प्रश्न: "सम्प्रेषण का माध्यम होने के अतिरिक्त, भाषा अस्मिता के प्रतीक के रूप में प्रभावी रही है।" इस कथन के आलोक में भारत में भाषायी अस्मिता के राजनीतिक प्रभाव का विश्लेषण करें।
उत्तर- भारत जैसे बहुभाषी देश में भाषा
केवल संप्रेषण का माध्यम नहीं बल्कि
सांस्कृतिक अस्मिता की प्रतीक रही है। बात चाहे औपनिवेशिक काल की बंग-भाषा आंदोलन की
हो या 1956 में स्वतंत्र भारत में भाषाई आधार पर राज्यों का पुनर्गठन (1956) की या फिर तमिल, मराठी, असमिया आदि भाषायी आंदोलन,
ये सभी भाषायी अस्मिता के प्रतीक रहे
हैं।
हांलाकि भाषायी विविधता ने जहां भारत की विविधता एवं एकता
को समृदध किया वहीं इससे संबंधित मुद्दों ने भारतीय राजनीति को व्यापक रूप से प्रभावित
किया जिसे निम्न घटनाओं से समझ सकते हैं
भाषायी अस्मिता और राजनीतिक घटनाक्रम
- स्वतंत्रता के बाद भाषा के आधार पर बने पहले राज्य आन्ध्र प्रदेश के बाद 1956 में राज्य पुनर्गठन आयोग ने भाषायी आधार पर राज्यों के गठन की सिफारिश दी जिसके तहत 14 राज्य एवं 6 केन्द्रशासित प्रदेश बनाएं गए।
- भारत के क्षेत्रीय दलों जैसे DMK (तमिलनाडु), TDP (आंध्र प्रदेश), शिवसेना (महाराष्ट्र), और अकाली दल (पंजाब) आदि का गठन भाषायी अस्मिता के नाम पर हुआ और "मराठी
मानुष", "तमिझार अस्मिता", "तेलुगु गौरव" जैसे नारों का उपयोग कर जनसमर्थन प्राप्त किया ।
- 2024 के लोकसभा चुनाव में INDIA गठबंधन ने गैर-हिंदी भाषी राज्यों में क्षेत्रीय अस्मिताओं को प्रमुखता दी और "एक राष्ट्र, एक भाषा" के विरुद्ध लामबंदी की।
- त्रिभाषा फॉर्मूला, नई शिक्षा नीति 2020 में
मातृभाषा को प्राथमिक शिक्षा का माध्यम बनाने, राजस्थान और उत्तराखंड में स्थानीय बोलियों (गढ़वाली, कुमाऊँनी, मारवाड़ी) को शिक्षा और प्रशासन में शामिल करने की माँग भाषायी अस्मिता की
अभिव्यक्ति है।
- क्षेत्रीय भाषाओं में सोशल मीडिया अभियान जैसे #SaveTamil, #KannadaNotHindi द्वारा स्थानीय
मुद्ददों को राष्ट्रीय मुद्दा बनाकर राजनीतिक दलों ने लाभ उठाया।
इस प्रकार भाषायी अस्मिता राजनीति को प्रभावित करती रही
है और इसने भारतीय राज्यों को भौगौलिक आकार देने के अलावा केंद्र-राज्य संबंधों
और नीति निर्माण को भी प्रभावित किया। इसके कारण जहां राजनीतिक अवसरवाद की बढ़ती प्रवृत्ति, क्षेत्रीय संघर्ष, अलगाववाद, राष्ट्रीय एकता और अखंडता के खतरे जैसे चुनौतियां
भी देखने को मिली वहीं लोकतांत्रिक समावेशन, स्थानीय भाषा एवं
संस्कृति के संरक्षण, संघीय संतुलन जैसे सकारात्मक प्रभाव भी
देखने को आए।
अत: भारत
की सांस्कृतिक चेतना, क्षेत्रीय गौरव तथा भारत की
एकता और विविधता के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए भाषायी विविधता का सम्मान और
बहुभाषिक समावेशी दृष्टिकोण की नीति अपनाना बेहतर होगा।
शब्द संख्या-366
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