राजनीतिक इच्छाशक्ति और देश की सुरक्षा
"जहाँ नेतृत्व
संकल्पशील होता है, वहाँ सीमाएँ सुरक्षित होती हैं।"
किसी भी राष्ट्र की स्थिरता और प्रगति का मूल आधार उसकी सुरक्षा व्यवस्था होती है और राष्ट्रीय सुरक्षा मात्र सीमाओं की रक्षा तक सीमित नहीं होती, बल्कि यह राष्ट्र की एकता, अखंडता, संप्रभुता, और आंतरिक स्थिरता तक विस्तारित होती है। किसी भी देश की सुरक्षा का संचालन वहां के राजनीतिक नेतृत्व में हाथों में होता है और उसी नेतृत्व की इच्छाशक्ति ही तय करती है कि संकट के समय राष्ट्रहित को प्राथमिकता देते हुए कैसे और कितनी दृढ़ता से निर्णय लिए जाए। इस संदर्भ में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का कथन प्रासंगिक है "हम युद्ध नहीं चाहते, लेकिन अगर कोई चुनौती देगा, तो उसका मुँहतोड़ जवाब देंगे।“ यह कथन उस समय के भारत की राजनीतिक इच्छाशक्ति को व्यक्त करता है जो उन्होंने पोखरण परीक्षण के बाद कहा था।
राजनीतिक इच्छाशक्ति का अर्थ है–किसी देश के नेतृत्वकर्ता द्वारा देशहित
में साहसिक, यथार्थपरक और दीर्घकालिक
निर्णय लेने की क्षमता। यह वह शक्ति है जो अपने निर्णयों से न केवल वर्तमान संकट
का समाधान करती है, बल्कि
भविष्य के लिए भी रणनीतिक राह बनाती है। यदि राजनीतिक नेतृत्व कमजोर या
दुविधायुक्त होता है तो इससे राष्ट्रीय सुरक्षा प्रभावित होती है और राष्ट्र विविध
आंतरिक एवं बाह्य खतरों का शिकार बनता है।
भारत के स्वतंत्रता आंदोलन में सुभाष चंद्र बोस ने नारा
दिया "तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आज़ादी दूंगा।" यह केवल स्वतंत्रता की पुकार नहीं थी, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए
राजनीतिक संकल्प का आह्वान भी था। हैदराबाद, जूनागढ़, कश्मीर के साथ साथ सरदार पटेल द्वारा
तत्कालीन रियासतों का भारत में विलय, भारत की गुटनिरपेक्षता की नीति, 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध, पोखरण परमाणु परीक्षण (1998) के बाद
भारतीय नेतृत्व द्वारा वैश्विक दबाव के बावजूद भारत की सामरिक स्वायत्तता को
प्राथमिकता आदि ने यह सिद्ध किया कि राजनीतिक इच्छाशक्ति जब
स्पष्ट और रणनीतिक हो तो नया इतिहास रचा जा सकता है।
इसी तरह डोकलाम पर भारतीय नेतृत्व का भूटान के साथ खड़ा
रहते हुए चीन का सामना करना, सर्जिकल स्ट्राइक (2016) और बालाकोट एयर स्ट्राइक (2019) ऑपरेशन सिन्दूर (2025) भारतीय नेतृत्व के हालिया ऐसे साहसिक कदम हैं जो यह
दर्शाते हैं कि राजनीतिक नेतृत्व जब स्पष्ट और निर्णायक होता है, तो सेना, सुरक्षा एजेंसियाँ भी अधिक आत्मविश्वास
से काम करती हैं और देश की सुरक्षा सुनिश्चित होती है। जैसा कि एक अज्ञात लेखक ने कहा है — "There is no security
without courage, and no courage without leadership."
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सुरक्षा केवल सैनिक बल पर आधारित नहीं होती बल्कि यह नीतिगत दृढ़ता, आंतरिक शांति, आर्थिक स्थायित्व और तकनीकी
आत्मनिर्भरता जैसे पहलुओं से गहराई से जुड़ी होती है। जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद
370 का उन्मूलन जो दशकों से विवादित था, लेकिन 2019 में भारत सरकार ने दृढ़
संकल्प के साथ इस निर्णय को क्रियान्वित किया। तीनों सेनाओं के समन्वय के लिए Chief of Defence Staff की नियुक्ति के निर्णय, थियेटर कमांड, ऑपरेशन शक्ति, सीमा पर बुनियादी ढांचे का निर्माण, रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के
प्रयास, क्वाड में शामिल होना, एशिया प्रशांत रणनीति, आदि राजनीतिक इच्छाशक्ति को दर्शाते
हैं और दिखाते है कि जब नेतृत्व साहसी और दुरदर्शी निर्णय लेता है तो राष्ट्र सुरक्षित और मजबूत होता है।
अंतर्राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में अमेरिका में 9/11 घटना के बाद अमेरिकी नेतृत्व द्वारा आतंकवाद के
विरुद्ध लिए गए कठोर निर्णय, रूस-यूक्रेन युद्ध में दोनों देशों द्वारा लिया गया आक्रामक रवैया, इस्राइल की आंतरिक सुरक्षा में किसी भी प्रकार
की ढील न देने की नीति। इन सबके मूल में
नेतृत्व की निर्णायक भूमिका स्पष्ट दिखाई देती है। यही कारण है कि आज देश की
सुरक्षा केवल हथियारों से नहीं, बल्कि नेतृत्व के दृष्टिकोण और उसके रणनीतिक मनोबल से जुड़ी हुई है।
वर्तमान में देश की सुरक्षा चुनौतियाँ बहुआयामी हो चुकी
हैं, और राजनीतिक नेतृत्व को हर
मोर्चे पर जवाबदेह बनना होगा। आज जब दुनिया में आतंकवाद, उग्रवाद, सांप्रदायिकता, हाइब्रिड वारफेयर, साइबर युद्ध, ड्रोन हमले और आर्थिक दबावों के माध्यम
से राष्ट्रों को अस्थिर किया जा रहा है, ऐसे में केवल सैन्य ताकत ही नहीं, नीतिगत दृढ़ता, लोकतांत्रिक मजबूती, और प्रशासनिक इच्छाशक्ति की आवश्यकता
है। उदाहरणस्वरूप, पूर्वोत्तर
राज्यों में उग्रवाद पर नियंत्रण और वहाँ हुए शांति समझौते, सरकार की सक्रिय रणनीति और निर्णायक
दृष्टिकोण को दर्शाते हैं।
आज बाह्य एवं आंतरिक सुरक्षा के साथ साथ आर्थिक, खाद्य, जल, ऊर्जा और पर्यावरणीय सुरक्षा भी देश की
व्यापक सुरक्षा में शामिल हैं। जलवायु परिवर्तन, महामारी, कृत्रिम बुद्धिमत्ता आधारित युद्ध जैसी
चुनौतियाँ अब पारंपरिक सीमाओं से बाहर जा चुकी हैं। ऐसे में राजनीतिक नेतृत्व की
इच्छाशक्ति का परीक्षण अब केवल सीमाओं पर नहीं, बल्कि निर्णयों की परिपक्वता, विज्ञान की समझ, वैश्विक कूटनीति और शासन क्षमता के हर
स्तर पर होता है। और इस परीक्षण में जब राजनीतिक नेतृत्व सफल होता है तभी जनता का
भी विश्वास बना रहता है और वह भी राष्ट्रहित में सक्रिय योगदान देने के लिए
प्रेरित होती है।
निष्कर्षत: देश
की सुरक्षा की पहली शर्त है – दृढ़ राजनीतिक इच्छाशक्ति। यदि नेतृत्व दूरदर्शी, निर्भीक, समावेशी और राष्ट्रहित में प्रतिबद्ध
हो, तो सुरक्षा केवल एक नारा नहीं, बल्कि एक जीवंत और प्रभावशाली संरचना
बन जाती है। वही देश सुरक्षित, समृद्ध और आत्मनिर्भर बनते हैं, जहाँ का राजनीतिक नेतृत्व देश की सुरक्षा को केवल एक तात्कालिक
प्रतिक्रिया नहीं, बल्कि एक
सतत दायित्व मानते हैं। जैसा कि कहा गया है- "जहाँ नेतृत्व में दूरदर्शिता, साहस और इच्छाशक्ति होती है, वहाँ राष्ट्र की सुरक्षा केवल रणनीति
नहीं, एक सजीव संकल्प बन जाती
है।"
शब्द संख्या- 875
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