BPSC test series and answer writing practice
प्रश्न:“भारत में नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार केवल पर्यावरणीय
आवश्यकता नहीं, बल्कि आर्थिक अवसरों का नया क्षितिज भी खोलता
है।” स्पष्ट कीजिए। 6 अंक
उत्तर: भारत में नवीकरणीय ऊर्जा के तेजी से बढ़ते विस्तार का मूल कारण केवल
जलवायु परिवर्तन की चुनौती नहीं, बल्कि उभरते आर्थिक अवसरों का मजबूत आधार भी है। सौर ऊर्जा
में 30.2% और कुल नवीकरणीय क्षमता में 14.2% की वार्षिक वृद्धि आर्थिक अवसरों को बढ़ाती है जिसे निम्न प्रकार देख
सकते हैं –
आयात निर्भरता में कमी
- भारत प्रतिवर्ष लाखों करोड़ रुपये जीवाश्म ईंधन आयात पर खर्च करता है, जबकि सौर और
पवन ऊर्जा भारत के विस्तृत भूभाग पर सर्वसुलभ हैं जो ऊर्जा आयात निर्भरता में कमी लाने में सहायक है।
- इसके अलावा नवीकरणीय ऊर्जा की स्थिर लागत उद्योगों को दीर्घकालिक प्रतिस्पर्धी लाभ देती है।
रोजगार सृजन
- IRENA के अनुसार 2023 में नवीकरणीय ऊर्जा क्षेत्र में 1.02 मिलियन नौकरियाँ उत्पन्न हुईं, जिनमें जलविद्युत और सौर दोनों अग्रणी रहे।
- यह ऊर्जा क्षेत्र अब विनिर्माण, अनुसंधान, स्थापना,
संचालन और रखरखाव में विविध प्रकार के रोजगार का आधार बन चुका है।
विकास मॉडल
- नवीकरणीय ऊर्जा में भारतीय राज्यों की भूमिका जैसे PM-कुसुम के
तहत कृषि सौरकरण, गुजरात–राजस्थान की सौर परियोजनाएँ,
तमिलनाडु–महाराष्ट्र की पवन पहल, बिहार की कृषि
सोलर पम्प आदि यह दर्शाती है कि नवीकरणीय ऊर्जा स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं के लिए
विकास मॉडल बन चुकी है।
यद्यपि तकनीकी लागत, भंडारण क्षमता और ग्रिड प्रबंधन जैसी बाधाएँ मौजूद हैं,
परंतु आर्थिक लाभों का दायरा इतना व्यापक है कि नवीकरणीय ऊर्जा भारत
के विकास का भविष्य आधार बनती जा रही है।
शब्द संख्या-230
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प्रश्न :“कोयले पर निर्भरता और नवीकरणीय ऊर्जा का विस्तार दोनों की
समानांतर उपस्थिति भारत के ऊर्जा परिदृश्य का जटिल यथार्थ है।” विश्लेषण कीजिए। 6 अंक
उत्तर: भारत का ऊर्जा ढाँचा दो विरोधी प्रवृत्तियों के बीच संतुलन साधने की
चुनौती से गुजर रहा है। एक ओर नवीकरणीय ऊर्जा का तेजी से विस्तार तो दूसरी ओर
कोयले पर अत्यधिक निर्भरता यह दर्शाता हे कि दोनों की समानांतरण उपस्थिति भारत के
वर्तमान ऊर्जा परिदृश्य में उपस्थित रहेगा।
- वर्तमान में कोयले की हिस्सेदारी 74% है और अनुमान है कि कोयला-आधारित
ताप क्षमता 2032 तक 283 गीगावाट तक
पहुँच जाएगी। यह संकेत देता है कि निकट भविष्य में कोयला भारत के लिए आधारभूत
ऊर्जा स्रोत बना रहेगा।
- इसके बावजूद नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। सौर 94.17 GW, पवन
47.96 GW, जलविद्युत 52.05 GW और कुल
गैर-जीवाश्म क्षमता 213.70 GW। यह भारत के ऊर्जा संक्रमण की
गति और दिशा दोनों को दर्शाता है।
- यह समानांतर उपस्थिति इसलिए भी है क्योंकि उच्च आर्थिक विकास, ग्रामीण
विद्युतीकरण, औद्योगिक विस्तार और घरेलू क्षेत्र की बढ़ती
मांग को केवल नवीकरणीय स्रोतों से तुरंत पूरा करना संभव नहीं।
- साथ ही, सौर–पवन ऊर्जा की अस्थिरता, बैटरी भंडारण की सीमाएँ
और महंगे ग्रिड अपग्रेड जैसे अवरोध कोयले की भूमिका को अभी अपरिहार्य बनाते हैं।
इस प्रकार, भारत का ऊर्जा यथार्थ एक संक्रमणकालीन संतुलन है जिसमें
कोयला आधारभूत सुरक्षा देता है जबकि नवीकरणीय ऊर्जा भविष्य की दिशा निर्धारित कर
रही है। नवीकरणीय ऊर्जा भारत के भविष्य का आधार है क्योंकि रोजगार वृद्धि,
ऊर्जा आयात में कमी, कार्बन उत्सर्जन नियंत्रण
इसे रणनीतिक महत्व प्रदान करते हैं।
शब्द संख्या-233
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प्रश्न: “जलवायु परिवर्तन से निपटने में परमाणु ऊर्जा को एक
विश्वसनीय निम्न-कार्बन विकल्प बताया जा रहा है, जबकि इसके
सुरक्षा जोखिम और कचरा प्रबंधन को लेकर गंभीर वैश्विक चिंताएँ भी मौजूद हैं।“
इस कथन पर अपने विचार बताएं। 36 अंक
उत्तर: आज जब ऊर्जा क्षेत्र वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन के लगभग 40% के लिए
उत्तरदायी है तब जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए ऊर्जा-परिवर्तन सबसे अहम रणनीति
बन चुका है। इसी संदर्भ में परमाणु ऊर्जा को एक संभावित “टिकाऊ
विकल्प” के रूप में पुनः महत्व दिया जा रहा है जिसे निम्न
प्रकार देख सकते हैं-
- यूरोपीय क्षेत्र के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग की हालिया रिपोर्ट बताती है कि पिछले पाँच दशकों में परमाणु ऊर्जा की वजह से लगभग 74 गीगाटन CO₂ उत्सर्जन रोका जा सका है, जो इसे एक प्रभावी जलवायु-नियंत्रक तकनीक सिद्ध करता है।
- कॉप-26 के दौरान भी परमाणु ऊर्जा की “वापसी” पर गंभीर चर्चा हुई जिसका कारण यह है कि भले ही बैटरी और ऊर्जा भंडारण प्रणालियों में वैश्विक निवेश बढ़ रहा है फिर भी सौर और पवन ऊर्जा जैसी नवीकरणीय तकनीकें दुनिया की कुल ऊर्जा मांग का केवल 20–25% ही स्थिर रूप से पूरा कर सकती हैं। इसके विपरीत परमाणु ऊर्जा 24×7 निम्न-कार्बन बिजली और औद्योगिक ताप दोनों उपलब्ध कराकर ऊर्जा-गहन क्षेत्रों के डीकार्बोनाइजेशन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- कई विशेषज्ञ मानते हैं कि सौर-पवन जैसी अक्षय ऊर्जा वैश्विक कार्बन कटौती
का लगभग 80% लक्ष्य हासिल कर सकती है, लेकिन अंतिम 20% के लिए परमाणु ऊर्जा को शामिल करना ही होगा, क्योंकि
यह स्थिर, विश्वसनीय और ग्रिड-सपोर्टिव शक्ति प्रदान करती
है।
- अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी की हालिया रिपोर्ट "परमाणु
ऊर्जा का एक नया युग" भी संकेत देती है कि ऊर्जा
सुरक्षा, कार्बन कटौती और टिकाऊ विकास के संदर्भ में परमाणु
ऊर्जा को रणनीतिक समाधान के रूप में उभर रही है।
- UNECE के अनुसार परमाणु ऊर्जा लागत के लिहाज से भी प्रतिस्पर्धी है, लेकिन इसके साथ जोखिमों का प्रबंधन अनिवार्य शर्त है।
निष्कर्षतः, परमाणु ऊर्जा जलवायु परिवर्तन से लड़ाई में न तो
सर्वश्रेष्ठ विकल्प है और न ही इसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है क्योंकि रेडियोधर्मी
कचरे का सुरक्षित निपटान, रिएक्टर सुरक्षा, और आपदाओं जैसे चेर्नोबिल (डिज़ाइन त्रुटि व मानवीय चूक) और फुकुशिमा
(प्राकृतिक आपदा) के भय से उत्पन्न सामाजिक आशंकाएँ इसे विवादास्पद बनाती हैं।
अत: समाधान के रूप में नए जनरेशन के सुरक्षित रिएक्टर, AI-संचालित
नियंत्रण तकनीकें, रेडियोधर्मी कचरे का सुरक्षित निपटान और
मजबूत अंतरराष्ट्रीय सहयोग स्थापित किए जाएँ ताकि परमाणु ऊर्जा एक भरोसेमंद,
सुरक्षित और पूरक निम्न-कार्बन ऊर्जा स्रोत के रूप में अपनाया जा सके।
शब्द संख्या -374


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