BPSC Mains answer writing Practice-Science and Tech
प्रश्न
: STEM (विज्ञान, प्रौद्योगिकी,
इंजीनियरिंग और गणित) क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने
के लिए भारत सरकार द्वारा कौन-कौन सी योजनाएँ चलाई जा रही हैं? क्या ये योजनाएँ विज्ञान एवं अनुसंधान में लैंगिक समानता लाने में प्रभावी
हैं? 200 शब्द
उत्तर:
भारत
में पारंपरिक रूप से विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) के क्षेत्र में महिलाओं
की भागीदारी अपेक्षाकृत कम रही है। इस असमानता को दूर करने और विज्ञान एवं
अनुसंधान के क्षेत्र में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने और उनको सशक्त बनाने के लिए
सरकार ने अनेक योजनाएँ लागू की हैं।
·
STEM
क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने हेतु विज्ञान ज्योति
कार्यक्रम आरंभ किया गया।
·
लैंगिक समानता को बढ़ावा देना और महिला
वैज्ञानिकों को अनुसंधान के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए समर्थन हेतु किरण योजना।
·
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर शोध के उन्नत मानकों
को सीखने हेतु इंडो-यूएस फेलोशिप कार्यक्रम
·
तकनीक और नवाचारों में प्रशिक्षण हेतु महिला
विश्वविद्यालयों में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस प्रयोगशालाओं की स्थापना
·
अनुसंधान अनुदान और वित्तीय सहायता
प्राप्त करने में मदद 2023 में महिला पोर्टल
·
लैंगिक समानता को वैज्ञानिक अनुसंधान में
मुख्यधारा में लाने हेतु राष्ट्रीय विज्ञान प्रौद्योगिकी और नवाचार नीति-2020
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इन
योजनाओं का उद्देश्य महिलाओं को अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में अवसर प्रदान
करना और STEM
क्षेत्रों में लैंगिक समानता सुनिश्चित करना है। भारत में STEM
में स्नातक महिलाओं का भागीदारी 43% है जो वैश्विक स्तर पर बेहतर है वहीं DRDO, ISRO आदि में इनकी संख्या भी बढ़ी है । हालाँकि भारत में इन क्षेत्रों में अभी लैगिंक
असमानता है जहां STEM
में महिला भागीदारी 15% से भी कम है।
अत: यह देखना होगा कि कितनी महिलाएँ वास्तव
में इन योजनाओं का लाभ उठा रही हैं और शोध एवं अनुसंधान में दीर्घकालिक रूप से सक्रिय
बनी रहती हैं। यदि इनका बेहतर क्रियान्वयन और समाज में वैज्ञानिक शोध को लेकर
महिलाओं के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण विकसित किया जाता है तो यह निश्चित रूप से
विज्ञान एवं अनुसंधान में लैंगिक समानता लाने में प्रभावी साबित होंगी।
प्रश्न:
भारतीय विदेश नीति में विज्ञान और तकनीकी की बहुआयामी भूमिका को स्पष्ट करें।
उत्तर: भारतीय
विदेश नीति में विज्ञान और तकनीकी की भूमिका बहुआयामी है, जो
न केवल भारत की वैश्विक स्थिति को मजबूत करती है, बल्कि
वैज्ञानिक और तकनीकी नवाचारों के माध्यम से वैश्विक समस्याओं के समाधान में भी
योगदान देती है। भारत ने विभिन्न अंतरराष्ट्रीय मंचों पर विज्ञान और प्रौद्योगिकी
को सहयोग, विकास और कूटनीति का साधन बनाया है।
·
अंतरिक्ष कूटनीति: इसरो ने
दक्षिण एशियाई देशों और अन्य विकासशील देशों के लिए सस्ते उपग्रह प्रक्षेपण, संचार,
आपदा प्रबंधन और जलवायु निगरानी सेवाएँ प्रदान की हैं।
·
वैश्विक स्वास्थ्य सहयोग: 'वैक्सीन
मैत्री' पहल के तहत भारत ने 100 से
अधिक देशों को COVID-19 टीके उपलब्ध कराए। आयुर्वेद और योग
भी वैश्विक स्वास्थ्य सहयोग का हिस्सा बने हैं।
·
नवीकरणीय ऊर्जा और
पर्यावरण:
भारत ने ‘अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन’ की स्थापना कर सौर ऊर्जा को बढ़ावा दिया।
जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए वैश्विक प्रयासों में नेतृत्व किया।
·
आईटी और डिजिटल डिप्लोमेसी: भारत ने
कई देशों को डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर और साइबर सुरक्षा सहयोग प्रदान किया है।
·
वैज्ञानिक अनुसंधान: LIGO, इंटरनेशनल थर्मोन्यूक्लियर रिएक्टर और CERN जैसी
वैश्विक वैज्ञानिक परियोजनाओं में भारत की भागीदारी उल्लेखनीय है।
निष्कर्षत: विज्ञान और तकनीक के माध्यम से भारत ने
अपनी कूटनीतिक शक्ति को सुदृढ़ किया है। यह केवल वैज्ञानिक उपलब्धियों का प्रदर्शन
नहीं बल्कि वैश्विक कल्याण में योगदान देने का माध्यम भी है। इससे भारत की ‘वसुधैव
कुटुंबकम’ की भावना को बल मिलता है।
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प्रश्न: भारत के आगामी अंतरिक्ष मिशनों उनकी विशेषताओं और उनके
संभावित प्रभावों की समीक्षा करें। 350
Words
उत्तर: भारत का
अंतरिक्ष कार्यक्रम तेजी से उन्नति कर रहा है, और आने वाले वर्षों में
कई महत्त्वाकांक्षी मिशनों को पूरा करने की योजना बनाई गई है। इन मिशनों से न केवल
वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा मिलेगा, बल्कि भारत की वैश्विक
अंतरिक्ष शक्ति के रूप में स्थिति भी मजबूत होगी जिसे निम्न प्रकार समझा जा सकता
है:-
आदित्य-L1
(2023-24)
·
भारत की पहली सौर वेधशाला, सूर्य
सतह, कोरोना और सौर वायु का अध्ययन हेतु।
·
यह Lagrange Point 1 (L1) पर
स्थित होगा, जिससे बिना किसी रुकावट के सौर गतिविधियों का
अध्ययन किया जा सकेगा।
गगनयान
मिशन (2024-26)
·
2024:
पहला परीक्षण मिशन, जिसमें क्रू मॉड्यूल और
सुरक्षा प्रणालियों का परीक्षण किया जाएगा।
·
2025:
गगनयान-2, जिसमें उन्नत तकनीकों का परीक्षण
होगा।
·
2026:
भारत का पहला मानवयुक्त अंतरिक्ष मिशन, जो
अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की कक्षा में भेजेगा।
NISAR
(2024)
·
नासा और इसरो द्वारा संयुक्त रूप से
विकसित पृथ्वी अवलोकन उपग्रह।
·
यह जलवायु परिवर्तन, भूकंप,
जंगलों और ध्रुवीय बर्फ की निगरानी करेगा।
वीनस
ऑर्बिटर मिशन (2028)
·
शुक्र के वायुमंडलीय और भौगोलिक संरचना का
अध्ययन करेगा।
·
सौर प्रभावों और जलवायु प्रक्रियाओं की
गहरी समझ विकसित करने में सहायक।
मंगलयान-2
(2026)
·
भारत का दूसरा मंगल मिशन, जिसमें
उन्नत उपकरण और नई तकनीकों का उपयोग किया जाएगा।
·
मंगल की सतह और जलवायु संबंधी पहलुओं पर
अधिक विस्तृत जानकारी प्रदान करेगा।
चंद्र
ध्रुवीय अन्वेषण मिशन (2026)
·
चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव क्षेत्र की
भूगर्भीय संरचना और जल की उपस्थिति का अध्ययन करेगा।
·
भविष्य में चंद्रमा पर मानव बसाहट की
संभावनाओं की जाँच करेगा।
चंद्रयान-4
(2027)
·
चंद्रमा की सतह से नमूने एकत्र कर पृथ्वी
पर वापस लाने वाला भारत का पहला मिशन।
·
चंद्रमा की उत्पत्ति और संरचना पर विस्तृत
वैज्ञानिक विश्लेषण करेगा।
अगली
पीढ़ी के सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल (2032)
·
पुनः प्रयोज्य और कम लागत वाले प्रक्षेपण
यान विकसित करने की योजना।
·
अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली को और अधिक कुशल
और किफायती बनाएगा।
भारतीय
अंतरिक्ष स्टेशन (2035)
·
पूर्ण रूप से स्वदेशी अंतरिक्ष स्टेशन, जो
वैज्ञानिक प्रयोगों और दीर्घकालिक अंतरिक्ष अनुसंधान का केंद्र होगा।
·
अंतरिक्ष में मानव उपस्थिति और गहरे
अंतरिक्ष अभियानों के लिए आवश्यक तकनीकों का विकास करेगा।
निष्कर्षत: कहा
जा सकता है कि इन मिशनों के सफलतापूर्वक क्रियान्वयन से भारत वैश्विक अंतरिक्ष
सहयोग और वाणिज्यिक प्रक्षेपण सेवाओं में अपनी भूमिका सशक्त करने के साथ साथ अंतरिक्ष
प्रौद्योगिकी में आत्मनिर्भरता की ओर भी अग्रसर होगा ।
इस प्रकार आगामी मिशनों से न केवल भारत की वैज्ञानिक और तकनीकी क्षमता में वृद्धि होगी बल्कि जलवायु परिवर्तन, अंतरिक्ष अनुसंधान और खगोल विज्ञान में महत्त्वपूर्ण योगदान से वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण में एक अग्रणी राष्ट्र के रूप में उभरेगा।
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