भारतीय परिषद अधिनियम-1861 (70वीं BPSC)
1857 के विद्रोह के बाद ब्रिटिश सरकार ने भारतीय प्रशासन में सुधार
की आवश्यकता को महसूस किया। इसी क्रम में 1861
का भारतीय परिषद अधिनियम लाया गया जिसका उद्देश्य था ब्रिटिश शासन को अधिक प्रभावी बनाना और भारतीयों
को प्रशासन में सीमित भागीदारी देना।
मुख्य प्रावधान
- वायसराय को कार्यकारिणी परिषद में भारतीयों को गैर-सरकारी सदस्य के रूप में नामित करने का अधिकार मिला।
- मद्रास और बंबई को विधायी शक्तियाँ देकर विधायी विकेंद्रीकरण की शुरुआत हुई।
- मुंबई, मद्रास और कलकत्ता में उच्च न्यायालयों की स्थापना हुई।
- विभागीय प्रणाली लागू की गई और कार्यों का विभाजन कर प्रशासन चलाया गया।
- वायसराय को आपातकाल में बिना परिषद की संस्तुति के अध्यादेश जारी करने का अधिकार मिला।
महत्व
- भारतीयों को कानून निर्माण में सहयोगी बनाने का पहला प्रयास।
- बंबई और मद्रास को विधायी शक्तियां दी गईं, जिससे विकेंद्रीकरण की शुरुआत हुई।
- इसका प्रभाव 1937 में प्रांतीय स्वायत्तता के रूप में दिखाई दिया।
- गवर्नर जनरल ने अपनी कार्यकारिणी में काम का विभाजन कर विभागीय पद्धति लागू की।
- बंगाल (1862), उत्तर-पश्चिमी प्रांत (1886), और पंजाब (1897) में विधान परिषदों का गठन हुआ।
इस प्रकार इस अधिनियम ने भारतीय
प्रशासन में विकेंद्रीकरण की शुरुआत कर कालांतर में प्रांतीय
स्वायत्तता और भारतीय लोकतंत्र की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । हालाँकि
इसके
सुधार सीमित थे और वास्तविक सत्ता ब्रिटिश अधिकारियों के हाथ में ही रही।
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