BPSC Mains answer writing practice 2025
प्रश्न-जलवायु परिवर्तन के कारण वैश्विक जल चक्र की अस्थिरता किस प्रकार
बढ़ रही है? 2024 की वैश्विक जल संसाधन रिपोर्ट के परिप्रेक्ष्य में
विश्लेषण कीजिए। 8अंक
उत्तर- जल चक्र पृथ्वी पर जल के संरक्षण, वितरण और पुनः उपयोग की वह
प्राकृतिक प्रक्रिया है, जो वाष्पीकरण, वाष्पोत्सर्जन, वर्षण, अंतःस्पंदन
और धरातलीय प्रवाह के माध्यम से निरंतर चलती रहती है।
सामान्य परिस्थितियों में चक्र जल संसाधनों को संतुलित रखता है, लेकिन WMO
की वैश्विक जल संसाधन रिपोर्ट 2024 बताती है
कि जलवायु परिवर्तन ने इस चक्र को अस्थिर बना दिया है जिसे निम्न प्रकार देख सकते
हैं
बढ़ते वैश्विक तापमान ने वाष्पीकरण की दर बढ़ा दी, जिससे
वायुमंडल में असामान्य मात्रा में जलवाष्प संचित होने लगी है जिससे कहीं अत्यधिक वर्षा-बाढ़ और कहीं लंबे सूखे व गर्म हवाओं के कारण वर्षा असंतुलित हो रही है।
रिपोर्ट के अनुसार लगातार तीसरे वर्ष विश्व के लगभग सभी हिमनद क्षेत्रों
में तीव्र पिघलाव हुआ है। अनेक ग्लेशियर अब “पीक वाटर पॉइंट” पर पहुँच रहे हैं जिसके बाद नदी प्रवाह में क्रमिक कमी आएगी। यह स्थिति
दक्षिण एशिया, चीन और दक्षिण अमेरिका जैसे नदी-निर्भर
क्षेत्रों के लिए गंभीर जल-संकट का संकेत है।
दुनिया के लगभग दो-तिहाई नदी जलग्रहण क्षेत्र बाढ़ या सूखे से प्रभावित हैं-अमेज़न
में सूखा, यूरोप-एशिया में बाढ़ और अफ्रीका
में अनियमित वर्षा इसके उदाहरण हैं।
हिमनद पिघलाव और समुद्री जल के तापीय प्रसार से समुद्र-स्तर बढ़ रहा
है, जिससे तटीय बाढ़, लवणता और विस्थापन
का जोखिम बढ़ा है।
स्पष्ट है जलवायु परिवर्तन के कारण पृथ्वी का जलचक्र बाधित हुआ है जिसके
लिए लिए शमन एवं अनुकूलन दोनों पर तुरंत
कार्रवाई की आवश्यकता है।
शब्द संख्या-239
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प्रश्न-भारत में मानसून से संबंधित चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता
बढ़ने के पीछे कौन-से प्रमुख कारक उत्तरदायी हैं? इनके
सामाजिक–आर्थिक प्रभावों को संक्षिप्त में बताएं । 8 अंक
उत्तर-हाल के वर्षों में देश के अनेक हिस्सों पंजाब, उत्तराखंड,
हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, केरल
आदि में बाढ़, फ्लैश फ्लड और भूस्खलन जैसी घटनाओं की बढ़ती
संख्या स्पष्ट संकेत देती है कि भारतीय मानसून का स्वभाव तेज़ी से बदल रहा है। यह
परिवर्तन अब प्राकृतिक मौसमी चक्र तक सीमित न रहकर जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष
प्रभाव को दर्शाता है जिसके कारणों को निम्न प्रकार देख सकते हैं-
वर्षा का अनियमित पैटर्न-शोध बताते हैं कि मानसूनी हवाएँ कमजोर पड़ी हैं, परंतु बढ़ते
तापमान के कारण वायुमंडलीय नमी बढ़ी है। इससे वर्षा का स्वरूप “कम दिनों में अत्यधिक वर्षा” वाला हो गया है।
समुद्र सतह तापमान में वृद्धि- समुद्र सतह के तापमान वृद्धि ने बादलों की
जलवाष्प धारण क्षमता बढ़ा दी है, परिणामस्वरूप वर्षा अधिक तीव्र और अस्थिर हो गई है।
अलनीनो–मानसून संबंध का कमजोर पड़ना-पहले अल नीनो
भारतीय वर्षा को स्पष्ट रूप से घटाता था, परंतु वैश्विक परिसंचरण पैटर्न बदलने
से इसके प्रभाव में अनिश्चितता बढ़ी है।
स्थानिक वर्षा परिवर्तन-जहाँ पारंपरिक रूप से अधिक वर्षा होती थी वहाँ कमी, और
गुजरात–सौराष्ट्र–राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों में वृद्धि देखी जा रही है।
इस प्रकार की चरम मौसमी घटनाओं जैसे अचानक बाढ़, चक्रवात,
भूस्खलन आदि से अवसंरचना क्षति, मौसम
पूर्वानुमान की कठिनाई, डेंगू व जलजनित रोगों का प्रसार,
तथा कृषि पर गंभीर आर्थिक प्रभाव पड़ रहा है। भारत की 51% कृषि भूमि वर्षा-आधारित है इस कारण यह देश की 51% कृषि
भूमि, 40% उत्पादन और 47% आजीविकाओं को
प्रभावित करता है।
अत: इस स्थिति में संधारणीय अवसंरचना, अग्रिम चेतावनी प्रणालियाँ और
जलवायु-लचीला विकास मॉडल ही भविष्य की चरम मानसूनी घटनाओं से होने वाली क्षति कम
कर सकते हैं।
शब्द संख्या- 265
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प्रश्न- भारतीय मानसून विभिन्न स्थलीय, महासागरीय
और वायुमंडलीय कारकों की परस्पर क्रिया का परिणाम है। इन कारकों की भूमिका के
संदर्भ में बताएं कि ये कारक मानसून की तीव्रता, समय और
वितरण को कैसे प्रभावित करते हैं। 38 अंक
उत्तर- भारतीय मानसून एक जटिल वायुमंडलीय प्रणाली है, जिसकी
उत्पत्ति और व्यवहार अनेक सतही, महासागरीय और ऊपरी
वायुमंडलीय कारकों की संयुक्त क्रिया से निर्धारित होता है। यही कारण है कि भारत
में मानसूनी वर्षा का स्थानिक एवं कालिक वितरण अत्यंत असमान रहता है जिसे निम्न
प्रकार समझ सकते हैं-
भूमि–समुद्र विभेदी तापन-ग्रीष्म ऋतु में भारतीय उपमहाद्वीप तीव्र गति से गर्म
होता है, जबकि हिंद महासागर अपेक्षाकृत ठंडा रहता है। इससे भूमि पर कम-दाब और
समुद्र पर उच्च-दाब उत्पन्न होता है, जो मानसून की मूल
प्रेरक शक्ति है। तापमान का यह अंतर जितना अधिक होगा, मानसून
का प्रवाह उतना प्रबल होगा। यही कारक मानसून के आगमन और प्रथम वर्षा को प्रभावित
करता है।
तिब्बती पठार-तिब्बती पठार गर्मियों में अत्यधिक गर्म होकर ऊपरी
क्षोभमंडल में शक्तिशाली परिसंचरण बनाता है। यह मानसूनी अवदाब को गहराई प्रदान
करता है, जिससे मानसूनी हवाएँ उत्तर-पश्चिम भारत तक पहुँच पाती हैं। यदि पठार का
तापमान कम रहे तो मानसून कमजोर पड़ सकता है।
एल नीनो–ला नीना का क्षेत्रीय प्रभाव-एल नीनो वर्षों में
उत्तरी-पश्चिमी और मध्य भारत में वर्षा में भारी कमी देखी जाती है, जबकि
दक्षिण-पूर्वी प्रायद्वीप में कभी-कभी “कन्ट्रास्टी प्रभाव”
के कारण कुछ वृद्धि भी हो सकती है। इसके विपरीत, ला नीना उत्तर–पूर्व भारत और गंगा–मैदानी क्षेत्र में व्यापक वर्षा बढ़ाता
है।
हिंद महासागर द्विध्रुव (IOD)- सकारात्मक IOD पश्चिमी
हिंद महासागर को गर्म करता है, जिससे नमी का प्रवाह भारत की
ओर बढ़ता है और वर्षा में वृद्धि होती है। नकारात्मक IOD के
दौरान वर्षा घटती है। कई बार सकारात्मक IOD एल नीनो के
प्रतिकूल प्रभावों को कम कर देता है।
MJO और एक्टिव–ब्रेक चक्र -जब MJO भारत के
दक्षिण-पश्चिम या मध्य हिंद महासागर पर सक्रिय होता है, तो
देशभर में वर्षा बढ़ती है। परंतु जब यह प्रशांत महासागर में सक्रिय हो जाए तो भारत
में “ब्रेक मानसून” की स्थिति बन जाती
है, जिससे पूर्वोत्तर भारत और हिमालयी क्षेत्र में बारिश घट
जाती है।
जेट धाराएँ- उपोष्णकटिबंधीय पछुआ जेट के स्थानिक परिवर्तन उत्तर-पश्चिम भारत में
मानसूनी अवदाबों को प्रभावित करते हैं। हिमालय प्राकृतिक अवरोध बनकर वर्षा को रोके
रखता है, जिससे उत्तर–पूर्वी राज्यों में अत्यधिक वर्षा और लद्दाख के क्षेत्रों में
शुष्कता बनी रहती है।
इन सभी कारकों का संयोजन भारतीय मानसून की अनिश्चितता, तीव्रता और
वितरण के लिए मूलतः उत्तरदायी है।


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