BPSC Civil Service Mains Answer writing Test
प्रश्न : “हार्ड-टू-अबेट” किसे कहा जाता है?
भारत के “हार्ड-टू-अबेट” क्षेत्रों की चुनौतियों और उत्सर्जन-न्यूनकरण के लिए आवश्यक उपायों को
बताएं। 6 अंक
उत्तर- "हार्ड-टू-अबेट" क्षेत्र
में ऐसे क्षेत्र शामिल होते हैं जिनमें
डीकार्बोनाइजेशन में सबसे कठिन हैं यानी उच्च ऊर्जा-खपत और उच्च उत्सर्जन के कारण
उत्सर्जन को कम करना बहुत मुश्किल होता है।
भारत की जलवायु नीति की सबसे जटिल चुनौती ऐसे ही “हार्ड-टू-अबेट”
क्षेत्र है जिनमें बिजली, सड़क परिवहन,
इस्पात और सीमेंट शामिल हैं। ये क्षेत्र उच्च ऊर्जा-घनत्व, कोयले पर निर्भरता और सीमित स्वच्छ विकल्पों के कारण डीकार्बोनाइज़ेशन में
अत्यंत कठिन माने जाते हैं।
इन क्षेत्रों को डीकार्बोनाइज़ करने के लिए वार्षिक जलवायु वित्त की
आवश्यकता GDP के लगभग 1.3% आंकी गई है। यह वित्तीय बोझ दर्शाता है
कि केवल सरकारी प्रयास पर्याप्त नहीं होंगे और निम्न नीतिगत उपायों को अपनाना
होगा
- निजी निवेश को प्रोत्साहित करते हुए EV, ग्रीन हाइड्रोजन, कम-कार्बन तकनीक और ऊर्जा-कुशल औद्योगिक समाधानों को विस्तार देना।
- सरकार द्वारा EV चार्जिंग नेटवर्क, स्मार्ट ग्रिड, बैटरी और हाइड्रो-पंप स्टोरेज जैसे अवसंरचनात्मक सुधारों में निवेश बढ़ाना।
- वैश्विक सहयोग के माध्यम से कार्बन कैप्चर, स्टोरेज, ग्रीन स्टील तकनीक और स्वच्छ सीमेंट उत्पादन के उन्नत मॉडल प्राप्त करना।
स्पष्ट है कि “हार्ड-टू-अबेट” क्षेत्रों में
डिकार्बोनाइजेशन केवल तकनीकी बदलाव नहीं, बल्कि वित्त,
नीति और अंतरराष्ट्रीय साझेदारी का समन्वित प्रयास मांगता है।
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प्रश्न : बिहार सरकार द्वारा जलवायु परिवर्तन से निपटने की दिशा में शमन
एवं अनुकूलन के लिए उठाए गए प्रमुख कदमों को बताएं। 6 अंक
उत्तर- बिहार जलवायु परिवर्तन के प्रभावों बाढ़, सूखा,
ताप वृद्धि और नदी-क्षरण के कारण अत्यधिक संवेदनशील राज्य है। इसी
कारण राज्य सरकार ने शमन (Mitigation) और अनुकूलन (Adaptation)—दोनों स्तरों पर एक बहुआयामी नीति-ढाँचा तैयार किया है जिसे निम्न प्रकार
देख सकते हैं:-
शमन प्रयास
- ग्रीनहाउस गैस में
कमी के लिए परिवहन, ऊर्जा, कृषि क्षेत्रों में निर्णायक
कदम उठाए।
- ई-रिक्शा पर 50% रोड टैक्स
छूट, CNG/EV वाहनों को बढ़ावा और 15 वर्ष
पुराने वाहनों पर प्रतिबंध।
- बिहार स्वच्छ ऊर्जा नीति 2019 के तहत
पटना में डीज़ल तिपहिया वाहनों का परिचालन बंद करना और CNG तिपहिया
पर सब्सिडी प्रदान करना स्वच्छ परिवहन अवसंरचना को सुदृढ़ करता है।
- कृषि में सौलर पंपों का
प्रसार और पराली जलाने पर सब्सिडी रोकना, कृषि क्षेत्र के उत्सर्जन को
नियंत्रित करने का प्रयास है।
- UNEP के साथ साझेदारी में निम्न-कार्बन विकास रणनीति तैयार की जा रही है, जो दीर्घकालिक जलवायु कार्रवाई का आधार बनेगी।
अनुकूलन प्रयास
- जल–जीवन–हरियाली अभियान, कृषि वानिकी
नीति 2018, और CAMPA वनीकरण कार्यक्रम हरित
आवरण बढ़ाकर जलवायु-सहनशीलता विकसित कर रहे हैं।
- “एक पेड़ माँ के नाम” अभियान के तहत 3.89 करोड़ पौधे लगाने और 2028 तक 17% हरित आवरण का लक्ष्य बिहार के दीर्घकालिक पारिस्थितिकी संरक्षण को मजबूत करते हैं।
- एकल-उपयोग प्लास्टिक पर
प्रतिबंध, प्लास्टिक से सड़क निर्माण, और जन-जागरूकता अभियान स्थानीय
पर्यावरण प्रबंधन को मजबूत बनाते हैं।
निष्कर्षत: समग्र रूप से, बिहार ने शमन और अनुकूलन दोनों क्षेत्रों में महत्वपूर्ण
प्रगति की है। आगे बढ़ने के लिए वित्तीय संसाधनों का विस्तार, तकनीकी क्षमता निर्माण और सामुदायिक भागीदारी को और मज़बूत करना आवश्यक
होगा।
प्रश्न : भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था में नवीन प्रौद्योगिकियों की भूमिका और
उनसे उत्पन्न चुनौतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। 36 Marks
उत्तर- भारतीय कृषि अर्थव्यवस्था आज जलवायु परिवर्तन, संसाधनों के
क्षरण, श्रम संकट, और बढ़ती खाद्य मांग
जैसी बहुस्तरीय चुनौतियों का सामना कर रही है। ऐसे समय में नवीन प्रौद्योगिकियाँ
जैसे AI, जैव प्रौद्योगिकी, IoT, ड्रोन,
नैनो टेक्नोलॉजी, ब्लॉकचेन और रोबोटिक्स कृषि
क्षेत्र को उत्पादक, टिकाऊ और प्रतिस्पर्धी बनाने की क्षमता
रखती हैं जिसे निम्न प्रकार समझ सकते हैं:-
कृषि परिवर्तन में नवीन प्रौद्योगिकियों
की भूमिका
- स्मार्ट कृषि और IoT: सेंसर
आधारित खेती मिट्टी की नमी, पोषक तत्व और मौसम का रीयल-टाइम
डेटा देती है, जिससे 30–40% जल-बचत और 50%
तक कीटनाशक उपयोग में कमी संभव होती है। ड्रोन आधारित स्प्रेइंग फसल
सुरक्षा को सटीक बनाती है।
- कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI): AI आधारित रोग
पहचान, बीज चयन और सप्लाई चेन प्रबंधन कृषि निर्णयों को
वैज्ञानिक बनाते हैं। डेयरी क्षेत्र में स्मार्ट सेंसर पशुओं के स्वास्थ्य और दूध
की गुणवत्ता सुधार रहे हैं।
- जैव प्रौद्योगिकी- जैव
प्रोद्योगिकी से कीट-प्रतिरोधी, सूखा-सहनशील और पोषकता बढ़ी हुई फसलें विकसित कर रही हैं।
जैव उर्वरक और बायोपेस्टीसाइड रासायनिक निर्भरता कम करते हैं।
- नैनो टेक्नोलॉजी- नैनो यूरिया, नैनो-डीएपी
और नैनो सेंसर मृदा स्वास्थ्य, लागत कमी और रोग पहचान में
उपयोगी हैं। नैनो-कोटिंग से खाद्यान्न भंडारण बेहतर होता है।
- ब्लॉकचेन और डिजिटल
प्लेटफ़ॉर्म- Farm-to-Fork ट्रेसबिलिटी, ई-नाम, और डिजिटल
भुगतान पारदर्शिता व बाजार पहुंच को बढ़ाते हैं।
हालाँकि नवीन प्रौद्योगिकियाँ कृषि को दक्ष, टिकाऊ और प्रतिस्पर्धी बनाने
की क्षमता रखती हैं परंतु इनका व्यापक प्रसार नई चुनौतियाँ एवं जटिलताएँ भी लाता
है
- डिजिटल असमानता- ग्रामीण
क्षेत्रों में इंटरनेट, बिजली और तकनीक पहुँच सीमित है, जिससे
नवाचार केवल बड़े किसानों तक सिमटने का खतरा है।
- जैव विविधता पर प्रभाव- GM फसलों से
स्थानीय बीजों का क्षरण और पारिस्थितिक असंतुलन संभव है।
- पर्यावरणीय खतरे- अत्यधिक नैनो-कण उपयोग मिट्टी व जल प्रणाली के लिए जोखिमपूर्ण है।
- डेटा सुरक्षा और गोपनीयता- IoT व AI
आधारित प्रणालियों में डेटा लीक और साइबर हमलों का जोखिम बढ़ता है।
- रोज़गार संकट- रोबोटिक्स एवं स्वचालन से कृषि मज़दूरों का विस्थापन हो सकता है।
- आर्थिक बोझ- उच्च लागत वाली तकनीकें छोटे व सीमांत किसानों की पहुंच से बाहर हैं।
- तकनीकी निर्भरता- अत्यधिक स्वचालन किसानों की निर्णय क्षमता और पारंपरिक ज्ञान को कमजोर कर सकता है।
निष्कर्षत: नवीन प्रौद्योगिकियाँ भारतीय कृषि को अधिक उत्पादक, टिकाऊ और
जलवायु-लचीला बना सकती हैं परंतु इनसे उत्पन्न चुनौतियों को अनदेखा नहीं किया जा
सकता। अत: समावेशी अवसंरचना, किसान प्रशिक्षण, जैव विविधता संरक्षण और सस्ती तकनीक जैसे उपाए भारत को तकनीक-आधारित कृषि
क्रांति की ओर सुरक्षित रूप से आगे बढ़ा सकेगा।


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