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Nov 15, 2023

प्रश्‍न-अपवाह तंत्र से आप क्‍या समझते हैं? बिहार के अपवाह तंत्र में शामिल नदियों की प्रमुख विशेषताओं को बताएं ।

प्रश्‍न-अपवाह तंत्र से आप क्‍या समझते हैं? बिहार के अपवाह तंत्र में शामिल नदियों की प्रमुख विशेषताओं को बताएं ।  

 


उत्‍तर- अपवाह तंत्र का तात्पर्य वर्षा के जल का पृथ्वी के सतह पर प्रवाह की दिशा और व्यवस्था से है। भौगोलिक दृष्टि से नदियाँ किसी क्षेत्र के अपवाह तंत्र का महत्वपूर्ण भाग होती है। बिहार में अपवाह तंत्र का प्रमुख आधार गंगा एवं उसके सहायक नदियाँ है। इसके अलावा बिहार में वर्षा पर्याप्त मात्रा में होती है जिससे बिहार में नदियों का अपवाह तंत्र समृद्ध बना रहता है।

 

बिहार का अपवाह तंत्र

बिहार में नदियों का अपवाह प्रारूप मुख्य रूप से पादपाकार है जिसका निर्धारण गंगा नदी और दोनों दिशाओं से आने वाली सहायक नदियों से बनता है । बिहार में अपवाह तंत्र का प्रमुख आधार गंगा एवं उसके सहायक नदियाँ है। बिहार के 12 जिलों से प्रवहित होनेवाली गंगा बिहार में 445 किमी लंबा सफर तय करती है जो बक्सर के पास चौसा में बिहार में प्रवेश करती है और भागलपुर के पास कहलगाँव के पास से पश्चिम बंगाल में चली जाती है। बिहार की सहायक नदियां अंततः प्रवाहित होते हुए गंगा में मिल जाती है।   

 

उत्तरी बिहार की नदियों में गंगा, सरयु, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला, कोसी, महानंदा आदि है जिनकी विशेषता को निम्‍न प्रकार समझा जा सकता है

  • अधिकांश नदियां सदानीरा और लम्बी है जिनका उद्गम स्रोत हिमालय है।
  • अनेक नदियां अपने मार्ग परिवर्तन हेतु जानी जाती है।
  • हिमालय के तराई क्षेत्र में उत्तरी बिहार की अनेक नदियां युवावस्था की विशेषताएं दर्शाती है।
  • वर्षा काल में बाढ़ लाने के साथ कांप एवं सिल्ट का जमाव कर भूमि को उर्वर भी बनाती है।
  • इन नदियों में अधिक मोड़ होने के कारण झील, चौर, दलदली क्षेत्र आदि का निर्माण करती है।
  • ये नदियां हिमालय केविस्तृत जल को इकट्ठा कर गंगा नदी में प्रवाहित करती है।
  • उत्तर बिहार के मैदान निर्माण में इन नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका है।  


दक्षिणी बिहार की अधिकांश नदियां पठारी प्रदेश की नदियाँ है जिनमें कर्मनाशा, सोन, पुनपुन, फल्गु, किउल, अजय आदि  प्रमुख है तथा इनकी विशेषताएं निम्‍न है।

  • अधिकांश नदियां मानसूनी है जो वर्षा ऋतु के बाद शुष्क हो जाती है।
  • यह मैदानी भागों में टेढे-मेढ़े मार्गों में बहती है और इनके पाट उथले और चौड़े हैं।
  • नदियों के मार्ग में कठोर चट्टान होने से इन नदियों के जल में बालू का अंश ज्यादा होता है।
  • नदियों के मार्ग में ढाल अपेक्षाकृत ज्यादा होने से जल जमाव ज्यादा देर नहीं रहता ।
  • अधिकांश नदियों की लंबाई अपेक्षाकृत कम है जो कुछ दूरी तक गंगा के समानांतर बहते हुए गंगा में मिलती है।
  • इन नदियों में मिलने वाला मोटे बालू का निक्षेप खनिज संपदा के रूप में बिहार सरकार की आय का बड़ा स्रोत है ।

 

इस प्रकार गंगा एवं उसकी सहायक नदियों की अपनी विशेषताएं है जिनका बिहार में जल परिवहन, सिंचाई, मत्स्य पालन, ऊर्जा उत्पादन,पर्यटन, व्यापार आदि के साथ साथ धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है।



 

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