प्रश्न: सूचना का अधिकार अधिनियम (RTI) लागू होने के बाद भारत में लोकतांत्रिक सशक्तिकरण की ऐतिहासिक बदलाव आया है। हांलाकि पिछले कुछ वर्षों में इसके समक्ष कई नई चुनौतियाँ भी उभर कर सामने आयी है जिनके समाधान हेतु आप क्या सुझाव देना चाहेंगे। 38 Marks
उत्तर: सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 भारतीय लोकतंत्र की सबसे क्रांतिकारी पहल रही है।
इसने नागरिक को “जानने के अधिकार” के माध्यम से शासन को जवाबदेह बनाया और पारदर्शिता
को संस्थागत रूप दिया। RTI ने जनता को सत्ता के केंद्र में लाकर लोकतांत्रिक
सशक्तिकरण की दिशा में ऐतिहासिक परिवर्तन किया जिसकी लोकतांत्रिक उपलब्धियों को निम्न प्रकार देख सकते हैं:-
- इसके द्वारा शासन को “जनता की निगरानी” में लाया गया।
- भ्रष्टाचार और कदाचार के अनेक मामलों का खुलासा हुआ।
- स्थानीय निकायों से लेकर मंत्रालयों तक उत्तरदायित्व और पारदर्शिता बढ़ी।
- इसने नागरिकों को अपने अधिकारों के प्रति सजग और संगठित किया।
इस प्रकार सूचना का अधिकार अधिनियम लोकतांत्रिक सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है हांलाकि इसके
साथ साथ कुछ नई चुनौतियां भी हाल के वर्षों में उभर कर आयी जो इसकी प्रभावशीलता को
प्रभावित कर रहा है जिसमें प्रमुख है:-
- सूचना आयोगों में पद रिक्तियाँ और लंबित मामलों का अंबार।
- आयोगों की स्वायत्तता में कमी तथा राजनीतिक प्रभाव का बढ़ना।
- डिजिटल निजता कानून और सरकारी गोपनीयता अधिनियमों के चलते सूचना तक पहुँच सीमित होना।
- RTI कार्यकर्ताओं पर हमले और सुरक्षा की कमी जैसी समस्याएं।
- नागरिकों में RTI के प्रति घटती सक्रियता और तकनीकी जटिलताएँ।
- 2023–24 की केन्द्रीय सूचना आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, सूचना न मिलने के मामलों में 30% से अधिक वृद्धि दर्ज की गई है जो संकेत देता है कि इसकी प्रभावशीलता मंद हो रही है।
शासन की डिजिटलीकरण नीतियाँ, जहाँ सुशासन को बढ़ावा देती हैं, वहीं कई बार
सूचना नियंत्रण के नए उपकरण भी बन जाती हैं। अत: इसकी प्रभावशीलता पुनर्स्थापित करने
और प्रभावी रूप में लागू करने हेतु आयोगों में शीघ्र नियुक्तियाँ और पूर्ण स्वायत्तता
सुनिश्चित किए जाने के साथ कार्यकर्ताओं की सुरक्षा हेतु कानूनी संरक्षण तंत्र विकसित
करना होगा।
निष्कर्षत: सूचना का अधिकार केवल एक कानून नहीं, बल्कि लोकतंत्र का आत्मा है।
यह शासन और जनता के बीच विश्वास का पुल है। आज आवश्यकता इस बात की है कि नागरिक शिक्षा
और डिजिटल साक्षरता से सूचना-संस्कृति को पुनः प्रज्वलित किया जाए ताकि लोकतंत्र
केवल चुनावों तक सीमित न रहकर उत्तरदायी और पारदर्शी शासन का प्रतीक बन सके।
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प्रश्न: डीपफेक्स क्या हैं और ये लोकतंत्र तथा समाज के लिए किस प्रकार खतरा उत्पन्न
करते हैं? 8 Marks
उत्तर: डीपफेक्स वीडियो, फोटो या ऑडियो ऐसे डिजिटल मीडिया कंटेंट होते हैं
जो वास्तविक लगते हैं, लेकिन इन्हें कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और डीप लर्निंग तकनीक से बदला
या निर्मित किया जाता है। एआई मॉडल हजारों वास्तविक छवियों या आवाज़ों से सीखकर चेहरों
को बदलने, आवाज़ों की नकल करने या किसी व्यक्ति की गतिविधियों को परिवर्तित करने में सक्षम
होते हैं।
हालाँकि डीपफेक्स का उपयोग फिल्मों, वर्चुअल ट्रायल, या विज्ञापन
जैसे क्षेत्रों में रचनात्मक रूप से किया जा सकता है, परंतु इसके नकारात्मक प्रभाव
कहीं अधिक गंभीर हैं और यह राष्ट्रीय सुरक्षा और लोकतांत्रिक संस्थाओं के लिए निम्न
प्रकार से चुनौती बन रहे हैं
- नकली राजनीतिक भाषण या वीडियो मतदाताओं को गुमराह कर सकते हैं और हिंसा या अविश्वास फैला सकते हैं।
- डीपफेक्स साइबर बुलिंग और प्रतिष्ठा हानि का बड़ा माध्यम बन रहे हैं। अध्ययनों के अनुसार, 90–95% डीपफेक्स अश्लील प्रकृति के होते हैं जो महिलाओं को निशाना बनाते हैं।
- ये पहचान की चोरी और भ्रामक प्रचार के माध्यम से अपराधियों के लिए नया औज़ार बन चुके हैं।
- डीपफेक्स का पता लगाना कठिन और महंगा है और जन-जागरूकता की कमी से इनकी विश्वसनीयता और बढ़ जाती है।
इस प्रकार डीपफेक्स के नकारात्मक प्रभाव लोकतंत्र और समाज के लिए खतरा
उत्पन्न कर रहे हैं । अत: इनसे निपटने के लिए कानूनी ढांचा, तकनीकी उपकरण
और डिजिटल साक्षरता को सशक्त बनाए जाने की आवश्यकता है।







