक्ति कठिन परिस्थितियों में भी सफल हो सकता है।

स्वामी विवेकानंद ने कहा था, "विश्वास करो, तुम अद्वितीय हो और तुम वह सब कुछ कर सकते हो, जो तुमने सोचा है।"

 

आधुनिक समय में भी कई ऐसे उदाहरण मिलते हैं, जहाँ लोगों ने विपरीत परिस्थितियों में भी मनोबल बनाए रखा और सफलता प्राप्त की। दशरथ मांझी जिनकी मानसिक दृढ इच्‍छा शक्ति इतनी मजबूत थी कि उनकी छेनी और हथौड़ी ने विशाल पड़ाही का सीना चीर कर रास्‍ता बनाया। इसी क्रम में डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जिन्‍होंने बेहद साधारण परिस्थितियों में जन्म लिया, लेकिन अपने आत्मविश्वास और मेहनत के बल पर देश के राष्ट्रपति बने। इसी प्रकार महात्मा गांधी ने अहिंसा और सत्याग्रह के माध्यम से अपने आत्मबल और दृढ़ निश्चय के माध्‍यम से अंग्रेजों के विरुद्ध संघर्ष कर देश को स्वतंत्रता दिलाई।

 

न्‍यूटन, आइंस्‍टीन, एडीसन जैसे अनेक वैज्ञानिक है जिन्‍होंने अपने आत्‍मबल और मानसिक दृढ़ता के कारण ही अपने अपने क्षेत्र में महान उपलब्धियों को हासिल किया। उन्‍होंने अपनी हर असफलता और निराशा को दूर करने हुए अपनी मन में सफलता का भाव रखा जिसका परिणाम अतत: सुखद रहा। 

 

यह भाव केवल मानव के लिए नहीं बल्कि संपूर्ण जीव जगत, समाज, समुदाय, राष्‍ट्र के लिए लागू होता है। य‍ह भारत, जापान, दक्षिण कोरिया, इजराइल आदि जैसे उन देश पर भी लागू होता है जिसके नागरिकों ने तमाम विपरित परिस्थितियों के बावजूद सकारात्‍मक सोच के साथ अपनी दृढृ इच्‍छा शक्ति से देश को उन्‍नति के शिखर पर पहुंचाया।

 

आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लोग, यदि आत्मविश्वास और परिश्रम के साथ आगे बढ़ें, तो वे सफलता प्राप्त कर सकते हैं। स्टार्टअप्स और छोटे उद्यमों की सफलता भी इसी आत्म-विश्वास का प्रमाण है। इसके विपरीत, यदि कोई व्यक्ति अपनी असफलताओं को ही अपनी पहचान मान लेता है, तो समाज में उसकी प्रगति रुक जाती है। महात्मा गांधी ने कहा था, "आप जो सोचते हैं, वही बन जाते हैं।" यदि मन में सफलता की भावना हो, तो वह अवश्य साकार होती है।

 

आज के समाज में कई लोग अपनी क्षमताओं, इच्‍छाओं को पहचाने बिना देखादेखी, अंधानुकरण करना आरंभ कर देते है जिससे वे असफल होकर मानसिक अवसाद, चिंताग्रस्‍त हो जाते हैं। हमे यह समझना होगा कि प्रकृति ने सभी को अपने में विशेष बनाया है और यदि व्‍यक्ति अपनी हार, असफलताओं से सीख लेते हुए, अपनी विशेषताओं को पहचान कर सही दिशा में आगे बढ़ने की इच्‍छा के साथ उठता है तो अपनी दृढ़ इच्‍छाशक्ति से वह मनोवांछित परिणाम प्राप्‍त कर सकता है। 

 

निष्कर्षत: यह जीवन का मूल मंत्र है कि हमारे जीवन में कितनी भी कठिनाइयाँ क्यों न आएं, यदि हम आत्म-विश्वास और साहस के साथ उनका सामना करते हैं तो देर सवेर हमे सफलता अवश्य मिलती है। हमें अपने विचारों को सकारात्मक रखना चाहिए और मन की शक्ति को पहचानकर आगे बढ़ना चाहिए। यही जीवन की सच्ची विजय है। आत्म-प्रेरणा, आत्म-विश्वास और सतत् प्रयास ही सफलता की कुंजी है।

 




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