BPSC Special
Oct 30, 2022
समान नागरिक संहिता की आवश्यकता एवं बाधाएं
प्रश्न- " भारत में समान नागरिक संहिता को लागू किए जाने आवश्यकता के बावजूद कुछ ऐसे कारण है जिसके कारण यह अभी तक संपूर्ण भारत में लागू नहीं किया जा सका। " चर्चा करें ।
Oct 27, 2022
चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक 2021
प्रश्न- "भारत जैसे लोकतांत्रिक देशों में एक
दोष-मुक्त मतदाता सूची, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव की
अनिवार्य शर्त है।" सरकार द्वारा लाए गए चुनाव कानून
(संशोधन) विधेयक 2021 के परिप्रेक्ष्य में इस कथन की
समीक्षा करें।
भारत एक लोकतांत्रिक
देश है जिसके संचालन हेतु स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आवश्यक है और इसे सुनिश्चित
करने में एक दोषमुक्त मतदाता सूची अनिवार्य शर्त है । भारत जैसे लोकतांत्रिक देश में
दोषमुक्त मतदाता सूची के महत्व को निम्न प्रकार से समझा जा सकता है ।
- नागरिकों (महिलाओं, अल्पसंख्यकों, पिछड़ो) के संवैधानिक अधिकार को सुनिश्चित
करने हेतु ।
- संवैधानिक प्रावधानों में उल्लेखित सार्वभौम मताधिकार के अनुपालन हेतु।
- मतदाताओं की आकांक्षाओं को न्यायपूर्ण ढंग से व्यक्त करने हेतु ।
- प्रत्येक नागरिकों की इच्छाओं के सम्मान तथा उसके अनुरूप सरकार के चुनाव हेतु ।
- नागरिकों में संवैधानिक प्रक्रियाओं एवं संस्थाओं के प्रति सम्मान जाग्रत करने हेतु ।
- लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं के अनुकूल स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव हेतु ।
भारत
की राजनीति व्यवस्था में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 में निर्वाचक नामावली से संबंधित प्रावधान
है जिसको और प्रासंगिक और दोषमुक्त बनाने की प्रक्रिया में हाल ही में सरकार द्वारा
चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, 2021 पारित किया
गया जिसके मुख्य प्रावधान निम्नलिखित है-
- यह निर्वाचक नामावली डेटा और मतदाता पहचान पत्र (Voter ID Cards) को आधार (Aadhaar) से जोड़ने का कार्य करेगा ताकि विभिन्न स्थानों पर एक ही व्यक्ति के एक से अधिक नामांकन को रोका जा सके।
- मतदाता
पंजीकरण हेतु 'सेवा मतदाताओं की पत्नियों'
(Wives of Service Voters) शब्दावली के स्थान पर अब 'जीवन साथी' (Spouse) शब्द का प्रयोग किया जाएगा।
- मतदाता
सूची को अपडेट करने हेतु पूर्व तिथि 1 जनवरी
के बजाय चार क्वालिफाइंग तिथियों जनवरी, अप्रैल, जुलाई और अक्टूबर माह का पहला दिन का प्रस्ताव है जिस दिन 18 वर्ष पूरा करने वाले व्यक्ति को इसमें शामिल किया जा सकता है।
सरकार
द्वारा प्रस्तुत विधेयक के प्रावधान को देखा जाए तो निश्चित रूप से मतदाता सूची में
व्याप्त कुछ दोषों को यह कम करने में मदद करेगा जैसे
- आधार को जोड़े जाने पर यह फर्जी वोटिंग और फर्जी मतों को रोकने में सहायक होगा ।
- मतदाता पहचान के साथ आधार को जोड़ने से दूरस्थ मतदान की सुविधा मिलेगी जिससे प्रवासी भी अपने वोट के अधिकार का प्रयोग कर सकेंगे ।
- पंजीकरण
में 'जीवन साथी' (Spouse) शब्द का प्रयोग से यह ज्यादा ‘लिंग-तटस्थ’ होगा।
हांलाकि
उपरोक्त कानून स्वागतयोग्य है तथा मतदाता सूची को ज्यादा प्रासंगिक तथा लैंगिक
तटस्थ बनाता है लेकिन इसके साथ साथ कुछ चिंताएं
भी है जिनमें प्रमुख है
सरकार के पास अंतिम अधिकार
- आधार न होने की स्थिति में मतदाता सूची में शमिल करने या न करने का अंतिम अधिकार आवश्यक शर्तों के साथ केंद्र सरकार के पास होगा जो नागरिक के संवैधानिक अधिकार का हनन कर सकता है।
उत्तरदायित्व का हस्तांतरण
- भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था में सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को सुनिश्चित करने की जिम्मेवारी जो सरकार की है जिसे इस कानून द्वारा नागरिकों को हस्तांतरित कर दिया गया है ।
निजता संबंधी चिंताएँ
- आधार और चुनाव संबंधी डेटाबेस के बीच लिंकेज से नागरिकों के मौलिक अधिकार यानी निजता के अधिकार का हनन हो सकता है। हाल के कई ऐसे उदाहरण है जिसमें नागरिकों के डेटा लिकेज हुए है ।
लाभार्थी मतदाताओं तक पहुंच हेतु
- मतदाता पहचान पत्र को आधार से जोड़े जाने पर सरकार पॉलिटिकल प्रोफाइलिंग बनाकर इन डाटाओं का उपयोग राजनीतिक दलों द्वारा अपने मतदाताओं को लक्षित करने हेतु कर सकती है ।
इस प्रकार इस विधेयक के माध्यम से जहां मतदाता सूची को दोषमुक्त
बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं वहीं दूसरी ओर इससे कुछ अन्य चिंताएं भी उत्पन्न
हुई है जिनको हल किया जाना अत्यंत आवश्यक है ।
उल्लेखनीय है कि चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक 2021 को
संसद द्वारा बिना किसी संसदीय जांच,
विचार-विमर्श, वाद-विवाद के जल्दबाजी
में लाया गया । एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में जहां निष्पक्ष एवं स्वतंत्र चुनाव
आवश्यक है वहीं नागरिकों के मौलिक अधिकार भी सुनिश्चित होने चाहिए।
अत: स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव हेतु दोष-मुक्त मतदाता
सूची निर्माण की प्रक्रिया में सरकार को इससे संबंधित चिंताओं को समझना होगा और संसद
में उपयुक्त प्रक्रियाओं द्वारा कमियों को दूर करने का प्रयास करना उचित होगा।
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न एवं उत्तर का लिंक
BPSC मुख्य परीक्षा के नोटस की जानकारी अथवा सैंपल बुक देखने हेतु Whatsapp करें 74704-95829 या हमारे वेवसाइट gkbucket.com पर जाकर स्वयं अवलोकन करें।
BPSC मुख्य परीक्षा संबंधी नोट्स की विशेषताएं
- To the Point और Updated Notes
- सरल, स्पष्ट एवं बेहतर प्रस्तुतीकरण ।
- प्रासंगिक एवं परीक्षा हेतु उपयोगी सामग्री का समावेश ।
- सरकारी डाटा, सर्वे, सूचकांकों, रिपोर्ट का आवश्यकतानुसार समावेश
- आवश्यकतानुसार टेलीग्राम चैनल के माध्यम से इस प्रकार के PDF द्वारा अपडेट एवं महत्वपूर्ण मुद्दों को आपको उपलब्ध कराया जाएगा ।
- रेडिमेट नोट्स होने के कारण समय की बचत एवं रिवीजन हेत उपयोगी ।
- अन्य की अपेक्षा अत्यंत कम मूल्य पर सामग्री उपलब्ध होना।
- मुख्य परीक्षा को समर्पित टेलीग्राम ग्रुप की निशुल्क सदस्यता जिसमें आप लेखन अभ्यास एवं स्वमूल्याकंन कर सकते हैं ।
Oct 26, 2022
भारतीय चुनाव प्रणाली एवं चुनाव आयोग
Oct 22, 2022
Oct 20, 2022
न्यायपालिका की न्यायिक सक्रियता
प्रश्न- संविधान की व्याख्या के अधिकार ने एक ओर जहां न्यायपालिका
के न्यायिक सक्रियता को शक्ति दी वही दूसरी ओर न्यायालय को प्रशासन, सुधारक,
नीति निर्धारक की भूमिका निभाने का अवसर भी प्राप्त हुआ । चर्चा
करें ।
न्यायपालिका
द्वारा कार्यपालिका के कार्यों को ग्रहण करना न्यायिक सक्रियता कहलाता है। उल्लेखनीय
है कि संविधान की व्याख्या का अधिकार न्यायालय के पास है और आरंभ में न्यायालय ने
विधि की स्थापित प्रक्रिया के आधार पर संविधान की व्याख्या की लेकिन मेनका गांधी
बनाम भारत संघ 1978 मामले में न्यायालय ने विधि की सम्यक प्रक्रिया को अपनाया जिससे न्यायिक सक्रियता
की अवधारणा को मजबूती मिली ।
उल्लेखनीय
है कि संविधान में न्यायिक सक्रियता के संबंध में कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है फिर
भी ऐसे अनेक अनुच्छेद है जिसके माध्यम से अप्रत्यक्ष रूप से न्यायालय ने अपनी व्याख्या
के अधिकार को विस्तार दिया।
अनुच्छेद
13 राज्य
कोई ऐसा विधि नहीं बनाएगा जिससे मूल अधिकारों का उल्लंघन होता है । |
अनुच्छेद
32 न्यायपालिका
नागरिकों के मूल अधिकारों का संरक्षक। |
अनुच्छेद
131 एवं समवर्ती सूची केन्द्र
एवं राज्य विवाद में विधि के प्रश्न पर हस्तक्षेप का अधिकार |
अनुच्छेद
368 संविधान
संशोधन संबंधी प्रावधान |
उपरोक्त संवैधानिक प्रावधानों तथा व्याख्या के अधिकार से परिपूर्ण न्यायपालिका ने सरकार की गैर संवैधानिक राजनीतिक, आर्थिक और पर्यावरण अवनयन संबंधी नीतियों के परिप्रेक्ष्य में अपनी सक्रियता में वृद्धि की जिसके फलस्वरूप वह एक प्रशासक, सुधारक, नीति निर्धारक की भूमिका में सामने आया जिसे निम्न प्रकार से समझा जा सकता है।
एक प्रशासक के रूप में न्यायपालिका
- राजमार्गो के आस-पास शराबबंदी के आदेश ।
- एनजीटी का गठन संबंधी आदेश ।
- दिल्ली में बढ़ते प्रदूषण पर दिल्ली सरकार को निर्देश ।
- कोविड महामारी के दौरान ऑक्सीजन संकट पर जारी निर्देश ।
- नदी
जल बंटवारा, राज्यपाल की नियुक्ति इत्यादि मामलों में निर्णय।
सुधारक के रूप में
- गोलकनाथ, केशवानंद भारती, मेनका गांधी वाद जैसे दूरगामी निर्णय।
- नागरिकों
के मौलिक अधिकार जैसे निजता, स्वतंत्रता पर दिए गए निर्णय ।
- जनहित याचिका द्वारा विभिन्न अवसरों पर दिए गए निर्णय ।
नीति निर्धारक के रूप में
- चुनाव सुधार हेतु समय-समय पर महत्वपूर्ण दिशा निर्देश जारी किया जाना ।
- अनुच्छेद 368 के तहत किया गया कोई भी संविधान संशोधन यदि वह संविधान की मूल संरचना के विरुद्ध है
- गोलकनाथ, केशवानंद भारती, मेनका गांधी वाद, विशाखा दिशा निर्देश, जैसे दूरगामी निर्णय।
उपरोक्त
से स्पष्ट है कि न्यायपालिका संविधान के संरक्षण के अपने कर्तव्यों के निर्वहन
के क्रम में अप्रत्यक्ष रूप से न्यायिक सक्रियता की शक्ति भी प्राप्त की जिसके
माध्यम से वह न केवल न्याय जैसे पुनीत कार्यों
को संपादित कर रहा है बल्कि एक प्रशासक, सुधारक, नीति निर्धारक
की भूमिका भी निभा रहा है ।
उल्लेखनीय
है कि भारतीय शासन व्यवस्था में कार्यपालिका, विधायिका तथा न्यायपालिका के अधिकार क्षेत्र
एवं कार्य संविधान द्वारा निर्धारित किए गए हैं जिसमें पर्याप्त संतुलन एवं समन्वय
स्थापित किया गया है अत: न्यायपालिका को न्यायिक संयम के साथ नियंत्रण एवं संतुलन
की सीमा तक हस्तक्षेप करना उचित होगा।
BPSC मुख्य परीक्षा के नोटस की जानकारी अथवा सैंपल बुक देखने हेतु Whatsapp करें 74704-95829 या हमारे वेवसाइट gkbucket.com पर जाकर स्वयं अवलोकन करें।
BPSC मुख्य परीक्षा संबंधी नोट्स की विशेषताएं
- To the Point और Updated Notes
- सरल, स्पष्ट एवं बेहतर प्रस्तुतीकरण ।
- प्रासंगिक एवं परीक्षा हेतु उपयोगी सामग्री का समावेश ।
- सरकारी डाटा, सर्वे, सूचकांकों, रिपोर्ट का आवश्यकतानुसार समावेश
- आवश्यकतानुसार टेलीग्राम चैनल के माध्यम से इस प्रकार के PDF द्वारा अपडेट एवं महत्वपूर्ण मुद्दों को आपको उपलब्ध कराया जाएगा ।
- रेडिमेट नोट्स होने के कारण समय की बचत एवं रिवीजन हेत उपयोगी ।
- अन्य की अपेक्षा अत्यंत कम मूल्य पर सामग्री उपलब्ध होना।
- मुख्य परीक्षा को समर्पित टेलीग्राम ग्रुप की निशुल्क सदस्यता जिसमें आप लेखन अभ्यास एवं स्वमूल्याकंन कर सकते हैं ।
मुख्य परीक्षा के नोटस
के लिए सैंपल हेतु अथवा ज्यादा जानकारी हेतु 74704-95829 पर कॉल/ Whatsapp
करें ।
प्रश्न- न्यायिक नियुक्तियों को राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त
रखने के क्रम में न्यायपालिका द्वारा कॉलेजियम नामक एक सुरक्षा कवच का विकास किया
गया ? चर्चा
करें
भारतीय
संविधान में कार्यपालिका, विधायिका और न्यायपालिका नियंत्रण
एवं संतुलन (Check and Balance) के
सिदधांत पर कार्य करती है और इसके लिए प्रत्येक स्तंभ को एक दूसरे से स्वतंत्रत
रखने की व्यवस्था की गयी है ।
इसी
सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए संविधान में अनुच्छेद 124 (2) द्वारा सर्वोच्च
न्यायालय और 214 द्वारा उच्च न्यायालय को निष्पक्ष, स्वतंत्र एवं राजनीतिक हस्तक्षेप से मुक्त रखने रखने संबंधी प्रावधान किए गए । फिर भी ऐसे कई अवसर
आए है जब न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं बर्खास्तगी में राजनीतिक प्रभाव स्पष्ट रूप
से परिलक्षित होता है।
- वर्ष
1973
एवं 1977 में वरिष्ठता के सिद्धांत का उल्लंघन
करते हुए सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति की गयी।
- 1977 में जस्टिस H.R. Khanna सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश थे जबकि जस्टिस M.H. Beg को मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया।
- 1993 में वी रामास्वामी पर चलाया गया महाभियोग की प्रक्रिया भी कही न कही राजनीति से प्रेरित था।
न्यायाधीशों
की नियुक्ति संबंधी विवाद
हांलाकि
उपरोक्त उदाहरणों में संवैधानिक प्रावधानों के संदर्भ में न्यायाधीशों की
नियुक्ति की गयी लेकिन इसमें परामर्श शब्द विवाद का विषय रहा जिसके कारण कार्यपालिका
एवं न्यायपालिका के बीच टकराव बढ़ा और न्यायपालिका की स्वतंत्रता में हस्तक्षेप
बढ़ा ।
कार्यपालिका
के न्यायाधीशों की नियुक्ति में बढ़ते हस्तक्षेप और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा समय-समय
पर अपने निर्णयों के माध्यम से 'परामर्श' शब्द
की दी गयी व्याख्या के परिप्रेक्ष्य में कॉलेजियम व्यवस्था का विकास हुआ । कॉलेजियम
व्यवस्था के विकास को न्यापालिका के 3 महत्वपूर्ण निर्णयों के माध्यम से समझा जा सकता है जो निम्न है -
कॉलेजियम
का उदय
प्रथम
न्यायाधीश मामले (1982) एस.पी.गुप्ता बनाम भारत संघ 1982
- इसमें दिए गए निर्णय से हांलाकि न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया में कोई मूलभूत बदलाव नहीं आया फिर भी कॉलेजियम की पृष्ठभूमि इसके द्वारा बनी ।
द्वितीय
न्यायाधीश मामले (1993)
- इस निर्णय से न्यायिक नियुक्ति प्रक्रिया का संवैधानिक संतुलन पूरी तरह न्यायपालिका के पक्ष में हो गया।
- इस निर्णय के संबंध में न्यायपालिका द्वारा कहा गया कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता संविधान के मूल ढांचे का भाग है और इसे सुनिश्चित करने हेतु न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया को राजनीति से अलग रखा जाए।
तृतीय
न्यायाधीशों के मामले (1998)
- न्यायालय द्वारा कहा गया कि भारत के मुख्य
न्यायाधीश द्वारा अपनाई जाने वाली परामर्श प्रक्रिया के लिये ‘न्यायाधीशों के सम्मिलित परामर्श’ की आवश्यकता होती
है। इस प्रकार न्यायिक नियुक्ति में कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत होती है।
उल्लेखनीय है कि भारत के मूल संविधान में या
संशोधनों में कॉलेजियम का कोई उल्लेख नहीं है तथा राजीनतिक हस्तक्षेप की पृष्ठभूमि में 'परामर्श' शब्द की व्याख्या पर उठे प्रश्नों के
संदर्भ में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच उत्पन्न विवाद से न्यायाधीशों की
नियुक्ति में कोलोजिमय की संकल्पना का उदय होता है ।
इसके माध्यम से न्यायपलिका द्वारा न केवल न्यायिक
नियुक्ति के अधिकारों को अपने हाथों में केन्द्रित कर लिया जाता है बल्कि इसे संविधान
की मूल संरचना से जोड़कर एक सुरक्षा कचव का रूप दिया जाता है जिसे तोड़ने का कार्य केवल न्यायपालिका
ही कर सकती है।
इसी प्रकार से
अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नों के मॉडल उत्तर आप नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से देख
सकते हैं
भारतीय संविधानएवं राजव्यवस्था
Oct 19, 2022
प्रश्न-
प्रस्तावना की प्रकृति स्पष्ट करते हुए शासन व्यवस्था के
संचालन में इसकी भूमिका का उल्लेख कीजिए।
भारतीय संविधान
की प्रस्तावना जवाहर लाल नेहरू द्वारा प्रस्तुत किए गए उद्देश्य प्रस्ताव पर
आधारित है जिसे संविधान सभा द्वारा स्वीकार किया गया । प्रस्तावना का अध्ययन
किया जाए तो इसकी प्रकृति के संबंध में निम्न बातें स्पष्ट होती है-
- संविधान निर्माताओं की महान एवं आदर्श सोच का प्रतिविंब
- संविधान का एक महत्वपूर्ण भाग
- वादयोग्य नहीं
- अनुच्छेद 368 के माध्यम से संशोधनीय
- शासन एवं न्याय संबंधी निर्णयों में पथ प्रदर्शक
भारतीय संविधान
की प्रस्तावना संपूर्ण संविधान का दर्पण है जिसमें संविधान की एक झलक मिलती है ।
यह संविधान निर्माताओं की आकांक्षाओं को व्यक्त करता हैं और विभिन्न प्रकार से
शासन संचालन में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है जिसे निम्न प्रकार समझा जा सकता
है।
- प्रस्तावना संविधान
निर्माताओं की महान एवं आदर्श सोच का प्रतिविंब है जो हमें बताता है कि हमें
भारतीय शासन का स्वरूप समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष,
गणतंत्र रूप में रखना है और इसी के अनुसार नीतियों का निर्माण कर
शासन संचालित करना है।
- संविधान के महत्वपूर्ण भाग के रूप में प्रस्तावना यह बताता है कि इसमें भी संशोधन हो सकता है लेकिन भारतीय शासन के मूल स्वरूप को किसी भी प्रकार से समाप्त नहीं किया जा सकता । यानी प्रस्तावना भारतीय शासन व्यवस्था की मौलिकता का संरक्षण करने का निर्देश देता है।
- प्रस्तावना
वादयोग्य नहीं है फिर भी यह शासन के लिए प्रदर्शक की भूमिका का निर्वहन करते हुए
शासन को बताता है कि वह नागरिकों की स्वतंत्रता तथा उनके राजनीतिक,
आर्थिक एवं सामाजिक न्याय के लक्ष्य को प्राप्त करने की दिशा में
नीति निर्माण तथा शासन को संचालित करें ।
- संविधान के किसी भी भाग में अनुच्छेद 368 द्वारा संशोधन हो सकता है लेकिन भारतीय शासन व्यवस्था के मूल संरचना में परिवर्तन नहीं हो सकता । अत: कई महत्वपूर्ण मामलों में प्रस्तावना शासन का मार्गदर्शन करती है जिसके माध्यम से भारतीय शासन का संचालन होता है ।
- न्यायालय के समक्ष कई ऐसे मामले आए है जब संविधान के गहन एवं मूल प्रश्न शामिल होते हैं तो इस स्थिति में न्यायालय भी प्रस्ताव का सहारा लेते हुए अपने निर्णय करता है । इस प्रकार यह पथ प्रदर्शक की भूमिका में रहते हुए शासन संचालन में मार्गदर्शन करता है ।
Oct 18, 2022
कोविड काल एवं संघ राज्य संबंध
सामान्यतः भारतीय संघवाद सहयोगी
के बजाय परस्पर विरोधी की भावना में ही रहा है विशेषकर उस स्थिति में जब केन्द्र
और राज्य में अलग अलग दल की सरकारें रही हो। कोरोना महामारी के दौरान केन्द्र
राज्य संबंध में गहरे मतभेद उजागर हुए हैं।
केन्द्र-राज्य संबंध में राज्यपाल की भूमिका
प्रश्न-केन्द्र एवं राज्य के मध्य संबंधों में राज्यपाल अपनी दोहरी भूमिका को निभाता है लेकिन कई बार इस दोहरी भूमिका में होनेवाला असंतुलन ही विवाद का कारण बनता है । चर्चा करें ।
Oct 16, 2022
संविधान एवं राजव्यवथा- सहयोगी संघवाद
प्रश्न- "सामान्यतः भारतीय संघवाद सहयोगी के बजाय परस्पर विरोध की भावना में ही रहा है विशेषकर उस स्थिति में जब केन्द्र और राज्य में अलग अलग दल की सरकारें रही हो।" कोरोना महामारी के संदर्भ में कथन पर अपने विचार प्रस्तुत करें। ?
Oct 15, 2022
केन्द्र राज्य संबंध-सहयोग एवं शक्ति संतुलन
प्रश्न- भारतीय संविधान द्वारा एक ओर जहां केंद्र राज्य संबंधों में संतुलन बनाते हुए सहयोग एवं समन्वय स्थापित करने की व्यवस्था की गई है, वहीं दूसरी ओर विशेषकर विधायी एवं प्रशासनिक संबंधों में शक्ति संतुलन केंद्र की ओर ज्यादा झुका हुआ है, चर्चा करें ?
Oct 13, 2022
भारतीय संविधान का मूल ढांचा
राष्ट्रपति का निर्वाचन-एकल संक्रमणीय मत प्रणाली
प्रश्न - भारतीय राष्ट्रपति के चुनाव के संदर्भ में एकल संक्रमणीय मत प्रणाली क्या है ? संविधान सभा के कुछ सदस्यों की आलोचनाओं के बावजूद राष्ट्रपति के निर्वाचन हेतु अप्रत्यक्ष चुनाव व्यवस्था को क्यों अपनाया गया?
Oct 12, 2022
Oct 11, 2022
Oct 9, 2022
Oct 8, 2022
Oct 6, 2022
Oct 4, 2022
भारतीय संविधान में संशोधन की श्रेणियां
आज के पोस्ट के माध्यम से भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था में भारतीय संविधान में संशोधन संबंधी महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त करेंगे ।इसी प्रकार के अन्य महत्वपूर्ण लेख नीचे दिए गए लिंक के माध्यम से पढ़ सकते है।
भारतीय संविधान एवं राजव्यवस्था
26 जनवरी 1950 को संविधान लागू होने के बाद जनवरी 2019 तक इसमें 103 संशोधन किए जा चुके है जो संशोधन प्रक्रिया की कठोरता को देखते हुए संशोधनों की यह संख्या बड़ी मानी जाएगी। भारतीय संविधान में किए गए संशोधनों को देखा जाए तो तीन श्रेणियों में बाँटा जा सकता है।
Oct 3, 2022