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Dec 5, 2025

civil service essay in hindi for BPSC/UPSC/UPSSC

 “समय किसी को हराता नहीं, केवल उसके कर्मों का प्रतिफल लौटाता है”


समय वह शक्ति है, जिसके सामने संसार की किसी भी सत्ता, धन, बुद्धि, सामर्थ्य या अहंकार का कोई स्थायी अस्तित्व नहीं टिकता। प्रकृति के समस्त नियमों में यदि कोई एक ऐसा सिद्धांत है जो सचमुच “सार्वभौमिक” है, तो वह समय ही है। समय न किसी को चेतावनी देता है, न किसी के लिए ठहरता है,  वह निरंतर, मौन और निष्पक्ष गति से आगे बढ़ता हुआ मनुष्य को उसके कर्मों और निर्णयों का दर्पण दिखाता जाता है। इसीलिए वेदों में समय को “कालः सर्वं भवति” कहा गया है अर्थात्‌ काल ही सब कुछ है।

 

समय की सबसे बड़ी विडंबना यह है कि मनुष्य इसका मूल्य अक्सर तब समझता है जब यह उसके हाथों से निकल चुका होता है। जीवन में असफलता या संकट आने पर व्यक्ति परिस्थितियों और भाग्य को दोष देता है, किंतु समय का मौन संदेश यही है कि हर सुख-दुःख, हर उपलब्धि-विफलता की जड़ व्यक्ति के अपने निर्णयों, अपने दृष्टिकोण और अपने कर्मों में ही होती है। समय न मित्र है, न शत्रु, वह केवल कर्मफल का वाहक है जिसके प्रतिफल के रूप हम प्राप्‍त होता हैं।

 

भारतीय दर्शनों में समय को मनुष्य का सबसे कठोर किन्तु उपयोगी शिक्षक माना गया है। यह शिक्षक कभी कटु परीक्षा लेकर जीवन की कमजोरियों को उजागर करता है, तो कभी अनुभवों को परिपक्वता का रूप देकर व्यक्ति को मजबूत बनाता है। समय यह भी सिखाता है कि संसार में कुछ भी स्थायी नहीं है- न सम्पन्नता, न संकट; न विजय, न पराजय। यही अस्थिरता जीवन की सत्यता है। महात्मा बुद्ध ने कहा था “क्षणभंगुरता ही परम सत्य है।” समय इसी सत्य को मनुष्य के अनुभव में रूपांतरित करता है।

 

इतिहास यह साक्ष्य देता है कि जो समाज समय के संकेतों को नहीं समझ पाता, वह विनाश या पतन का सामना करता है। सिंधु-घाटी सभ्यता की जलवायु अस्थिरता, रोमन साम्राज्य की अति-विस्तार नीति, विश्व युद्धों के बाद वैश्विक व्यवस्था का पुनर्गठन ये सभी परिवर्तन समय की चेतावनी थी। जो कालखंड सामाजिक-आर्थिक नवाचारों को स्वीकार करते गए, वे फले-फूले जबकि जिन्होंने समय के प्रवाह को अनसुना किया, वे जड़ता का शिकार हो गए और नष्‍ट हो गए। इसलिए समाज के लिए समय का सम्मान केवल सांस्कृतिक आवश्यकता नहीं, बल्कि अस्तित्व का आधार है।

 


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समय मनुष्य की असली पहचान बताता है। जो व्यक्ति समय का सम्मान नहीं करता, वह धीरे-धीरे अवसरों से दूर होता जाता है। समय उसे ठहराव, असुरक्षा और हताशा के चक्र में धकेल देता है। इसके उलट, जो व्यक्ति समय का सदुपयोग करता है, वह स्वयं को निरंतर परिवर्तित और परिष्कृत करता है। प्लेटो ने कहा था “समय वह छवि है जिसमें अनंतता का प्रतिबिंब दिखाई देता है।” यह कथन इस बात का संकेत है कि वर्तमान का हर क्षण भविष्य की नींव है।

 

सत्य मनुष्य को धैर्य, अनुशासन, संयम और संतुलन जैसी मनोवैज्ञानिक क्षमताएँ प्रदान करता है। आधुनिक मनोविज्ञान कहता है कि विपरीत परिस्थितियों में भी स्वयं को संभालने की क्षमता समय की सबसे बड़ी देन है। समय सिखाता है कि हर कष्ट स्थायी नहीं होता, और हर सुख अंतिम नहीं। यह समझ व्यक्ति को मानसिक दृढ़ता और आत्मविश्वास प्रदान करती है, जिससे वह जीवन की चुनौतियों से संतुलित होकर गुजरता है।

 

आज दुनिया जलवायु संकट, तकनीकी विघटन, जनांकीय बदलाव, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और सूचना-दबाव जैसे अनेक परिवर्तनशील मोड़ों से गुजर रही है। ऐसे समय में समाज और नीति-निर्माताओं की संवेदनशीलता और दूरदर्शिता की परीक्षा होती है। यदि समाज समय के इन संकेतों को समय रहते न समझे, तो भविष्य भयावह भी हो सकता है।

 

एक प्रभावी शासन वही है जो समय की बदलती आवश्यकताओं को समझ सके और भविष्य-उन्मुख नीतियाँ बना सके। भारत में डिजिटलीकरण, नवीकरणीय ऊर्जा, स्वास्थ्य ढांचा सुधार, आपदा प्रबंधन प्रणाली, सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ और जनसंख्या-नीतियाँ समय के अनुसार विकसित की गई पहलें हैं। यदि इन्हें समय पर लागू न किया जाता, तो भारत की विकासयात्रा आज कहीं अधिक जटिल होती।

 

समय का मौन मनुष्य को यह भी सिखाता है कि जीवन की सच्चाई शब्दों में नहीं, अनुभवों में छिपी है। समय कभी बोलता नहीं, पर उसका मौन ही सबसे प्रखर भाषा है। वह किसी पर कृपा नहीं करता, न किसी से द्वेष,  वह केवल कर्म के अनुरूप फल देता है। कालिदास के शब्द “क्षणं जीवितं” मनुष्य को यह याद दिलाते हैं कि जीवन क्षणों का संग्रह है, और प्रत्येक क्षण का सम्मान करना ही जीवन का सम्मान करना है।

 

समय का सबसे बड़ा सत्य यह है कि वह मनुष्य को उसकी सीमाओं और उसकी संभावनाओं दोनों से परिचित कराता है। समय जितना कठोर है, उतना उदार भी है। वह भूलों की कीमत अवश्य वसूलता है, पर सुधार और पुनर्निर्माण का अवसर भी प्रदान करता है। जो व्यक्ति समय के मूल्य को समझ लेता है, उसके लिए जीवन केवल घटनाओं का क्रम नहीं, बल्कि आत्मसुधार की यात्रा बन जाता है।

 

निष्कर्षतः समय वह शक्ति है जो मनुष्य के जीवन को, समाज के भविष्य को और सभ्यताओं के अस्तित्व को आकार देती है। मूल इसी बात में निहित है कि मनुष्य समय को मित्र की तरह समझे, उसकी गति से चले, उसके संकेतों को सुने और उसके साथ स्वयं को परिवर्तित करता रहे। जो समय का सम्मान करता है, समय उसे गौरव देता है और जो समय को खो देता है, वह स्वयं को खो देता है। जीवन को सार्थक बनाने का सबसे बड़ा मंत्र यही है कि समय की भाषा को समझा जाए क्योंकि अंततः समय ही वह सत्य है जो न जन्म लेता है, न मरता है, पर मनुष्य को उसके कर्मो का प्रतिफल देकर आगे बढ़ता जाता है।




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