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Oct 30, 2022

समान नागरिक संहिता की आवश्‍यकता एवं बाधाएं

 

समान नागरिक संहिता की आवश्‍यकता एवं बाधाएं 

प्रश्‍न- " भारत में समान नागरिक संहिता को लागू किए जाने आवश्‍यकता के बावजूद कुछ ऐसे कारण है जिसके कारण यह अभी तक संपूर्ण भारत में लागू नहीं किया जा सका। " चर्चा करें ।

विविधताओं वाले देश भारत में विभिन्‍न समुदाय के लोग रहते हैं और उनके विवाह, तलाक, विरासत, गोद लेने जैसे मामलों में धर्म, आस्था और विश्वास के आधार पर अलग-अलग क़ानून हैं। समान नागरिक संहिता इसी संदर्भ में भारत के लिए एक कानून बनाने की मांग करता है जो सभी धार्मिक समुदायों पर एक समान लागू होगा।

संवैधानिक प्रावधान, समय-समय पर इसके समर्थन में उठती मांग तथा न्‍यायालय के निर्देश के परिप्रेक्ष्‍य में भारत में समान नागरिक संहिता की आवश्‍यकता को निम्‍न प्रकार से समझा जा सकता है-

समान नागरिक संहिता की आवश्यकता

  1. विभिन्‍न धार्मिक कानूनों के कारण उत्‍पन्‍न होनेवाली कानूनी एवं प्रशासनिक जटिलताओं को समाप्‍त करने हेतु।
  2. वर्षों से लंबित पड़े मामलों के शीघ्र निपटारे एवं न्यायपालिका कार्य बोझ में कमी करने हेतु।
  3. शादी, तलाक, विरासत आदि में सभी धमों हेतु एक समान कानून लागू करने हेतु ।
  4. संवैधनिक प्रावधानों तथा समय-समय पर न्यायालय द्वारा दिए गए निर्णयों की पालन हेतु ।
  5. भारत में कानूनी, सामाजिक एवं लैंगिक समानता को सुनिश्चित करने हेतु ।
  6. कानून में समानता से राजनीति में भी सुधार की संभावना बढ़ सकती है ।
  7. विविधताओं वाले देश भारत में राष्ट्रीय एकता तथा अखंडता की मजबूत करने हेतु।

अनेक बुद्धिजीवियों का मानना है कि समान नागरिक संहिता लागू होने से भारत सही मायनों में धर्मनिरपेक्ष बनेगा तथा कानून के सरलीकरण से लैंगिक न्‍याय, पिछड़ों को संरक्षण के साथ साथ राष्‍ट्रीय एकता को भी मजबूती मिलेगी । यदि देश में भारतीय दंड संहिता एक है तो समान नागरिक संहिता क्यों नहीं हो सकती?

हाल में हिजाब विवाद, दिल्ली हाईकोर्ट के निर्णय तथा अन्‍य घटनाओं से इसे लागू करने की मांग तेजी से उठने लगी । कानून की आवश्‍यकता तथा समय समय पर उठती मांगों के बावजूद भारत नागरिकों को लागू नहीं कराया जा सका जिसके पीछे अनेक ऐसे कारण है

 

समान नागरिक संहिता की राह में बाधाएं

सांस्कृतिक विविधता

  • भारत के सभी धर्मों, संप्रदायों, जातियों, राज्यों आदि में व्यापक सांस्कृतिक विविधता है । अतः विवाह, उत्तराधिकार जैसे मुद्दों पर आम राय बनाना व्यावहारिक रूप से कठिन है। जहां हिन्दू धर्म विवाह को संस्कार के रूप में देखता है वहीं मुस्लिम धर्म इसे 'संविदा' मानता है।

देश का बहुधर्मी चरित्र

  • भारत के अल्पसंख्यकों का मानना है कि समान नागरिक संहिता से उनके धार्मिक अधिकारों का उल्लंघन होगा। इसी क्रम में इस मुद्दे के राजनीतिकरण के कारण यह और उलझ गया है। कुछ दल जहां अल्पसंख्यक समुदाय की समस्याओं की जड़ उनके पर्सनल कानून को मानते हैं तो कुछ पार्टियाँ इस संबंध में तुष्टीकरण की नीतियों को अपनाती है।

आम सहमति बनाना मुश्किल कार्य

  • समान नागरिक संहिता का विरोध करने वालों का कहना है कि ये सभी धर्मों पर हिन्दू कानून को लागू करने जैसा है।
  • समान नागरिक संहिता को भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में लागू करने हेतु व्यक्तिगत मामलों से संबंधित विवाह, तलाक, पुनर्विवाह आदि जैसे सभी पहलुओं पर विचार करना होगा ताकि किसी धर्म विशेष की भावनाओं को ठेस पहुँचाए बिना कानून बनाना जाए।

इस प्रकार भारत में समान नागरिक कानून की आवश्‍यकता के बावजूद कुछ ऐसी चुनौतियां है जिसके कारण यह अभी तक लागू नहीं हो पाया है । भारत की धार्मिक तथा सांस्‍कृतिक विविधता तथा वर्तमान परिस्थितियों को देखते डॉ अम्बेडकर के कथन आज भी प्रासंगिक है जब उन्‍होंने कहा था कि समान नागरिक संहिता वांछनीय होने के बावजूद इसके कानूनी निर्माण को अधिक उपयुक्त समय तक टाल दिया जाना चाहिए।

अत: फिलहाल इस पर आम सहमति बनने तक इंतजार करना बेहतर होगा तथा ऐसा विधि आयोग रिपोर्ट 2018 में भी कहा गया था, तब तक समाज में शिक्षा, जागरुकता संबंधी प्रयासों को प्रोत्‍साहन देना बेहतर होगा ताकि सुधार की मांग कानून के बजाए समाज से आए तो वह बेहतर होगा।


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