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Dec 30, 2022

67th BPSC Mains GS-I and II Question Paper

 

67th BPSC Mains GS-I and II Question Paper 

Date: 30.12.2022

Dec 26, 2022

विद्युत Electricity संबंधी महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न

 

विद्युत Electricity संबंधी महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न

Dec 20, 2022

भौतिक विज्ञान - मापन Measurement

 

भौतिक विज्ञान- मापन संबंधी महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न 

Dec 14, 2022

जैन धर्म-महावीर स्‍वामी एवं उनसे संबंधी महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न

 जैन धर्म-महावीर स्‍वामी  संबंधी महत्‍वपूर्ण प्रश्‍न

बौद्ध धर्म- गौतम बुद्ध संबंधी संपूर्ण सामान्‍य ज्ञान

 

बौद्ध धर्म

Dec 11, 2022

वैदिक काल एवं उत्‍तर वैदिक काल

 

वैदिक काल एवं उत्‍तर वैदिक काल 


प्राचीन भारत का इतिहास - काल विभाजन

प्राचीन भारत का इतिहास - काल विभाजन 

Dec 6, 2022

परमाणु ऊर्जा की संभावनाएं एवं उपयोगिता

परमाणु ऊर्जा की संभावनाएं एवं उपयोगिता 

प्रश्‍न- "आर्थिक विकास एवं पर्यावरण के मध्‍य संतुलन बनाने हेतु परमाणु ऊर्जा की संभावनाओं पर पुनर्विचार किया जाना आपके अनुसार कहां तक तर्कसंगत है।"

नवीकरणीय ऊर्जा - ऊर्जा का बेहतर विकल्प

 नवीकरणीय ऊर्जा - ऊर्जा का बेहतर विकल्प

प्रश्‍न- " नवीकरणीय ऊर्जा अपनी सामान्‍य चुनौतियों के बावजूद ऊर्जा का बेहतर विकल्प प्रस्‍तुत करने के साथ-साथ भारत के शुद्ध शून्‍य उत्‍सर्जन की प्रतिबद्धता को भी मजबूती प्रदान करता है विवेचना करें।

Dec 5, 2022

भारत में जल संकट की स्थिति तथा कारण

 

प्रश्‍न- भारत में जल संकट की स्थिति तथा कारणों पर चर्चा करते हुए सरकार द्वारा इस दिशा में किए जा रहे प्रयासों को बताएं ।

Dec 4, 2022

बिहार में बाढ़ की आपदा

 बिहार में बाढ़ की आपदा 

बिहार में आपदा प्रबंधन की आवश्‍यकता एवं प्रयास

 बिहार में आपदा प्रबंधन की आवश्‍यकता एवं प्रयास 

प्रश्‍न "आपदाओं के प्रति सुभेद्य होने के कारण बिहार में आपदा प्रबंधन अत्‍यंत आवश्‍यक है जिसके परिप्रेक्ष्‍य में बिहार सरकार के अनेक प्रयास किए गए है।" कथन की विवेचना करें।

सामान्‍यत: ऐसी घटनाएं जिसमें जीवन एवं संपत्ति की बड़ी हानि होती है और व्‍यापक स्‍तर पर जनजीवन प्रभावित होता है आपदा कहलाती है। आपदाएं मानव जनित एवं प्राकृतिक दोनों हो सकती है । बिहार में अनेक ऐसी परिस्थितियां है जो इसे आपदाओं के प्रति सुभेद्य बनाती है इसी कारण से बिहार में आपदा प्रबंधन अत्‍यंत आवश्‍यक हो जाता है।

  • बिहार अपनी भौगौलिक अवस्थिति जैसे हिमालय का भ्रंश, हिमालय की सदानीरा नदियां, दक्षिण में बंगाल की खाड़ी और जल तथा मौसम संबंधी अनिश्चितताओं के कारण बाढ़, सूखा, भूकंप, चक्रवात, लू, आदि आपदाओं के प्रति सुभेद्य है ।  
  • बिहार में जलवायु प्रेरित आपदाओं जैसे बाढ़, सूखा, चक्रवात  में भी हाल के वर्षों में वृद्धि हुई है । जिसने बिहार के जनजीवन के साथ आर्थिक विकास की गति को भी प्रभावित किया है।
  • वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार 1106 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर बिहार में उच्च जनसंख्या घनत्व पाया जाता है जिसके कारण राज्य के आर्थिक एवं प्राकृतिक संसाधनों पर अत्यधिक दबाव रहता है ।
  • अप्रैल 2021 में जारी राष्ट्रीय जलवायु भेद्यता आकलन रिपोर्ट के अनुसार सुभेद्यता सूचकांक में बिहार 6th स्थान पर है ।
  • बिहार के 28 जिले बाढग्रस्त है तथा 17 जिले सूखे से प्रभावित हैं ।बिहार में कुल बाढ़ प्रवण क्षेत्र इसके कुल भौगोलिक क्षेत्रफल का 73.06% तथा भारत का 16.5% है । बाढ़ से प्रभावित कुल भारतीय आबादी का 22% बिहार के लोग है।
  • वर्ष 2019-20 में बिहार में आंधी तूफान एवं बिजली गिरने के कारण कुल 459 लोगों की मृत्यु हुई।
  • बिहार में 7.15% ऐसा क्षेत्र है जहां आग लगने का जोखिम ज्यादा है। जलवायु परिवर्तन तथा बढ़ते तापमान के कारण ऐसी घटनाओं में वृद्धि दर्ज हो रही है।
  • वर्ष 2020-21 में आपदा प्रबंधन के कारण राज्य सरकार पर 3227.79 करोड़ रुपए का वित्तीय बोझ नकद सहायता, कृषि लागत सामग्रियों हेतु सब्सिडी आदि के रूप में पड़ा ।
  • हाल ही में बाढ़ के साथ साथ कोविड महामारी का भी सामना बिहार को करना पड़ा जिसके कारण बिहार सरकार पर अत्यधिक आर्थिक  बोझ पड़ा लेकिन सरकार द्वारा संसाधनों के कुशलतापूर्वक प्रबंधन से इस पर नियंत्रण पाया जा सका । 

उपरोक्त तथ्यों एवं आकड़ों से बिहार में आपदाओं के कारण होनेवाले जानमाल की क्षति तथा कुशल आपदा प्रबंधन की आवश्‍यकता को समझा जा सकता है । इसी कारण आपदाओं के कुशल प्रबंधन को राज्य सरकार प्राथमिकता देती है। बिहार में आपदा प्रबंधन गतिविधियों के सुदुद्दीकरण के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं।

 

आपदा प्रबंधन  की दिशा में बिहार सरकार के प्रयास                                       

बिहार में आपदाओं के गंभीरता को देखते हुए आपदा प्रबंधन विभाग का गठन किया गया है जो आपदाओं तैयारी, आपदाओं के दौरान संकट प्रबंधन तथा आपदाओं के बाद राहत और पुनर्वास कार्य देखता है ।

  • सेंडाई  फ्रेमवर्क के तहत 15 वर्षीय आपदा जोखिम न्यूनीकरण रोडमैप 2015-2030 लागू करने वाला बिहार प्रथम राज्य है। इसके तहत वर्ष 2030 तक आपदा जोखिम न्यूनीकरण हेतु लक्ष्‍य निर्धारित किए गए।
  • आपदाओं के दौरान विभिन्न कार्यों के संचालन हेतु राष्ट्रीय आपदा अनुक्रिया बल SDRF  की पूर्णकालिक बटालियन का गठन ।
  • आपदा प्रबंधन हेतु बाढ़, सूखा और पेयजल संकट के लिए कार्यसंचालन कार्याविधि का निर्माण किया गया।
  • आपदा के समय क्विक रिस्पांस हेतु स्वास्थ्य एवं आपदा विभाग के बीच एमओयू पर हस्ताक्षर हुए।
  • बाढ़ और सूखा जैसी स्थितियों से निपटने हेतु जल संरक्षण के उपायों को सक्षम बनाने के लिए उत्तर बिहार में  तालाबों और जलाशयों तथा दक्षिण बिहार में आहर, पइन को पुनर्जीवित करने हेतु पहल की जा रही है।
  • राज्य आपदा प्रबंधन योजना में समुदाय आधारित आपदा प्रबंधन को सक्षम बनाने हेतु संकल्प केन्द्र की योजना को अमल में लाने के महत्व पर जोर ।
  • राज्य आपदा अनुक्रिया बल को मोटरबोट, लाइफ जैकेट, गोताखोरी, खोज, राहत और बचाव के अत्याधुनिक उपकरण उपलब्ध कराया गया।

इस प्रकार बिहार सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन को सर्वोच्च प्राथमिकता देते हुए विभिन्न आपदाओं से निबटने हेतु अनेक योजनाएँ बनाई गई है। आपदाओं के कारण बिहार को प्रति वर्ष भारी मात्रा में  राशि खर्च करना पड़ता है। अतः 15वें वित्त आयोग द्वारा भी इसको समझते हुए आपदा प्रबंधन की राशि वृद्धि की अनुशंसा की गयी है । 15वें वित्त आयोग द्वारा बिहार को आपदा प्रबंधन के लिए 10,432 करोड़ रु. की अनुशंसा की गयी है जो पिछले वित्त आयोग की तुलना में चार गुना ज्यादा है । आपदा प्रबंधन राशि की यह वृद्धि बिहार के लिए काफी फायदेमंद है।

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Dec 3, 2022

बिहार में औद्योगिक क्षेत्र में वित्तीय वर्ष 2021-22 की महत्वपूर्ण उपलब्धियां

 

बिहार में औद्योगिक क्षेत्र में महत्वपूर्ण उपलब्धियां

Dec 2, 2022

बिहार में मृदा की समस्‍या एवं संरक्षण


बिहार में मृदा की समस्‍या एवं संरक्षण 

प्रश्‍न- कृषि प्रधान राज्‍य बिहार में मृदा की समस्‍या को बताएं तथा मृदा संरक्षण की दिशा में सरकार के प्रयासों के साथ साथ आप क्‍या सुझाव देना चाहेंगे ।

भूपटल के ऊपरी असंगठित पदार्थों की परत जिसका निर्माण चट्टानों के टूटने-फूटने से होता है मिट्टी कहलाती है। हांलाकि क्षेत्रफल की दृष्टि से बिहार जैसे छोटे राज्य में संरचनात्मक जटिलता, शैलों की विविधता, जलवायु तथा वनस्पतियों के प्रभाव से विभिन्न  प्रकार की मिट्टीयां पायी जाती है फिर भी एक बहुत बड़े भाग पर जलोढ़ मिट्टी पायी जाती है जो गंगा तथा उसकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए अवसादों से निर्मित है।

 

बिहार सरकार के कृषि अनुसंधान विभाग द्वारा मूल चट्टान, भूआकृति, भौतिक एवं रासायनिक संरचना के आधार पर बिहार की मृदा का 3 भागों में वर्गीकरण किया गया है।

1.उत्तर बिहार के मैदान की मिट्टी

2. दक्षिण बिहार के मैदान की मिट्टी

3. दक्षिणी सीमांत पठार की मिट्टी

 

बिहार में मिट्टी की समस्याएं

कृषि प्रधान राज्य बिहार में जहां अधिकांश लोगों की जीविका कृषि पर ही निर्भर है वहां मिट्टी एक बहुमूल्य प्राकृतिक संसाधन है । बिहार में मिट्टी के अवैज्ञानिक, अनियोजित उपयोग और मृदाक्षरण की समस्या पायी जाती है। एक अनुमान के अनुसार बिहार की लगभग 32% भूमि क्षरण को समस्या से ग्रसित है। यह समस्या बिहार के मैदानी और पठारी दोनों क्षेत्रों में है ।

  • मैदानी क्षेत्रों में तटबंध कटाव, नदियों के मार्ग परिवर्तन से यह समस्या ज्यादा गंभीर है। कोसी नदी द्वारा मार्ग परिवर्तन के कारण सहरसा, मधेपुरा, सुपौल, मधुबनी, कटिहार पूर्णिया जिलों की मिट्टी काफी प्रभावित हुई है। इसके अलावा गंगा, गंढक, घाघरा, महानंदा जैसी नदियां के कारण भी इनके क्षेत्र की मृदा प्रभावित हुई है। 
  • बिहार के दक्षिणी भाग में कैमूर, गया, नवादा, मुंगेर, जमुई, बांका आदि जिलों के पहाड़ी क्षेत्र में नदी क्रियाओं द्वारा मृदा अपक्षरण की समस्या ज्यादा है । उल्लेखनीय है कि इस क्षेत्र में ढाल ज्यादा होने से वर्षाकाल में वनस्पतिविहीन क्षेत्रों की कोमल मिट्टी ज्यादा प्रभावित होती है।
  • बिहार के मैदानी क्षेत्र में ज्यादा उपज लेने हेतु रासायनिक कृषि के बढ़ते प्रचलन के कारण भी मिट्टी की गुणवत्ता प्रभवित हो रही है। इसी प्रकार अवैज्ञानिक एवं अनियोजित उपयोग भी मिट्टी संबंधी समस्याएं को बढ़ा रहा है।

सरकार के प्रयास

बिहार सरकार द्वारा केन्द्र सरकार की योजनाओं एवं प्रयासों के साथ समन्वय बनाते हुए टिकाऊ विकास एवं मृदा संरक्षण की दिशा में प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यक्ष अनेक योजनाएं जैसे जल-जीवन हरियाली अभियान, कृषि रोड मैप, जैविक कृषि गुणवत्ता नियंत्रण प्रयोगशाला, बागवानी प्रोत्साहन, वर्मी कम्पोस्ट, सूक्षमजीवी जैव उर्वरक, हरित खाद, हर खेत को पानी, जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम आदि को सफलतापूर्वक लागू करने की दिशा में प्रयास किए जा रहे है ।

  • केन्द्र सरकार द्वारा बजट 2022-23 में रसायनमुक्त खेती तथा जैविक एवं शून्य बजट प्राकृतिक खेती के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्त करने हेतु राष्ट्रीय कृषि विकास योजना को 10,433 करोड़ रुपए का आवंटन दिया गया जो  पिछले वर्ष की तुलना में 4.2 गुना अधिक है ।
  • जल जीवन हरियाली योजना के तहत लगभग 4436 हेक्टेयर वन क्षेत्र को मृदा एवं नमी संरक्षण कार्य के तहत उपचारित किया गया ।
  • गैर वानिकी कार्यों हेतु वन भूमि को अंतरित करने के कारण परितंत्र को होने वाले नुकसान की भरपाई हेतु क्षतिपूर्ति वनीकरण कोष का गठन किया गया ।  वर्ष 2021-22 में इसके तहत 79.59 लाख लगाए गए तथा  वर्ष 2020-21 में लगभग 26.16 हेक्टेयर वन भूमि को कैंपा के जरिए मृदा एवं नमी संरक्षण हेतु उपचारित किया गया ।
  • बिहार में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत कृषि संबंधी सर्वोत्तम  व्यवहार  को अपनाने तथा मिट्टी और जलवायु की उपलब्धि स्थितियों के अनुसार व्यवहारिक फसल विविधीकरण  को बढ़ावा दिया जा रहा है।
  • मृदा उर्वरता में सुधार एवं उर्वरकों युक्तिसंगत उपयोग हेतु मृदा स्वास्थ्य कार्ड ।  वर्ष 2020-21 में राज्य के लगभग 7000 गांवों में प्रत्यक्षण सह प्रशिक्षण के माध्यम से किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड के प्रति जागरुकता हेतु कार्यक्रम रखा गया।
  • वर्ष 2020-21 में 3.31 लाख किसानों को मृदा स्वास्थ्य कार्ड उपलबध कराया गया ।
  • बिहार में प्रमंडलीय स्तर पर 9 चलंत मिट्टी जांच पयोगशाला कार्यरत है जो दूरस्थ गांवों में जाकर मिट्टी जांच करने के साथ मृदा स्वास्थ्य कार्ड जारी कर रहे हैं।
  • प्लास्टिक के कारण होनेवाले मृदा प्रदूषण में कमी हेतु बिहार सरकार द्वारा एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के समान पर पूरे राज्य में 1 जुलाई 2022 से पूर्ण प्रतिबंध ।
  • पटना, नालंदा, शेखपुरा और लखीसराय जिलों में स्थित टाल क्षेत्र के पानी के बेहतर उपयोग और प्रबंधन हेतु महत्वकांक्षी योजना द्वारा भूजल संरक्षण एवं मृदा संरक्षण को बढ़ावा।


इस प्रकार कृषि प्रधान राज्य में बिहार सरकार द्वारा मिट्टी संरक्षण हेतु अनेक प्रयासों को किया जा रहा है फिर भी मृदा संरक्षण की दिशा में निम्नलिखित सुझाव को अपनाया जाना बेहतर होगा।

  • व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण अभियान चलाया जाए।
  • मृदा संरक्षण हेतु व्यापक स्तर पर जनजागरुकता अभियान चलाया जाए ।
  • ढालयुक्त भूमि पर पशुचारण को नियंत्रित कर समोच्च जुताई की जानी चाहिए
  • स्थानांतरित कृषि पद्धित पर नियंत्रण के साथ साथ कृषि में फसल चक्र पद्धित को बढ़ावा दिया जाना चाहिए ।
  • मृदा कटाव रोकने हेतु नदियों पर बांध तथा तटबंध जैसी संरचनाओं को बनाया जाना चाहिए।
  • टाल एवं चौर क्षेत्र में जल निकासी की व्यवस्था की जानी चाहिए।
  • कृषि में पर्यावरण अनुकूल विकल्पों को तलाशने के साथ साथ यूरिया,जैविक उर्वरक कम लागत तथा पर्यावरण अनुकूल जैविक साधन के उपयोग को बढ़ावा ।
  • ड्रोन और कृत्रिम बुद्धिमता आधारित प्रणाली द्वारा रसायनिक उर्वरकों के उपयोग में कमी लाने के प्रयास को प्रोत्साहन ।
  • कृषि में नवचार समर्थित स्टार्टअप सहित नई तकनीक के उपयोग पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए ।
  • कृषि में निवेश,अनुसंधान, तकनीकी अनुप्रयोग को प्रोत्साहन दिया जाना चहिए ।


बिहार जैसे कृषि प्रधान राज्‍य में मृदा संरक्षण द्वारा न केवल पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा दिया जा सकता है बल्कि फसलों में मात्रात्मक एवं गुणात्मक सुधार लाकर पोषण सुरक्षा एवं कृषि आय में सुधार के उद्देश्यों को कुशलतापूर्वक प्राप्त  किया जा सकता है।

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उत्‍तरी बिहार तथा दक्षिणी बिहार की नदियां

 

उत्‍तरी बिहार तथा दक्षिणी बिहार की नदियां 

अपवाह तंत्र से आप क्‍या समझते है ? बिहार के अपवाह तंत्र में शामिल उत्‍तरी बिहार तथा दक्षिणी बिहार की नदियों की विशेषताओं को बताएं ।

अपवाह तंत्र का तात्पर्य वर्षा के जल का पृथ्वी के सतह पर प्रवाह की दिशा और व्यवस्था से है। भौगोलिक दृष्टि से अपवाह प्रणाली किसी क्षेत्र के विकास एवं उसके धरातलीय स्वरूप की जानकारी देता है।

 

बिहार में अपवाह तंत्र का प्रमुख आधार गंगा एवं उसके सहायक नदियाँ है । बिहार के 12 जिलों से प्रवहित होनेवाली गंगा बिहार में 445 किमी लंबा सफर तय करती है जो बक्सर के पास चौसा में बिहार में प्रवेश करती है और भागलपुर के पास कहलगाँव के पास से पश्चिम बंगाल में चली जाती है। गंगा की सहायक नदियों के रूप में उत्तरी बिहार तथा दक्षिणी बिहार की नदियों की अपनी अपनी विशेषताएं है फिर भी यह सभी नदियां अंततः प्रवाहित होते हुए गंगा में मिल जाती है। 


बिहार में नदियों का अपवाह प्रारूप मुख्य रूप से पादपाकार है जिसका निर्धारण गंगा नदी और दोनों दिशाओं से आने वाली सहायक नदियों से बनता है । बिहार में गंगा को उसकी सहायक नदियों को प्रवाह दिशा के आधार पर दो भागों में बांटा जा सकता है।

 

उत्तरी बिहार की नदियां

  • गंगा, सरयु, गंडक, बूढ़ी गंडक, बागमती, कमला, कोसी, महानंदा उत्तरी मैदान में प्रवाहित होनेवाली नदियां है।
  • अधिकांश उत्तरी मैदान की नदियां  सदानीरा और लम्बी है जिनका उद्गम स्रोत हिमालय है।
  • अनेक नदियां अपने मार्ग परिवर्तन हेतु जानी जाती है।
  • हिमालय तराई क्षेत्र में उत्तरी बिहार की अनेक नदियां युवावस्था की विशेषताएं दर्शाती है।
  • वर्षा काल में बाढ़ के साथ साथ कांप एवं सिल्ट का जमाव कर भूमि को उर्वर भी बनाती है।
  • इन नदियों में अधिक मोड़ होने के कारण झील, चौर, दलदली क्षेत्र का निर्माण करती है।
  • ये नदियां हिमालय केविस्तृत जल को इकट्ठा कर गंगा नदी में प्रवाहित करती है।
  • उत्तर बिहार के मैदान निर्माण में इन नदियों की महत्वपूर्ण भूमिका है।  

 

दक्षिणी बिहार की नदियां

  • दक्षिणी बिहार की अधिकांश नदियां पठारी प्रदेश की नदियाँ है ।
  • इन नदियों में कर्मनाशा, सोन, पुनपुन, फल्गु, किउल, अजय आदि  प्रमुख है।
  • इस क्षेत्र की अधिकांश नदियां मानसूनी है जो वर्षा ऋतु के बाद शुष्क हो जाती है।
  • यह मैदानी भागों में टेढे-मेढ़े मार्गों में बहती है और इनके पाट उथले और चौड़े हैं।
  • नदियों के मार्ग में कठोर चट्टान होने से इन नदियों के जल में बालू का अंश ज्यादा होता है।
  • दक्षिणी बिहार की नदियों के मार्ग में ढाल अपेक्षाकृत ज्यादा होने से जल जमाव ज्यादा देर नहीं रहता ।
  • दक्षिण बिहार की नदियां कुछ दूरी तक गंगा के समानांतर बहते हुए गंगा में मिलती है।
  • दक्षिण बिहार की अधिकांश नदियों की लंबाई अपेक्षाकृत कम है जिसमें पाया जानेवाला मोटे बालू का निक्षेप खनिज संपदा के रूप में बिहार सरकार की आय  का बड़ा स्रोत है ।

 

बिहार की इन नदियों का जल परिवहन, सिंचाई, मत्स्य पालन, ऊर्जा उत्पादन,पर्यटन, व्यापार आदि के साथ साथ धार्मिक एवं सांस्कृतिक महत्व है।  प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध बिहार में वर्षा पर्याप्त मात्रा में होती है जिसके कारण नदियों का अपवाह तंत्र समृद्ध बना रहता है।

बिहार लोक सेवा आयोग भूूगोल मुख्‍य परीक्षा हेतु अन्‍य उपयोगी प्रश्‍न 

Dec 1, 2022

बिहार में अपवाह तंत्र-नदियां

 

बिहार में अपवाह तंत्र-नदियां