प्रश्न- उत्तराखण्ड भारत में एकसमान नागरिक संहिता लागू करने वाला पहला राज्य बन गया है। इस सम्बन्ध में एकसमान नागरिक संहिता को समझाइये। साथ ही इससे भारतीय समाज में सामाजिक, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा कानूनी आधार पर क्या परिवर्तन होगें को उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए । 38
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उत्तर- एकसमान नागरिक संहिता वह विधिक व्यवस्था है, जिसमें भारत के सभी नागरिकों पर विवाह, तलाक, गोद लेना, वारिस और संपत्ति जैसे व्यक्तिगत मामलों में समान कानून लागू होता है, चाहे उनका धर्म, जाति या संप्रदाय कुछ भी हो। इसका
उद्देश्य धार्मिक आधार पर कानूनों में भेदभाव समाप्त कर समान अधिकार और न्याय
सुनिश्चित करना है। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 44 राज्य को पूरे देश में एकसमान नागरिक संहिता लागू करने का निर्देश देता है।
हाल ही में उत्तराखण्ड ने इसे लागू
कर स्वतंत्र भारत का पहला राज्य बनने का गौरव प्राप्त किया। इसके तहत, अनुसूचित जनजातियों को छोड़कर सभी
नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, गोद लेना और उत्तराधिकार में समान कानून लागू होंगे। वर्तमान में भारत में
विभिन्न धर्मों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानून लागू है तथा इस कानून के लागू होने के बाद भारतीय समाज में होनेवाले
परिवर्तनों को निम्न प्रकार समझा जा सकता है:-
सामाजिक
परिवर्तन- इसके लागू होने के बाद सभी वर्गों, विशेषकर महिलाओं, को बराबरी के अधिकार प्राप्त होंगे
जैसे-हिंदू विधवा को संपत्ति में बराबर अधिकार मिलना, मुस्लिम महिलाओं को तलाक के मामलों में न्यायपूर्ण प्रक्रिया, सभी धर्मों में गोद लेने की समान
प्रक्रिया आदि।
सांस्कृतिक
परिवर्तन- एकसमान नागरिक संहिता के लागू होने
से विभिन्न परंपरागत प्रथाओं में एकरूपता आएगी। उदाहरण के लिए, वर्तमान में हिंदू धर्म में गोद लेना
मान्य है जबकि मुस्लिम पर्सनल लॉ में सीमित है। इसके लागू होने के बाद सभी धर्मों
के लिए एकसमान हो जाएगी।
धार्मिक
परिवर्तन- इस कानून के आने से कुछ समुदायों के
व्यक्तिगत धार्मिक कानून भी समाप्त होंगे वहीं
तलाक और विवाह के लिए सभी धर्मों में समान कानूनी प्रक्रिया लागू होगी जिसका आरंभिक
विरोध भी संभव है।
कानूनी
परिवर्तन- एकसमान नागरिक संहिता से कानून अधिक
सरल, पारदर्शी और समान होंगे, जिससे न्याय प्रक्रिया तेज होगी जैसे संपत्ति विवादों में सभी धर्मों पर
समान नियम लागू होना आदि ।
इस प्रकार एकसमान नागरिक संहिता
सामाजिक समरसता, लैंगिक समानता, और न्याय व्यवस्था की प्रभावशीलता को बढ़ाएगी। यह राष्ट्रीय एकता और
संवैधानिक मूल्यों जैसे समानता, धर्मनिरपेक्षता और न्याय को सुदृढ़ कर सकती है। हालांकि, इसके क्रियान्वयन में परंपरागत
मान्यताओं और धार्मिक भावनाओं से जुड़ी चुनौतियाँ आएंगी, जिन्हें संवाद, जन-जागरूकता और संवैधानिक मूल्यों की
समझ के माध्यम से दूर करना आवश्यक होगा।
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