भ्रष्टाचार का अंत और देश का उत्थान
"भ्रष्टाचार
किसी भी राष्ट्र की आत्मा को खोखला कर देता है जबिक ईमानदारी उसका निर्माण करती है।"
कोई भी देश केवल अपने संसाधनों, प्रौद्योगिकी या सैन्य बल से महान नहीं
बनता, बल्कि उसकी नींव उस व्यवस्था पर आधारित होती है जो
पारदर्शिता, उत्तरदायित्व और नैतिकता से संचालित होती है। जब
यह नींव भ्रष्टाचार से संक्रमित हो जाती है, तो समूचे विकास
का ढांचा ढहने लगता है। इसीलिए यह कहना अनुचित नहीं होगा कि भ्रष्टाचार किसी देश
की प्रगति का सबसे बड़ा बाधक है। भ्रष्टाचार केवल वित्तीय अनियमितता तक सीमित नहीं
है बल्कि यह शक्ति के दुरुपयोग, अनैतिक आचरण और सार्वजनिक
हितों की उपेक्षा से जुड़ा हुआ है। इस संबंध में एक प्रसिद्ध कथन है कि "शक्ति
का स्वभाव है कि वह भ्रष्ट करती है, और पूर्ण शक्ति पूर्ण
रूप से भ्रष्ट करती है।"
आज अनेक विकासशील और यहाँ तक कि
विकसित देश भी इस समस्या से जूझ रहे हैं। अफ्रीका के कई राष्ट्रों में प्राकृतिक
संसाधनों की भरमार होते हुए भी आर्थिक पिछड़ापन व्याप्त है, जिसका प्रमुख कारण भ्रष्टाचार है। भारत
जैसे देशों में शिक्षा, स्वास्थ्य और खाद्य सुरक्षा योजनाओं
के करोड़ों रुपये बीच में ही निगल लिए जाते हैं। दक्षिण अमेरिका के कुछ देशों में
राजनीतिक अस्थिरता और प्रशासनिक विफलता का मूल कारण यही है।
भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा प्रभाव
देश की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। विश्व बैंक के अनुसार, विकासशील देशों में कुल GDP का 2% से 5% भष्ट्राचार की भेंट चढ़ जाता है। भारत में कर अपवंचन, बेनामी संपत्ति, हवाला कारोबार और घोटाले ने एक समय
आर्थिक संरचना को गंभीर रूप से प्रभावित किया। भष्ट्राचार निवेशकों के विश्वास को कम करता है, जिससे रोजगार के अवसर, व्यापारिक नवाचार और वैश्विक
प्रतिस्पर्धा में देश पिछड़ जाता है।
ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल की भ्रष्ट्राचार
धारणा सूचकांक 2024 में भारत की रैंकिंग 96वीं है, जो यह दर्शाती है कि भारत में भ्रष्ट्राचार को कम करने के
लिए अभी बहुत काम किया जाना शेष है। भारत में योजनाओं, सरकारी
टेंडर, प्रशासनिक सेवा, चिकित्सा और
शिक्षा क्षेत्र में भ्रष्टाचार की जड़ें गहरी हैं। इससे केवल धन की बर्बादी नहीं
होती, बल्कि आम नागरिक का लोकतंत्र पर से विश्वास भी डगमगाता
है। यह सामाजिक न्याय और समान अवसर की अवधारणा को बाधित करता है, क्योंकि ईमानदार और प्रतिभाशाली लोग भ्रष्ट तंत्र में पिछड़ जाते हैं।
भ्रष्ट्राचार के कारणों को देखा जाए
तो इसके अनेक कारण है जिसमें राजनीतिक भ्रष्टाचार प्रमुख है। जब चुनाव खर्च का कोई
पारदर्शी मॉडल नहीं होता, तो
काले धन का प्रवाह राजनीति में बढ़ता है और सत्ता प्राप्ति का उद्देश्य सेवा से
हटकर स्वार्थ में परिवर्तित हो जाता है। इसके परिणामस्वरूप नीतियाँ केवल
पूँजीपतियों या प्रभावशाली वर्ग के हित में बनती हैं। इससे लोकतंत्र का मूल
ताना-बाना ही कमजोर हो जाता है और संपूर्ण व्यवस्था भ्रष्ट्राचार की गिरफ्त में आने
लगती है जिससे देश की जनता हताश, प्रशासन निष्क्रिय और
नेतृत्व अवसरवादी हो जाता है और उस देश का उत्थान बाधित होता है।
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ऐसा नहीं है कि भ्रष्टाचार को समाप्त
करने की दिशा में प्रयास नहीं हुए हैं । कई ऐसे देश हैं जिन्होंने भ्रष्टाचार के
विरुद्ध निर्णायक लड़ाई लड़ी है और व्यवस्था को पारदर्शी व उत्तरदायी बनाया है।
स्कैंडिनेवियाई देशों (स्वीडन, डेनमार्क, नॉर्वे) में प्रशासनिक पारदर्शिता,
न्याय प्रणाली की निष्पक्षता और सामाजिक भरोसे की संस्कृति ने
भ्रष्टाचार को न्यूनतम स्तर पर पहुँचाया है। वहीं, सिंगापुर
का उदाहरण उल्लेखनीय है जहाँ प्रशासन में ईमानदारी को संस्थागत बनाया गया और कठोर
दंडात्मक नीतियों के माध्यम से भ्रष्टाचार को लगभग समाप्त कर दिया गया।
पिछले कुछ वर्षो में भारत ने भी भ्रष्टाचार
पर अंकुश लगाने हेतु कई संस्थागत और तकनीकी उपाय किए गए हैं जिनमें लोकपाल अधिनियम, बेनामी संपत्ति अधिनियम, ब्लैक मनी एक्ट, डिजिटल भुगतान प्रणाली, डायरेक्ट बेनिफिट ट्रांसफर (DBT) और जन-धन, आधार और मोबाइल (JAM) ट्रिनिटी प्रमुख हैं। इसके
अतिरिक्त, RTI अधिनियम (2005), ई-गवर्नेंस,
GeM पोर्टल, और राष्ट्रीय लोकपाल की नियुक्ति
जैसे उपायों ने संस्थागत पारदर्शिता को बल दिया है। फिर भी इन प्रयासों को व्यापक
प्रभावशीलता तक पहुँचाने के लिए समाज, राजनीति और
शिक्षा—तीनों स्तरों पर नैतिक जागरूकता आवश्यक है।
महात्मा गांधी ने कहा था कि
भ्रष्टाचार को समाप्त करने की प्रक्रिया सामाजिक परिवर्तन से प्रारंभ होती है। जब
तक आम नागरिक अपने अधिकारों के साथ-साथ अपने कर्तव्यों और मूल्यों के प्रति सचेत
नहीं होगा, तब तक कोई भी
प्रणाली कारगर नहीं हो सकती। अत: इस दिशा में शिक्षा व्यवस्था एक सशक्त माध्यम है।
जब पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा, नागरिक शास्त्र को व्यवहारिक
रूप से जोड़ा जाएगा, तब एक नई पीढ़ी तैयार होगी जो केवल अपने
अधिकारों के लिए नहीं, बल्कि राष्ट्र की प्रतिष्ठा के लिए भी
प्रतिबद्ध होगी।
भ्रष्ट्राचार समाप्त करने की दिशा
में लोकपाल, सतर्कता आयोग,
और CAG जैसे संस्थानों को यदि स्वतंत्रता,
संसाधन और प्रभावशीलता के साथ चुनावी सुधार और राजनीतिक फंडिंग की
पारदर्शिता भी अत्यंत आवश्यक है क्योंकि जब राजनीति स्वच्छ होगी, तभी प्रशासन ईमानदार बनेगा। इसके अलावा प्रौद्योगिकी जैसे ब्लॉकचेन आधारित
प्रशासन, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस से निगरानी, बायोमेट्रिक पहचान, और स्मार्ट अनुबंध जैसे तकनीकी
उपाय शासन को पारदर्शी बना सकते हैं।
निष्कर्षतः यह कहा जा सकता है कि
भ्रष्टाचार का अंत एक बहुआयामी और सहभागी प्रक्रिया है जिसमें नागरिकों की नैतिक
चेतना, राजनीतिक पारदर्शिता,
शासन की तकनीकी दक्षता और न्यायपालिका की सक्रियता सभी को समन्वित
होना होगा। जब भारत भ्रष्टाचार मुक्त होकर नीतियों में जनकल्याण, प्रशासन में पारदर्शिता और समाज में नैतिकता स्थापित करेगा, तभी वास्तविक अर्थों में “विकसित भारत” का स्वप्न साकार होगा। “ एक राष्ट्र
उसके केवल आकार से नहीं बल्कि उसके नागरिकों के चरित्र से महान बनता है।” यह कथन राष्ट्र निर्माण में नैतिकता की भूमिका को स्पष्ट करता है। इसीलिए,
भ्रष्टाचार के अंत से ही देश के समग्र उत्थान की शुरुआत होती है।
शब्द संख्या 910
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