प्रश्न- बिहार में जाति आधारित जनगणना की आवश्यकता और महत्व पर विस्तृत प्रकाश डालिए । 7
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उत्तर- बिहार में जाति आधारित जनगणना का आयोजन हाल के वर्षों में भारतीय
सामाजिक-राजनीतिक विमर्श का केंद्र बिंदु रहा है जिसकी आवश्यकता निम्न प्रकार
समझा जा सकता है
लाभार्थी चयन- विभिन्न श्रेणियों SC, ST,
OBC, EBC, सवर्ण जनसंख्या का सटीक पता चलने से कल्याणकारी योजनाएँ व फंड आवंटन आदि में का 'लक्षित लाभार्थी चयन' सटीकता से
चयन संभव होगा।
सामाजिक न्याय- वंचित या कम प्रतिनिधित्व वाले समूहों के वास्तविक हालात, शिक्षा, व्यावसायिक
स्थिति, गरीबी स्तर आदि के सटीक डेटा से
आरक्षण, सामाजिक उत्थान, शिक्षा एवं रोजगार योजनाएँ प्रभावी बनेगी। ।
राजनीतिक सहभागिता- सामाजिक
वर्गों के अनुपात अनुसार राजनीतिक प्रतिनिधित्व, सीट आरक्षण एवं दलित-आदिवासी-अल्पसंख्यकों के सशक्तिकरण में मदद।
इस प्रकार इसका उद्देश्य राज्य की सामाजिक संरचना, आर्थिक असमानता और कल्याणकारी योजनाओं के वितरण में पारदर्शिता एवं
प्रभावशीलता सुनिश्चित करना है जिसका महत्व निम्न है
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समावेशी विकास-वंचित, पिछड़े व
अल्पसंख्यकों को जनसंख्या के अनुपात में योजनाओं का लाभ मिल सकेगा।
शैक्षणिक व आर्थिक नीतियाँ- शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार, योजना आदि
क्षेत्रों में जाति-आधारित विषमताएं सामने आने से इनके निवारण हेतु ठोस कदम लिए जा
सकेंगे।
राजनीतिक प्रभाव- जाति-जनगणना के आंकड़ों से आरक्षण व्यवस्था, राजनीतिक एजेंडों और चुनावी समीकरणों में बदलाव से लोकतांत्रिक भागीदारी
बढ़ती है। उदाहरणस्वरूप 2023 की बिहार
जाति-जनगणना आंकड़ों ने स्थापित किया कि राज्य की 63% आबादी ओबीसी-ईबीसी वर्ग से है, जिससे नीतिगत बदलाव की आवश्यकता स्पष्ट हुई।
बिहार में जाति जनगणना समावेशी और न्यायसंगत नीति निर्धारण के लिए आवश्यक है
जो सामाजिक-आर्थिक असमानता दूर करने के साथ-साथ राजनीतिक एवं सामाजिक सशक्तिकरण का
आधार भी बनेगी।
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