बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR)
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भारतीय संविधान ने प्रत्येक वयस्क नागरिक को
सार्वभौमिक मताधिकार का अधिकार प्रदान किया है, परंतु यह अधिकार तभी सार्थक है
जब मतदाता सूची निष्पक्ष, सटीक और समावेशी हो। यदि सूची में फर्जी नाम
हों, मृत व्यक्तियों के नाम बने रहें या पात्र नागरिकों के नाम छूट जाएँ, तो चुनाव
परिणामों की वैधता पर प्रश्नचिह्न लग सकता है।
इसी पृष्ठभूमि में बिहार में जुलाई-अगस्त 2024
के दौरान चुनाव आयोग द्वारा विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision –
SIR) की
प्रक्रिया संचालित की गई। यह सामान्य वार्षिक संशोधन से अलग, कहीं
अधिक विस्तृत और गंभीर प्रयास था। बिहार का विशाल भूगोल, सामाजिक विविधता और राजनीतिक
संवेदनशीलता इसे विशेष महत्व देता है। यह प्रक्रिया लोकतांत्रिक पारदर्शिता की
दिशा में एक कदम तो थी, किंतु व्यावहारिक कठिनाइयों और चुनौतियों से भी
अछूती नहीं रही।
मतदाता सूची का पुनरीक्षण
-लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा का संवैधानिक कर्तव्य भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324
चुनाव आयोग को स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने का दायित्व देता है। यह
स्वायत्त निकाय राजनीतिक दबाव से मुक्त रहकर कार्य कार्य करना चाहिए। सुप्रीम
कोर्ट ने इस स्वतंत्रता को कई फैसलों में रेखांकित किया है
उपरोक्त संवैधानिक प्रावधान एवं न्यायालय
के निर्णयों से स्पष्ट है कि मतदाता सूची का पुनरीक्षण केवल तकनीकी प्रक्रिया
नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों की सुरक्षा
का संवैधानिक कर्तव्य है। |
ऐतिहासिक
एवं संवैधानिक परिप्रेक्ष्य
संविधान और जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के
अंतर्गत चुनाव आयोग को समय-समय पर मतदाता सूची के पुनरीक्षण का अधिकार और दायित्व
प्राप्त है। भारत में स्वतंत्रता के बाद से ही नियमित रूप से मतदाता सूची का
अद्यतन होता रहा है लेकिन बिहार जैसे राज्य में इसकी आवश्यकता एवं महत्व को निम्न
प्रकार समझा जा सकता है
- बिहार घनी आबादी और बड़ी संख्या में प्रवासी लोगों का राज्य है जिनमें से कई लोगों के नाम अपडेट नहीं पाए गए।
- राजनीति जातीय समीकरणों व ग्रामीण-शहरी विभाजन पर आधारित है।
- पूर्व में कई बार आरोप लगे कि मतदाता सूची में फर्जी नाम जोड़े गए या पात्र मतदाताओं के नाम हटाए गए। एक ही व्यक्ति के कई नाम तथा कई मृत व्यक्तियों के नाम वर्षों तक हटाए नहीं गए।
- सीमावर्ती जिलों की संवेदनशीलता में नेपाल और बंगाल की सीमा से लगे जिलों में अवैध प्रविष्टियों का संदेह भी है।
इस प्रकार बिहार में पुनरीक्षण केवल प्रशासनिक
कार्यवाही नहीं, बल्कि लोकतंत्र की विश्वसनीयता की कसौटी है और इसी कारण चुनाव आयोग ने SIR जैसी
विशेष प्रक्रिया अपनाई। हांलाकि इसके क्रियान्वयन को लेकर कई आशंकाएँ भी हैं।
विशेष गहन पुनरीक्षण में
क्रियान्वयन संबंधी आशंकाएं |
|
राजनीतिक हस्तक्षेप की आशंका |
विपक्षी दलों एवं आलोचकों का आरोप है कि SIR के तहत
मतदाता सूची में चयनात्मक बदलाव कर कुछ समुदायों को लाभ या नुकसान पहुँचाया जा
सकता है, जिससे निर्वाचन क्षेत्रों का जनसांख्यिकीय
संतुलन और चुनावी परिणाम प्रभावित हो सकते हैं। |
आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल |
बार-बार उठते आरोप आयोग की निष्पक्षता और
नैतिक वैधता पर प्रश्न खड़े करते हैं, जिससे मतदाताओं का विश्वास कमजोर होता है और
लोकतंत्र की प्रक्रिया प्रभावित हो सकती है। |
डेटा सुरक्षा और निजता |
आधार और EPIC को जोड़ने की प्रक्रिया डेटा
सुरक्षा और निजता मानकों के उल्लंघन का जोखिम रखती है। ग्रामीण और गरीब समुदायों
में डिजिटल साक्षरता की कमी डिजिटल बहिष्करण का खतरा बढ़ाती है। |
नागरिक सहभागिता की कमी |
प्रक्रिया की जानकारी ग्रामीण, सुदूर
क्षेत्रों और कमजोर समुदायों तक पर्याप्त नहीं पहुँचती। इसके कारण महिलाएँ, आदिवासी, प्रवासी
मजदूर और गरीब पंजीकरण से वंचित रह जाते हैं, जिससे SIR की
प्रभावशीलता घटती है। |
SIR की समयरेखा और विशेषताएँ
चुनाव आयोग ने 10 जुलाई 2024 से 31 अगस्त 2024
तक SIR की घोषणा की और इस समयावधि में पूरे राज्य के 90,712 बूथों पर घर-घर जाकर
निम्न प्रकार से सत्यापन किया गया।
- घर-घर सत्यापन – BLO को हर घर पर जाकर मतदाताओं की पहचान करनी थी।
- डिजिटल रिकॉर्डिंग – पहली बार टैबलेट व मोबाइल ऐप से डेटा एंट्री का प्रयास।
- विशेष फोकस – सीमावर्ती जिलों, बाढ़ग्रस्त व राजनीतिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों पर।
- महिला मतदाता – विशेष अभियान चलाकर महिलाओं को सूची में शामिल करने पर जोर।
भौगोलिक
और सामाजिक चुनौतियाँ
बिहार का भूगोल और सामाजिक ढांचा इस प्रक्रिया
को जटिल बना देता है।
- उत्तर बिहार – नेपाल सीमा से लगे क्षेत्र, जहाँ बाढ़ और विस्थापन सामान्य है। हर साल गाँव उजड़ते हैं, जिससे मतदाताओं का स्थायी पंजीकरण कठिन हो जाता है।
- दक्षिण बिहार (मगध क्षेत्र) – कुछ जिलों में नक्सली प्रभाव के कारण BLO को सुरक्षा के साथ काम करना पड़ा।
- सीमांचल (अररिया, किशनगंज, कटिहार) – यहाँ प्रवासी व सीमा-पार आवाजाही की वजह से फर्जी नाम जोड़ने की आशंका रही।
- शहरी क्षेत्र (पटना, गया, मुजफ्फरपुर) – किरायेदार व प्रवासियों की लगातार बदलती संख्या ने सत्यापन को चुनौतीपूर्ण बनाया। पटना शहर में किरायेदारों और प्रवासी मजदूरों के कारण बार-बार बदलाव से मतदाता सूची में गड़बड़ी पायी गयी । SIR के दौरान एक ही मकान में 20-25 पुराने नाम पाए गए।
- ग्रामीण क्षेत्र – दस्तावेज़ों की कमी और कम जागरूकता के कारण BLO को दुविधा रही कि किसे शामिल करें और किसे न करें।
आधार
संबंधी विवाद के बाद सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को बिहार विशेष गहन पुनरीक्षण
(Special intensive revision: SIR) में “आधार नंबर” को 12वें
दस्तावेज के रूप में स्वीकार करने का निर्देश दिया। आधार
नंबर से संबंधित निर्णय में पुट्टास्वामी निर्णय (2018) महत्वपूर्ण है जिसमें
सुप्रीम कोर्ट ने कल्याणकारी योजनाओं और सरकारी सेवाओं के लिए आधार की संवैधानिक
वैधता को बरकरार रखा। |
प्रक्रियागत
चुनौतियाँ
- तकनीकी समसयाएं- SIR प्रक्रिया में टैबलेट और ऐप का प्रयोग किया गया हालांकि ग्रामीण इलाकों में नेटवर्क की कमी और डिजिटल स्किल्स की कमी बाधक बनी।
- समय की कमी- समय की कमी भी देखने को मिली क्योंकि दो महीने की अवधि इतने बड़े राज्य के लिए पर्याप्त नहीं।
- मानव संसाधन का अभाव- इतने बड़ी जनसंख्या वाले राज्य में BLO और कर्मचारियों पर भारी दबाव रहा।
- राजनीतिक हस्तक्षेप- स्थानीय नेताओं द्वारा नाम हटाने या जोड़ने में दबाव। किशनगंज जिला में BLO पर राजनीतिक दबाव और ग्रामीणों की शिकायतें भी मिली।
- प्रवासी मजदूरों का संकट – लाखों पात्र मतदाता सत्यापन में अनुपस्थित रहे जिससे उनका नाम अपडेट नहीं हो पाया।
- फर्जी दस्तावेज़ – सीमावर्ती जिलों में फर्जी दस्तावेज़ की बड़ी चुनौती देखी गयी।
- कम मानदेय – BLO को ₹5000–7000 मानदेय मिला, जबकि कार्यभार अत्यधिक था।
- जन-जागरूकता- अखबार, पोस्टर और लाउडस्पीकर से प्रचार किया गया लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में प्रभाव सीमित रहा।
सकारात्मक परिणाम
- लाखों फर्जी और मृत प्रविष्टियाँ हटाए जाने से मतदाता सूची पहले की तुलना में कहीं अधिक सटीक हो गई।
- पहली बार कई जिलों में वास्तविक मतदाता संख्या सामने आई, जिसने निर्वाचन आयोग की पारदर्शिता के दावे को मजबूत किया।
- इस प्रक्रिया के दौरान महिलाओं की भागीदारी को बढ़ाने पर विशेष ध्यान दिया गया, जिससे महिला मतदाताओं का अनुपात बेहतर हुआ। कुछ क्षेत्रों में डिजिटल रिकॉर्डिंग और सत्यापन तकनीकों के प्रयोग से पारदर्शिता और दक्षता में भी वृद्धि हुई।
नकारात्मक पहलू
- कई पात्र मतदाताओं के नाम गलती से हटा दिए गए, जिससे उनके मतदान अधिकार पर प्रतिकूल असर पड़ा।
- बूथ लेवल ऑफिसर (BLO) की कार्यकुशलता और निष्पक्षता पर सवाल उठे, क्योंकि कई जगहों पर उनकी लापरवाही और पक्षपात के आरोप लगे।
- विपक्षी दलों ने इस पूरी प्रक्रिया को राजनीतिक रूप से प्रेरित करार दिया और चुनावी लाभ-हानि से जोड़कर आलोचना की।
- कई जगह जनता को पुनरीक्षण प्रक्रिया की जानकारी ही नहीं मिली, जिसके कारण वे अपना नाम सूची में सही नहीं कर पाए।
बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) लोकतांत्रिक
सुधार की दिशा में एक साहसिक पहल थी। इसने यह सिद्ध किया कि चुनाव की विश्वसनीयता
सुनिश्चित करने के लिए मतदाता सूची का शुद्धिकरण अनिवार्य है। इससे फर्जी नाम हटे, मृत
व्यक्तियों की प्रविष्टियाँ समाप्त हुईं और महिलाओं को जोड़ने की दिशा में प्रगति
हुई।
कुछ का कहना था कि यह कदम बेहद आवश्यक था
क्योंकि मतदाता सूची में वर्षों से चली आ रही गड़बड़ियों और फर्जी नामों को हटाना
लोकतंत्र की मजबूती के लिए अनिवार्य था। उनका विश्वास था कि अब चुनाव अधिक
पारदर्शी होंगे और वास्तविक मतदाता ही मतदान कर सकेंगे।
इसके विपरीत कुछ लोगों ने इसे जनता के अधिकारों का हनन बताया। उनका तर्क था कि पात्र मतदाताओं को अनावश्यक रूप से परेशान किया गया, कई जगह BLO ने बिना पूरी जाँच के नाम हटा दिए और इससे बड़े पैमाने पर सही मतदाताओं का अधिकार छिन गया। राजनीतिक दलों, खासकर विपक्ष ने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया सत्तारूढ़ दल के हित में की गई, जिससे चुनावी निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लग गया।
इसके साथ यह भी उजागर हुआ कि समय और संसाधनों
की कमी, प्रवासी मजदूरों और ग्रामीण दस्तावेज़ी अभाव की समस्या और राजनीतिक
हस्तक्षेप जैसी चुनौतियाँ पूरी प्रक्रिया की पारदर्शिता और प्रभावशीलता को
प्रभावित करती हैं जिसके लिए निम्न सुधारों को लागू किया जाना चाहिए।
- तकनीकी सुदृढ़ीकरण – आधार और अन्य पहचान पत्रों से मतदाता सूची का मज़बूत लिंक।
- मानव संसाधन सुधार – BLO को पर्याप्त प्रशिक्षण और उचित मानदेय।
- जन-जागरूकता बढ़ाना – विशेषकर ग्रामीण और सीमावर्ती क्षेत्रों में।
- राजनीतिक निष्पक्षता – चुनाव आयोग की स्वायत्तता और निष्पक्षता सुनिश्चित करना।
बिहार का अनुभव स्पष्ट करता है कि मतदाता सूची का शुद्धिकरण सिर्फ तकनीकी प्रक्रिया नहीं, बल्कि लोकतांत्रिक अधिकारों की रक्षा का साधन है। विशेष गहन पुनरीक्षण जैसे उपाय लोकतंत्र की पारदर्शिता बढ़ा सकते हैं, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप, डिजिटल असमानता और नागरिक सहभागिता की कमी इसे संवेदनशील और विवादास्पद बनाते हैं।
इसलिए, प्रभावी परिणाम के लिए तकनीकी
नवाचारों के साथ स्वतंत्र पर्यवेक्षण और समावेशी जागरूकता अभियान अनिवार्य हैं।
संवैधानिक और विधायी सुधार, जैसे आयोग की स्वायत्तता और चुनाव लोकपाल की
स्थापना, लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास को मजबूत करेंगे और चुनावी परिणामों की
वैधता सुनिश्चित करेंगे।
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