संथाल विद्रोह
संथाल विद्रोह ब्रिटिश औपनिवेशिक शोषण, स्थानीय
जमींदारों व महाजनों के अत्याचारों तथा संथालों के पारंपरिक अधिकारों के हनन के
विरुद्ध प्रमुख जनजातीय आंदोलन था।
दामन-ए-कोह क्षेत्र में सिद्धू-कान्हू के नेतृत्व में शुरू हुए इस विद्रोह में लगभग 60,000 संथालों ने भाग लिया जिसके प्रमुख कारण भूमि व्यवस्था में बदलाव, जबरन बेगार, उच्च कर, ऋण-शोषण, पुलिस-प्रशासन की पक्षपातपूर्ण भूमिका तथा सामाजिक-धार्मिक हस्तक्षेप आदि थे।
इस विद्रोह की
प्रकृति आद्य-आधुनिक थी, क्योंकि यह न केवल औपनिवेशिक सत्ता
बल्कि देशी शोषक वर्ग के खिलाफ भी था। इस विद्रोह के निम्न परिणाम हुए
- संथाल परगना नामक नन-रेगूलेशर जिला तथा संथाल परगना टेनेन्सी एक्ट बनाया गया ।
- ग्राम प्रधान को मान्यता दी गयी
- ग्रामीण अधिकारियों को पुलिस अधिकार दिया गया ।
- संथालों की सामाजिक व्यवस्था ’मांझी’ बहाल किया गया ।
संथाल व्रिद्रोह एक सशक्त क्रांति थी जो सैन्य बल के
कारण लक्ष्य को प्राप्त न कर सका लेकिन इसके बाद संथाल परगना का गठन, विशेष
कानून तथा प्रशासनिक मान्यताएं दी गईं। यह विद्रोह स्वाधीनता आंदोलन में एक
प्रेरणादायक चरण बना।
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