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Nov 30, 2022

बिहार में नवीकरणीय ऊर्जा

 बिहार में नवीकरणीय ऊर्जा

"नवीकरणीय ऊर्जा के क्षेत्र में बिहार सरकार द्वारा किए जा रहे प्रयास आर्थिक विकास को गतिमान रखने के साथ साथ पर्यावरण संतुलन की संभावनाओं को भी पोषित करता है।" चर्चा करें


बिहार में परिवहन और संचार अधिसंरचना

 बिहार में परिवहन और संचार अधिसंरचना

दीर्घकालिक निम्न- कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति (LT-LEDS )


दीर्घकालिक निम्न- कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति (LT-LEDS ) 

प्रश्‍न - कॉप 27 में भारत द्वारा प्रस्‍तुत की दीर्घकालिक निम्न- कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति (LT-LEDS ) की क्‍या विशेषताएं हैं और यह किस प्रकार भारत के वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्ति में सहायक है?

भारतीय प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2021 में हुए जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP-26) में भारत के लिए 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन लक्ष्य की घोषणा की गयी थी जिसके परिप्रेक्ष्‍य में नवम्‍बर 2022 में मिस्र में हुए COP 27 में  भारत ने अपनी दीर्घकालिक निम्न- कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति (LT-LEDS ) प्रस्‍तुत की ।

         

उल्‍लेखनीय है कि वैश्विक आबादी का भारत का 17% हिस्सा होने के बावजूद ग्‍लोबल वार्मिग में बहुत कम योगदान है तथा भारत की अपने विकास के लिए ऊर्जा संबंधी आवश्‍यकताओं को पूरी करने के साथ साथ कम कार्बन उत्‍सर्जन वाली रणनीतियों के पालन हेतु प्रतिबद्ध है । इसी आधार पर भारत द्वारा ने अपनी दीर्घकालिक निम्न- कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति (LT-LEDS ) प्रस्‍तुत की जिसमें वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में उठाए जाने वाले कदमों का उल्लेख किया गया है।

 

भारत की (LT-LEDS ) में निम्न कार्बन आधारित मार्ग 

निम्न-कार्बन आधारित विद्युत ऊर्जा

जीवाश्म ईंधन का विवेकपूर्ण उपयोग तथा ग्रीन हाइड्रोजन, जैव ईंधन आदि में अनुसंधान ।

एकीकृत परिवहन प्रणाली का विकास 

परिवहन साधनों का विद्युतीकरण एवं आधुनिकीकरण द्वारा ईंधन दक्षता सुधार ।

जलवायु अनुकूल नगरीकरण 

जलवायु अनुकूल भवन डिजाइन तथा कम-कार्बन उत्सर्जन आधारित नगरपालिका सेवाएं ।

संवृद्धि गतिविधियों से उत्सर्जन को अलग करना

स्टील,सीमेंट आदि जैसे हार्ड-टू-एबेट क्षेत्रकों में पदार्थ दक्षता और कम कार्बन विकल्‍प अपनाना ।

हरित आवरण में वृद्धि

वनों से बाहर वृक्षों तथा हरित आवरण की बहाली, संरक्षण और प्रबंधन

वायुमंडल से CO2 हटाना

सार्वजनिक-निजी भागीदारी ढांचे की संभावनाओं का पता लगाना।

वित्त पोषण

इक्विटी निवेश, बॉण्ड और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश द्वारा निजी वित पोषण।

 

इस प्रकार भारत दीर्घकालिक निम्न-कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति के माध्‍यम से ऊर्जा सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जीवाश्म ईंधन से अन्य स्रोतों में बदलाव न्यायसंगतसरलस्थायी और सर्व-समावेशी तरीके कर सकता है ।

 

यह रणनीति जैव ईंधन, इथेनॉल मिश्रण, राष्ट्रीय हाइड्रोजन मिशन, इलेक्ट्रिक वाहनों के अनुकूल माहौल उपलब्‍ध कराने में भी सहायक होगी जिससे न केवल परिवहन क्षेत्र कम कार्बन उत्सर्जन होगा बल्कि सार्वजनिक परिवहन के साधनों में एक सशक्त बदलाव आएगा ।

 

इस रणनीति में जलवायु अनुकूल शहरी विकास, स्मार्ट सिटी पहल, संसाधन दक्षता में वृद्धि, ग्रीन बिल्डिंग कोड, ठोस व तरल अपशिष्ट प्रबंधन जैसे प्रयासों में तेजी लाने के साथ साथ  हरित आवरण में वृदिध हेतु भी रणनीति प्रस्‍तुत करती है ।

उल्‍लेखनीय है कि बिहार सरकार द्वारा पूर्व से ही दिशा में जहां जल, जीवन हरियाली, बिहार स्वच्छ ऊर्जा नीति 2019, हरित टैक्‍स जैसी प्रयासों को क्रियान्वित किया जा रहा है वहीं बिहार राज्‍य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा UNEP के साथ मिलकर जलवायु परिवर्तन अनुकूल और निम्‍न कार्बन उत्‍सर्जक विकास रणनीति भी बनायी गयी है।

उपरोक्‍त से स्‍पष्‍ट है भारत द्वारा प्रस्‍तुत दीर्घकालिक निम्न-कार्बन उत्सर्जन विकास रणनीति(LT-LEDS ) एक महत्‍पूर्ण घोषणा है जो वित्‍त, तकनीकी बाधाओं आदि के बावजूद भारत के वर्ष 2070 तक नेट जीरो उत्सर्जन लक्ष्य प्राप्ति की दिशा में सहायक  है ।

Nov 28, 2022

जलवायु प्रेरित आपदा एवं कॉप 27

 जलवायु प्रेरित आपदा एवं कॉप 27 

बिहार की ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था -पशुपालन एवं मत्‍स्‍यन

 

बिहार ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था -पशुपालन एवं मत्‍स्‍यन

प्रश्‍न- बिहार के ग्रामीण अर्थव्‍यवस्‍था के महत्‍वपूर्ण अंग के रूप में पशुपालन एवं मत्‍स्‍यन जैसी सहवर्ती क्रियाओं में हालिया प्रगति पर टिप्‍पणी करते हुए इस दिशा में सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं को बताएं ।

बिहार में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने वाले प्रमुख संस्थान, योजनाएं तथा नीतियां

बिहार में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने वाले प्रमुख संस्थान, योजनाएं तथा नीतियां

प्रश्‍न: बिहार में औद्योगिक विकास को बढ़ावा देने वाले प्रमुख संस्थान, योजनाओं, नीतियों को संक्षिप्‍त रूप में बताएं ।

बिहार कृषि निवेश प्रोत्साहन नीति 2020

 

बिहार कृषि निवेश प्रोत्साहन नीति 2020

प्रश्‍न- बिहार सरकार की कृषि निवेश प्रोत्साहन नीति 2020 बिहार में कृषि आधिारित औद्योगिक विकास की व्‍यापक संभावनाओं को विस्‍तार देने में मददगार है। चर्चा करें।

Nov 27, 2022

COP 27 एवं संबंधित मुद्दे

 

COP 27  एवं संबंधित मुद्दे


Nov 25, 2022

सतत विकास लक्ष्‍य एवं कोविड 19 महामारी

प्रश्‍न- यद्यपि सतत विकास लक्ष्‍यों को प्राप्‍त करने की दिशा में भारत की प्रगति धीमी रही है लेकिन कोरोना महामारी, लॉकडाउन के कारण पलायन और बढ़ती बेरोजगारी से SDG लक्ष्य और दूर हो गए हैं। चर्चा करें ।

 

ऐसा विकास जो वर्तमान पीढ़ी की आवश्यकताओं की पूर्ति इस प्रकार करें जिसमें भावी पीढ़ी को अपनी आवश्यकता पूरी करने हेतु समझौता न करना पड़े सतत विकास कहलाता है।

वर्ष 2015 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा ‘2030 सतत् विकास हेतु एजेंडाको अपनाया गया जिसके तहत गरीबी, पोषण, स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा, लैंगिक समानता, स्‍वच्‍छता, जलवायु परिवर्ततन, वैश्विक भागीदारी आदि जैसे 17 विकास लक्ष्य को अंगीकृत किया गया ।

 

सतत विकास की दिशा में सरकार के प्रयास

भारत सरकार द्वारा भी इन लक्ष्‍यों के प्रति प्रतिबद्धता व्‍यक्‍त की गयी और इन लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु कार्यान्वयन, निगरानी तथा विभिन्‍न विभागों के बीच समन्वय की जिम्मेदारी नीति आयोग को सौंपी गयी ।

इस दिशा में जहां  सरकार के अधिकांश कार्यक्रम सतत विकास लक्ष्य को ध्यान में रखकर ही बनाए जा रहे हैं वहीं राज्यों को भी सतत विकास पर अपने-अपने दृष्टि पत्र को तैयार करने तथा उसी के अनुसार कार्य करने की महत्‍वपूर्ण भूमिका दी गयी है ।

 

कोविड-19 महामारी एवं सतत विकास लक्ष्य 

SDG व्यापक रूप से सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय आयामों को कवर करते हैं। उल्लेखनीय है कि कोराना संकट से पहले ही भारत समेत कई देश लक्ष्यों को हासिल करने में पिछड़ रहे थे लेकिन अब कोरोना के बाद लॉकडाउन और पलायन के कारण निर्धनता, भूखमरी, स्‍वास्‍थ्‍य, शिक्षा, रोजगार जैसे लक्ष्‍य ओर दूर हो गए है।

निर्धनता-SDG 1 गरीबी दूर करने के लिए समर्पित है लेकिन महामारी के कारण जहां आशंका है कि करोड़ों लोग गरीबी की दलदल में फंस सकते हैं तथा समाज में आर्थिक असमानता की खाई गहरी होगी ।


भूखमरी- खाद्य और कृषि संगठन तथा अन्य अंतर्राष्ट्रीय संगठनों के सहयोग से जारी रिपोर्ट के अनुसार भारत सबसे बड़ी खाद्य असुरक्षित आबादी वाला देश है । उल्‍लेखनीय है कि वैश्विक प्रयासों से पिछले दो दशकों में कुपोषित लोगों की संख्या लगभग आधी हो गई लेकिन COVID-19 महामारी के कारण वर्ष 2030 तक शून्य भुखमरी के लक्ष्य को प्राप्त करना कठिन प्रतीत हो रहा है।


स्वास्थ्य- महामारी के कारण हाल के वर्षों में स्वास्थ्य क्षेत्र में प्राप्त उपलब्धि को आघात लग सकता है और स्वास्थ्य सेवाओं  तथा टीकाकरण अभियानों में बाधा के कारण शिशु मृत्यु दर, मातृ मृत्यु दर में में वृद्धि होने के साथ एड्स और मलेरिया नियंत्रण अभियानों की गति धीमी होने से इन बीमारियों की बढ़ने की संभावना है।


गुणवत्तापरक शिक्षा- वर्तमान महामारी के दौर में शिक्षा को डिजीटल माध्यम से दिया गया लेकिन भारत में डिजिटल डिवाइड की कमी के कारण सभी तक शिक्षा नहीं पहुंच पायी।


गुणवत्तापरक रोजगार- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार वैश्विक कार्यबल का आधा भाग अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में काम करते हैं तथा महामारी में कई लोग अपने रोजगार तथा नौकरी खो चुके हैं।


स्‍पष्‍ट है कि कोरोना महामारी के व्‍यापक प्रभाव के कारण पलायन और बढ़ती बेरोजगारी से कुछ SDG लक्ष्य और दूर हो गए हैं। हांलाकि वर्ष 2020-21 में कोविड-19 महामारी द्वारा उत्‍पन्‍न  गंभीर बाधाओं के बावजूद भारत ने कुछ लक्ष्‍यों में अच्‍छा प्रदर्शन किया ।


यदि कोविड महामारी का प्रभाव नहीं होता तो भारत के प्रदर्शन और बेहतर होता फिर भी महामारी के दौर में 2020-21 में नीति आयोग SDG इंडिया इंडेक्स द्वारा मापे गए 15 SDG इंडेक्स में से 8 में अच्छा प्रदर्शन, भारत का समग्र स्कोर 60 से बढ़कर 66 होना तथा वर्ष 2021 में फ्रंट रनर राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की संख्या 22 होना संतोषजनक स्थिति को बताता है ।

Nov 21, 2022

मुक्‍त व्‍यापार समझौते के महत्‍व एवं लाभ

प्रश्‍न - मुक्‍त व्‍यापार समझौते के महत्‍व एवं लाभ पर प्रकाश डाले तथा बताए कि भारत के लिए यह किस प्रकार नए युग की आवश्यकताओं के साथ संतुलन बनाने में महत्‍वपूर्ण उपकरण साबित हो सकता हैं।

मुक्‍त व्‍यापार समझौता दो या दो से अधिक देशों के बीच व्यापार बाधाओं को कम करने हेतु किया गया एक समझौता होता है जिसमें  सदस्य देशों को तरजीही व्यापार शर्तें, न्‍यून सरकारी शुल्‍क, टैरिफ रियायतें आदि प्रदान की जाती है। मुक्त व्यापार की अवधारणा व्यापार संरक्षणवाद के विपरीत है जिसको अधिमान्य व्यापार समझौता, व्यापक आर्थिक सहयोग समझौता, व्यापक आर्थिक भागीदारी समझौता के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है।


मुक्त व्यापार समझौतों का महत्व

  • एक व्यापार नीति उपकरण के रूप में नए युग की आवश्यकताओं के साथ संतुलन बनाने में सहायक ।
  • संरक्षणवाद के विपरीत व्‍यापार बाधाओं को कम करने में सहायक ।
  • व्‍यापार हेतु अधिक उदार, सुविधाजनक एवं प्रतिस्पर्द्धी एवं पारदर्शी व्यवस्था बनाने में सहायक।
  • पारस्परिक आर्थिक लाभ और बढ़ी हुई व्यापार सुविधा पर आधारित होने के कारण सुगम व्यापार की सुविधा प्रदान करने में सहायक है।

 

मुक्‍त व्‍यापार समझौते का अपना महत्‍व है और इसके कई लाभ भी है । मुकत व्‍यापार समझौते जिन देशों के बीच होती है उनकी उत्पादन लागत अन्‍य देशों की तुलना में सस्ती हो जाती है। कुछ अपवादों को छोड़ दिया जाए तो यह व्यापार को बढ़ाने सहायक होती है जिससे अर्थव्यवस्था को गति मिलती है और वैश्विक व्यापार में वृदिध होती है । इसके लाभ को देखते हुए ही वर्तमान में कई देश आपस में मुक्त व्यापार संधि कर रहे हैं।

 

भारत भी कई देशों के साथ मुक्‍त व्‍यापार समझौतों को कर रहा है । पिछले कुछ समय से भारत द्वारा कई देशों जैसे यूनाइटेड किंगडम, श्रीलंका, संयुक्‍त अरब अमीरात, आस्‍ट्रेलिया और व्यापार समूहों जैसे आसियान के साथ मुक्‍त व्‍यापार समझौते पर चर्चा की गयी है ।  विश्‍व व्‍यापार संगठन की प्रासंगिकता तथा संरक्षणवादी नीतियों के परिप्रेक्ष्‍य में मुक्‍त  व्‍यापार समझौते भारत के लिए कई प्रकार से लाभदायक है जिसे निम्‍न प्रकार समझा जा सकता है ।

 

जहां आत्मनिर्भर भारत अभियान से भारत की संरक्षणवादी बंद बाज़ार अर्थव्यवस्था की बनती छवि बनती जा रही है तो वहीं हालिया रिपोर्ट के अनुसार विश्‍व की पांचवी बड़ी अर्थव्‍यवस्‍था वाला भारत वर्ष 2030 तक एशिया की दूसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की क्षमता है । अतः भारत के पास आनेवाले वर्षों में अपनी अर्थव्यवस्था को बदलने का एक अवसर है।

 

भारत के लिए मुक्त व्यापार समझौतों का महत्व

  • मुक्त व्यापार समझौते एक व्यापार नीति उपकरण के रूप में नए युग की आवश्यकताओं के साथ संतुलन बनाने में सहायक हो सकते हैं।
  • इसके माध्‍यम से भारत को वैश्विक एवं घरेलू दोनों बाजारों में एक भरोसेमंद उत्पादन क्षमता स्थापित करने में मदद मिलेगी ।
  • इससे भारत के रत्न, आभूषण , इंजीनियरिंग, कृषि-प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ, कपड़ा, प्रौद्योगिकी और वित्तीय सेवाओं जैसे क्षेत्रों को लाभ होने की संभावना है।
  • 2030 तक 2 ट्रिलियन डॉलर के निर्यात लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए, वैश्विक मूल्य श्रृंखलाओं में भारत की सक्रिय भागीदारी आवश्यक है जिसमें इन समझौतों की भूमिका महत्‍वपूर्ण है ।
  • भारत  क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी (RCEP) जैसे प्रमुख FTA से बाहर निकलने के बाद भारत के लिए मुक्त व्यापार समझौता एक विकल्प प्रदान करेगा तथा तथा भारतीय उत्पादों को वैश्विक बाजार तक पहुंच स्थापित करने में सहायक होगा।
  • वर्तमान अंतर्राष्ट्रीय समझौते भारतीय घरेलू उद्योग के लिए लाभकारी नहीं हो रहा है। पिछले कई वर्षों से भारत का आयात तो बढ़ा  लेकिन निर्यात में वृद्धि अत्यंत धीमी है । अत: इन समझौते से भारत के निर्यात में वृदिध हो सकती है ।
  • मुक्‍त व्‍यापार समझौता न  केवल विकास एवं रोज़गार को प्रोत्साहित करेगा बल्कि व्यवसाय को सुगम एवं सस्ता बनाकर आपूर्ति शृंखलाओं में विविधता लाने में मदद करेगा।
  • आत्मानिर्भर भारत योजना का लक्ष्य 2030 तक वन ट्रिलियन डॉलर के निर्यात के साथ भारत को निर्यात हब बनाना है। मुक्‍त व्‍यापार समझौता इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मददगार हो सकता है।
  • बढ़ते वैश्वीकरण तथा संरक्षणवाद के नाम पर भारत  वैश्विक बाजार से पृथक नहीं रह सकता तथा भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने तथा निर्यात को बढ़ाने हेतु हेतु भारत को निर्यात बाजारों पर ध्यान देना होगा जिसके लिए मुक्त व्यापार समझौते मददगार है।

स्‍पष्‍टत: वर्तमान में जहां विश्व व्यापार संगठन में बहुपक्षीय व्यापार वार्ता अवरुद्ध है तथा संगठन की भूमिका शिथिल हो रही है वैसी अवस्था में मुक्‍त व्‍यापार समझौते महत्वपूर्ण हैं जो नए युग की आवश्यकताओं के साथ संतुलन बनाने में महत्‍वपूर्ण उपकरण साबित हो सकता हैं।

सभी प्रश्‍न एवं उत्‍तर हमारे संस्‍थान के नोटस पर आधारित है जिसको आर्डर कर आप अपने घर पर प्राप्‍त कर सकते हैं । 

भारत में 5G तकनीक एवं संभावित उपयोग

 

भारत में 5G तकनीक एवं संभावित उपयोग

Nov 20, 2022

कार्बन कृषि- आडिटर मुख्‍य परीक्षा मॉडल उत्‍तर

कार्बन कृषि-आडिटर मुख्‍य परीक्षा मॉडल उत्‍तर 

आडिटर मुख्‍य परीक्षा 2022 में पूछे गए प्रश्‍न का मॉडल उत्‍तर हमारी टीम द्वारा उपलबध कराया जा रहा है आप चाहे तो इसी प्रकार का मॉडल उत्‍तर आवश्‍यक सुधार करके लिख सकते हैं  

प्रश्‍न - कार्बन कृषि से आपका क्‍या अभिप्राय है ? यह प्रक्रिया किस प्रकार से कृषि प्रणाली बनाम जलवायु परिवर्तन को बदल सकती है 

वह कृषि प्रणाली जिसके द्वारा वायुमंडल में उत्सर्जित ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा को कम करने में मदद मिलती है तथा उत्‍सर्जित कार्बन को भूमि में जमा करने पर जोर दिया जाता है  कार्बन फार्मिंग कहलाता है दूसरे शब्‍दों में  कार्बन फार्मिंग एक ऐसा कृषि मॉडल है जो जलवायु परिवर्तन को बहुत हद तक परिवर्तित करने की क्षमता रखने के साथ साथ सतत एवं टिकाऊ कृषि अभ्‍यास को प्रोत्‍साहन देती है ।

उल्‍लेखनीय है कि कृषि एक महत्‍वपूर्ण क्रिया है तथा वर्तमान में प्रचलित औद्योगिक कृषि व्‍यापक स्‍तर पर पर्यावरणीय विनाश का कारण बन रहे हैं और कार्बन उत्‍सर्जन में अपनी भागीदारी के द्वारा जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया को तेज कर रहे हैं । कृषि कार्य में कार्बन उत्‍सर्जन को निम्‍न प्रकार से समझा जा सकता है।

कार्बन कृषि के लाभ  

  • कार्बन कृषि के तहत अपनायी गयी  प्रक्रिया कार्बन कैप्चर को इष्टतम करती है जो वातावरण से CO2 को हटाने में मदद करने के साथ साथ कार्बन को वैसे कार्बनिक पदार्थ में परिवर्तित करने की दर में सुधार लाते हैं जो पौधों एवं मृदा के लिए उपयोगी होते हैं।
  • कार्बन फार्मिंग में किसानों को वैसे कृषि प्रक्रियाओं हेतु भी प्रोत्‍साहित किया जा सकता है जिसके माध्‍यम से न केवल वे अपनी पैदावार में सुधार ला सकते हैं बल्कि कार्बन की कार्बन की जब्ती कर उन्‍हें कार्बन बाज़ारों में बेच कर आय भी अर्जित कर सकते हैं।
  • कार्बन कृषि के माध्‍यम से मृदा स्‍वास्‍थ्‍य में सुधार से पैदावार में सुधार, कार्बन क्रेडिट से प्राप्त आय, गुणवत्तायुक्त और रसायन-मुक्त खाद्य प्राप्‍त करने का लक्ष्‍य प्राप्‍त किया जा सकता है।  

इस प्रकार कार्बन कृषि मॉडल जहां कार्बन उत्‍सर्जन में कमी करते हुए जलवायु परिवर्तन का मुक़ाबला करने में मदद करती है वहीं वृहत आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा जाल सुनिश्चित करते हुए उनकी आय को बढ़ाने में भी मददगार है।

कृषि एवं कार्बन उत्‍सर्जन  

कृषि वैश्विक ग्रीन हाऊस गैसों के उत्सर्जन में लगभग एक तिहाई का योगदान देती है तथा हालिया रिपोर्ट के अनुसार भारत में इन गैसों के उतसर्जन में कृषि की हिस्‍सेदारी लगभग 14% है जिसमें मुख्‍य रूप से पशुधन क्षेत्र, नाइट्रोजन उर्वरकों का प्रयोग और चावल की खेती, कृषि अवशिष्‍टों का निपटना, पराली जलाने जैसे मुख्‍य कारक शामिल है ।

इस दिशा में पर्यावरण अनुकूल कषि को प्रोत्साहन देने तथा जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों के प्रति लचीला बनाने हेतु राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन, परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY) के तहत भारतीय प्राकृतिक कृषि पद्धति कार्यक्रम को प्रोत्साहन दिया जा रहा है जिसके तहत रासायनिक या जैविक खाद का उपयोग नहीं होता तथा मिट्टी की सतह पर रोगाणुओं, केंचुओं द्वारा कार्बनिक पदार्थों के अपघटन को प्रोत्साहित कर धीरे धीरे मिट्टी में पोषक तत्त्वों की वृद्धि की जाती है । 

इस दिशा में बिहार में जलवायु परिवर्तन से निपटने हेतु सरकार ने जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम आरंभ किया है जिसके दो घटक है

  1. जलवायु संबंधी वर्तमान और भावी जोखिमों से निपटने के लिए चलाने लायक योजना ।
  2. राज्य के सभी जिलों में जलवायु अनुकूल प्रौद्योगिकियों का प्रदर्शन ।

बिहार के सभी 38 जिलों में जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम की स्वीकृति दी गई, प्रमुख विशेषताएं इस प्रकार हैं-

  • जल, खरपतवारपोषण आदि  के प्रबंधन संबंधी सर्वोत्तम  व्यवहार ।
  • मिट्टी और जलवायु की उपलब्धि स्थितियों के अनुसार व्यवहारिक फसल विविधीकरण ।
  • कम और मध्यम अवधि के जलवायु अनुकूल फसल प्रभेद
  • हैप्पी सीडर, सुपर सीडर  और स्ट्रॉ  बेलर के जरिए फसल के अपशिष्ट का प्रबंधन 
  • जलवायु अनुकूल कृषि कार्यक्रम के तहत फसलों की ठूंठ प्रबंधन हेतु उपयुक्त मशीन के माध्यम से पुआल के प्रबंधन ।
  • बिहार के 11 कृषि विकास  केंद्रों में  जैव कोयला उत्पादन की नई पहल आरंभ की गई है । इन केंद्रों में फसलों की  ठूंठ को कार्बन बहुल  जैव उर्वरक पदार्थ में बदल दिया जाता है जिसके कारण वातावरण में हरित गैसों के उत्सर्जन से बचाव होता है।

स्‍पष्‍ट है आनेवाले वर्षों में जनसंख्या बढ़ने के साथ साथ कृषि उत्पादों की मांग भी बढ़ेगी ऐसे में में कृषि पारिस्थितिकी को संरक्षित रखते हुए जलवायु अनुकूल एवं स्मार्ट कृषि अभ्‍यासों को प्रोत्‍साहन देने की आवश्‍यकता है ।

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आसियान एवं भारत संबंध

 

आसियान एवं भारत संबंध 

Nov 18, 2022

भारतीय शिपिंग उद्योग व्‍यापक संभावनाओं से युक्‍त

 भारतीय शिपिंग उद्योग व्‍यापक संभावनाएं

Nov 16, 2022

खाद्य एवं पोषण सुरक्षा

 

खाद्य एवं पोषण सुरक्षा

भारतीय लोकतंत्र में लैंगिक समानता

भारतीय लोकतंत्र में लैंगिक समानता

प्रश्‍न- वैश्विक लैंगिक अंतराल (Global Gender Gap Index) सूचकांक 2022 के संदर्भ में भारतीय राजनीति में लैंगिक समानता ज्‍यादा बेहतर स्थिति में नहीं है। हांलाकि इस दिशा में कुछ चुनौतिया अभी भी विद्यमान है जिनको दूर करने और सतत विकास लक्ष्‍य को प्राप्‍त करने हेतु और प्रयास किए जाने की आवश्‍यकता है । चर्चा करे

विश्व आर्थिक मंच द्वारा जारी वैश्विक लैंगिक अंतराल (Global Gender Gap Index) सूचकांक 2022 में भारत को चार प्रमुख मानकों के आधार पर 146 देशों में से 135वें स्थान पर रखा है।

इस सूचकांक के एक मुख्‍य आयाम राजनीतिक अधिकारिता (संसद में और मंत्री पदों पर महिलाओं का प्रतिशत) में भारत 146 देशों में 48वें स्थान पर है जो एक संतोषजनक स्थिति कही जा सकती है लेकिन इस दिशा में और प्रयास किए जाने की आवश्‍यकता है । उल्‍लेखनीय है कि इस सूचकांक के अनुसार पड़ोसी देश बांग्लादेश 0.546 के स्कोर के साथ 9वें स्थान पर है।

भारतीय संविधान में पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान राजनीतिक और नागरिक अधिकार प्रदान किए हैं ताकि भारत में राजनीतिक क्षेत्र में लैंगिक समानता सुनिश्चित किया जा सके ।    

भारतीय संविधान में लैंगिक समानता संबंधी प्रावधान

मौलिक अधिकार

पुरुषों और महिलाओं को समान मौलिक अधिकारों की गारंटी

नीति निदेशक तत्वों

पुरुषों और महिलाओं दोनों के लिए समान काम के लिए समान वेतन

काम की मानवीय स्थितियों और मातृत्व राहत के प्रावधान द्वारा महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण ।

अनुच्छेद 325 और 326

निर्धारित मतदान और चुनाव लड़ने के राजनीतिक अधिकार

73वें एवं 74वें संशोधन अधिनियम

स्‍थानीय निकायों में महिलाओं के लिए सीटों की कुल संख्या का एक तिहाई आरक्षण

 

उल्‍लेखनीय है कि भारतीय राजनीति में लैंगिक समानता यानी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी समावेशी एवं विकासशील शासन व्‍यवस्‍था हेतु अत्‍यंत है जिसकी आवश्यकता को निम्‍न प्रकार से समझा जा सकता है-

  • अनुच्छेद 14 एवं 15 में दिए गए संवैधानिक प्रावधानों को सुनिश्चित करने हेतु।
  • बिना किसी भेदभाव के कानून का राज, समावेशी समाज की स्थापना हेतु।
  • मूल अधिकार, मौलिक कर्तव्य तथा नीति निर्देशक सिद्धांतों में दिए गए प्रावधानों को अमल में लाने हेतु।
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में दिए गए उद्देश्यों सामाजिक न्याय एवं समानता सुनिश्चित करने हेतु।
  • महिलाओं की प्राकृतिक, सामाजिक तथा आर्थिक स्थिति पुरुषों से अलग होने के कारण उनके अधिकारों के संरक्षण हेतु।
  • जनरल आफ इकानॉमिक्‍स एंड ऑर्गनाइजेशन में प्रकाशित एक शोध में यह सामने आया है कि सरकार में महिलाओं की ज्‍यादा भागीदारी  होने से भ्रष्‍टाचार कम होता है। 125 देशों में हुये इस शोध से पता चलता है कि जिन देशों की संसद में महिलायें ज्‍यादा हैं, वहाँ भ्रष्‍टाचार काफी कम हो गया है।
  • रिपोर्ट के अनुसार राजनीति में महिलाओं की भागीदारी के मामले में भारत 51वें स्थान पर है। भारत में महिला मंत्रियों की संख्या वर्ष 2019 में 23.1% थी जो वर्ष 2021 में घटकर 9.1% रह गई है।

भारतीय संविधान एवं अन्‍य प्रावधानों के बावजूद भारतीय राजनीति में महिलाओं का प्रतिनिधित्व कम है हांलाकि स्‍थानीय शासन में सरकार के प्रयासों के कारण महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है फिर भी अनेक ऐसे कारण है जिनके कारण इस दिशा में पर्याप्‍त सफलता नहीं मिल पायी है।

लिंग आधारित रूढ़ियां

  • भारतीय समाज में घरेलू कार्यों के प्रबंधन की पारंपरिक भूमिका के कारण कई महिलाएं घर से बाहर निकल नहीं पाती और समाज द्वारा भी इस प्रकार का प्रोत्‍साहन नहीं दिया जाता।

राजनीतिक शिक्षा एवं ज्ञान की कमी

  • राजनीति शिक्षा एवं समझ की कमी तथा राजनीतिक एवं मौलिक अधिकारों से अनभिज्ञता महिलाओं की सामाजिक गतिशीलता को प्रभावित करती है और वह स्‍थानीय स्‍तर पर भी राजनीति में सक्रिय नहीं हो पाती ।
  • महिलाओं की राजनीति के क्षेत्र में कम रुचि एवं ज्ञान की कमी के कारण राजनीतिक बहस और चर्चा में भाग नहीं लेती और इस क्षेत्र में आने के प्रति निष्‍क्रिय रहती है ।

निरक्षरता

  • पुरुषों की साक्षरता दर 82.14% से की तुलना में महिलाओं की साक्षरता दर 65.46% है । इस प्रकार अशिक्षा महिलाओं की राजनीतिक व्यवस्था और मुद्दों को समझने की क्षमता को सीमित करती है ।

आत्मविश्वास की कमी

  • औपचारिक राजनीतिक संस्थानों में कम प्रतिनिधित्व का एक मुख्य कारण आत्मविश्वास की कमी है ।

आर्थिक स्थितियां

  • वर्तमान भारतीय समाज में कई महिलाएं अपने घरों तक ही सीमित रहती हैं और उनके जीवन के बड़े फैसले उनके परिवार के पुरुष सदस्‍य जैसे पिता, भाई या पति द्वारा लिए जाते हैं।
  • विभिन्‍न राजनीतिक दलों की आंतरिक संरचना में भी महिलाओं की संख्‍या कम होने से उनके संसाधन भी सीमित होते हैं और इस कारण विभिन्‍न अवसरों पर उनको पर्याप्‍त वित्‍तीय सहायता नहीं मिल पाती ।

लैंगिक समानता की दिशा में सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने में भारत के प्रदर्शन को देखा जाए तो किए जानेवाले प्रयास 2030 के तय सीमा से दूर है अत: इस दिशा में राजनीति में लैंगिक समानता सुनिश्चित करने हेतु निम्‍न सुझाव को अपनाया जा सकता है-

  • महिला उम्मीदवारों में राजनीति कौशल विकास हेतु परामर्श और प्रशिक्षण कार्यक्रम की व्‍यवस्‍था ताकि स्थानीय, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय राजनीति हेतु उनमें आवश्यक कौशल का विकास हो ।
  • महिलाओं की राजनीतिक भागीदारी बढ़ाने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रमों, वित्‍त पोषण कार्यक्रमों को सरकारी द्वारा समर्थन ।
  • महिलाओं के अनूकुल राजनीतिक समारोहों, बैठकों का आयोजन ताकि ऐसे समारोहों में महिलाओं की भागीदारी बढ़े ।
  • विभिन्‍न राजनीतिक दलों के भीतर महिला विंग की स्‍थापना ताकि महिला संबंधी समस्‍याओं एवं उनके प्रोत्‍साहन देने वाले कार्यो को किया जा सके।
  • महिला प्रतिनिधित्व को बढ़ावा देने में आनेवाली बाधाओं तथा चुनौतियों पर नजर रखना तथा उसे दूर करने हेतु आवश्‍यक नीति निर्माण करना
  • महिलाओं के प्रतिनिधित्व पर सामाजिक दृष्टिकोण में बदलाव लाने हेतु प्रयासों को बढ़ावा देना ।

बिहार सरकार महिलाओं को सशक्‍त करने के क्रम में पंचायती राज संस्थानों और नगरपालिका निकाय में  महिलाओं को 50%  आरक्षण के अलावा सभी सरकारी सेवाओं में नियुक्ति में महिलाओं को 35% आरक्षण, बिहार आरक्षी सेवाओं में 35% आरक्षण जैसी व्‍यवस्‍था की गयी है ।

अत: इस प्रकार की व्‍यवस्‍था राज्‍य विधानमंडल एवं केन्‍द्र सरकार के स्‍तर पर भी किए जाने की आवश्‍यकता है। ताकि भारतीय शासन व्‍यवस्‍था को लैंगिक रूप से समावेशी बनाया जा सके और  नीति-निर्माण और शासन में महिलाओं की भागीदारी बढ़ायी जा सके।   


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